भाग्य में जो लिखा वो मिला : कहानी

Gyan Darpan
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एक राजा के दो बेटे थे| बड़ा सींगल भोला भाला तो, छोटा दींगल बहुत कुशल और होशियार| राजा की मृत्यु के बाद बड़ा बेटा सींगल राजा बना पर राज्य के सभी कार्यों का भार दींगल पर, जिसे वह बड़े मनोयोग से पुरा करता पर यह बात राजा सींगल की पत्नी को बड़ी अखरती| वह दींगल के खिलाफ सींगल के कान भरने का कोई मौका नहीं छोडती थी| और एक दिन आखिर उसने राजा सींगल को दींगल को देश निकाला देने के लिए मना ही लिया|

दींगल के पास बड़े भाई द्वारा भेजा काला घोड़ा व काले वस्त्र मिले तो उसने दुखी मन से राज्य छोड़ दिया और एक दूसरे राज्य के नगर में जाकर एक सेठ के यहाँ नौकरी करने लगा| सेठ ने भी दींगल को भला राजपूत समझ नौकरी पर रख लिया और अपने इकलौते बेटे को दींगल को सौंप दिया|
अब दींगल सेठ के बेटे को घुड़सवारी, तीरंदाजी, तलवारबाजी सिखाने लगा| सेठ का बेटा एक सुन्दर नाक नक्स वाला जवान था| राजा का महल और सेठ की हवेली पास पास थे सो महल के झरोखे में बैठ राजा की कुंवरी सेठ के बेटे को देखती और सेठ का बेटा अपनी हवेली के झरोखे से उस रूपवती कुंवरी को देखता| इन दोनों की ये हरकत देख दींगल ने सेठ को बताया और कहा-
" सेठ जी! बेटे को संभालिये, वरना यह दोष मेरे ऊपर आयेगा कि सेठ पुत्र तेरे पास रहता था|"
सेठ ने दींगल को अब उसके पुत्र पर हर पल नजर रखने को कहा और खूद इस समस्या से निजात पाने का कोई हल तलाशने लगा|

एक दिन राजा की कुंवरी ने एक पत्र लिखकर सेठ के पुत्र के लिए फैंका पर सेठ पुत्र की नजर से पहले उस पत्र पर दींगल की नजर पड़ गयी| उसमे जो लिखा था वो पढकर दींगल चिंतित हो गया और वह पत्र उसने सीधा सेठ को ले जाकर दिया|
सेठ ने पत्र में अपने पुत्र के लिए राजकुमारी का संदेश पढ़ा- "आज आधी रात को हम दोनों भाग चलेंगे मैं शहर के दरवाजे के बाहर घोड़े पर सवार मिलूंगी, तुम भी घंटाघर का बारह बजे का घंटा बजते ही आ जाना|"
सेठ ने पत्र पढ़ने के बाद दींगल से कहा- ' हे ठाकुर साहब ! अब आप ही कोई रास्ता निकालो वरना मेरा घर डूब जायेगा|"
दींगल- "सेठ जी! आपका इतने दिन नमक खाया है और एक राजपूत नमक का मोल चुकाने के लिए अपनी जान भी दे सकता है| मैं वचन देता हूँ आपका घर बचाने हेतु मैं वह सब कुछ करूँगा तो आप कहेंगे|
सेठ- "तो ठीक है ठाकुर साहब ! आप एक काम करें आज रात को आप मेरे बेटे के कपड़े पहन उसकी जगह आप चले जाएं| अँधेरे में राजकुमारी आपको पहचान ही नहीं पायेगी| वैसे भी आप मेरे बेटे से ज्यादा गठीले व सुन्दर है| आप भी राजपूत है, राजा की कुंवरी भी राजपूत है दोनों की शादी भी हो जाए तो भी अच्छा होगा| और मेरा घर भी डूबने से बच जायेगा |"
सेठ ने दींगल के लिए एक शानदार घोड़ा तैयार करवा दिया| घोड़े के जीन के तोबडे रत्न और धन से भरवा दिए ताकि दींगल को धन की कमी नहीं रहे|

बारह बजे का घंटा बजते ही दींगल कुंवरी के पास जा पहुंचा| कुंवरी ने दूर से उसे आते देख अपना घोड़ा दौड़ा दिया, पीछे पीछे दींगल ने भी अपना घोड़ा दौड़ा दिया| दोनों रास्ते में पूरी रात कहीं नहीं रुके| सुबह होते ही कुंवरी ने देखा कि सेठ के पुत्र की जगह तो दींगल है, पर अब क्या हो सकता है ? घर से भागने के बाद वापस तो जाया नहीं जा सकता फिर दींगल भी तो सेठ के पुत्र से कम सुंदर नहीं और ऊपर से हठीला राजपूत भी| सो कुंवरी का मन दींगल से ही शादी करने को मचल गया| दोनों ने एक साथ रहने का तय किया और पाटण नगरी जा पहुंचे| कुंवरी भी अपने साथ बहुत सा धन भर लाइ थी और दींगल को भी सेठ ने बहुतेरा धन दे भेजा था| सो दोनों आराम से पाटण नगरी में रहने लगे| दींगल ने कुंवरी को कह दिया था कि आस-पास की औरतों से मेलमिलाप बिल्कुल ना रखे और घर का दरवाजा हरदम बंद रखे इसी में हमारी सुरक्षा है|

एक दिन एक नाईण ने कुंवरी को दरवाजा बंद करते देख लिया| ऐसी सुंदर औरत तो नाईण ने कभी नहीं देखि थी| नाईण सोचने लगी ऐसी रूपवती है तभी उसके घर धणी (पति) ने उसे बंद रखा है और नाईण ने सीधा कुंवरी का दरवाजा जा खटखटाया|
कुंवरी द्वारा दरवाजा खोलते ही नाईण बोलने लगी-
"अकेले घर में दम नहीं घुटता क्या? आप मुझे आने की आज्ञा दे दीजिए मैं आपके बाल धो दूंगी,कपड़े धो दूंगी, नाख़ून काट दूंगी, सिर में चम्पी कर दूंगी..........|"
और नाईण ने कुंवरी के बाल बनाने शुरू कर दिए, बाल बनाकर नाख़ून काटने लगी| कुंवरी के सुनहरे नाख़ून देख नाईण तो सूनी हो गयी ऐसे तो पहले कभी न देखे न सुने|
कुंवरी नाईण से बोली- "मेरे नाख़ून काट रही है वे मुझे ही दे जाना|"
नाईण - "ठीक है दे जावुंगी वैसे भी मुझे आपके नाखूनों का क्या करना ?

पर नाईण ने उसके नाखूनों के कुछ टुकड़े काट कर अपने पास छुपा लिए और ले जाकर नाई के सामने रखे| नाई भी सोने के नाख़ून देख विस्मृत हो गया| उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी| दूसरे ही दिन नाई राजा के बाल काटने गया तो नाख़ून साथ ले गया और राजा को वे सुनहरे नाख़ून दिखाता हुआ बोला-
"हे महाराज ! आपके राज्य में ऐसी रूपवती नारी जिसके नाख़ून भी सोने के है!"
राजा भी कुंवरी के नाख़ून देख अचंभित हुआ कि जिस स्त्री के नाख़ून इतने सुनहरे हों वह स्त्री कैसी रूपवती होगी ? ऐसी स्त्री को तो जरुर देखना चाहिए|"
राजा ने नाई से कहा-" जब सुनहरे नख दिखाएं है तो उस सुंदर नारी को भी दिखा|"
नाई ने राजा को सलाह दी - "हे राजन! उस रूपवती के पति को बुलाकर थोड़े दिन अपने पास राजमहल में रखिये और जब उससे अच्छी दोस्ती हो जाए तो तब उसे किसी बहाने अपनी पत्नी दिखाने को कहें| "राजा को बात जच गयी|"

दींगल को राजा ने अपने दरबार में बुला लिया और उसके साथ खेले, मनोरंजन करे, शिकार खेलने जाए, एक साथ खाना खाए| एक दिन राजा ने दींगल से उसके घर खाना खिलाने को कहा| अब दींगल मना करे भी तो कैसे ? और दींगल ने राजा को अपने घर खाने का न्योता दे दिया|
कुंवरी को जब दींगल ने राजा के खाने पर आने की बात बताई तो कुंवरी समझ गयी कि ये सब नाईण का किया धरा है| पर अब क्या किया जा सकता है खैर....| कुंवरी ने राजा के स्वागत के लिए घर को बहुत बढ़िया तरीके से सजाया| तरह तरह के खाने में पकवान बनाये| राजा और दींगल साथ साथ खाने पर बैठे| कुंवरी ने परोसना शुरू किया| कुंवरी खाने का थाल लेकर आई तो लाल रंग की पौशाक थी| दोबारा खाना परोसने आई तो हरे रंग की पौशाक| इस तरह सात बार कुंवरी राजा के सामने आई तो सातों बार सात रंग की अलग-अलग पौशाक|
राजा ने सोचा दींगल के सात पत्नियाँ है पर सुनहरे नाख़ून वाली इनमे कौन ? उसे कैसे देखें ? राजा को कुछ समझ ही नहीं आया कि कौनसी सुनहरे नाख़ून वाली थी| बहुत उदास मन से राजा दींगल के घर से महल आया और आते ही नाई को बुला सारी बात बताई| साथ ही शिकायत भी की कि -दींगल के साथ पत्नियाँ है पहले क्यों नहीं बताया ? बता देता तो मैं सिर्फ नाखूनों पर ही नजर रखता|
नाई कहने लगा- "नहीं अन्नदाता ! उसके तो एक पत्नी है|"
"फिर अब कैसे देखा जाय ? कोई और तरकीब सुझा!" राजा ने अपनी उत्सुकता जाहिर करते हुए कहा|
नाई- "अन्नदाता ! होळी आने वाली है, आप दींगल को सपत्नीक होळी खेलने के लिए अपने बगीचे में आयोजित कार्यक्रम में निमंत्रित कर लेना| फिर आपको पता चल जायेगा कि उसकी एक ही पत्नी है|"

राजा को नाई की बात जच गयी| और होळी का इन्तजार करने लगा कि होळी आये और वो उस सुनहरे नाख़ून वाली सुंदर नार के दर्शन कर पाए|

क्रमश :.....

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8टिप्पणियाँ

  1. रोचक लग रही है..आगे की प्रतीक्षा है..

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  2. आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १०/७/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आप सादर आमंत्रित हैं |

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  3. जीवन के रंगों से सराबोर ऐसी लोककथाऍं हर हाल में आनन्‍ददायक और रोचक होती हैं।

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    1. बहुत रोचक कहानी, सुबह पढ लिया था और सोचा क्या पता अभी अगला भाग ब्लाग पर आ गया हो :)

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  4. बेहद रोचक कथा.....आगे क्या होगा इस सोच में...........
    प्रतीक्षारत..

    सादर
    अनु

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