
तब जब मै घूँघट मे थी, और आँचल लिपटा था दामन पे
घूँघट हटा मैने दुपट्टा ले लिया ,
ये सोचकर की मेरी तैरती आँखे देख
शायद तुम ताकना बंद कर दो .
पर गिरी नजरे ऊपर उठे तो देखो न तुम मेरी आँखों में
तुम तो जैसे गड से गए हो मेरे उभारो में
वक़्त सरका दुपट्टा भी सरक गया सिर से
पर तुम्हारी नजरें है कि सरकने का नाम ही नहीं लेती
तुम्हें आसानी हो जाये इसलिए ,
मैने अब चिथड़ो में लपेट लिया है
इन माँस के टुकड़ों को
लो तुम झट से बोल पड़े-
''कितनी बेशर्म हो गई है आज की औरत ''
तुम मर्द भी ना कभी नहीं जीतने दोगे मुझे|
bhaut hi acchi....
जवाब देंहटाएंlazwab
जवाब देंहटाएंसच को कहती अच्छी रचना ..
जवाब देंहटाएं"जितने" की जगह जीतने दोगे ... आना चाहिए था शायद ..
सुंदर.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया और हकीकत बयान करती रचना !
जवाब देंहटाएंसटीक ...
जवाब देंहटाएंगहन अभियक्ति शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंगहरी और सन्नाट।
जवाब देंहटाएंउफ़.....
जवाब देंहटाएंसंभवतः एक लड़की के पारिवेशिक शर्म की कमी है इस कविता में.
जवाब देंहटाएंपरन्तु एक खुलापन जो लड़की के शब्दों में है वो प्रशंसनीय है!
जिस उन्मुक्तता से आपने नारी समाज की व्यथा को कहा है वह प्रशंसनीय है।
जवाब देंहटाएंसदियों से पुरुष प्रधान समाज में नारी ने यही तो सहा है !
जवाब देंहटाएंकड़वा सच , जो कहना और सुनना ही दोनों मुश्किल
जवाब देंहटाएंan absolute truth.
जवाब देंहटाएंjeet haar ka pata nahi usha ji par saare mardo ki neeyat ka band baja diya aapne
जवाब देंहटाएंबेबाकी से सच्ची बात कहती शानदार प्रस्तुति...मज़ा अगया पढ़कर समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंउफ!!!
जवाब देंहटाएंदिल पर घूंसा सा मारती रचना
लेकिन सच
पूर्णत: सच
प्रणाम स्वीकार करें
बढ़िया प्रस्तुति | समाज में विचरते लोगों के डबल स्टैंडर्ड को उजागर करती रचना |
जवाब देंहटाएंटिप्स हिंदी में
क्या किसी भी गज़ल का बहर में होना जरूरी है ?
इसे कहते हैं दोधारी तलवार | मैंने एक बार लिखा था:
जवाब देंहटाएंतलवार की तो एक तरफ धार होती है,
बेरहम दुनिया की दोनों तरफ धार होती है |
यह भी एक नजरिया है। भाव अच्छा है, कविता उतनी अच्छी नहीं।
जवाब देंहटाएंसटीक
जवाब देंहटाएंDear Usha ji kya aapko pata hai bharat samet dunia main bahut si aisa jagah hai(aadivasi) koi us taraf dekhta hi nahi to stan kya dakna lekin humara samaj prakriti k sahaj niyam man kar apne dogle aadarsh banata hai aap 5000 ka itihas dekh liziye hamare aadarsh aur sanskriti ki pol khul jayegi
जवाब देंहटाएंbahut sunder:D
जवाब देंहटाएंsahsik rachna !
जवाब देंहटाएंबेबाक अभिव्यक्ति। पुरुष की मानसिकता को उकेरती। मैंने एक बार एक लेख में लिखा था कि सड़क पर जाते हुए, चाहे कार, स्कूटर, मोटर साईकिल अथवा पैदल हम किसी आती जाती युवती को ताकना नहीं भूलते, इसे निहारना नहीं कहा जाएगा। यह तो स्त्री काया देखकर पुरुष आंखें गोलायमान हो जाती हैं।
जवाब देंहटाएं्सच को बेबाकी से कहती अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंaek sachchi aatm-vyakti ....
जवाब देंहटाएंaek sachchi aatm-vyakti ....
जवाब देंहटाएंमन के अन्दर घुमड़ते ज्वलंत शब्दों की बारिश ..बहुत बढ़िया विचारणीय प्रश्न...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ...:)
जवाब देंहटाएं....कड़वे सच को उभारा है आपने इस रचना में...बहुत ही लाजवाब..उषा जी
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