वि.स. १९०३ की एक सुबह आगरा के लाल-किले के प्रहरियों ने देखा -किले के मुख्य द्वार से थोड़ी दूर एक महात्मा ने धूणा लगा रखा है महात्मा खुद तो ध्यान में मग्न है और उनका चेला धूणे में लकड़ियाँ डाल रहा है राह चलते लोग बाबा को प्रणाम करने रुक रहे थे,चेला उनसे कह रहा था -
"बाबाजी समाधी में है हाथ जोड़कर प्रणाम कीजिये और चलते बनिए |"
किले के पहरेदार भी बाबा को रोज प्रणाम करने पहुँचते,औरते प्रणाम कर बाबा से मन्नत मांगती | पर बाबा किसी की और नजर उठाकर भी नहीं देखते | जो कोई भक्त चढ़ावा चढ़ाता चेला लेने से मना कर देता |
कहता - "माया से हमारा क्या काम | गुरूजी समाधी में है इसलिए चुपचाप धोक देकर चले जाईये |" और चेला लोगों द्वारा चढ़ाये चढ़ावे को हाथ तक नहीं लगता |

चित्र प्रतीकात्मक है|सभी और बाबाजी की बाते चलती | किले के पहरेदार आपस में बाते करते -"क्या पहुंचे हुए बाबाजी है माया के मोह से बिल्कुल दूर ,हमारे तो धन्य भाग जो बाबाजी ने किले के सामने समाधी ली,हमें भी दर्शन करने का मौका मिल गया वरना ऐसे साधू के दर्शन हमारे भाग्य में कहाँ |"
अंग्रेज अफसरों ने भी किले के मुख्य द्वार के आगे साधू को तपस्या करते देखा तो सूबेदार को बुलाकर उसे वहां से हटाने का हुक्म दिया | सूबेदार ने कम्पनी अफसर से कहा -
" बाबाजी समाधी में है | समाधी टूटते ही उन्हें वहां से हटा देंगे |"
आखिर एक दिन बाबाजी की समाधी टूटी | सूबेदार का उन्हें हटाने का मन नहीं था पर हुक्म के आगे वह मजबूर था सो बाबाजी के पास पहूँचा | और बाबाजी से बोला -
" बाबाजी धन्य भाग हमारे जो आप जैसे तपस्वी यहाँ आये और तपस्या की व हमें दर्शन दिए | पर साहब का हुक्म नहीं है इसलिए अब आप यहाँ से दूसरी जगह पधार जाएँ | पांच पच्चीस जितनी हमारे बूते में होगी उतनी भेंट हम भी आपकी नजर करेंगे |"
बाबाजी बोले-" बच्चा ! पांच पच्चीस का हम क्या करेंगे ? साधू तो भाव के भूखे होते है,माया से साधू संतो का क्या काम | बच्चा यदि तुम्हारे मन में हमारे प्रति श्रद्धा है तो हमारा एक काम करदो |"
"बाबाजी हुक्म कीजिये | मेरे करने लायक कार्य होगा तो मैं अवश्य करूँगा |" सूबेदार बोला |
बाबाजी कहने लगे- " बच्चा इस किले में हमारा एक भक्त कैद है | उसको एक नजर हमें दिखाय दो | डूंगरसिंह हमारा कंठी बंद चेला है | हम हिमालय की और जा रहे है पता नहीं लौटेंगे या नहीं सो एक बार हमें हमारे भक्त को दिखा दो |"
"बाबाजी समाधी में है हाथ जोड़कर प्रणाम कीजिये और चलते बनिए |"
किले के पहरेदार भी बाबा को रोज प्रणाम करने पहुँचते,औरते प्रणाम कर बाबा से मन्नत मांगती | पर बाबा किसी की और नजर उठाकर भी नहीं देखते | जो कोई भक्त चढ़ावा चढ़ाता चेला लेने से मना कर देता |
कहता - "माया से हमारा क्या काम | गुरूजी समाधी में है इसलिए चुपचाप धोक देकर चले जाईये |" और चेला लोगों द्वारा चढ़ाये चढ़ावे को हाथ तक नहीं लगता |

चित्र प्रतीकात्मक है|सभी और बाबाजी की बाते चलती | किले के पहरेदार आपस में बाते करते -"क्या पहुंचे हुए बाबाजी है माया के मोह से बिल्कुल दूर ,हमारे तो धन्य भाग जो बाबाजी ने किले के सामने समाधी ली,हमें भी दर्शन करने का मौका मिल गया वरना ऐसे साधू के दर्शन हमारे भाग्य में कहाँ |"
अंग्रेज अफसरों ने भी किले के मुख्य द्वार के आगे साधू को तपस्या करते देखा तो सूबेदार को बुलाकर उसे वहां से हटाने का हुक्म दिया | सूबेदार ने कम्पनी अफसर से कहा -
" बाबाजी समाधी में है | समाधी टूटते ही उन्हें वहां से हटा देंगे |"
आखिर एक दिन बाबाजी की समाधी टूटी | सूबेदार का उन्हें हटाने का मन नहीं था पर हुक्म के आगे वह मजबूर था सो बाबाजी के पास पहूँचा | और बाबाजी से बोला -
" बाबाजी धन्य भाग हमारे जो आप जैसे तपस्वी यहाँ आये और तपस्या की व हमें दर्शन दिए | पर साहब का हुक्म नहीं है इसलिए अब आप यहाँ से दूसरी जगह पधार जाएँ | पांच पच्चीस जितनी हमारे बूते में होगी उतनी भेंट हम भी आपकी नजर करेंगे |"
बाबाजी बोले-" बच्चा ! पांच पच्चीस का हम क्या करेंगे ? साधू तो भाव के भूखे होते है,माया से साधू संतो का क्या काम | बच्चा यदि तुम्हारे मन में हमारे प्रति श्रद्धा है तो हमारा एक काम करदो |"
"बाबाजी हुक्म कीजिये | मेरे करने लायक कार्य होगा तो मैं अवश्य करूँगा |" सूबेदार बोला |
बाबाजी कहने लगे- " बच्चा इस किले में हमारा एक भक्त कैद है | उसको एक नजर हमें दिखाय दो | डूंगरसिंह हमारा कंठी बंद चेला है | हम हिमालय की और जा रहे है पता नहीं लौटेंगे या नहीं सो एक बार हमें हमारे भक्त को दिखा दो |"
सूबेदार ने पाने साथियों से सलाह मशविरा किया कि डूंगरसिंह है तो खतरनाक कैदी पर ये साधू क्या कर लेगा | दिखाना ही तो है | यदि साधू कपटी भी है तो यहाँ क्या बिगाड़ लेगा,चार सिपाही साथ में जायेंगे जो अपने सामने मिला लायेंगे | यदि साधू ने अपने चेले को छुड़वाने की कोशिश भी की तो यह भी अन्दर जाएगा | इस तरह सलाह मशविरा कर सूबेदार साधू को अपने चेला से मिलाने में कोई नुकसान नजर नहीं आया और हाँ कह दी |
चार प्रहरी आगे व चार प्रहरी पीछे कर सूबेदार ने साधू व उसके चेला को डूंगरसिंह से मिलने भेज दिया | साधू व चेला किले में इधर उधर झांकते गए,कौनसा रास्ता किधर जाता है,फाटक,रास्तों के घुमाव,परकोटे की ऊंचाई आदि सब पर नजर डालते गए | कैद के पास पहुचे तो साधू ने देखा डूंगरसिंह हाथ और पैरों में बेड़ियाँ पहने कैदियों के बीच बैठे है |
बाबाजी बना लोटिया जाट बोला -" बच्चा सुखी रहो |"
लोटिया जाट की आवाज सुनते ही डूंगरसिंह बाबाजी को पहचान गए कि ये तो उनका खास वफादार लोटिया जाट है | बोले -
" महाराज आपने दर्शन दिए अहो भाग्य मेरे | महाराज हमें तो कंपनी सरकार ने काले पानी भेजने का हुक्म दे दिया है | आज से पन्द्रहवें दिन हमें सरकार काला पानी भेज देगी |
"बच्चा सब अच्छा होगा | चिंता मत कर | भगवान् तेरा भला करेगा |" कह कर बाबाजी बना लोटिया जाट अपने चेले सांवता मीणा के साथ वापस लौट पड़ा | वापसी में भी दोनों किले का भूगोल समझते गए कहाँ से भागा जा सकता है,कहाँ सीढ़ी लगाई जा सकती है किधर सुरक्षा का घेरा ढीला है | बाहर आ लोटिया ने तो बाबाजी वाली वेशभूषा उतार कर यमुना में फैंक दी और दोनों एक ऊंट खरीदकर सीधा शेखावाटी राज्य के ठिकाना बठोठ-पाटोदा आकर डूंगरसिंह के भतीजे जवाहरसिंह को आगरा किले में कैद डूंगरसिंह के सभी समाचार सुनाये-
" डूंगरसिंघजी को कम्पनी सरकार ने काला पानी भेजने का हुक्म दे दिया है | इसलिए अब अपने काकाजी से मिलना है तो तुरंत घोड़ों पर सवार हो जावो | देर करदी तो भी मिलने के सपने ही देखना |
सांवता मीणा ने कहा - " जवाहरसिंघजी ! अब देर मत कीजिये आगरा के किले पर धावे की तैयारी कीजिये | डूंगरसिंघजी के हाथों में हथकड़ियाँ,पैरों में बेड़ियाँ पड़ी है उनका इस तरह से जीना से तो मरना भला |
**** ******** ********* *
बठोठ-पटोदा से घोड़ों ऊँटो पर एक बारात रवाना हुई | आगे आगे ढोल बज रहे,दो जांगड़ अपने हारमोनियम व ढोलक पर थाप देकर दोहे देते जा रहे थे| बाँकिया वादक अपने पुरे जोर से धूं धूं कर बाँकिया बजा रहा था| बारात में शेखावत,बिदावत,तंवर,पंवार,मेड़तिया,नरुका राजपूत सरदार अपनी तलवारें हाथों में लिए अपने ऊँटो-घोड़ों पर चढ़े चल रहे थे| दादू पंथी भी बारात के साथ अपनी नंगी तलवारे चमकाते चल रहे थे साथ में नाई, लोटियो जाट,सांवतो मीणों,करनियो मीणों आदि सब मिलकर कोई पांच सौ बाराती चल रहे थे| बीच में जवाहरसिंह दुल्हे के वेश में घोड़े पर चढ़े चल रहे थे | लग रहा था कोई बड़े घर या किसी बड़े जागीरदार की बारात चढ़ी हो बाराती व ऊंट घोड़े भी मानो छांट कर लायें गए हो | सबके चेहरे एक से बढ़कर एक रोबदार | बारात को देखने वालों की नजरें ठहर गयी | बारात दिन में सफ़र करती रात को विश्राम | इस तरह दो तीन दिन में बारात आगरा के पास पहुँच यमुना के किनारे रुक गयी |
सांवता मीणा ने देखा यमुना किनारे एक गुजर अपनी भेड़ें चरा रहा है वह उसके पास गया बोला -
" भाई गुजर ! एक मेंढा (नर भेड़) चाहिए कितने रूपये का है |"
"ठाकर सा ! मेंढा की क्या कीमत | आपसे कीमत थोड़े ही लूँगा आप हमारे इधर से निकल रहे है इसलिए आप तो हमारे मेहमान हुए | मेहमान से रूपये कैसे ले सकता हूँ |आप तो जो बढ़िया लगे वही मेंढा ले जाईये |" गुजर बोला |
"नहीं भाई ! मुफ्त में तो नहीं ले जायेंगे | कीमत तो देंगे ही | हम ठहरे जागीरदार और तुम हमारे गुजर | ये लो पांच की जगह सात रूपये और ये बढ़िया वाला मेंढा दे दो |" सांवता मीणा ने कहा |
और मेंढा लाकर सांवता मीणा ने उसे काटकर उसका धड़ सीधा किया.अर्थी सजाई,सभी बारातियों ने अपने सिर मुंडवाए,चार सरदारों ने अर्थी उठाई ,नाई आगे आगे राम नाम सत है बोलता चला | लोटिया जाट अर्थी के आगे आग लेकर चला | इस तरह ये शवयात्रा आगरा किले के पास यमुना किनारे पहुंची | वहां उस मेंढे का पुरे विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया गया | चिता से उठी आग की लपटें उठती देखकर अंग्रेज अफसर घोड़े पर सवार हो तुरंत आ पहुंचा |
"वैल तुमने बहुत बुरा किया जो मुर्दे को यहाँ जलाया |"
देखो साहब - "मुर्दा मुर्दा मत बोलो | ये हम सबके सरदार थे | मेंढ़सिंह जी | बहुत बड़े जागीरदार थे और दुल्हे के मामा, इसलिए इनके लिए उल्टा सीधा मत बोलिए वरना तलवारे खिंच जाएगी |" लोटिया जाट ने अंग्रेज अफसर को हड़काते हुए कहा |
लोटिया की बात सुनते ही अंग्रेज अफसर ठंडा पड़ गया उसने सोचा ज्यादा सख्ती से बात बिगड़ जाएगी सो बोला -" ठीक है इनका क्रियाकर्म जल्द जल्द करके यहाँ से चले जाईये |"
"हाँ साहब तीसरे दिन इनका तिया और बारहवें दिन इनका बारहवां कर बारात आगे बढ़ जाएगी | बारहवां की रस्म पूरी होने के बाद हम यहाँ एक पल भी नहीं रुकेंगे |" लोटिया ने जबाब दिया |
इस तरह दुल्हे के मामा का निधन के नाटक कर ये बारात के रूप में गए ५०० योद्धा आगरे के लालकिले पर हमले के लिए मौके की तलाश में बहाना कर रुक गए |
दो तीन रोज बाद मौका देख रात में लोटिया जाट ने किले में कूदने के लिए सीढ़ी लगादी | दल के कुछ छंटे हुए वीर अपने हथियारों से लेश किले में घुसे | लोटिया जाट व सांवता मीणा के हाथों में हथकड़ियाँ व बेड़ियाँ काटने के औजार थे | किले में घुसकर आगे आगे लोटियो जाट और पीछे पीछे वीर राजपूत सीधे बुर्ज स्थित कैदखाने में पहुंचे | लोटिया जाट ने डूंगरसिंह की बेड़ियाँ काटना शुरू की पर डूंगरसिंह ने लोटिया से कहा -
" ठहर लोटिया ! पहले यहाँ बंद दुसरे सत्तर कैदियों की बेड़ियाँ काट फिर सबसे बाद में मेरी काटना |"
लोटिया जाट ने "ऊंह" किया |
"ऊंह ऊंह क्या कर रहा है लोटिया | पहले इन दुसरे कैदियों की बेड़ियाँ काट | दुनियां क्या कहेगी ? डूंगरसिंह चोर की तरह भाग गया | इसलिए लोटिया पहले इन सभी बंधुओं को छुडवाकर फिर निकलेंगे | लोटिया कल को हम मर भी जायेंगे तो ये तो हमें याद रखेंगे |"
और डूंगरसिंघजी की बात सुन लोटिया,सांवता व करणिया मीणा ने धड़ाधड वहां बंद सत्तर कैदियों की बेड़ियाँ काट डाली उसके बाद डूंगरसिंह ने अपनी बेड़ियाँ कटवाई | सबकी बेड़ियाँ काटने के बाद पहले दुसरे कैदियाँ को सीढ़ी की सहायता से बाहर निकाला गया पर उनकी जल्दबाजी व हडबडाहट के चलते सीढ़ी पर एक साथ पच्चीस लोग चढ़ गए और सीढ़ी टूट गयी |
अब मुख्य द्वार से निकलने के अलावा उनके पास की रास्ता नहीं बचा और सबने मिलकर मुख्यद्वार पर धावा बोल दिया | पहरे पर तैनात पहरेदारों पर राजपूत योद्धा अपनी तलवारें लेकर टूट पड़े साथ में आजाद हुए कैदियों ने भी हमले में साथ दिया जिसके हाथ में जो आया उसी का हथियार के रूप में इस्तेमाल करने लगा,थोड़ी देर रण-रोळ मचाने के बाद किले के दरवाजे तोड़ डाले गए,पहरे पर तैनात सिपाही मौत के घाट उतार दिए गए |
जब तक अंग्रेज अफसरों को घटना का पता चला तब तक तो डूंगरसिंह को आजाद कराने आया यह दल ऊंट घोड़ों पर सवार होकर डूंगरसिंह को लेकर चलते बना| आजाद हुए कैदियों को कह गए -
" फिरंगी हमारा पीछा करेंगे इसलिए तुम अलग अलग अपना रास्ता पकड़ो |"
आगरा किले की कैद से छूटकर डूंगरसिंह सीधे रामगढ़ शेखावाटी पहुंचे और उन सेठों को बुलाया जिन्होंने उनको गिरफ्तार करने के लिए अंग्रेजों का साथ दिया था | सभी सेठों को इकठ्ठा किया गया |
रामगढ के बाजार में आकर डूंगरसिंघजी ने धहाड़ लगायी -" फिरंगियों के लाडले पूतो ! बाहर निकलो | अब अपने बाप फिरंगियों को बुला लो ,उनमे हिम्मत है तो अब मुझे पकड कर दिखाए |"
डूंगरसिंह को देखते ही कई सेठों की घिग्घी बंध गयी कई सेठों ने अपनी औरतों को आगे कर दिया | सेठो की हवेलियों में हडकंप मच गया | सेठों व सेठानियों ने डूंगरसिंह के आगे हाथ जोड़े ,दया की भीख मांगी ,सेठानियों को आगे देख डूंगरसिंह ने उन्हें छोड़ दिया | और सीधे अपने घर आये | किले के दरवाजे पर उनकी रानी ने आरती उतार उनका स्वागत किया ,तब डूंगरसिंह अपनी रानी से बोले -
"रानीसा मुझे क्यों बधाय रहे हो | इस लोटिया जाट को बधावो जो मुझे कैद से छुडवाकर लाया है |"
म्हांने मत बधावो राणी,बधावो लोटिया जाट |
म्हें आपै नहीं आया ,म्हांने लायौ लोटियो जाट ||
इस प्रकार लोटिया जाट व सांवता मीणा ने शेखावाटी के प्रसिद्ध स्वातंत्र्य सेनानी डूंगरसिंह को आगरा की कैद से छुड़वाने में अहम् भूमिका अदा की |
कैद से आजाद होने के बाद डूंगरसिंह,जवाहरसिंह,लोटिया जाट (लोठु निठारवाल),सांवता मीणा ने सीकर राज्य के रामगढ के धनाढ्य सेठ अनंतराम घुसिमल पोद्धार से पन्द्रह हजार रूपये की आर्थिक सहायता लेकर ऊंट,घोड़े और हथियार खरीदकर अपने क्रांतिदल को फिर खड़ा किया और संगठित होकर अंग्रेजों के थानों पर हमले शुरू कर दिए वे थानों से हथियार व अंग्रेज खजानों से धन लुट ले जाते,जरुरत का रखते व बाकि गरीबों में बाँट देते | इस तरह उन्होंने अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया | एक दिन लोटिया डूंगरसिंह से बोला -
" ठाकरां छोटे मोटे थानों पर हमले करने के बजाय कोई मोटा हमला करें जिससे अंग्रेजों की चूलें हिल गए और हमारा जग में नाम हो जाये |"
इस बात पर सहमती बनी,फिर राजस्थान में अंग्रेजों की सबसे बड़ी नसीराबाद स्थित छावनी पर हमला करने की योजना बनी | सभी राजपूत सरदारों को व अन्य जातियों के क्रांतिकारियों को योजना का संदेश भेजा गया | सभी दल बारातों के रूप में नसीराबाद की और रवाना हुए और सौ ऊँटो व चार सौ घोड़ों पर सवार हो इस दल ने नसीराबाद कीई छावनी पर रात्री को हमला किया | अंग्रेज अधिकारीयों को मार दिया गया,छावनी के हथियार व २७००० रु.लुट लिए गए,सेना के तम्बू जला दिए गए,लुट में मिले २७००० रु. धनोप गांव स्थित देवी के मंदिर में चढ़ाकर इस दल के सदस्य वापस अपने अपने क्षेत्रों की निकल गए |
आगरा किले से डूंगरसिंह को छुड़वाने के अभियान में ठाकुर बख्तावरसिंह शेखावत(श्यामगढ़),ठाकुर उजिणसिंह (बीकानेर राज्य के मिंगणा गांव के),हनुतदान चारण (सुजानगढ़ तहसील के दांह गांव के) आदि लोग लड़ते हुए शहीद हुए थे |
इन क्रांतिकारियों की गाथा लोक कलाकारों की आवाज में सुनिये...

लोठू निठारवाल (लोटियो जाट)
चार प्रहरी आगे व चार प्रहरी पीछे कर सूबेदार ने साधू व उसके चेला को डूंगरसिंह से मिलने भेज दिया | साधू व चेला किले में इधर उधर झांकते गए,कौनसा रास्ता किधर जाता है,फाटक,रास्तों के घुमाव,परकोटे की ऊंचाई आदि सब पर नजर डालते गए | कैद के पास पहुचे तो साधू ने देखा डूंगरसिंह हाथ और पैरों में बेड़ियाँ पहने कैदियों के बीच बैठे है |
बाबाजी बना लोटिया जाट बोला -" बच्चा सुखी रहो |"
लोटिया जाट की आवाज सुनते ही डूंगरसिंह बाबाजी को पहचान गए कि ये तो उनका खास वफादार लोटिया जाट है | बोले -
" महाराज आपने दर्शन दिए अहो भाग्य मेरे | महाराज हमें तो कंपनी सरकार ने काले पानी भेजने का हुक्म दे दिया है | आज से पन्द्रहवें दिन हमें सरकार काला पानी भेज देगी |
"बच्चा सब अच्छा होगा | चिंता मत कर | भगवान् तेरा भला करेगा |" कह कर बाबाजी बना लोटिया जाट अपने चेले सांवता मीणा के साथ वापस लौट पड़ा | वापसी में भी दोनों किले का भूगोल समझते गए कहाँ से भागा जा सकता है,कहाँ सीढ़ी लगाई जा सकती है किधर सुरक्षा का घेरा ढीला है | बाहर आ लोटिया ने तो बाबाजी वाली वेशभूषा उतार कर यमुना में फैंक दी और दोनों एक ऊंट खरीदकर सीधा शेखावाटी राज्य के ठिकाना बठोठ-पाटोदा आकर डूंगरसिंह के भतीजे जवाहरसिंह को आगरा किले में कैद डूंगरसिंह के सभी समाचार सुनाये-
" डूंगरसिंघजी को कम्पनी सरकार ने काला पानी भेजने का हुक्म दे दिया है | इसलिए अब अपने काकाजी से मिलना है तो तुरंत घोड़ों पर सवार हो जावो | देर करदी तो भी मिलने के सपने ही देखना |
सांवता मीणा ने कहा - " जवाहरसिंघजी ! अब देर मत कीजिये आगरा के किले पर धावे की तैयारी कीजिये | डूंगरसिंघजी के हाथों में हथकड़ियाँ,पैरों में बेड़ियाँ पड़ी है उनका इस तरह से जीना से तो मरना भला |
**** ******** ********* *
बठोठ-पटोदा से घोड़ों ऊँटो पर एक बारात रवाना हुई | आगे आगे ढोल बज रहे,दो जांगड़ अपने हारमोनियम व ढोलक पर थाप देकर दोहे देते जा रहे थे| बाँकिया वादक अपने पुरे जोर से धूं धूं कर बाँकिया बजा रहा था| बारात में शेखावत,बिदावत,तंवर,पंवार,मेड़तिया,नरुका राजपूत सरदार अपनी तलवारें हाथों में लिए अपने ऊँटो-घोड़ों पर चढ़े चल रहे थे| दादू पंथी भी बारात के साथ अपनी नंगी तलवारे चमकाते चल रहे थे साथ में नाई, लोटियो जाट,सांवतो मीणों,करनियो मीणों आदि सब मिलकर कोई पांच सौ बाराती चल रहे थे| बीच में जवाहरसिंह दुल्हे के वेश में घोड़े पर चढ़े चल रहे थे | लग रहा था कोई बड़े घर या किसी बड़े जागीरदार की बारात चढ़ी हो बाराती व ऊंट घोड़े भी मानो छांट कर लायें गए हो | सबके चेहरे एक से बढ़कर एक रोबदार | बारात को देखने वालों की नजरें ठहर गयी | बारात दिन में सफ़र करती रात को विश्राम | इस तरह दो तीन दिन में बारात आगरा के पास पहुँच यमुना के किनारे रुक गयी |
सांवता मीणा ने देखा यमुना किनारे एक गुजर अपनी भेड़ें चरा रहा है वह उसके पास गया बोला -
" भाई गुजर ! एक मेंढा (नर भेड़) चाहिए कितने रूपये का है |"
"ठाकर सा ! मेंढा की क्या कीमत | आपसे कीमत थोड़े ही लूँगा आप हमारे इधर से निकल रहे है इसलिए आप तो हमारे मेहमान हुए | मेहमान से रूपये कैसे ले सकता हूँ |आप तो जो बढ़िया लगे वही मेंढा ले जाईये |" गुजर बोला |
"नहीं भाई ! मुफ्त में तो नहीं ले जायेंगे | कीमत तो देंगे ही | हम ठहरे जागीरदार और तुम हमारे गुजर | ये लो पांच की जगह सात रूपये और ये बढ़िया वाला मेंढा दे दो |" सांवता मीणा ने कहा |
और मेंढा लाकर सांवता मीणा ने उसे काटकर उसका धड़ सीधा किया.अर्थी सजाई,सभी बारातियों ने अपने सिर मुंडवाए,चार सरदारों ने अर्थी उठाई ,नाई आगे आगे राम नाम सत है बोलता चला | लोटिया जाट अर्थी के आगे आग लेकर चला | इस तरह ये शवयात्रा आगरा किले के पास यमुना किनारे पहुंची | वहां उस मेंढे का पुरे विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया गया | चिता से उठी आग की लपटें उठती देखकर अंग्रेज अफसर घोड़े पर सवार हो तुरंत आ पहुंचा |
"वैल तुमने बहुत बुरा किया जो मुर्दे को यहाँ जलाया |"
देखो साहब - "मुर्दा मुर्दा मत बोलो | ये हम सबके सरदार थे | मेंढ़सिंह जी | बहुत बड़े जागीरदार थे और दुल्हे के मामा, इसलिए इनके लिए उल्टा सीधा मत बोलिए वरना तलवारे खिंच जाएगी |" लोटिया जाट ने अंग्रेज अफसर को हड़काते हुए कहा |
लोटिया की बात सुनते ही अंग्रेज अफसर ठंडा पड़ गया उसने सोचा ज्यादा सख्ती से बात बिगड़ जाएगी सो बोला -" ठीक है इनका क्रियाकर्म जल्द जल्द करके यहाँ से चले जाईये |"
"हाँ साहब तीसरे दिन इनका तिया और बारहवें दिन इनका बारहवां कर बारात आगे बढ़ जाएगी | बारहवां की रस्म पूरी होने के बाद हम यहाँ एक पल भी नहीं रुकेंगे |" लोटिया ने जबाब दिया |
इस तरह दुल्हे के मामा का निधन के नाटक कर ये बारात के रूप में गए ५०० योद्धा आगरे के लालकिले पर हमले के लिए मौके की तलाश में बहाना कर रुक गए |
दो तीन रोज बाद मौका देख रात में लोटिया जाट ने किले में कूदने के लिए सीढ़ी लगादी | दल के कुछ छंटे हुए वीर अपने हथियारों से लेश किले में घुसे | लोटिया जाट व सांवता मीणा के हाथों में हथकड़ियाँ व बेड़ियाँ काटने के औजार थे | किले में घुसकर आगे आगे लोटियो जाट और पीछे पीछे वीर राजपूत सीधे बुर्ज स्थित कैदखाने में पहुंचे | लोटिया जाट ने डूंगरसिंह की बेड़ियाँ काटना शुरू की पर डूंगरसिंह ने लोटिया से कहा -
" ठहर लोटिया ! पहले यहाँ बंद दुसरे सत्तर कैदियों की बेड़ियाँ काट फिर सबसे बाद में मेरी काटना |"
लोटिया जाट ने "ऊंह" किया |
"ऊंह ऊंह क्या कर रहा है लोटिया | पहले इन दुसरे कैदियों की बेड़ियाँ काट | दुनियां क्या कहेगी ? डूंगरसिंह चोर की तरह भाग गया | इसलिए लोटिया पहले इन सभी बंधुओं को छुडवाकर फिर निकलेंगे | लोटिया कल को हम मर भी जायेंगे तो ये तो हमें याद रखेंगे |"
और डूंगरसिंघजी की बात सुन लोटिया,सांवता व करणिया मीणा ने धड़ाधड वहां बंद सत्तर कैदियों की बेड़ियाँ काट डाली उसके बाद डूंगरसिंह ने अपनी बेड़ियाँ कटवाई | सबकी बेड़ियाँ काटने के बाद पहले दुसरे कैदियाँ को सीढ़ी की सहायता से बाहर निकाला गया पर उनकी जल्दबाजी व हडबडाहट के चलते सीढ़ी पर एक साथ पच्चीस लोग चढ़ गए और सीढ़ी टूट गयी |
अब मुख्य द्वार से निकलने के अलावा उनके पास की रास्ता नहीं बचा और सबने मिलकर मुख्यद्वार पर धावा बोल दिया | पहरे पर तैनात पहरेदारों पर राजपूत योद्धा अपनी तलवारें लेकर टूट पड़े साथ में आजाद हुए कैदियों ने भी हमले में साथ दिया जिसके हाथ में जो आया उसी का हथियार के रूप में इस्तेमाल करने लगा,थोड़ी देर रण-रोळ मचाने के बाद किले के दरवाजे तोड़ डाले गए,पहरे पर तैनात सिपाही मौत के घाट उतार दिए गए |
जब तक अंग्रेज अफसरों को घटना का पता चला तब तक तो डूंगरसिंह को आजाद कराने आया यह दल ऊंट घोड़ों पर सवार होकर डूंगरसिंह को लेकर चलते बना| आजाद हुए कैदियों को कह गए -
" फिरंगी हमारा पीछा करेंगे इसलिए तुम अलग अलग अपना रास्ता पकड़ो |"
आगरा किले की कैद से छूटकर डूंगरसिंह सीधे रामगढ़ शेखावाटी पहुंचे और उन सेठों को बुलाया जिन्होंने उनको गिरफ्तार करने के लिए अंग्रेजों का साथ दिया था | सभी सेठों को इकठ्ठा किया गया |
रामगढ के बाजार में आकर डूंगरसिंघजी ने धहाड़ लगायी -" फिरंगियों के लाडले पूतो ! बाहर निकलो | अब अपने बाप फिरंगियों को बुला लो ,उनमे हिम्मत है तो अब मुझे पकड कर दिखाए |"
डूंगरसिंह को देखते ही कई सेठों की घिग्घी बंध गयी कई सेठों ने अपनी औरतों को आगे कर दिया | सेठो की हवेलियों में हडकंप मच गया | सेठों व सेठानियों ने डूंगरसिंह के आगे हाथ जोड़े ,दया की भीख मांगी ,सेठानियों को आगे देख डूंगरसिंह ने उन्हें छोड़ दिया | और सीधे अपने घर आये | किले के दरवाजे पर उनकी रानी ने आरती उतार उनका स्वागत किया ,तब डूंगरसिंह अपनी रानी से बोले -
"रानीसा मुझे क्यों बधाय रहे हो | इस लोटिया जाट को बधावो जो मुझे कैद से छुडवाकर लाया है |"
म्हें आपै नहीं आया ,म्हांने लायौ लोटियो जाट ||
इस प्रकार लोटिया जाट व सांवता मीणा ने शेखावाटी के प्रसिद्ध स्वातंत्र्य सेनानी डूंगरसिंह को आगरा की कैद से छुड़वाने में अहम् भूमिका अदा की |
कैद से आजाद होने के बाद डूंगरसिंह,जवाहरसिंह,लोटिया जाट (लोठु निठारवाल),सांवता मीणा ने सीकर राज्य के रामगढ के धनाढ्य सेठ अनंतराम घुसिमल पोद्धार से पन्द्रह हजार रूपये की आर्थिक सहायता लेकर ऊंट,घोड़े और हथियार खरीदकर अपने क्रांतिदल को फिर खड़ा किया और संगठित होकर अंग्रेजों के थानों पर हमले शुरू कर दिए वे थानों से हथियार व अंग्रेज खजानों से धन लुट ले जाते,जरुरत का रखते व बाकि गरीबों में बाँट देते | इस तरह उन्होंने अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया | एक दिन लोटिया डूंगरसिंह से बोला -
" ठाकरां छोटे मोटे थानों पर हमले करने के बजाय कोई मोटा हमला करें जिससे अंग्रेजों की चूलें हिल गए और हमारा जग में नाम हो जाये |"
इस बात पर सहमती बनी,फिर राजस्थान में अंग्रेजों की सबसे बड़ी नसीराबाद स्थित छावनी पर हमला करने की योजना बनी | सभी राजपूत सरदारों को व अन्य जातियों के क्रांतिकारियों को योजना का संदेश भेजा गया | सभी दल बारातों के रूप में नसीराबाद की और रवाना हुए और सौ ऊँटो व चार सौ घोड़ों पर सवार हो इस दल ने नसीराबाद कीई छावनी पर रात्री को हमला किया | अंग्रेज अधिकारीयों को मार दिया गया,छावनी के हथियार व २७००० रु.लुट लिए गए,सेना के तम्बू जला दिए गए,लुट में मिले २७००० रु. धनोप गांव स्थित देवी के मंदिर में चढ़ाकर इस दल के सदस्य वापस अपने अपने क्षेत्रों की निकल गए |
आगरा किले से डूंगरसिंह को छुड़वाने के अभियान में ठाकुर बख्तावरसिंह शेखावत(श्यामगढ़),ठाकुर उजिणसिंह (बीकानेर राज्य के मिंगणा गांव के),हनुतदान चारण (सुजानगढ़ तहसील के दांह गांव के) आदि लोग लड़ते हुए शहीद हुए थे |
इन क्रांतिकारियों की गाथा लोक कलाकारों की आवाज में सुनिये...
लोठू निठारवाल (लोटियो जाट)
Lothu Nitharwal story in hindi, hindi story of lotiya jat and sanwta meena
जानकारी के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंनीवंण है आजादी रा आं परवानां नै |
जवाब देंहटाएंमरै नहीं भड़ मारका, धरती बेडी धार
गयी जे जस गीतड़ा, जग में डुंग जवार |
जे थे जणती राणीयां, डुंग जिस दिवांण
हो तो नह हिंदवाण में, फ़ैल इतो फिरंगाण |
कटारी अमरेस री , बही जठै हिक वार |
जवाब देंहटाएंजठैज डूंगर जवार री , तीन पहर तरवार ||
आसंग लीधो आगरो,फ़ैल गिणयो फिरंग |
जग जस डुंग जंवार रो, रायसलोतां रंग ||
रोचक कथाओं में एक और कड़ी।
जवाब देंहटाएंकितनी घटनाये,कहानियां बिखरी सी पड़ी है राजस्थान के बारे में.अपनी दादी से मैंने लोटिया जाट की कहानी सुनी थी. यहं पढकर और भी अच्छा लग रहा है.
जवाब देंहटाएंदादी 'खरवा ठाकर सा' की बाते भी बताया करती थी.आपके पास जानकारी हो तो पोस्ट कीजियेगा.
कितना सच कितना झूठ आम जन प्रचलित था खरवा ठाकर सा' के बारे में.मालूम तो हो.
दादी ने जो बताया उससे मेरे बाल मन पर एक छाप सी पड़ी .....और ठाकरसा मेरे आदर्श बन गए.
आपके ब्लॉग पर आना हर बार अच्छा लगता है.
'पीपली' लोकगीत में संगीत गीत के बोलो को दबा रहा है.इसलिए अच्छा गीत होते हुए भी इसमें भीतर तक चीर देने वाली बात नही.जो वास्तव में होनी चाहिए थी.जो आँखों में आंसू न ला दे वो कैसा विरह-गीत!
भाई साँची बात तो बोलूँईच.
ऐसिच हूँ मैं तो.हा हा इसके लिए तैयार रहना होगा आपको.दिल न दुखे आपका बस.
मेरे लिए यह सब जानना एकदम नया औऱ बहुत रोचक था।
जवाब देंहटाएंआजादी के आन्दोलन में सभी जाती के लोगो ने बराबर का हिस्सा लिया | कुछ को इतिहास में जगह मिली,कुछ को नहीं मिली | गाँवों में आज भी जातिगत वैमनस्य की भावना नहीं है | हां कुछ मुठ्ठी भर गंदी मानसिकता वाले राजनीतिग्य अपनी रोटिया जातिगत बैर फैलाकर सेक रहे है |आपकी ये जानकारी काफी लोगो के दिमाग के बंद दरवाजे खोल देगी |
जवाब देंहटाएंआप ने लोठू निठारवाल (लोटियो जाट) के बारे ओर उस की बहादुरी के बारे विस्तार से लिखा, ऎसी बहुत सी सच्ची कहानियां हे जो आज भी इतिहास मे कही नही दर्ज, नमन हे इन वीरो को, ओर यह सेठ हमेशा से पैसो के लिये देश ओर उस के सच्चे भक्तो से द्रोह करते आये हे कु्छ धन के लिये, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंनमन है उन लोगों को।
जवाब देंहटाएंक्या लोग थे वे दीवाने!!!!
@इंदुपुरी जी
जवाब देंहटाएं- खरवा ठाकुर साहब वाकई आदर्श थे | आप खुशकिस्मत है कि आपने बचपन से ही खरवा ठाकुर साहब को अपना आदर्श माना | मेरे पास खरवा ठाकुर साहब के जीवन पर लिखी एक पुस्तक है पिछले दिनों ही लेकर आया था अभी उसका अध्ययन करना बाकी है | उस पुस्तक का अध्ययन कर ठाकुर साहब खरवा के बारे में पुरी जानकारी हिंदी विकिपेडिया पर लिखूंगा |
- ठाकुर सौभाग्यसिंह जी द्वारा लिखित पुस्तक "वीर भोग्या वसुंधरा" में ठाकुर साहब पर एक लेख था वह ज्ञान दर्पण पर प्रकाशित है जिसे आप पढ़ सकते है |
स्वतंत्रता समर के योद्धा : राव गोपाल सिंह खरवा |
- पिपली गीत वीणा केसेट वालों के एल्बम से लिया गया | वे लोग व्यवसायिक है फिर भी सीमा मिश्रा की आवाज में जो मधुरता उनके एलबम्स में होती है वह अन्य जगह नहीं मिलती |
जाट देवता संदीप ने यह टिप्पणी मेल से भेजी
जवाब देंहटाएंfrom जाट देवता (संदीप पवाँर)
to
date Fri, May 27, 2011 at 12:47 PM
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signed-by gmail.com
hide details 12:47 PM (5 hours ago)
लोटिया जाट की बहादुरी को जाट देवता का नमन ,
और अन्य वीरो को मेरा सलाम , अगर इन जैसे देशभक्त न होते, तो ना जाने क्या होता ,
आप भी ऐसी सच्ची घटना लाते हो, जिनके बारे में लोगो को पता नहीं होता है,
नई कहानी ,नई जानकारी के लिये धन्यावाद !
जवाब देंहटाएंलोटिया जाट की कहानी पहले भी सुनी थी.
जवाब देंहटाएंअब आपने विस्तार से बता दिया...........
आभार
अद्भुत जानकारी के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंवाह रतनसिंह जी ..अपने बहुत ही विस्तार से सारी कहानी बताई ...ये सारी बाते तो हमसे जो लोठिया जाट की प्रतिमा बनाने आये ..उन्होंने भी नही बनाई .....आपका आभार...
जवाब देंहटाएंवाह रतनसिंह जी ..अपने बहुत ही विस्तार से सारी कहानी बताई ...ये सारी बाते तो हमसे जो लोठिया जाट की प्रतिमा बनाने आये ..उन्होंने भी नही बनाई .....आपका आभार...
जवाब देंहटाएंवाह रतनसिंह जी ..अपने बहुत ही विस्तार से सारी कहानी बताई ...ये सारी बाते तो हमसे जो लोठिया जाट की प्रतिमा बनाने आये ..उन्होंने भी नही बनाई .....आपका आभार...
जवाब देंहटाएंलोटिया जाट की जगह एक वीर पुरूष का लोठू निठारवाल सम्मानजनक नाम का उल्लेख होता तो अच्छा रहता।
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