बिलखती नार..

Gyan Darpan
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धोळी-धोळी  चांदनी, ठंडी -ठंडी रात ।
सेजां बैठी गोरड़ी,कर री  मन री  बात ।।

बाट जोवतां -जोवतां,  मैं कागां रोज उडाऊं ।
जै म्हारा  पिया रो आवै संदेशो  सोने री चांच मंढाऊं ।।

धोरा ऊपर झुपड़ी,गोरी उडिके बाट !
चांदनी और चकोर को, छुट गयो छ साथ।।

आप बसों परदेस में, बिलखु थां बिन राज १
सूख गयी रागनी, सुना पड्या महारा साज।।

गरम  जेठ रो बायरो,बरसाव है ताप !
ठंडी रात री  चांदनी,देव घणो संताप !!

देस दिशावर जाय कर धन  है खूब कमाया !
घर आँगन  ने भूलगया  ,वापिस घर ना आया।।

पापी पेट रै कारन छुट्या घर और बार ।
कद आवोगा थे पिया,बिलख रही घर री नार ।।

बिलख रही घर री नार, जाव रतन सियालो ।
न चिठ्ठी- न सन्देश  मत म्हारो हियो बालो ।।

लेखक : गजेन्द्र सिंह शेखावत

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10टिप्पणियाँ

  1. .

    धोळी धोळी चांदणी , ठंडी ठंडी रात !
    सेजां बैठी गोरड़ी , कर रइ मन री बात !!


    वाऽऽसाऽऽऽ… वाऽऽह !
    घणी फूठरी रचना है … मोकळो आभार आपरौ …
    अर लखदाद आदरजोग गजेन्द्र सिंह जी शेखावत नैं !


    घणी घणी मंगळकामनावां !

    जवाब देंहटाएं
  2. .

    धोळी धोळी चांदणी , ठंडी ठंडी रात !
    सेजां बैठी गोरड़ी , कर रइ मन री बात !!


    वाऽऽसाऽऽऽ… वाऽऽह !
    घणी फूठरी रचना है … मोकळो आभार आपरौ …
    अर लखदाद आदरजोग गजेन्द्र सिंह जी शेखावत नैं !


    घणी घणी मंगळकामनावां !

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  3. विरह वेदना की जो व्‍यंजना 'लोक' में होती है वह 'साहित्‍य' में नहीं।

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  4. विरह वेदना की व्‍यंजना की जो अनुभूति 'लोक' में होती है वह साहित्‍य में नहीं होती।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शेखावत जी नमस्कार
      आपके ब्लॉग 'ज्ञान दर्पण' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किया जा रहा है। आज 1 अगस्त को 'बिलखती नार...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है, इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जा कर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
      धन्यवाद,
      फीचर प्रभारी
      नीति श्रीवास्तव

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  5. सुंदर गीत है, विरह प्रेम की गहराई को प्रदर्शित करता है।

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  6. वाह,शेखावतजी,बहोत ही आछी विरह रचना लिखी,राजस्थानी में लिखन और पढ़न रो एक अलग ही मजो है,आपरो आभार,ओरुं उडीक रहसी.

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