क्रांतिकारियों का शरणदाता रावत जोधसिंह चौहान, कोठारिया

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Rawat Jodhsingh Chauhan, Thikana Kothariya Mewar

राजपुताना के राजाओं को मराठों व पिंडारियों की लूटपाट, आगजनी व आम जनता पर उनकी क्रूरता से त्रस्त शांति की आस में अंग्रेजों से संधियाँ करनी पड़ी| इस तरह मराठों व पिंडारियों के कुकृत्यों ने राजपुताना में स्वत: ही अंग्रेजों को पांव ज़माने का सुनहरा अवसर दे दिया| राजाओं की अंग्रेजों के साथ संधियाँ राजपुताना के कुछ प्रछन्न देशभक्त जागीरदारों को रास नहीं आई और उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के खिलाफ अपनी गतिविधियाँ जारी रखी|

मेवाड़ के प्रथम श्रेणी के ठिकाने कोठारिया के रावत जोधसिंह चौहान स्वाभिमानी होने के साथ ही प्रछन्न देशभक्त थे| उन्हें भी राजपुताना में अंग्रेजों का हस्तक्षेप पसंद नहीं था| लेकिन मेवाड़ के महाराणा का भांजा होने के कारण शुरू में वो खुलकर अंग्रेजों के सामने नहीं आये पर उस वीर पुरुष ने संकट में आये कई देशभक्त क्रांतिकारियों को अपने ठिकाने में अंग्रेजों की परवाह ना करते हुए शरण दी|

मारवाड़ में महान क्रांतिकारी आउवा के ठाकुर कुशालसिंह चम्पावत ने संकट के समय अपने परिवार सहित रावत जोधसिंह के यहाँ आश्रय लिया था| जब इस तथ्य की सूचना अंग्रेजों को मिली तो वे बहुत रुष्ट हुए, लेकिन मेवाड़ के महाराणा का भांजा होने के चलते अंग्रेजों ने रावत जोधसिंह चौहान को छेड़ना उपयुक्त नहीं समझा| उस काल जब बड़े बड़े राजा-महाराजा अंग्रेजों से भयभीत रहते थे, ऐसे में रावत जोधसिंह चौहान द्वारा प्रदर्शित निर्भीक देशभक्ति का चारण कवियों में अपनी रचनाओं में उल्लेख किया| ठाकुर कुशालसिंह आउवा को आश्रय देने पर किसी चारण कवि ने लिखा-

मुरधर छाड़ खुसालसी, भागो चांपो भूप.
रावत जोधे राखिया, रजवट हंदे रूप..


अंग्रेजी हकूमत के खिलाफ खुला सशस्त्र विद्रोह करने वाले तांत्या टोपे को भी जब वह इस क्षेत्र में आया तब रावत जोधसिंह चौहान ने पूरा सहयोग किया| अगस्त 1857 में जब तांत्या टोपे और अंग्रेज सेना के मध्य रुकमगढ़ के छापर में तुमुल युद्ध हुआ तब अत्यधिक थके होने के कारण तांत्या की सेना के पांव उखड़ गए| उसके पास गोला-बारूद की भी भारी कमी थी| दुर्भाग्य से उन दिनों कोठारिया ठिकाने के पास भी पर्याप्त मात्रा में गोला-बारूद नहीं था| उसी समय कोठारिया का एक तोपची अवकाश पर बाहर चला गया, उसकी अनुपस्थिति रावत जोधसिंह को बहुत अखर रही थी, तभी सहसा उस तोपची की सत्तर वर्षीय माँ ने तोपची की जगह स्वयं सम्भाली और संकट के उस काल में उस महिला ने गोला-बारूद के अभाव में लोहे की सांकलें, कील-कांटे, जो भी उस वक्त उपलब्ध हुआ, उसी से काम चलाया| उस वृद्ध महिला के साहस, बहादुरी, कर्तव्यपरायणता और देशभक्ति से प्रसन्न होकर रावत जोधसिंह ने कोठारिया ठिकाने का चेनपुरा गांव उक्त महिला को पारितोषिक रूप में जागीर में दे दिया|

गंगापुर विद्रोह के समय अंग्रेजों की सम्पत्ति की खुली लूट के प्रमुख आरोपी भीमजी चारण ने भी गिफ्तारी से बचने के लिए कोठारिया ठिकाने को ही आश्रय के रूप में चुना| अंग्रेजों की सूचना पर मेवाड़ सरकार द्वारा बार-बार भीमजी चारण की गिरफ्तारी सम्बन्धी आदेश भेजे गए, पर हर बार रावत जोधसिंह ने इन आदेशों की अनदेखी की और क्रांतिकारी भीमजी चारण को अपने संरक्षण में सुरक्षित रखा|
रावत जोधसिंह की इस तरह की गतिविधियों की सारी सूचनाएं अंग्रेजों के पास पहुँच रही थी अत: अंग्रेजों ने रावत जोधसिंह को नुमाईशी तौर पर डराने के उद्देश्य से 8 जून, 1858 को अंग्रेजी रिसाले के साथ जोधपुर का भारी सैन्य दल कोठारिया भेजा| जिसका वीरोचित स्वागत करने के लिए रावत जोधसिंह ने अपने सभी छुटभैया भाई-बंधुओं को आमंत्रित किया जो अपने अपने सामर्थ्यनुसार यथेष्ट सैन्य शक्ति के साथ कोठारिया में युद्धार्थ आ डटे| रावत जोधसिंह ने इस संकटकाल में ठाकुर कुशालसिंह आउवा को परिवार सहित अन्यत्र सुरक्षित गुप्त स्थान पर पहुंचा दिया| अंग्रेज अधिकारी अभी भी रावत जोधसिंह से सीधा संघर्ष करने के पक्ष में नहीं थे, क्योंकि उनकी कार्यवाही से मेवाड़ में क्रांति की आग का ज्यादा भड़कने का स्वाभाविक खतरा था| अत: अंग्रेजों ने रावत जोधसिंह से सिर्फ उनके गढ़ की तलाशी लेने का आग्रह किया| रावत जोधसिंह ने अपना पूरा गढ़ अंग्रेजों को दिखा दिया, जहाँ ठाकुर कुशालसिंह आउवा सहित अन्य कोई क्रांतिकारी नहीं मिलने पर अंग्रेज संतुष्ट होकर जैसे आये थे, वैसे ही वापस चले गए|
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महाराणा स्वरूपसिंह जी के निधन के बाद मेहता गोपालदास को अंग्रेज गिरफ्तार करना चाहते थे| इस संकट की घड़ी में मेहता गोपालदास भी किसी तरह आश्रय लेने कोठारिया ठिकाने पहुँच गए| कुछ समय बाद मेहता अजीतसिंह व मेवाड़ के पूर्व प्रधानमंत्री शेरसिंह भी शरण हेतु कोठारिया पहुंचे, जिन्हें रावत जोधसिंह ने अंग्रेजों की नाराजगी की किंचित परवाह किये बिना शरण दी| यही नहीं देश के प्रसिद्ध क्रांतिकारी पेशवा नाना साहब और उनके सहयोगी राव साहब पांडुरंग राव सदाशिव पन्त भी रावत जोधसिंह कोठारिया के निरंतर सम्पर्क में थे व उनके मध्य पत्र-व्यवहार भी होता था| चारण भाटों की लोकरचनाओं में बिठूर से आये पेशवा नाना साहब, उनकी माँ, गुरु रवखपुरी, गणेशसिंह, मोलासिंह तथा उनके अन्य सहयोगियों को रावत जोधसिंह चौहान द्वारा संरक्षण दिए जाने का उल्लेख मिलता है| बेशक पेशवा नाना साहब कोठारिया ना आये हों पर समय समय पर उनके द्वारा भेजे गए लोगों को रावत जोधसिंह ने अपने यहाँ शरण दी व साधन उपलब्ध कराये| इस तरह कोठारिया के रावत जोधसिंह चौहान ने देश की स्वतंत्रता के लिए की गई क्रांति में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान किया|


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