स्वतंत्रता समर के योद्धा : राव गोपाल सिंह खरवा

Gyan Darpan
12
राजस्थान के राजाओं द्वारा अंग्रेजों से संधियाँ करने के बाद धीरे धीरे राजस्थान में अंग्रेजों का दखल बढ़ता गया | अंग्रेजों का राजस्थान के शासन में बढ़ता हस्तक्षेप राजस्थान के स्वातन्त्र्य चेता कई राजपूत शासको व जागीरदारों को रास नहीं आया और वे अपने अपने तरीके ,सामर्थ्य और सीमित संसाधनों के बावजूद अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष कर स्वतंत्रता का बिगुल बजाते रहे | इन्ही स्वतंत्रता प्रयासी नेताओं में अजमेर के पास स्थित खरवा के शासक राव गोपाल सिंह (1872-1939)अग्रणी नेता थे | उन दिनों राजस्थान में तलवार के बल पर अंग्रेजों की दासता से भारत भूमि को स्वतंत्र करने वाले स्वातन्त्र्य प्रयासी योद्धाओं का केंद्र स्थल अजमेर था | अजमेर स्थित वैदिक मंत्रालय का कार्यालय उनका मंत्रणा कक्ष और उसके संचालक मनीषी समर्थदान चारण (सीकर ) क्रांतिकारियों के संपर्क सूत्र और राव गोपाल सिंह खरवा और ठाकुर केसरी सिंह बारहट , अर्जुन लाल सेठी प्रभृति उनके अग्रणी नेता थे | श्री भूप सिंह गुजर जो बाद में विजय सिंह पथिक के नाम से प्रसिद्ध हुए वे राव गोपाल सिंह , खरवा के वैतनिक सचिव थे | आजादी की क्रांतिकारी गतिविधियों के संचालन और आर्थिक सहयोग का सारा भार खरवा के शासक राव गोपाल सिंह वहन करते थे | राव गोपाल सिंह खरवा के नाम आगत पत्र व्यवहार संग्रह के अवलोकन से स्वाधीनता की इस लड़ाई पर वस्तु परक प्रकाश पड़ता है और वास्तविक तथ्यों का का उदघाटन होता है |
मथुरा के स्वनाम धन्य राजा महेंद्रप्रताप सिंह जाट भी अंग्रेजों के प्रबल विरोधी और महान क्रांतिकारी थे | उन्हें भारतीय क्रांतिकारियों का सन्देश लेकर अफगानिस्तान और रूस भेजने में भी राव गोपाल सिंह खरवा का प्रमुख हाथ था |
कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में राव गोपाल सिंह खरवा रण-मृत्यु का संकल्प ले केसरिया वस्त्र धारण कर गए थे (केसरिया वस्त्र रण-मृत्यु संकल्प का प्रतीक है) परन्तु अंग्रेज सरकार ने उनका सामना नहीं किया जिससे वे रण-मृत्यु से वंचित रह गए | लाहौर में हिन्दू,जैन और सिक्ख समाज के एक विशाल समारोह में राव गोपाल सिंह सभापति बनाये गए थे | उक्त प्रसंग पर एक कवि भूरदान बारहट ने यह सौरठा रचा -
लेबा जस लाहौर , गुमर भरया पर गाढरा
देबा जस रो दौर , हिक गोपाल तन सुं हुवे ||

1903 मे लार्ड कर्जन द्वारा आयोजित दिल्ली दरबार मे सभी राजाओ के साथ हिन्दू कुल सूर्य मेवाड़ के महाराणा का जाना भी इन क्रान्तिकारियो को अच्छा नही लग रहा था इसलिय उन्हे रोकने के लिये राव गोपाल सिह खरवा ने शेखावाटी के मलसीसर के ठाकुर भूर सिह ने ठाकुर करण सिह जोबनेर के साथ मिल कर महाराणा फ़तह सिह को दिल्ली जाने से रोकने की जिम्मेदारी केशरी सिह बारहट को दी | केसरी सिह बारहट ने "चेतावनी रा चुंग्ट्या " नामक सौरठे रचे जिन्हे पढकर महाराणा अत्यधिक प्रभावित हुये और दिल्ली दरबार मे न जाने का निश्चय किया |
राव गोपाल सिंह देशभक्त ,क्रांतिकारी ,समाज सुधारक , गुण ग्राहक और अंग्रेजों के प्रबल विरोधी ही नहीं , अंग्रेजों की नीति के समर्थक सहयोगी राजा ,नबाब और रईसों के भी कटु आलोचक थे | ईडर के महाराजा प्रताप सिंह के प्रति उनकी स्वरचित कविता में यह तथ्य स्पष्ट होता है - " जेतै तेरे तकमे है ते तै सब पाप के पयोद है " आदि |
महाराणा फतह सिंह द्वारा स्वाभिमान -रक्षा और दिल्ली दरबार में सम्मिलित न होने पर राव गोपाल सिंह जी ने उन्हें ये दोहे नजर किये -
होता हिन्दू हतास , नमतो जे राणा न्रपत |
सबल फता साबास , आरज लज राखी अजां ||
करजन कुटिल किरात , सकस न्रपत गहिया सकल |
हुवो न तुंहिक हात , सिंघ रूप फतमल सबल ||

स्वतंत्रता संग्राम के इस महान मनस्वी योद्धा के सम्पूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व के मूल्याङ्कन के अभाव और उपेक्षा के चलते में स्वातंत्र्य आन्दोलन का इतिहास सर्वथा अपूर्ण ही है |
राजस्थानी भाषा और राजपूत इतिहास के शीर्ष विद्वान् ठाकुर सोभाग्य सिंह शेखावत जी के अनुसार -
महात्मा गांधी के कांग्रेस में प्रवेश के बाद स्वाधीनता संघर्ष ने नया मोड़ ले लिया और उसका स्वरूप अहिंसक आन्दोलन के रूप में परिवर्तित हो गया | क्रांतिकारियों के वर्चस्व को प्रभावहीन बनाने के लिए अजमेर में रामनारायण चौधरी ,प. हरिभाऊ उपाध्याय , दुर्गा प्रसाद चौधरी आदि को महात्मा गांधी ने दिशा सूत्र दिए और अजमेर से त्याग भूमि नाम से मासिक पत्रिका का प्रकाशन तथा कुछ अन्य प्रचारात्मक योजनाए प्रारम्भ की गई | इस नविन प्रयास से स्वाधीनता के क्रांतिकारी योद्धाओं का प्रभाव तो धीरे धीरे कम होता गया और अहिंसा तथा सत्याग्रह -मार्गियों का वर्चस्व बढ़ता गया जो स्वंत्रता के पश्चात शासन संचालन के पदों पर आरूढ़ होकर फलित हुआ |
राजस्थान के स्वतंत्रता प्रयासी योद्धाओं के पिता और पितामहों के कृतित्व और संघर्षों पर आजादी के आन्दोलन के इतिहासकारों ने अंग्रेजों की नीतियों का अनुसरण कर संकट भरे दिनों में विहंगम उड़ान भरते हुए प्रजापरिषदों और प्रजामंडलीय आन्दोलनों के आवृत में बंधित कर दिया | समर्थदान चारण ,अर्जुनलाल सेठी और राव गोपाल सिंह के साहस कार्यों का सही मूल्याङ्कन नहीं किया और इन योद्धाओं के कृतित्व को विस्मृति में फेंक दिया गया | परन्तु देशभक्तों के प्रति देश तथा राजस्थान के शिक्षित और जागृत समाज में कितना मान-सम्मान और श्रद्धा भाव था , वह तात्कालिक अप्रकाशित पत्रों और राजस्थानी साहित्य में बिखरा पड़ा है |जिनमे राव गोपाल सिंह खारवा के सशस्त्र आन्दोलन का महत्त्व समझा जा सकता है |

लेखक:ठाकुर सोभाग्यसिंह शेखावत,भगतपुरा



खरवा फोर्ट



ताऊ डाट इन: ताऊ पहेली - 69
मेरी शेखावाटी: रेलवे टिकट का उपयोग पशुओ के लिए
मिलावटी खाद्य पदार्थ सेहत से खिलवाड़ |

एक टिप्पणी भेजें

12टिप्पणियाँ

  1. राव गोपाल सिंह के बारे में जानकारी के लिये धन्यवाद। यह जिज्ञासा होती है कि गांधीजी के अहिंसामूलक स्वातंत्र्य अभियान को वैचारिक स्तर पर राजपूतों ने क्या माना?

    जवाब देंहटाएं
  2. बहूत ही अच्छी जानकारी दी आपने |
    धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  3. इतिहास के पन्नों को पलटती बढ़िया जानकारी है |

    जवाब देंहटाएं
  4. "राजस्थान के स्वातन्त्र्य चेता कई राजपूत शासको व जागीरदारों को रास नहीं आया और वे अपने अपने तरीके ,सामर्थ्य और सीमित संसाधनों के बावजूद अंग्रेजो के खिलाफ संघर्ष कर स्वतंत्रता का बिगुल बजाते रहे |"

    रतनसिह जी ! गोपालसिह जी के बारे में पढकर इतिहास कों जानने का अवसर प्रदान कर मुझे अच्छा लगा. ..आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. इतिहास के पन्ने पलटने से हमें अपना गौरवशाली अत्तीत के बारे में पता चलता है........ये पन्ने हमें सरकारी किताब में क्यों नहीं मिलते.

    जवाब देंहटाएं
  6. ये पन्ने हमें सरकारी किताब में क्यों नहीं मिलते.?
    @ Rajiv ji ये पन्ने सरकारी किताबों में महज इसलिए नहीं मिलते क्योंकि ये सब कांग्रेसी नहीं थे आजादी की लड़ाई में जिन्होंने अपना सर्वस्व खो दिया आज उनका कोई नाम लेने वाला तो दूर कोई उन्हें जानता तक नहीं |
    और जिन लोगों ने कांग्रेस के आव्हान पर दो चार दिन जेल की रोटियां तोड़ ली उन सब लोगों ने स्वतंत्रता सेनानी का तगमा हासिल सत्ता सुख भोगा या अभी तक सरकरी पेंशन खा रहे है |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. congress ne itihas ko bhi apni rajniti banliya aur apne fayede ke ansar hitihas bataya like hukum aap apna kam karte raho ye mahenat jaya nahi jayegi

      हटाएं
  7. मेरी दादी सीहोर राज घराने के दीवान की इकलौती बेटी थी.उनका बचपन राज महल में राजकुमार राजकुमारियों के संग बीता था.यही कारन था कि उनमे 'वो' तेवर सदा रहे हा हा हा और उनका अंश......ऐसिच हूँ मैं भी हा हा हा मैं उनकी सबसे लाडली पोती थी.दौड़ते समय भी पैरों की आवाज नही होती आज भी मेरे,चलते समय की बात ही छोडिये.
    मैं खरवा ठाकरसा (ठाकुरसा नही बोलती थी दादी) के किस्से मैं उनसे और दादाजी से बहुत सुनती थी.कई बार वो चिढ़ जाती थी.'इसका ब्याह तो खरवा ठाकरसा से करना पडेगा'
    मैं कहती-'बाई! मेरा बींद ठाकर सा जैसा होना चाहिए.' कहते हैं थाकरसा औरतों को बहुत सम्मान देते थे.वे बहुत उच्च चरित्र के थे.रजा महाराजाओ वाली रंगीनी उनमे कभी नही आई.मुझे आज भी उच्च चरित्र के लोग बहुत अच्छे लगते हैं.नतमस्तक हो जाती हूँ जब भी ऐसे इंसानों से मिलती हूँ.
    राजपूत रानियों की बात छोडिये आम स्त्रियों में ये गुण कूट कूट कर भरा होता है.यही कारन है बचपन से आज तक मेऋ क्लोज फ्रेंड्स राजपूत औरते रही है.
    राजपूत राजाओं में संगठन होता तो आज भारत का इतिहास ही कुछ और होता.
    है न? खरवा ठाकुरसाब के बारे में और लिखियेगा.और वो घटना भी जब वे एक अनजान औरत के घर मेरा ले के पहुँच गए थे क्योंकि उस महिला की सहेली ने खरवा ठाकुरसाब को उसका भाई बोल दिया था मजाक में. सच क्या था ,जानकारी हो तो जरूर बताइयेगा.ये घटना या ऐसी घटनाये व्यक्ति के चारित्रिक दृढ़ता को बतलाते हैं.

    जवाब देंहटाएं
  8. हे भगवान ! मेरा कमेन्ट फिर कहाँ गायब हो गया?

    जवाब देंहटाएं
  9. राजस्थानी इतिहास बालू में गूम हो जाएगा? पता नहीं. कभी कभी निराशा घेर लेती है. हमने अपने वीर पूवजों भूला कर नपुंसकता का ही वरण किया है.

    जवाब देंहटाएं
  10. क्या राजस्थान का इतिहास बालू में खो जाएगा? हमने अपने वीर पूर्वजों को भूला कर नपुसंकता का ही वरण किया है.

    जवाब देंहटाएं
  11. आने वाली शताब्दियों मे लोग भरोसा नहीं कर पाएँगे कि भारत मे कैसे कैसे वीर हुए... कैसे अपनी आन के जौहर करने वाली स्त्रियाँ भारत मे पैदा हुईं... समय चक्र है ... सब कुछ कुचलता हुआ चलता है

    जवाब देंहटाएं
एक टिप्पणी भेजें