भाग्य में जो लिखा वो मिला -2 : कहानी

Gyan Darpan
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भाग एक से आगे.............
होळी के रंगीले त्यौहार पर राजा ने होळी खेलने का अपने बगीचे में कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमे दींगल को सपत्नीक आमंत्रित किया गया|
कुंवरी ने फिर चतुराई से काम लिया, उसने सात रथ एक साथ जोड़े जो एक के साथ एक चिपके थे, सातों रथों में अंदर से एक दूसरे में आने-जाने के लिए रास्ते रखे, सातों में साथ अलग-अलग रंगों की पौशाक रखी साथ में अलग-अलग रंगों से पिचकारियां रखी| और कार्यक्रम में कहला भेजा कि -
"मैं तो रंग से भरे ड्रम अपने साथ लाई हूँ अत: रानियाँ मेरे साथ होळी खेलने मेरे रथ के पास ही आ जाये|"

रानियां जैसे ही रथ के पास आई पहले रथ से उन पर रंग की पिचकारी छोड़ी| रानियों ने जैसे ही रंग से पिचकारियां भरी तब तक कुंवरी ने दूसरे रथ से झट से दूसरी पौशाक पहन दूसरे रंग की पिचकारी से रंग छोड़ा| फिर तीसरे, चौथे, पांचवे,छटे व सातवें रथ से अलग-अलग पौशाक पहन रानियों पर रंग डाल होळी खेली| रानियों ने राजा को जाकर खबर की कि-
"दींगल के तो सात पत्नियाँ है हमने सातों के साथ होळी खेली|"

इस तरह दींगल और कुंवरी होळी खेल घर आये, घर आकर देखा तो कुंवरी की हीरे जड़ित अंगूठी अंगुली से गायब थी, जो होळी खेलते समय वही बाग में गिर गयी थी| यह अंगूठी कुंवरी को बहुत प्रिय थी सो उसने दींगल से रात होने के बावजूद भी उसी समय तलाश कर लाने की जिद की| कुंवरी की जिद के चलते दींगल राजा के बगीचे में अंगूठी तलाशने पहुंचा| वह अँधेरे में घास में अंगूठी तलाश रहा था कि दींगल का हाथ एक सांप पर पड़ा और सांप ने दींगल को काट खाया| दींगल सांप काटने से बेहोश हो गया और वही पड़ा रहा|

सुबह होते ही एक तंबोली की बेटी बाग में आई उसने दींगल को वहां पड़ा देखा और सांप डसे स्थान पर मुंह लगाकर उसका जहर चूस बाहर फैंक दींगल को होश में ले आई| पर होश में आने से पहले उसने दींगल के गले में एक मंत्रोचारित किया हुआ धागा बाँध दिया जिससे दींगल तोता बन गया| अब तोता बने दींगल को तंबोली की बेटी घर ले आई| रात में दींगल के गले से धागा निकाल तंबोली की बेटी दींगल को मर्द बनादे और दिन होते ही तोता बना पिंजरे में बंद करदे| उधर कुंवरी दींगल का इंतज़ार करे और इधर दींगल तोता बना कुंवरी के लिए चिंतित होता रहे|

एक दिन गलती से तंबोली की बेटी ने पिंजरा खुला छोड़ दिया तो तोता बना दींगल वहां से उड़ चला और राजा के महल पर जाकर बैठा| वहां उसे राजा की बेटी ने पकड़ लिया और अपने कक्ष में ले गयी| राजकुमारी ने तोते के गले में बंधा धागा देखकर उसे तोड़ दिया, धागा तोड़ते ही तोता हट्टा-कट्टा पुरुष बन गया| पर अब राजकुमारी उसे अपने महल से ना जाने दे| चार पांच दिन बीत गए| पहरेदारों ने राजकुमारी के कक्ष में किसी मर्द का खाँसना सुना तो राजा को खबर की| राजा ने तलाशी के लिए राजकुमारी के महल में पहरेदार भेजे|
अब दींगल फंस गया| और घबराकर वह राजकुमारी के महल से कूद गया| उसी वक्त रास्ते में एक साहूकार की कपास की भरी गाडियां जा रही थी सो दींगल उनमे छुप गया और साहूकार के घर पहुँच गया|

अब दींगल साहूकार के घर से चुपके से निकलने का जुगाड़ कर ही रहा था कि सेठ की नजर उस पर पड़ गयी| सेठ से दींगल ने मिन्नत की कि राजा के सिपाही उसके पीछे पड़े है इसलिए उसे कहीं छिपा दे| तभी सिपाहियों की आवाज सेठ ने सुनी तो तुरंत दींगल को पास ही बने अपनी बेटी के कक्ष में छुपा दिया और राजा के सिपाहियों को कह दिया कि उस कक्ष में उसके बेटी जमाई है|
बेटी जमाई को देख सिपाही चले गए| और सेठ ने दींगल को अपनी दूकान पर काम में थोड़ा हाथ बटाने को बिठा दिया|

दींगल सेठ की दुकान पर बैठा काम कर रहा था कि तभी उधर से तंबोली की बेटी गुजरी| उसने दींगल को देखते ही दुकान पर आकर उसे पकड़ लिया बोली-
"वापस घर चल| भाग क्यों आया ?"
तंबोली की बेटी जैसे ही दींगल का हाथ पकड़ उसे ले जाने लगी तभी सेठ की बेटी भी बाहर निकली| उसने तंबोलन को हड़काया कि-"अरे ! ये तो मेरा पति है तूं इसे कहाँ ले जा रही है?
ऐसे करके सेठ की बेटी व तंबोलन में झगड़ा शुरू हो गया एक कहे मेरा पति, दूसरी कहे मेरा |
दोनों का झगड़ा देख भीड़ इकट्ठा हो गयी उसी भीड़ में कुंवरी की एक दो दासियाँ भी आ गयी वे कहने लगी-
"हे दींगल सा ! आप घर पधारें, आपकी कुंवरी आपके बिना कुंवरी अन्न छोड़े बैठी है| आप घर पधारें|"
लोगों ने तमाशा देखा कि एक मर्द के लिए तीन तीन औरतों के लिए झगड़ा चल रहा है , नगर कोतवाल भी झगड़े की बात सुन वहां आ गया| और सभी को पकड़ राजा के पास महल में ले आया| दींगल के लिए तीन तीन औरतों के झगड़े को महल में देख राजकुमारी भी अपने कक्ष से उतर आई और दींगल के पास खड़ी हो गयी |
राजा ने सभी औरतों से पुछा-"दींगल किसका खाबिन्द ? सब सच सच बताना|"
तभी राजकुमारी राजा के सामने आ खड़ी हुई बोली-" ये मेरा खाबिन्द (पति)है|"

राजा धर्म संकट में पड़ गया और बोला-" हे दींगल ! तेरे सारे गुनाह माफ ! तूं सच सच बता इनमे तेरी पत्नी कौनसी है ?" दींगल ने राजा को सारा वृतांत कह सुनाया|
सुनकर राजा बोला-
"तेरे भाग्य में ये चारों पत्नियाँ लिखी थी सो ये तेरी |' और और राजा ने चारों के साथ दींगल की शादी करवाने का हुक्म जारी कर दिया| दींगल चारों से शादी कर चारों को अपने घर ले आया|

समाप्त

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11टिप्पणियाँ

  1. ये कहानी भी सहेज ली है। धन्यवाद।

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  2. बहुपत्‍नी प्रथा का लोक औचित्‍य ऐसी ही कथाओं से स्‍थापित होता है।

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  3. कहानी अच्छी थी.........

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