खांडा विवाह परम्परा ना मानना भारी पड़ा था इस नगर को

Gyan Darpan
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हमारा देश विभिन्न धर्मों, जातियों, समुदायों, पंथो व संस्कृति वाला देश है| देश के विभिन्न हिस्सों व जाति, धर्मों में विभिन्न परम्पराओं का प्रचलन है| इन परम्पराओं का कहीं कड़ाई से तो कहीं प्रतीकात्मक प्रचलन है| अपने आपको विकासशील मानने वाले कई लोग अपने समुदायों में चलने वाली परम्पराओं को रुढी, कुरीति मानते है और विभिन्न सामाजिक संगठन व सामाजिक, धार्मिक कार्यकर्त्ता इन्हें बदलने के लिए कार्यरत है| कई परम्पराएं रूढ़ियाँ समझ बंद कर दी गई तो कई समय के साथ अपनी प्रसांगिकता खोकर स्वत: बंद हो गई|

राजस्थान में रियासती काल में तलवार के साथ विवाह करने की परम्परा थी| उस काल सतत चलने वाले युद्धों में व्यस्त रहने वाले योद्धाओं, रोजगार के लिए दूर दराज गए लोग अपने स्वयं के विवाह में समय पर उपस्थित नहीं हो पाते थे| ऐसी स्थिति में दूल्हे की तलवार के साथ वधु के फेरे दिलवाकर विवाह की रस्म संपन्न करवा दी जाती थी| आजादी के बाद यह परम्परा अपनी प्रसांगिकता खोकर स्वत: बंद हो गई| हाँ कभी कभी-कभार सगाई की रस्म पर लड़के के ना पहुँचने पर तलवार के तिलक कर सगाई की रस्म संपन्न अवश्य करवा दी जाती है|

आज भले ही यह परम्परा इतिहास का अंग बन गई पर जब यह प्रचलन में थी और इसे ना मानने पर बाड़मेर नगर को इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी| राजस्थान के प्रसिद्ध प्रथम इतिहासकार और तत्कालीन जोधपुर रियासत के प्रधान मुंहनोत नैंणसीं को तीसरे विवाह के लिए बाड़मेर राज्य के कामदार कमा ने अपनी पुत्री के विवाह का नारियल भेजा था (उस जमाने में सगाई के लिए नारियल भेजा जाता था जिसे स्वीकार कर लेते ही सगाई की रस्म पूरी हो जाया करती थी) पर जोधपुर राज्य के प्रशासनिक कार्यों में अत्यधिक व्यस्त होने के कारण नैंणसीं खुद विवाह के लिए नहीं जा पाए और प्रचलित परम्परा के अनुसार उन्होंने बारात के साथ अपनी तलवार भेजकर खांडा विवाह करने का निश्चय किया| पर दुल्हन के पिता कमा ने इसे अपमान समझा और अपनी कन्या को नहीं भेजा बल्कि कन्या के बदले मूसल भेज दिया|

कमा द्वारा इस परम्परा का निर्वाह ना करने पर जोधपुर का वह शक्तिशाली प्रशासक व सेनापति नैंणसीं अत्यधिक क्रोधित हुआ और उसने इसे अपना अपमान समझ उसका बदला लेने के लिए बाड़मेर पर ससैन्य चढाई कर आक्रमण कर दिया| उसने पुरे बाड़मेर नगर को तहस नहस कर खूब लूटपाट की और नगर के मुख्य द्वार के दरवाजे वहां से हटाकर जालौर दुर्ग में लगवा दिए|इस प्रकार इस खांडा विवाह परम्परा के चलते बाड़मेर की तत्कालीन प्रजा को बहुत उत्पीडन सहना पड़ा|

इस तरह उस समय प्रचलित एक परम्परा का आदर ना करना बाड़मेर नगर व वहां के निवासियों को बहुत भारी पड़ा|

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