
ताऊ- सेठ जी थांरी छुरी निचे पड़गी !
सेठ- डोफा आ तो म्हारी कलम है !
ताऊ- सेठ जी म्हारे गलै तो आ इज फिरी !
एक बनिया बगल में बही दबाये और कान में कलम खोसे हुए , पीली पगड़ी पहने और मुछे नीची किए अपनी दुकान की और जा रहा था ! उसके पीछे एक भुक्त-भोगी ताऊ नंगे पाँव चल रहा था फटी धोती और चिंदी-चिंदी मैली कुचेली पगड़ी के अलवा उसके शरीर पर कुछ भी बेकार कपड़ा नही था जो था वो उतना ही था जितना सिर और तन की लाज ढकने के लिए जरुरी होता है ! अचानक किसी चीज के गिरने की हलकी सी भनक उस ताऊ के कानों में पड़ी ! अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए उसने बनिए को सेठ जी संबोधित करते हुए कहा -
ताऊ - सेठ जी आपकी छुरी निचे गिर गई !
सेठ ने चोंक कर पीछे देखा | और आश्चर्य से दोहराया, 'छुरी ? कैसी छुरी ? मेरा छुरी से क्या वास्ता ?
तब निरीह गरीब ताऊ ने सहज भाव से इशारा करते हुए कहा , ' यह पड़ी है न ?
अब इस बात में सेठ को कहीं उस ताऊ की बेवकूफी नजर आई | और सेठ ने व्यंग्य से मुस्कराते हुए कहा -
सेठ - यह तो मेरी कलम है कलम !
तब ताऊ ने रुंधे गले से कहा - लेकिन मेरे गले पर तो यही चली थी !
सेठ ने कुछ जबाब नही दिया और चुपचाप अपनी कलम उठाई,कान में खोंसी और खूं-खूं खंखार कर अपनी राह पकड़ी |
सेठ जी थांरी छुरी निचे पड़गी ! डोफा आ तो म्हारी कलम है ! सेठ जी म्हारे गलै तो आ इज फिरी !
यह एक राजस्थानी कहावत है और उपरोक्त कहानी इसकी व्याख्या ! इस तरह न जाने कितनी अर्थ इच्छाए इस कहावत में निहित है ! श्रेष्ठ वस्तु भी यदि बुरे काम में आए तो वह बुरी ही है ! बोहरे की कलम भी किसी आततायी की तलवार से कम नही होती ! शोषण करने के अपने अपने हथियार और अपने अपने तरीके होते है और हर तरीके की अपनी अपनी बर्बरता होती है ! बेईमान व्यक्ति के हाथ में कलम थमी हो तो उसे तलवार की कहाँ जरुरत !
अब इस बात में सेठ को कहीं उस ताऊ की बेवकूफी नजर आई | और सेठ ने व्यंग्य से मुस्कराते हुए कहा -
सेठ - यह तो मेरी कलम है कलम !
तब ताऊ ने रुंधे गले से कहा - लेकिन मेरे गले पर तो यही चली थी !
सेठ ने कुछ जबाब नही दिया और चुपचाप अपनी कलम उठाई,कान में खोंसी और खूं-खूं खंखार कर अपनी राह पकड़ी |
सेठ जी थांरी छुरी निचे पड़गी ! डोफा आ तो म्हारी कलम है ! सेठ जी म्हारे गलै तो आ इज फिरी !
यह एक राजस्थानी कहावत है और उपरोक्त कहानी इसकी व्याख्या ! इस तरह न जाने कितनी अर्थ इच्छाए इस कहावत में निहित है ! श्रेष्ठ वस्तु भी यदि बुरे काम में आए तो वह बुरी ही है ! बोहरे की कलम भी किसी आततायी की तलवार से कम नही होती ! शोषण करने के अपने अपने हथियार और अपने अपने तरीके होते है और हर तरीके की अपनी अपनी बर्बरता होती है ! बेईमान व्यक्ति के हाथ में कलम थमी हो तो उसे तलवार की कहाँ जरुरत !
सुन्दर! रोचक!
जवाब देंहटाएंबेईमान व्यक्ति के हाथ में कलम थमी हो तो उसे तलवार की कहाँ जरुरत !
जवाब देंहटाएंसच्ची और खरी बात जी!!
बहुत ही बढ़िया तरीके से आपने ने अपनी बात कही है !
जवाब देंहटाएंरोचक लोककथा ! मज़ा आगया !
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जवाब देंहटाएंउत्तम
एक दम खरी बात है भाई!
जवाब देंहटाएंऔर लोग समझें न समझें मैं तो अपनी कलम को किसी तोप से, किसी गुलदस्ते से कम नहीं समझता।
भाई अब ताऊ ने मजबूर हो कर वो कलम खुद ही ऊठा ली. आखिर कब तक अपनी गर्दन सेठ की कलम से नपवाता रहता?
जवाब देंहटाएंजरुरत आज इसी बात की है कि अन्याय के विरुद्ध खडे हो जाओ.
रामराम.
aacha blog hai aapka, mujhe follow karne ka link nahi mila varna mai follow karta, kahir aapne jo jankari di us ke liye shukriya.
जवाब देंहटाएंमजेदार
जवाब देंहटाएंसच्ची और खरी बात को बहुत ही बढ़िया तरीके से कहा है। आपके ज्ञान के पिटारे में पता नही कितनी बाते भरी हुइ है मुझे तो इन्तजार है अगली पोस्ट का
जवाब देंहटाएंकहावत की कहानी के माध्यम से आपने बहुत ही सटीक व्याख्या की.......रोचक
जवाब देंहटाएंसही शिक्षा दी है....पिछले आपके कई पोस्ट आज ही पढ़े है...वक़्त की कमी के कारण उन पर पोस्ट नही कर पाया...पर कोम्पुटर का आपका ज्ञान भी काफ़ी मदद गार है
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