" मेरी मांढ देश की मूमल, आओ मेरे साथ अमरकोट चलो |"
महेन्द्रा अमरकोट पहुँच वहां उसका दिन तो किसी तरह कट जाता पर शाम होते ही उसे मूमल ही मूमल नजर आने लगती वह जितना अपने मन को समझाने की कोशिश करता उतनी ही मूमल की यादें और बढ़ जाती | वह तो यही सोचता कि कैसे लोद्र्वे पहुँच कर मूमल से मिला जाय | आखिर उसे सुझा कि अपने ऊँटो के टोले में एसा ऊंट खोजा जाय जो रातों रात लोद्र्वे जाकर सुबह होते ही वापस अमरकोट आ सके |

महेन्द्रा विवाहित था उसके सात पत्नियाँ थी | मूमल के पास से वापस आने पर वह सबसे छोटी पत्नी के पास आकर सो जाता इस तरह कोई सात आठ महीनों तक उसकी यही दिनचर्या चलती रही इन महीनों में वह बाकी पत्नियों से तो मिला तक नहीं इसलिए वे सभी सबसे छोटी बहु से ईर्ष्या करनी लगी और एक दिन जाकर इस बात पर उन्होंने अपनी सास से जाकर शिकायत की | सास ने छोटी बहु को समझाया कि बाकी पत्नियों को भी महिंद्रा ब्याह कर लाया है उनका भी उस पर हक़ बनता है इसलिए महिंद्रा को उनके पास जाने से मत रोका कर | तब महिंद्रा की छोटी पत्नी ने अपनी सास को बताया कि महिंद्रा तो उसके पास रोज सुबह होने से पहले आता है और आते ही सो जाता है उसे भी उससे बात किये कोई सात आठ महीने हो गए | वह कब कहाँ जाते है,कैसे जाते है,क्यों जाते है मुझे कुछ भी मालूम नहीं |
छोटी बहु की बाते सुन महिंद्रा की माँ को शक हुवा और उसने यह बात अपनी पति राणा वीसलदे को बताई | चतुर वीसलदे ने छोटी बहु से पूछा कि जब महिंद्रा आता है तो उसमे क्या कुछ ख़ास नजर आता है | छोटी बहु ने बताया कि जब रात के आखिरी प्रहर महिंद्रा आता है तो उसके बाल गीले होते है जिनमे से पानी टपक रहा होता है |
चतुर वीसलदे ने बहु को हिदायत दी कि आज उसके बालों के नीचे कटोरा रख उसके भीगे बालों से टपके पानी को इक्कठा कर मेरे पास लाना | बहु ने यही किया और कटोरे में एकत्र पानी वीसलदे के सामने हाजिर किया | वीसलदे ने पानी चख कर कहा- " यह तो काक नदी का पानी है इसका मतलब महिंद्रा जरुर मूमल की मेंड़ी में उसके पास जाता होगा |
रात होते ही जब रामू राइका चीतल लेकर नहीं आया तो महिंद्रा उसके घर गया वहां उसे पता चला कि चीतल के तो उसकी पत्नियों ने पैर तुड़वा दिए है तब उसने रामू से चीतल जैसा दूसरा ऊंट माँगा |
रामू ने कहा -" उसके टोले में एक तेज दौड़ने वाली एक टोरडी (छोटी ऊंटनी) है तो सही पर कम उम्र होने के चलते वह चीतल जैसी सुलझी हुई व अनुभवी नहीं है | आप उसे ले जाये पर ध्यान रहे उसके आगे चाबुक ऊँचा ना करे,चाबुक ऊँचा करते ही वह चमक जाती है और जिधर उसका मुंह होता उधर ही दौड़ना शुरू कर देती है तब उसे रोकना बहुत मुश्किल है |
महिंद्रा टोरडी पर सवार हो लोद्र्वा के लिए रवाना होने लगा पर मूमल से मिलने की बैचेनी के चलते वह भूल गया कि चाबुक ऊँचा नहीं करना है और चाबुक ऊँचा करते ही टोरडी ने एड लगायी और सरपट भागने लगी अँधेरी रात में महिंद्रा को रास्ता भी नहीं पता चला कि वह कहाँ पहुँच गया थोड़ी देर में महिंद्रा को एक झोंपड़े में दिया जलता नजर आया वहां जाकर उसने उस क्षेत्र के बारे में पूछा तो पता चला कि वह लोद्र्वा की जगह बाढ़मेर पहुँच चूका है | रास्ता पूछ जब महिंद्रा लोद्र्वा पहुंचा तब तक रात का तीसरा प्रहर बीत चूका था | मूमल उसका इंतजार कर सो चुकी थी उसकी मेंड़ी में दिया जल रहा था | उस दिन मूमल की बहन सुमल भी मेंड़ी में आई थी दोनों की बाते करते करते आँख लग गयी थी | सहेलियों के साथ दोनों बहनों ने देर रात तक खेल खेले थे सुमल ने खेल में पुरुषों के कपडे पहन पुरुष का अभिनय किया था | और वह बातें करती करती पुरुष के कपड़ों में ही मूमल के पलंग पर उसके साथ सो गयी |
महिंद्रा मूमल की मेंड़ी पहुंचा सीढियाँ चढ़ जैसे ही मूमल के कक्ष में घुसा और देखा कि मूमल तो किसी पुरुष के साथ सो रही है | यह दृश्य देखते ही महिंद्रा को तो लगा जैसे उसे एक साथ हजारों बिच्छुओं ने काट खाया हो | उसके हाथ में पकड़ा चाबुक वही गिर पड़ा और वह जिन पैरों से आया था उन्ही से चुपचाप बिना किसी को कुछ कहे वापस अमरकोट लौट आया | वह मन ही मन सोचता रहा कि जिस मूमल के लिए मैं प्राण तक न्योछावर करने के लिए तैयार था वह मूमल ऐसी निकली | जिसके लिए मैं कोसों दूर से आया हूँ वह पर पुरुष के साथ सोयी मिलेगी | धिक्कार है ऐसी औरत पर |
सुबह आँख खुलते ही मूमल की नजर जैसे महिंद्रा के हाथ से छूटे चाबुक पर पड़ी वह समझ गयी कि महेन्द्रा आया था पर शायद किसी बात से नाराज होकर चला गया |उसके दिमाग में कई कल्पनाएँ आती रही |
कई दिनों तक मूमल महिंद्रा का इंतजार करती रही कि वो आएगा और जब आएगा तो सारी गलतफहमियां दूर हो जाएँगी | पर महिंद्रा नहीं आया | मूमल उसके वियोग में फीकी पड़ गई उसने श्रंगार करना छोड़ दिया |खना पीना भी छोड़ दिया उसकी कंचन जैसी काया काली पड़ने लगी | उसने महिंद्रा को कई चिट्ठियां लिखी पर महिंद्रा की पत्नियों ने वह चिट्ठियां महिंद्रा तक पहुँचने ही नहीं दी | आखिर मूमल ने एक ढोली (गायक) को बुला महेन्द्रा के पास भेजा | पर उसे भी महिंद्रा से नहीं मिलने दिया गया | पर वह किसी तरह महेन्द्रा के महल के पास पहुँचने में कामयाब हो गया और रात पड़ते ही उस ढोली ने मांढ राग में गाना शुरू किया -
तेरी मूमल राणी है उदास
मूमल के बुलावे पर
असल प्रियतम महेन्द्रा अब तो घर आव |"
ढोली के द्वारा गयी मांढ सुनकर भी महिंद्रा का दिल नहीं पसीजा और उसने ढोली को कहला भेजा कि -" मूमल से कह देना न तो मैं रूप का लोभी हूँ और न ही वासना का कीड़ा | मैंने अपनी आँखों से उस रात उसका चरित्र देख लिया है जिसके साथ उसकी घनिष्ठता है उसी के साथ रहे | मेरा अब उससे कोई सम्बन्ध नहीं |"
ढोली द्वारा सारी बात सुनकर मूमल के पैरों तले की जमीन ही खिसक गई अब उसे समझ आया कि महेन्द्रा क्यों नहीं आया | मूमल ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे एसा कलंक लगेगा |
उसने तुरंत अमरकोट जाने के लिए रथ तैयार करवाया ताकि अमरकोट जाकर महिंद्रा से मिल उसका बहम दूर किया जा सके कि वह कलंकिनी नहीं है और उसके सिवाय उसका कोई नहीं |
अमरकोट में मूमल के आने व मिलने का आग्रह पाकर महिंद्रा महिंद्रा ने सोचा,शायद मूमल पवित्र है ,लगता है मुझे ही कोई ग़लतफ़हमी हो गई | और उसने मूमल को सन्देश भिजवाया कि वह उससे सुबह मिलने आएगा | मूमल को इस सन्देश से आशा बंधी |
रात को महेन्द्रा ने सोचा कि -देखें,मूमल मुझसे कितना प्यार करती है ?"'
सो सुबह उसने अपने नौकर के सिखाकर मूमल के डेरे पर भेजा | नौकर रोता-पीटता मूमल के डेरे पर पहुंचा और कहने लगा कि -"महिंद्रा जी को रात में काले नाग ने डस लिया जिससे उनकी मृत्यु हो गयी |
नौकर के मुंह से इतना सुनते ही मूमल पछाड़ खाकर धरती पर गिर पड़ी और पड़ते ही महिंद्रा के वियोग में उसके प्राण पखेरू उड़ गए |
महेन्द्रा को जब मूमल की मृत्यु का समाचार मिला तो वह सुनकर उसी वक्त पागल हो गया और सारी उम्र " हाय म्हारी प्यारी मूमल,म्हारी प्यारी मूमल" कहता फिरता रहा |
एक और जैसलमेर के पास लोद्र्वा में काक नदी आज भी कल-कल करती मूमल और महिंद्रा की अमर प्रेम कहानी सुना रही है वहीँ जैसलमेर में आयोजित होने वाले मरु महोत्सव में इस अमर प्रेम कथा की नायिका मूमल के नाम पर मिस मूमल सोंदर्य प्रतियोगिता आयोजित की जाती है जिसमे भाग लेने व सौन्दर्य का मिस मूमल ख़िताब पाने को आतुर लड़कियां आपस में कड़ी टक्कर देती है | भास्कर समाचार पत्र के अनुसार - मरु मेले में मिस मूमल की प्रतियोगिता में कांटे की टक्कर होती है। इसे मिस इंडिया प्रतियोगिता की तरह माना जाता है। ऐसे में हर लड़की के मन में मूमल बनने का सपना है। इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए न्यूनतम उम्र 15 वर्ष, राजस्थान की मूल निवासी, अविवाहित युवती, पारंपरिक वेशभूषा, स्थानीयता का बोध करवाने वाले आभूषण आदि से सजना होता है।
सजने संवरने के लिए ब्यूटी पार्लर में लड़कियों की भीड़ रहती है। प्रतियोगिता तक सजे हुए सोलह शृंगार को बड़े जतन से रखना पड़ता है। घर परिवार और नाते रिश्तेदारों में न मिलने पर एम्पोरियम एवं किराए पर वस्त्र लेने पड़ते http://www.blogger.com/img/blank.gifहैं। मिस मूमल बनने की चाह रखने वाली लड़कियों को कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है। इसके लिए पहले से तैयारी जरूरी है। उन्हें कॉस्टूयम कलर, पारंपरिक गहनों, व मेहंदी के मामले में सजग रहना चाहिए। मंच पर आत्मविश्वास के साथ पहुंचे और निर्णायकों को प्रभावित करें। खूबसूरती व पारंपरिकता के मेल से सफलता अवश्य मिलती है।
यही नहीं देवड़ा निवासी मघाराम ने अपनी कल्पना और लोक कथाओं व दोहों में वर्णित मूमल की मेंड़ी के वर्णन को ध्यान में रखकर मूमल की मेंड़ी ही बना डाली | जिसके बारे ज्यादा पढने के लिए यहाँ चटका लगायें |
समाप्त
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Rajasthani Love story : Mumal Mahindra
शेखावत साहब,
जवाब देंहटाएंमूमल-महेन्द्र की कहानी के बारे में सुना था, आज पढ़ने को मिली है। अंत दुखी कर गया, वैसे प्रेम-कहानियाँ यहीं इस मोड़ पर ही खत्म होती है, ये शायद अच्छी बात ही है।
बड़ी रोचक कथा।
जवाब देंहटाएंरतन सिंह जी,
जवाब देंहटाएंमूमल व महिंद्रा तो कमाल थे ही पर आप भी कुछ कम कमाल नहीं हो. आप की छवि विविधता भरी है.वैसे एक बिना मांगे सलाह है की आप को अपना जॉब बदलना चाहिये. आप जैसे व्यक्ति को तो इतिहासकार(डॉ.रतन सिंह शेखावत)या किसी हिंदी अख़बार का संपादक होना चाहिये. आप ही एक संपादक होंगे जिसे इन्टरनेट का भी इतना ज्ञान होगा. आईटी मिनिस्टर बन जाओ तो भगतपुरा इंडिया का सिलेकोंन वेली होगा. बहुत खूब
मूमल-महेन्द्र की कहानी मैने पहली बार पढी , बहुत अच्छी लगी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक कथा।
जवाब देंहटाएंमूमल की कथा बचपन में पढ़ी थी। अब इस का रिवीजन हो गया है। जरूरी है कि ये लोक कथाएँ सामने आएँ। इस कथा का बहुत बड़ा निहितार्थ यह है कि प्रेम करो तो अपनी आँखों से अधिक विश्वास अपने प्रेम पर करो। आँखें धोखा दे सकती हैं प्रेम नहीं, और प्रेम की परीक्षा नहीं ली जाती।
जवाब देंहटाएं@ धन्यवाद दिनेश जी
जवाब देंहटाएंकहानी में निहित शिक्षा पर प्रकाश डालने हेतु |
आदरणीय रतन सिंह सा..
जवाब देंहटाएंआज तक सिर्फ नाम ही सुना था..आज पहली बार इस प्रेम कथा के बारे में पढ़ कर बहुत अच्छा लगा..
आभार.
इस सुंदर कृति को अंतर्जाल पर लाने का धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंThane bahut bahut saadhuwaad.Jo thane Rajasthan ki lok kathao ko net pr dalyo.
जवाब देंहटाएंवाह रे मुमल वाह
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