सोमनाथ मन्दिर को खंडित कर गुजरात से लौटती अलाउद्दीन खिलजी की सेना पर जालौर के शासक कान्हड़ देव चौहान ने पवित्र शिवलिंग शाही सेना से छीन कर जालौर की भूमि पर स्थापित करने के उदेश्य से सरना गांव में डेरा डाली शाही सेना पर भीषण हमला कर पवित्र शिवलिंग प्राप्त कर लिया और शास्त्रोक्त रीती से सरना गांव में ही प्राण प्रतिष्ठित कर दिया |
मुंहता नैन्सी की ख्यात के अनुसार इस युद्ध में जालौर के राजकुमार विरमदेव की वीरता की कहानी सुन खिलजी ने उसे दिल्ली आमंत्रित किया | उसके पिता कान्हड़ देव ने अपने सरदारों से विचार विमर्श करने के बाद राजकुमार विरमदेव को खिलजी के पास दिल्ली भेज दिया जहाँ खिलजी ने उसकी वीरता से प्रभावित हो अपनी पुत्री फिरोजा के विवाह का प्रस्ताव राजकुमार विरमदेव के सामने रखा जिसे विरमदेव एकाएक ठुकराने की स्थिति में नही थे अतः वे जालौर से बारात लाने का बहाना बना दिल्ली से निकल आए और जालौर पहुँच कर खिलजी का प्रस्ताव ठुकरा दिया |
शाही सेना पर गुजरात से लौटते समय हमला और अब विरमदेव द्वारा शहजादी फिरोजा के साथ विवाह का प्रस्ताव ठुकराने के कारण खिलजी ने जालौर रोंदने का निश्चय कर एक बड़ी सेना जालौर रवाना की जिस सेना पर सिवाना के पास जालौर के कान्हड़ देव और सिवाना के शासक सातलदेव ने मिलकर एक साथ आक्रमण कर परास्त कर दिया | इस हार के बाद भी खिलजी ने सेना की कई टुकडियाँ जालौर पर हमले के लिए रवाना की और यह क्रम पॉँच वर्ष तक चलता रहा लेकिन खिलजी की सेना जालौर के राजपूत शासक को नही दबा पाई आख़िर जून १३१० में ख़ुद खिलजी एक बड़ी सेना के साथ जालौर के लिए रवाना हुआ और पहले उसने सिवाना पर हमला किया और एक विश्वासघाती के जरिये सिवाना दुर्ग के सुरक्षित जल भंडार में गौ-रक्त डलवा दिया जिससे वहां पीने के पानी की समस्या खड़ी हो गई अतः सिवाना के शासक सातलदेव ने अन्तिम युद्ध का ऐलान कर दिया जिसके तहत उसकी रानियों ने अन्य क्षत्रिय स्त्रियों के साथ जौहर किया व सातलदेव आदि वीरों ने शाका कर अन्तिम युद्ध में लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की |
मुंहता नैन्सी की ख्यात के अनुसार इस युद्ध में जालौर के राजकुमार विरमदेव की वीरता की कहानी सुन खिलजी ने उसे दिल्ली आमंत्रित किया | उसके पिता कान्हड़ देव ने अपने सरदारों से विचार विमर्श करने के बाद राजकुमार विरमदेव को खिलजी के पास दिल्ली भेज दिया जहाँ खिलजी ने उसकी वीरता से प्रभावित हो अपनी पुत्री फिरोजा के विवाह का प्रस्ताव राजकुमार विरमदेव के सामने रखा जिसे विरमदेव एकाएक ठुकराने की स्थिति में नही थे अतः वे जालौर से बारात लाने का बहाना बना दिल्ली से निकल आए और जालौर पहुँच कर खिलजी का प्रस्ताव ठुकरा दिया |
मामो लाजे भाटिया, कुल लाजे चव्हान |
जो हूँ परणु तुरकड़ी तो उल्टो उगे भान ||
शाही सेना पर गुजरात से लौटते समय हमला और अब विरमदेव द्वारा शहजादी फिरोजा के साथ विवाह का प्रस्ताव ठुकराने के कारण खिलजी ने जालौर रोंदने का निश्चय कर एक बड़ी सेना जालौर रवाना की जिस सेना पर सिवाना के पास जालौर के कान्हड़ देव और सिवाना के शासक सातलदेव ने मिलकर एक साथ आक्रमण कर परास्त कर दिया | इस हार के बाद भी खिलजी ने सेना की कई टुकडियाँ जालौर पर हमले के लिए रवाना की और यह क्रम पॉँच वर्ष तक चलता रहा लेकिन खिलजी की सेना जालौर के राजपूत शासक को नही दबा पाई आख़िर जून १३१० में ख़ुद खिलजी एक बड़ी सेना के साथ जालौर के लिए रवाना हुआ और पहले उसने सिवाना पर हमला किया और एक विश्वासघाती के जरिये सिवाना दुर्ग के सुरक्षित जल भंडार में गौ-रक्त डलवा दिया जिससे वहां पीने के पानी की समस्या खड़ी हो गई अतः सिवाना के शासक सातलदेव ने अन्तिम युद्ध का ऐलान कर दिया जिसके तहत उसकी रानियों ने अन्य क्षत्रिय स्त्रियों के साथ जौहर किया व सातलदेव आदि वीरों ने शाका कर अन्तिम युद्ध में लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की |
इस युद्ध के बाद खिलजी अपनी सेना को जालौर दुर्ग रोंदने का हुक्म दे ख़ुद दिल्ली आ गया | उसकी सेना ने मारवाड़ में कई जगह लूटपाट व अत्याचार किए सांचोर के प्रसिद्ध जय मन्दिर के अलावा कई मंदिरों को खंडित किया | इस अत्याचार के बदले कान्हड़ देव ने कई जगह शाही सेना पर आक्रमण कर उसे शिकस्त दी और दोनों सेनाओ के मध्य कई दिनों तक मुटभेडे चलती रही आखिर खिलजी ने जालौर जीतने के लिए अपने बेहतरीन सेनानायक कमालुद्दीन को एक विशाल सेना के साथ जालौर भेजा जिसने जालौर दुर्ग के चारों और सुद्रढ़ घेरा डाल युद्ध किया लेकिन अथक प्रयासों के बाद भी कमालुद्दीन जालौर दुर्ग नही जीत सका और अपनी सेना ले वापस लौटने लगा तभी कान्हड़ देव का अपने एक सरदार विका से कुछ मतभेद हो गया और विका ने जालौर से लौटती खिलजी की सेना को जालौर दुर्ग के असुरक्षित और बिना किलेबंदी वाले हिस्से का गुप्त भेद दे दिया | विका के इस विश्वासघात का पता जब उसकी पत्नी को लगा तब उसने अपने पति को जहर देकर मार डाला | इस तरह जो काम खिलजी की सेना कई वर्षो तक नही कर सकी वह एक विश्वासघाती की वजह से चुटकियों में ही हो गया और जालौर पर खिलजी की सेना का कब्जा हो गया |
खिलजी की सेना को भारी पड़ते देख वि.स.१३६८ में कान्हड़ देव ने अपने पुत्र विरमदेव को गद्दी पर बैठा ख़ुद ने अन्तिम युद्ध करने का निश्चय किया | जालौर दुर्ग में उसकी रानियों के अलावा अन्य समाजों की औरतों ने १५८४ जगहों पर जौहर की ज्वाला प्रज्वलित कर जौहर किया तत्पश्चात कान्हड़ देव ने शाका कर अन्तिम दम तक युद्ध करते हुए वीर गति प्राप्त की|कान्हड़ देव के वीर गति प्राप्त करने के बाद विरमदेव ने युद्ध की बागडोर संभाली | विरमदेव का शासक के रूप में साढ़े तीन का कार्यकाल युद्ध में ही बिता | आख़िर विरमदेव की रानियाँ भी जालौर दुर्ग को अन्तिम प्रणाम कर जौहर की ज्वाला में कूद पड़ी और विरमदेव ने भी शाका करने हेतु दुर्ग के दरवाजे खुलवा शत्रु सेना पर टूट पड़ा और भीषण युद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुआ | विरमदेव के वीरगति को प्राप्त होने के बाद शाहजादी फिरोजा की धाय सनावर जो इस युद्ध में सेना के साथ आई थी विरमदेव का मस्तक काट कर सुगन्धित पदार्थों में रख कर दिल्ली ले गई | कहते है विरमदेव का मस्तक जब स्वर्ण थाल में रखकर फिरोजा के सम्मुख लाया गया तो मस्तक उल्टा घूम गया तब फिरोजा ने अपने पूर्व जन्म की कथा सुनाई..
फिरोजा ने उनके मस्तक का अग्नि संस्कार कर ख़ुद अपनी माँ से आज्ञा प्राप्त कर यमुना नदी के जल में प्रविष्ट हो जगाई |
खिलजी की सेना को भारी पड़ते देख वि.स.१३६८ में कान्हड़ देव ने अपने पुत्र विरमदेव को गद्दी पर बैठा ख़ुद ने अन्तिम युद्ध करने का निश्चय किया | जालौर दुर्ग में उसकी रानियों के अलावा अन्य समाजों की औरतों ने १५८४ जगहों पर जौहर की ज्वाला प्रज्वलित कर जौहर किया तत्पश्चात कान्हड़ देव ने शाका कर अन्तिम दम तक युद्ध करते हुए वीर गति प्राप्त की|कान्हड़ देव के वीर गति प्राप्त करने के बाद विरमदेव ने युद्ध की बागडोर संभाली | विरमदेव का शासक के रूप में साढ़े तीन का कार्यकाल युद्ध में ही बिता | आख़िर विरमदेव की रानियाँ भी जालौर दुर्ग को अन्तिम प्रणाम कर जौहर की ज्वाला में कूद पड़ी और विरमदेव ने भी शाका करने हेतु दुर्ग के दरवाजे खुलवा शत्रु सेना पर टूट पड़ा और भीषण युद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुआ | विरमदेव के वीरगति को प्राप्त होने के बाद शाहजादी फिरोजा की धाय सनावर जो इस युद्ध में सेना के साथ आई थी विरमदेव का मस्तक काट कर सुगन्धित पदार्थों में रख कर दिल्ली ले गई | कहते है विरमदेव का मस्तक जब स्वर्ण थाल में रखकर फिरोजा के सम्मुख लाया गया तो मस्तक उल्टा घूम गया तब फिरोजा ने अपने पूर्व जन्म की कथा सुनाई..
तज तुरकाणी चाल हिंदूआणी हुई हमें |
भो-भो रा भरतार , शीश न धूण सोनीगरा ||
फिरोजा ने उनके मस्तक का अग्नि संस्कार कर ख़ुद अपनी माँ से आज्ञा प्राप्त कर यमुना नदी के जल में प्रविष्ट हो जगाई |
सन्दर्भ पुस्तक- रावल विरमदेव
इस पुस्तक के लेखक श्री देवेन्द्र सिंह जी पुलिस अधिकारी,इतिहास विद एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओ में स्तम्भ लेखक है |
रोचक ऐतिहासिक गाथा. ऐसे वीरों के होते हुए भी चाँद दगाबाजों की चाल से यह देश गुलाम कैसे बन गया?
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब और देश-प्रेम से ओतप्रोत ऐतिहासिक घटना.
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका.
रामराम.
ऐसा लिखेंगे तो संघी कहलायेंगे. हम थूक कर चाटने वालों की समझ में कहां आयेंगी बहादुरों की शहादत. आपके ब्लाग पर आने के बाद जाने का मन ही नहीं करता.
जवाब देंहटाएंकॉमन मेन जी चाहे कोई संघी कहे या कुछ भी ! इतिहास की घटनाओं से मुंह नही मोडा जा सकता भले ही वे हमारे पूर्वजों की बहादुरी की हो या कायरता की ! इनका सच तो सभी को स्वीकार करना ही पड़ेगा !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर, लेकिन आज भी अपने इस भारत मै बहुत से दगाबाज है, शायद यह उन्ही दगा बजो की ही संतान है, वीरो ने हमेशा जान पर खेल कर इस देश को बचाया है, ओर यह दगाबाज हमेशा अपनी इच्छा पुरी करने के लिये देश्को खतरे मै डालते है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लगा आज का आप का यह लेख.
धन्यवाद
राजस्थान कि धरती तो बलिदान कि धरती है । यहां कि मिट्टी भी इस प्रकार कि है चाहे जितना खून डालो तुरन्त पी जायेगी । इसमें पता नही कितना राजपूती खून अवशोषित है।
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक. क्या सरना गांव में प्रतिष्ठित शिवलिंग की तस्वीर कहीं मिलेगी? आभार.
जवाब देंहटाएंहिरादै ने अपने पति का शीश काटकर कन्हाद्दे को सूचित किया था
जवाब देंहटाएंRaajasthan kii dharati Mahaaveero ki dharatii hai...isaki maati kaa kan kan balidaano aur deshbhakti ki kathae sunaata hai..Prabhu se prarthanaa hai ki jivan main ek baar Raajasthaan kii "Tirthayaatra" jaroor karavaae.--Bhujanganath
जवाब देंहटाएंMaharaja veeramdev ne mata ashapuri ke aashirwad se apna sar katne ke baad bhi dusmano ka naas kiya. Apne chamtakar se abhi bi devta mamaji maharajji ke roop me puje jaate he. Aaj bhi unka chamtkar he. Unko pujne se sabhi kasto ka newran hota he.jai ho mamaji maharajji ki.
जवाब देंहटाएंरोचक ऐतिहासिक गाथा.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर ऐतिहासिक गाथा. बहुत बहुत आभार आपका क्योंकि आप ने मेरे जिले की अमोल्य गाथा को शब्दों में पिरोकर पाठकों के संग रखा.
जवाब देंहटाएंgajab katha hai ji . rongate khade ho jata hain veerata ki kahaniyan sun kar.bramhan hote hue bhi meri ragon men josh bhar jati hain ye kisse.
जवाब देंहटाएंRajasthan hamesha balidano ki bhumi rahi hai. Aaj bhi aawashakta hai aapne gorav ko yaad kar phir ek naya rajasthan banane ki. Maa jagdamba in rajnetao ko sadbuddhi de ya aaj ke bhrast rajneto se janta ko mukti de jo is garimamay itihas ko kalankit kar rahe hai . "Jai Rajasthan"!
जवाब देंहटाएंRajasthan hamesha balidano ki bhumi rahi hai. Aaj bhi aawashakta hai aapne gorav ko yaad kar phir ek naya rajasthan banane ki. Maa jagdamba in rajnetao ko sadbuddhi de ya aaj ke bhrast rajneto se janta ko mukti de jo is garimamay itihas ko kalankit kar rahe hai . "Jai Rajasthan"!
जवाब देंहटाएंmayad ada put jan jeda veer viramdev khilaji suto orage jane sirane se sap
जवाब देंहटाएंmayad ada put jan jeda veer viramdev khilaji suto orage jane sirane se sap
जवाब देंहटाएंKhoon abhi bi vhi h bs gram ho gya to vo hi hoga jo pehle muglo ke sath huaa. jay rajputana
जवाब देंहटाएंjay viram dev songra mama ji jay dhonery veer
Khoon abhi bi vhi h bs gram ho gya to vo hi hoga jo pehle muglo ke sath huaa. jay rajputana
जवाब देंहटाएंjay viram dev songra mama ji jay dhonery veer