14 अगस्त 1857 का दिन, मेवाड़ आँचल के रुकमगढ़ के छापर में देश को गुलामी की बेड़ियों से आजाद कराने का जज्बा लिए प्रसिद्ध क्रांतिकारी तांत्या टोपे Tantya Tope के मुट्ठीभर सैनिक जनरल राबर्ट्स की अंग्रेज सेना से युद्ध में जूझ रहे थे| उनके पास गोला-बारूद की भारी कमी थी| पास ही स्थित कोठारिया ठिकाने के जागीरदार रावत जोधसिंह चौहान ने भी अपने पास उपलब्ध संसाधन तांत्या टोपे के समर्थन में झोंक रखे थे| दुर्भाग्य से उस दिन रावत जोधसिंह चौहान Rawat Jodh Singh Chauhan का तोपची अवकाश पर था| हर किसी को उसकी अनुपस्थिति अखर रही थी|
तोपची की 70 वर्षीय माँ को भी अपने बेटे की उस दिन कमी अखरी| आखिर उसने अपने बेटे को जन्म भी तो मातृभूमि की रक्षा हेतु कर्तव्य निभाने को दिया था| माँ ने सोचा आज उसका तोपची पुत्र नहीं है तो क्या हुआ, उसकी जन्मदात्री तो है| उस वृद्ध महिला के मन में विचार आया- हो सकता है ईश्वर ने आज उसे मातृभूमि के प्रति कर्तव्य निभाने का मौका देने हेतु उसके पुत्र को अनुपस्थित किया हो| और यही सोच यकायक उस बहादुर वृद्ध महिला ने कहलवा भेजा कि तोपची की जगह वह स्वयं संभालेगी और वह 70 वर्षीय महिला ने मातृभूमि को विदेशी दासता से मुक्त कराने के लिए अंग्रेज सेना के खिलाफ तांत्या टोपे के समर्थन में तोप से गोले बरसाने शुरू कर दिए|
चूँकि कोठारिया ठिकाने के पास भी उस वक्त पर्याप्त गोला-बारूद नहीं था| अत: उस महिला ने अपनी सूझ-बुझ का परिचय देते हुए लोहे की सांकलें, कील-कांटे, जो भी उसे उस वक्त उपलब्ध हुआ, उसी का इस्तेमाल कर अंग्रेजों पर गोलों के रूप में बरसा दिए| उस वक्त उस वृद्ध महिला की बहादुरी, हिम्मत और सूझ-बुझ देखकर हर कोई चकित था|
9 अगस्त 1857 को भीलवाड़ा के समीप कोठारी (कोतेश्वरी) नदी के किनारे 1857 क्रांति के प्रमुख सेनानी तांत्या टोपे की जनरल राबर्ट्स के नेतृत्व वाली अंग्रेजी सेना से भयंकर मुकाबला हुआ| इस युद्ध में तांत्या टोपे को पराजित होना पड़ा और अपने बचे मुट्ठीभर साहसी सहयोगियों के साथ भागना पड़ा| 13 अगस्त 1857 को तांत्या टोपे अपने इन्हीं मुट्ठीभर साथियों के साथ नाथद्वारा पहुंचा|
नाथद्वारा के गोस्वामी तिलकायत जी ने उनका स्वागत किया और उनके खाने-पीने की व्यवस्था की| तभी खबर मिली कि जनरल राबर्ट्स सेना सहित वहां पहुँचने वाला है| तब गोस्वामी तिलकायत जी ने कोठारिया ठिकाने के रावत जोधसिंह चौहान साथ मिलकर तांत्या को बड़े मगरे की खोह में स्थित झरखंडी-बरखंडी नामक बीहड़ में सुरक्षित पहुंचा दिया|
14 अगस्त, 1857 को प्रात: तांत्या के सैनिक गूंजोल गांव के पास बनास नदी की उफनती धारा को पार कर रुकमगढ़ के छापर में जा पहुंचे और वहां मोर्चाबन्दी की ताकि पीछा करती अंग्रेज फ़ौज से मुकाबला किया जा सके| इसी मोर्चे पर तांत्या टोपे और अंग्रेजी सेना के मध्य तुमुल युद्ध हुआ| लेकिन इस युद्ध में तांत्या टोपे के सैनिक काफी भाग दौड़ के चलते थके हुए थे, अंग्रेजी सेना के आगे उनकी संख्या कम थी| तांत्या टोपे के सैनिकों के पास गोला-बारूद की भी भारी कमी हो चुकी थी| तांत्या का समर्थन और सहयोग कर रहे देशभक्त कोठारिया ठिकाने के रावत जोधसिंह चौहान के ठिकाने में भी पर्याप्त मात्रा में गोला-बारूद उपलब्ध नहीं था| जो था वह तांत्या टोपे के सहयोग के लिए उपलब्ध था| दुर्भाग्य से उस दिन रावत जोधसिंह का तोपची भी अनुपस्थित था| जिसकी कमी उसकी 70 वर्षीय साहसी माँ ने पूरी की|
70 वर्षीय वृद्ध महिला द्वारा तोपची बनकर अंग्रेजों पर गोले बरसाते देख उसकी बहादुरी, साहस, कर्तव्यपरायणता व उसके देशभक्तिपूर्ण जज्बे से प्रभावित होकर रावत जोधसिंह चौहान ने कोठारिया ठिकाने का चेनपुरा गांव उक्त महिला को जागीर में दे दिया|
नोट : उक्त महिला का नाम ज्ञात इतिहास पुस्तकों में उपलब्ध नहीं है, जिसके लिए शोध की आवश्यकता है| यह कार्य कोठारिया ठिकाने के पास रहने वाले इतिहास प्रेमी कोठारिया ठिकाने की बहियों में तलाश सकते है| यदि वे ऐसा कर पाने में सफल रहते है तो यह देश के "स्वतंत्रता इतिहास" लेखन में में उनका शानदार योगदान होगा|
70 वर्षीय वृद्ध महिला द्वारा तोपची बनकर अंग्रेजों पर गोले बरसाते देख उसकी बहादुरी, साहस, कर्तव्यपरायणता व उसके देशभक्तिपूर्ण जज्बे से प्रभावित होकर रावत जोधसिंह चौहान ने कोठारिया ठिकाने का चेनपुरा गांव उक्त महिला को जागीर में दे दिया|
नोट : उक्त महिला का नाम ज्ञात इतिहास पुस्तकों में उपलब्ध नहीं है, जिसके लिए शोध की आवश्यकता है| यह कार्य कोठारिया ठिकाने के पास रहने वाले इतिहास प्रेमी कोठारिया ठिकाने की बहियों में तलाश सकते है| यदि वे ऐसा कर पाने में सफल रहते है तो यह देश के "स्वतंत्रता इतिहास" लेखन में में उनका शानदार योगदान होगा|