तो आईये सबसे पहले जानते है पीछोला शब्द के बारे में -
किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत उसके (मृतात्मा के) प्रति उमड़ते हुए करुण उदगारों के काव्य रूप को ही पीछोला कहते है | पीछोले मृत्य की ओट में गए प्रेमी की मधुर स्मृति पर श्रद्धा व प्रेम के भाव-प्रसून है | पीछोलों में दुखी हृदय को मसोस डालने और सुलगती हुई पीड़ा में बारूद का काम करने की शक्ति होती है | पीछोलों को उर्दू में मरसिया व अंग्रेजी Elegy में कहते है |
राजस्थान के इतिहास में ऐसे भी कई क्षण आये है जब युद्ध भूमि में किसी निर्णायक आत्म-घाती हमले के लिए प्रस्थान करते वीर ने उपस्थित कवि से अपनी मृत्यु के बाद कहे जाने वाला पिछोला सुनाने को कहा | जब चितौड़ दुर्ग पर अकबर ने हमला किया और चितौड़ के रक्षक जयमल मेडतिया ने शाका करने का निश्चय किया तो युद्ध में प्रयाण करने से पहले वीर कल्ला रायमलोत ने कवि से कहा कि आप मेरे लिए युद्ध का वर्णन करो मैं उसी प्रकार युद्ध करूँगा और उसने कवि द्वारा अपने लिए वर्णित शौर्य गाथा रूपी पीछोला (मरसिया) सुनकर उसी अनुरूप वीरता दिखाते हुए युद्ध कर मृत्य का आलिंगन किया था |
इस सम्बन्ध में स्व.आयुवानसिंह शेखावत में ये दोहा कहा -
जिण विध कवि जतावियो ,उण विध कटियो जाय ||
इस तरह से राजस्थानी कवियों ने युद्धरत वीरों को उनकी मृत्यु के उपरांत उनकी शौर्य गाथा में कहे जाने वाले पीछोले उन्हें मरने से पहले ही सुनाकर शौर्य प्रदर्शित करने के लिए प्रेरित करने का कार्य किया था |
तो प्रस्तुत है कुछ पीछोले जो अपने प्रियों व देश भक्त वीरों की मृत्यु के बाद विभिन्न व्यक्तियों व कवियों ने कहे थे | प्रस्तुत राजस्थानी भाषा के पीछोलों को सभी के रसास्वादन के लिए राजस्थानी भाषा के साथ हिंदी में भावार्थ दिया जायेगा ताकि ये पीछोले राजस्थानी भाषा प्रेमियों तक ही सीमित न रहकर सभी तक पहुँच सके -
अकबर के नवरत्नों के बारे में तो सभी ने सुना होगा जिनमे पृथ्वीराज राठौड़,बीरबल और तानसेन भी थे इन तीनों के लिए अकबर ने एक पीछोला कहा था -
रीझ बोल हंस खेलणों , गयो बीरबल साथ ||
पृथ्वीराज राठौड़ के जाने से मजलिस के आनंद बीत गए , तानसेन के जाने के साथ राग रागनियाँ चली गई और बीरबल के जाने के साथ रीझकर बोलना ,खेलना और हँसना सब अदृश्य हो गया |
जयपुर के मिर्जा राजा जयसिंह की मृत्य पर जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह जी ने निम्न पीछोला कहा -
एकरस्यां फिर आवज्यो, माहुरा जेसाह ||
आज देवालयों के घंटे नहीं बज रहे है और बादशाह भय नहीं मानता है | अत: हे मिर्जा राजा जयसिंहजी एक बार फिर आवो |
स्वतंत्रता सेनानी राव गोपालसिंह खरवा को कौन नहीं जानता वे एक आदर्श साहसी और कर्तव्यनिष्ठ पुरुष और देश भक्त थे | उनके देहांत पर कवि यशकरण जी ने कुछ पीछोले कहे -
शुरापण साहस तणों , अब कुण करसी आघ ||
खरवा वाली गुफा का वह बाघ बीत गया है अब साहस और वीरता का आदर कौन करेगा |
एकरस्यां फिर आव ,भारत रो करवा भलो ||
हे गोपालसिंह ! तेरे विरह के कारण हमारे हृदय में घाव हो गया है | भारत का भला करने के लिए एक बार फिर आ जाओ |
होसी कवण हवाल अब इण राजस्थान रो ||
गोपालसिंह गुजर गया है और रजपूती विधवा हो गयी है अब इस राजस्थान का क्या हाल होगा ?
सांस्कृतिक पहलू को उजागर करता हुआ लेख - बेहतरीन
जवाब देंहटाएंकुछ अलग हटकर लिखा गया अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंआज से पहले इस पिछोला शब्द का अर्थ मुझे भी पता नहीं था | पिछोला शब्द झील का नाम ही मान कर चलता था अब आपकी मेहरबानी से इसका भी भान हो गया है |धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट !!!
जवाब देंहटाएंराजस्थानी साहित्य में प्रचलित पीछोला( मर्सिया ) विधा पर गहन जानकारी से युक्त सुंदर आलेख के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.
भावों के चरम जिये जाते हैं यहाँ, पूर्ण जी लेने की जीवटता।
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