राजस्थान की प्रेम कहानियां

Gyan Darpan
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राजस्थान के इतिहास और साहित्य में जिस तरह अनगिनत वीरों की वीरता की कहानियां बिखरी पड़ी है ठीक वैसे ही अनगिनत प्रेम कहानियां भी साहित्य व इतिहास के अलावा कवियों की कविताओं, दोहों के साथ जन मानस द्वारा गाये जाने लोक गीतों व कहानियों में अमर है| इन प्रेम कहानियों में ढोला-मारू, मूमल-महिंद्रा, रामू-चनणा, बाघा-भारमली, जलाल-बुबना, केहर-कँवल, उजली-जेठवा, सैणी-बिझानंद, अनारा बेगम के साथ जोधपुर के महाराजा गजसिंह की प्रेम कहानी, किशनगढ़ के महाराजा की किशनगढ़ की चित्रशैली बणी-ठणी की नायिका के साथ प्रेम कहानी के साथ ही बहुत सी कहानियां प्रचलित है जिनमें ढोला-मारू और मूमल-महिंद्रा विशेष प्रिसिद्ध है इन दोनों कहानियों के किस्से, दोहे व गीत राजस्थान में जन-जन के होठों पर है|

“ढोला मारू” नरवर (मध्यप्रदेश) के राजा ढोला जिन्हें इतिहास में साल्ह कुमार भी कहा जाता है के व राजस्थान के जांगलू प्रदेश के पूंगल ठिकाने की राजकुमारी मारुवणी के बीच की प्रेम कहानी है| दोनों का विवाह पुष्कर यात्रा के दौरान दोनों के परिजनों ने बचपन में ही कर दिया था जिसे ढोला भूल चुका था पर बचपन से ही ढोला के साथ ब्याह की बातें सुनते आने वाली मारूवणी कैसे भूल सकती थी| अपने बढते यौवन के साथ वह ढोला के प्रेम वियोग में जलती रही और आखिर उसने एक गायक के जरिये ढोला तक अपने बनाये दोहों के माध्यम से अपने प्रेम की पुकार पहुंचा ढोला को उसके साथ बचपन में किये ब्याह की याद दिलाई और उसके बाद दोनों का मिलन हुआ| ढोला-मारू के गीत व कहानियां सिर्फ राजस्थान ही नहीं मध्यप्रदेश, गुजरात, उतरप्रदेश आदि राज्यों में भी प्रचलित है| इसी प्रेम कहानी के नायक ढोला-मारू के वंशजों ने जो कछवाह वंश के नाम से प्रसिद्ध है आगे चलकर राजस्थान के आमेर,अलवर,शेखावाटी आदि बड़े भूभाग पर देश की आजादी तक शासन किया और आजादी के बाद भी इसी कुछ्वाह वंश में जन्में स्व.भैरोंसिंह जी जहाँ देश के उपराष्ट्रपति बने वहीं प्रेमाख्यान के इन नायकों के वंश की पुत्रवधू श्रीमती प्रतिभा पाटिल देश की राष्ट्रपति बनी|

प्रदेश की दूसरे सबसे ज्यादा प्रचलित प्रेम कहानी मूमल-महिंद्रा अमरकोट (अब पाकिस्तान में) के राजकुमार महिंद्रा व लोद्रवा (जैसलमेर) की राजकुमारी मूमल के बीच की है| इस कहानी में महेंद्रा नित्य रात्री अमरकोट से लोद्रवा तक एक तेज चलने वाले ऊंट पर सवार होकर मूमल से मिलने आता था पर पहले से ही शादीशुदा महेंद्रा की पत्नियों को जब इस प्रेम कहानी का पता चला तो उन्होंने महिन्द्रा को मूमल से मिलने के लिए रोकने की भरपूर कोशिशें की| एक बार जब महिंद्रा मूमल से देर रात मिलने आया तो मूमल की बहन सुमल मूमल के साथ मर्दों वाले कपड़े पहने सो रही थी जिसे देख महिंद्रा के मन में मूमल के चरित्र पर शक हुआ और उसने मिलने आना छोड़ दिया| जब मूमल को महिंद्रा के न आने का कारण पता चला तो वह इस भ्रम को दूर करने के उद्देश्य से अमरकोट पहुंची जहाँ महिन्द्रा ने उसके प्रेम की परीक्षा लेने के लिए अपनी मृत्यु का झूंठा समाचार मूमल के पास भेज दिया जिसे सुनकर मूमल ने पछाड़ खाकर गिरते ही अपने प्राण त्याग दिए| महिंद्रा को जब मूमल की मृत्यु का पता चला तो वह उसके बाद पागल होकर जिंदगी भर मूमल मूमल कहता फिरता रहा|

रामू-चनणा प्रेम कहानी की नायिका चनणा एक जागीरदार परिवार से थी तो नायक रामू एक सुनार परिवार से था| इस प्रेम कहानी पर राजस्थानी भाषा में दो फिल्मे बनी है एक “रामू-चनणा” और दूसरी “म्हारी प्यारी चनणा” के नाम से| दोनों ही फ़िल्में राजस्थान में बड़े चाव से देखी गई थी|

बाघा-भारमली की प्रेम कहानी में नायक बाघ जी बाड़मेर के कोटड़ा ठिकाने का जागीरदार था तो भारमली जैसलमेर की राजकुमारी और जोधपुर के राजा मालदेव की रानी की दासी थी| इसी भारमली के चलते रानी राजा मालदेव से जिंदगी भर रूठी रही और इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध हुई| मालदेव के साथ रहने के बाद उनसे ही अलग करने के लिए इस दासी को जैसलमेर की एक रानी के भाई बाघजी अपने यहाँ ले आये और दोनों के मध्य अगाढ़ प्रेम हो गया| दोनों के प्रेम को एक चारण कवि आशाराम ने अपनी कविता व दोहों के माध्यम से अमर कर दिया| बाघजी की मृत्यु के बाद उनकी प्रेमिका भारमली उनके मृत शव के साथ चिता पर बैठ सती हो गई थी|

“जलाल-बूबना” प्रेमकथा की नायिका की शादी की चर्चा जलाल के साथ चली और बात चलते ही जलाल का चित्र देखकर ही उसे अपना दिल दे बैठी पर बूबना का अप्रतिम सौंदर्य देख जलाल के मामा बादशाह मृगतामयची ने जलाल बूबना की शादी का प्रस्ताव ठुकराकर खुद बूबना से शादी करने का प्रस्ताव रख दिया और काजी से मिलकर अपनी शादी तय करली| बूबना के पिता को न चाहते हुए भी बूढ़े बादशाह से बूबना की शादी करनी पड़ी पर बूबना ने निकाह के वक्त बादशाह की तलवार की जगह जलाल की तलवार रखवा कर उसके साथ निकाह कर लिया था| ज्ञात हो इस शादी के लिए बादशाह खुद नहीं गए थे बल्कि खांडा विवाह परम्परा से विवाह करने हेतु अपनी तलवार भेज दी थी| विवाह के बाद जलाल-बूबना बादशाह से छिपकर मिलते रहे और एक दिन बादशाह द्वारा दोनों का मिलना रोकने हेतु अपनाये हथकंडों के दौरान जब बूबना को जलाल की मौत की झूंठी खबर सुनाई तो खबर सुनते ही बूबना ने प्राण त्याग दिए और बूबना की मौत की खबर मिलते ही जलाल ने भी मौके पर ही प्राण त्याग दिए| इस तरह इस प्रेमकहानी के दोनों नायकों का दुखद अंत हुआ| पर लोगों की जुबान पर आज भी उनकी प्रेम कहानी ने उन्हें अमर कर रखा है|

इसी तरह केहर-कँवल प्रेमाख्यान की नायिका जो एक बांदी की पुत्री थी से एक वीर राजपूत केहर प्रेम करता था| केहर के लिए कँवल ने अहमदाबाद के बादशाह द्वारा प्रस्तावित जागीरें तक ठुकरा दी थी और वीर प्रेमी केहर अपनी प्रेमिका को आजाद कराने के लिए एक शक्तिशाली बादशाह से भीड़ गया और आखिर बादशाह को मारकर अपनी प्रेमिका को हासिल किया| इतिहास में इन दोनों की कहानी प्रेम के साथ वीर रस से भी सरोबार हुई जिसे यहाँ के कवियों व साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में जगह दे अमर कर दिया|

इसी तरह एक चारण कन्या उजली ने भी एक जेठवा नामक राजकुमार से प्रेम किया पर जेठवा उजली से प्रेम करने के बावजूद शादी नहीं कर सका| क्योंकि जेठवा के पिता ने यह कहकर कि- “राजपूत लड़के का चारण कन्या के साथ बहन का रिश्ता होता है|” शादी की अनुमति नहीं दी| कुछ दिन बाद जेठवा की असामयिक मृत्यु हो गई और उजली ने अपने व जेठवा के मध्य प्रेम के सौरठे रचते हुए पुरा जीवन विरह में बिताया|

सैणी राजस्थान के संपन्न चारण परिवार की सुन्दर सुकन्या थी और बिझानंद एक गरीब व काला कलूंटा चारण युवक था जो गांव वालों की गाय भैंस चराने का काम करता था| जब पहली बार सैणी ने बिझानंद को देखा तो उसे बड़ी घिन्नता महसूस हुई और बिझानंद को सैणी का व्यवहार बुरा लगा पर बिझानंद ने भी तय कर लिया कि वह अपनी सूरत से ज्यादा अपने गुणों के बदले एक दिन सैणी को अपनी बना लेगा| बिझानंद बहुत बढ़िया संगीतज्ञ था उसकी कला का हर कोई दीवाना था और उसने अपनी इस संगीत कला के दम पर आखिर सैणी का दिल जीत ही लिया| एक दिन सैणी के पिता ने बिझानंद की कला से खुश होकर मुंह माँगा ईनाम मांगने का आग्रह किया तो बिझानंद ने सैणी का हाथ मांग लिया| एक गरीब और बदसूरत युवक के हाथों अपनी सुन्दर सुकोमल कन्या कोई भी बाप नहीं सौंपना चाहेगा| पर सैणी का पिता वचन बद्ध हो चुका था फिर भी उसने अपनी बेटी की बिझानंद के साथ शादी रोकने की चाल चलते हुए बिझानंद से शादी से पहले ऐसी सौ नवचंदी भैंसे लाने की शर्त रखदी जो उसकी नजर में कहीं उपलब्ध ही नहीं थी| बिझानंद नवचंदी भैंसों के लिए गांव गांव नगर नगर भटकता रहा और अपनी संगीत कला से लोगों को प्रभावित कर उनसे ऐसी दुर्लभ भैंसे मांगता रहा| इस तरह उसे कई वर्ष लग गए| चूँकि सैणी बिझानंद से अथाह प्रेम करने लगी थी उसने बिझानंद को मन ही मन अपना पति मान लिया था और वह उसके विरह को झेल नहीं पायी| एक दिन ये सोचकर कि जब ऐसी भैंसे है ही नहीं तो बिझानंद लायेगा कहाँ से? और बिना लाये खाली हाथ वह आयेगा नहीं| सैणी ने हिमालय जाकर बिझानंद से अगले जन्म में मिलने की कामना के लिए तपस्या करने का विचार किया और वह अपने पिता से आज्ञा ले हिमालय जा पहुंची|

जब बिझानंद शर्त पुरी करने के लिए सौ नवचंदी भैंसे ले आया तब सैणी को ना पाकर दुखी हो उसके पीछे वह भी हिमालय की और चल पड़ा| हिमालय पहुँच उसने जब सैणी को देखा तब तक वह बर्फ में खड़े खड़े आधी गल चुकी थी उसे गला देख बिझानंद भी उससे लिपट वहीं खड़े खड़े अपनी इस प्रेमिका से अगले जन्म में मिलने की कामना करते हुए गल कर खत्म हो गया|

अनारा बेगम आगरा के किसी मुस्लिम अमीर की बीबी थी| जोधपुर के तत्कालीन महाराजा गजसिंह भी आगरा बादशाह की सेवा में थे| वहीं अनारा बेगम व महाराजा में प्रेम हो गया| दोनों चोरी-छिपे मिलने लगे पर बात खुलने पर इनकी शिकायत बादशाह के दरबार में पहुंची| बादशाह दोनों के प्रेम की गहराइयाँ समझ चुका था सो उसने महाराजा को समझाया कि बात को एक बार ठंडा पड़ने दें व बाद में मौका देखकर अनारा बेगम को जोधपुर ले जाएं| महाराजा ने ऐसा ही किया कुछ दिन बाद बात शांत कर एक दिन अनारा बेगम को जोधपुर ले आये| इन दोनों प्रेमियों को मिलाने में बादशाह ने भी अपनी भूमिका इनके प्रेम के पक्ष में ही निभाई|

एक कवियत्री दासी के साथ किशनगढ़ के एक साहित्य साधक राजा द्वारा अपनी प्रेमिका दासी के बनवाये गए चित्र ने किशनगढ़ की प्रसिद्ध चित्रशैली “बणी-ठणी” की नींव डाली| दोनों की प्रेम कहानी से उपजी यह चित्रशैली आज विश्व प्रसिद्ध है| और किशनगढ़ सहित राजस्थान के कई चित्रकार इस शैली से अपनी आजीविका चला रहे है|

यह कहानी "Simply Jaipur" पत्रिका में भी छपी है|

नोट : सभी चित्र प्रतीकात्मक है व गूगल खोज परिणामों से लिए गए है |

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7टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (20-02-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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  2. इतिहास प्रसिद्ध प्रेम कहानियों का पूरा विवरण आपने इस पोस्ट में डाल दिया जो कि निश्चित ही उपयोगी रहेगा, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  3. प्रेम सदा ही कथाओं को परिभाषित करता रहा है, दुख है कि हम एक या दो कहानियों में सिमटे रहते हैं।

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  4. वहा वहा क्या बात है में खुद राजस्थान का रहने वाला हूँ इस प्रेम कहानी को पढ़ के आनंद अगया और प्रेम को परिभाषित करती ये कहानी


    मेरी नई रचना

    प्रेमविरह

    एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ

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  5. बहुत बढ़िया ऐतिहासिक कहानियां ..
    जयपुर के एक होटल में ढोला मारू” नाम से एक हाल था तब मैंने सोचा था की यह कोई गीत संगीत होगा लेकिन आज पता चला की यह तो प्रेम कहानी भी है .....

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  6. आपकी यह पोस्ट आज के (१३ अगस्त, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - प्रियेसी पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई

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