हाँ इनमें से एक विदेशी लेखक (Louis Fischer) का लेख “Indigo” जरुर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर है जिसे पढने या पुस्तक में देखने के बाद लगता है कि राष्ट्रिय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् को पुस्तक में महात्मा गाँधी के बारे में छापने के लिए भी किसी भारतीय का लिखा मिला ही नहीं या फिर राष्ट्रिय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् किसी भारतीय लेखक द्वारा लिखा छात्रों को पढ़ाने लायक नहीं समझती|
बारहवीं कक्षा की ही दूसरी पुस्तक “Vistas” Strictly Based on Latest Style and syllabus of NCERT में भी राष्ट्रिय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् राष्ट्रिय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् ने भारतीय छात्रों को पढ़ाने के लिए विदेशी लेखकों की ही रचनाएँ चुनी है ये विदेशी लेखक है - Jack Finney, Kalki, Tishani Doshi, John Updike, Colin Dixter, Zitkala SA, Bama |
इन पुस्तकों में प्रकाशित विदेशी रचनाओं को ज्यादातर छात्र समझ ही नहीं पाते कि ये उन्हें पढाई किस उद्देश्य से जा रही है? बारहवीं कक्षा का एक पढाई में अव्वल आने वाले होशियार छात्र ने बताया कि उसने पुस्तक में विदेशी लेखकों द्वारा लिखी कहानियों को समझने के लिए तीन अलग-अलग रेफरेंस बुक खरीदकर पढ़ी फिर भी मैं उन कहानियों को समझ नहीं पाया| जब पढाई में होशियार छात्र का ये हाल है तो कमजोर छात्रों की क्या गत बनती होगी आसानी से समझी जा सकती है|
उपरोक्त दोनों पुस्तकों के में राष्ट्रिय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् द्वारा चुने गए अंग्रेजी साहित्य व उनके लेखकों के बारे में चर्चा करते हुए एक छात्र चुटकी लेता है कि यदि राष्ट्रिय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् को हमारी हिंदी विषय की पुस्तक के लिए भी यदि विदेशी लेखक और उनका लिखा मिल जाता तो वो भी हमें विदेशियों का विदेश के बारे में लिखा ही पढना पड़ता|
राष्ट्रिय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् द्वारा बारहवीं कक्षा के छात्रों को पढने के लिए उपरोक्त दोनों पुस्तकों को देखने के बाद मन में कई प्रश्न उठ खड़े होते है-
1- क्या भारत में अंग्रेजी साहित्यकार पैदा ही नहीं हुए?
2- क्या भारत के अंग्रेजी साहित्यकारों द्वारा लिखा साहित्य राष्ट्रिय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् निम्न स्तर का समझती है ?
3- क्या भारतीय संस्कृति, इतिहास व साहित्य अंग्रेजी में लिखा ही नहीं गया ? कि भारतीय छात्रों को विदेशी साहित्य पढाया जा रहा है|
4- क्या राष्ट्रिय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् छात्रों को पढ़ाने के लिए कोर्स में भारतीय महापुरुषों की जीवनियाँ आदि शामिल नहीं कर सकती ? जिन्हें पढ़ भारतीय छात्र गौरान्वित हो सके|
5 - क्या राष्ट्रिय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् का यह कार्य भारत की नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति, इतिहास व साहित्य से दूर रखने कुकृत्य नहीं ?

अंग्रेजी में लिखा साहित्य भी जब हमारे ही परिवेश से हो,निश्चित रूप से छात्रों के लिए समझना सरल होगा
जवाब देंहटाएंवाकयी चिन्तनीय विषय है। उच्चतर अंग्रेजी साहित्य शिक्षा में भी थोड़ा बहुत छोड़कर विदेशी लेखकों का ही प्रभुत्व है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही विचारणीय विषय है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सही प्रश्न उठाये हैं.
जवाब देंहटाएंवास्तव में तो बहुत से लोग देखते हैं ,बात करते हैं लेकिन विषय को आगे नहीं बढ़ा पाते.आप के अखबार में छपे लेख पर कम से कम शिक्षाविदों का ध्यान जाएगा.
आशा है एन सी आर टी वाले भी इस पर ध्यान देंगे.
हमारी सरकार के लिए 'अंग्रजी' भाषा न होकर एक सभ्यता है,
जवाब देंहटाएंऔर 'अंग्रेजी भाषी' ही केवल सभ्य हैं, बाकि तो ऐसे ही हैं माने की भोटर.....
अच्छा है कि अंग्रेज़ों ने हिन्दी नहीं लिखी, नहीं तो वह भी पढ़नी पड़ती।
जवाब देंहटाएंअब तो अंग्रेजी ही सबकुछ है.
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा प्रस्तुति आभार
जवाब देंहटाएंआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
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अंग्रेजी साहित्यकारों द्वारा कहानियों और कविताओं में उल्लिखित संदर्भ या प्रसंग उनकी अपनी संस्कृति और इतिहास से संबंधित होंगे। ऐसे में भारतीय छात्रों के लिए उन्हें समझना आसान नहीं है। आपके द्वारा उठाया गया प्रश्न विचारणीय है।
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