महान वीरांगना क्षत्राणी हाडी़ रानी

Gyan Darpan
0
"महान वीरांगना क्षत्राणी Hadi Rani" काे मैं काेटी काेटी प्रणाम करता हूँ। आेर उनके चाहने वालाे काे यह मेरी कविता समर्पित करता हुं । हाे सके ताे आप इस कविता काे दुनिया के हर भाई बहन व मिलने वाले तक पहुंचा दाे।

नारी की इज्जत मांगी हैं,
इज्जत की खातीर जाना हैं ।
दुश्मन की सेना बहुत बडी़,
हाेगा मुश्किल आना हैं ।1।

नारी की इज्जत प्यारी हैं,
हाडी़ बाेली भरके दम ।
इज्जत प्यारी दुनिया में,
मत हाेने दाे इसको कम ।2।


अपनी शादी नई नई हैं,
क्या करे रानी हम ।
तेरी चिन्ता हाे रही हैं,
कैसे जाये रण में हम ।3।

रानी तुम नादान हाे,
मेरे कुछ हाे गया ताे ।
क्या हाेगा तेरा हाडी़,
युद्धमें मैं खप गया ताे ।4।

माेह पति का जान कर,
मन की बात पहचानकर ।
साेच साेच कर हाडी़ रानी,
फिर कारण काे तलाशकर ।5।

आप युद्ध की तैयारी कराे,
मेरी चिन्ता नहीं करनी हैं ।
ऊंचा रखुंगी नाम आपका,
हाडी़ ऐसी क्षत्राणी है ।6।

ओर युद्ध की तैयारी हुई,
राजा बाेले हाडी़ तुम ।
ख्याल रखना अपना रानी,
युं वैसे हाे मर्दानी तुम ।7।

मेरा ख्याल रहेगा मन में,
ताे युद्ध कैसे लड़ेगें आप ।
दुश्मन काे नहीं काटा रण में,
ताे आगे कैसे बढ़गें आप ।8।

मुड़मुड़ कर जब देखा राजा,
फिर बैचेन हुई रानी इतनी ।
कर्त्तव्य भुल जायेगें शायद,
जब याद रहेगीं इनकाे रानी ।9।

गढ़ से निकल कर राजा ने,
दासी काे बुलाया अपने पास।
कह दाे निशानी हाडी़ दे दाे,
राजा जी रखेगें अपने पास ।10।

दाेैैडी़ दाेैडी़ दासी आई,
निशानी मांग रहे हैं राजा ।
हाडी़ बाेली सुन रे दासी,
कपडा़ थाल लेकर आजा ।11।

थाल लेकर दासी आई,
कपडा़ साथ उसके लाई ।
क्या करना है रानी सा,
दासी हाडी़ से बतलाई ।12।

तु कह देना राजाजी काे,
शीश भेजा है हाडी़ ने ।
दुनिया से न्यारी निशानी है,
अन्तिम वचन कहे है रानी ने ।13।

वाे थाली दासी काे देकर,
कमर से कटारी निकालकर ।
शीश काट दिया वाे अपना,
जगदम्बे का नाम लेकर ।14।

शीश लेकर दासी गई,
निशानी भेजी है रानी ने ।
खुश हाेकर राजा बोला,
क्या भेजा है हाडी़ ने ।15|

थाल का कपडा़ हटाके देखा,
ताे हाडी़ से नजर मिल गई ।
रानी का शीश गले में पहना,
ओर युद्ध की बिगुल बज गई ।16।

अर्द्धागिनी हाे ताे एेसी हाे,
सम्मान शीर्ष पर पहुंचाये ।
वक्त पडे़ जब गर्दन दे दे,
मां बहनाे का मान बढा़ये ।17।

एक नारी की रक्षा खातीर,
शीश का भेंट चढा़ दिया ।
धन्य धन्य हाड़ी रानी,
धरती का कर्ज चुका दिया ।18।

रक्षा कराे नारी की तुम,
सारी दुनिया काे बता दिया।
शत् शत् नमन "महेन्द्र" का,
रजपूति मान बढा़ दिया ।।

कवि महेन्द्र सिंह राठौड़ "जाखली"

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)