राजस्थानी कहावतें हिन्दी व्याख्या सहित -2

Gyan Darpan
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घणा बिना धक् जावे पण थोड़ा बिना नीं धकै |
अधिक के बिना तो चल सकता है,लेकिन थोड़े के बिना नही चल सकता |

मनुष्य के सन्दर्भ में अधिक की तो कोई सीमा नही है - दस,बीस,सौ,हजार,लाख,अरब-खरब भी सीमा का अतिक्रमण नही कर सकते | सामान्य अथवा गरीब व्यक्ति के लिए अधिक धन के बिना तो जीवन चल सकता है,लेकिन थोड़े के बिना एक घड़ी भी नही चल सकता | ऐश्वर्य का अभाव उतना नही खलता,जितना न्यूनतम जरूरतों की पूर्ति का न होना भयंकर कष्ट दायक होता है | बड़े से बड़ा दार्शनिक भी इतने सरल शब्दों में इतनी बड़ी बात नही कह सकता | जितनी यहाँ एक छोटी सी कहावत के द्वारा आम आदमी द्वारा कह दी जाती है | सीधी और सहज उक्ति ही सुगम्भीर ज्ञान झेल सकती है,वाग्जाल से बात बनती नही |
गाभां में सै नागा = कपड़ो में सब नंगे |

बाहरी लिबास पर ही लोक-द्रष्टि अटक कर रह जाती है | वह वस्त्रो के ठेठ भीतर तक देख लेती है कि बाहरी पहनावे से सब अलग-अलग दीखते है,पर भीतर से सब एक है - निपट निरावर्त और पशु | हर व्यक्ति अपनी कमजोरियों को अनदेखा करना चाहता है,लेकिन लोक द्रष्टि से कुछ भी छिपा नही रहता कि ऐसा कोई मनुष्य हो जो अवगुणों से परे हो | पशुता को ढकने से वह ढकी नही रह जाती | चाहे संत-सन्यासी हो,चाहे दरवेश या कोई आम आदमी | - आदमी पहले पशु है,फ़िर नागरिक |
अन्तर बाजै तौ जंतर बाजै = अन्तर बजे तो साज सजे |
कितना सटीक निरिक्षण है कि ह्रदय की वीणा मौन तो हाथ की वीणा भी मौन | भीतर से उदभासित होने पर ही प्रत्येक कला निखरती है | साहित्य या अन्य कला का स्त्रोत अंतरात्मा से उगमता है तो बाहर तरह-तरह के फूल खिलते है | और तरह-तरह की सौरभ महकती है | ह्रदय की आँखे न खुलें तब तक बाहर की झांकी या ब्रह्म की झलक जीवंत रूप में द्रष्टिगोचर नही होती | पानी केवल पानी ही दीखता है,बिजली केवल बिजली ही नजर आती है | उन में प्राणों का स्पंदन महसूस नही होता | कितने सरल शब्दों में सहज भाव से लोक द्रष्टि ने कला के मूल उत्स की पड़ताल कर ली | अपने देश के ऋषि-मुनि अंतप्रज्ञा से जो ज्ञान प्राप्त करते थे,उसे लोक जीवन अपने सामूहिक अवचेतन से अर्जित करता है,पर दोनों की उंचाईयों में किसी भी प्रकार का अन्तर नही है |
चोरी रो गुड मिठो = चोरी का गुड मीठा |

अपने घर में शक्कर,खांड,मिश्री,और गुड के भंडार भरे हो,पर चोरी का गुड अधिक मीठा लगता है | इसलिए कि चोरी के गुड में जीवट का मिठास घुला होता है | जो वस्तु सहज ही उपलब्ध हो जाती है,उसके उपयोग में आनंद नही मिलता, जितना अप्राप्य वस्तु प्राप्त करने में मिलता है |
धणी गोङै जावता छिनाल नह बाजै = पति के पास जाने पर छिनाल नही कहलाती |

सामाजिक स्वीकृति के बिना प्राकृतिक जरूरतों के लिए किए गए कार्य भी अवैध कहलाते है | नारी और पुरूष का स्वाभाविक व प्राकृतिक मिलन,जब तक समाज के द्वारा मान्यता प्राप्त न हो,वह संगत या वैध नही होता | पर उसी कर्म को जब सामाजिक मान्यता मिल जाती है तो वह प्रतिष्ठित मान लिया जाता है | मैथुन कर्म वही है, पर पर पति-पत्नी दुराचारी या लम्पट नही कहलाते | किंतु पर-पुरूष और पर-नारी के बीच यही नैसर्गिक कर्म असामाजिक हो जाता है | सामाजिक प्रथाये समय के अनुरूप बदलती रहती है,फ़िर भी मनुष्य का सामाजिक मान्यताओ को माने बिना काम नही चल सकता | वह पशुओं कि भांति अकेला जीवन व्यतीत नही करता,समाज को मान कर चलना अनिवार्य है |
ये थी कुछ राजस्थानी कहावते और वर्तमान सन्दर्भ में उनकी हिंदी व्याख्या | ये तो सिर्फ़ बानगी है ऐसी ही 15028 राजस्थानी कहावतों को हिंदी व्याख्या सहित लिखा है राजस्थान के विद्वान लेखक और साहित्यकार विजयदान देथा ने | विजयदान देथा किसी परिचय के मोहताज नही शायद आप सभी इनका नाम पहले पढ़ या सुन चुके होंगे | और इन कहावतों को वृहद् आठ भागो में प्रकाशित किया है राजस्थानी ग्रंथागार सोजती गेट जोधपुर ने |

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14टिप्पणियाँ

  1. "राजस्थानी कहावतों का अपना एक अलग ही अनोखा अंदाज है......"

    Regards

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  2. बस थे तो ये लिखाता रेवो, मैं सगळा घणा कोड़ ऊं बाड़ जोवां... आवा दो थें...

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  3. रोचक ,ज्ञान बर्धक ,सुंदर .
    प्रयास जारी .............रखियेगा

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  4. आपकी ये कहावते पढकर नि:सन्देह लोगो का ज्ञान दर्पण के जरीये ज्ञानार्जन होगा । अगर आपको राजस्थानी शब्दो कि शब्दकोश देखनी है तो यंहा पर चट्का लगायें

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  5. बहुत सुंदर हैं ये कहावतें और शिक्षाप्रद भी.

    रामराम.

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  6. घणी चोखी लागी.. आगळी कड़ी री बाट जौ रह्या हां..

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  7. शेखावत जी, इन सुंदर कहावतो के लिये आप का धन्यवाद, वेसे यह कहावते बहुत अच्छी शिक्षा भी देती है.

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  8. इन कहावतों से ही आभास हो जाता है कि हमारे पूर्वजों के सोच की गहराई कितनी थी. इन चुनिन्दा कहावतों की व्याख्या के लिए आभार.

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  9. अच्छा ही कीये आप राजीस्थान की भाषा भी शीख गैं।
    वैसे पढने पर भी समझ आ ही जाता है।

    रतन जी, आपने एक बार पूछा था की अपना सर्वर कैसे बनता है।

    उबंटू सर्वर अपने कंप्य़ूटर मे डालना पडता है और थोडा सा ट्रीक है।

    उसके बाद(आपका ईंटरनेट प्रोवाईडर अपने आईपी को(सायद डायनैमीक आईपी) ईसतेमाल करने देता हो)

    फीर no-ip.com मे रजीस्टर करना है। मूझे टूटोरीयल मीला था गूगल में(फोटो के साथ) अगर फीर मीलेगा तो आपको लींक भेज दूंगा।

    पर ये सब करने के बाद आपके कंप्यूटर मे फीर कोई हैकर आसानी से घूस सकता है।

    जैसे ही अपना पीसी बंद करेंगे तो आपका सर्वर भी बंद(uptime :)))

    या फीर क्या आप .php,mysql अपने कंप्य़ूटर मे चलाना चाहते हैं।
    ईसके लीये दो साफ्टवेयर बहूत अच्छे हैं

    1. phpDEV (Dev-PHP2_CE यहां से लोड कर सकते हैं"http://devphp.sourceforge.net/
    ) और devphp300 भी साथ में
    ये phpdev code edit करने के लीये ठीक है।

    2 UsbWebserver v.7 गूगल मे मील जाएगा। ये मेरा फेवरेट है। एकदम असली सर्वर की तरह चलता है।

    ये सब सिर्फ आपके कंप्यूटर मे चलेगा और आपके php स्क्रीप्ट को दिखा सकता है।

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  10. jai mata g ki ratan sa,
    apke blog me jakar ham mumbai me baithe hi rajshthan me hone ka ahsas kar lete hai, thoda itihas ka singavlokan bhi ho jata hai, bahut acha lagta hai , aapko iske liye bahut sara dhnywad & future ke liye shubhkamnaye
    regards
    bahadur singh gour
    bhensra

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  11. हिंदी व्याख्या सहित राजस्थानी कहावत आछी लागी

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