राजस्थान के स्थानीय इतिहासकारों ने इस बात का पुरजोर खण्डन भी किया कि कथित जोधाबाई आमेर की राजकुमारी नहीं थी. आमेर के राजवंश की वंशावलियों व अन्य दस्तावेजों में कहीं भी जोधाबाई नाम की किसी राजकुमारी का उल्लेख इतिहासकारों को नहीं मिला, बावजूद वामपंथी व छद्म सेकुलर इतिहासकार इस गलत तथ्य को प्रचारित करते रहे| इनके प्रचार को फिल्म व टीवी सीरियल निर्माता कम्पनियों ने भी भूनाने की भरसक कोशिश की| जोधा-अकबर सीरियल के निर्माता बालाजी टेलीफिल्म्स के चेयरमेन अभिनेता जितेन्द्र के साथ वार्ता में जब करणी सेना टीम के साथ गये इतिहासकारों ने ऐतिहासिक तथ्य रखे तो जितेन्द्र ने यह माना कि जोधाबाई नहीं थी, लेकिन सीरियल में उनका धन लग गया अत: वे पीछे नहीं हट सकते| सीरियल का नाम बदलने की बात पर उनका कहना था कि अकबर के साथ जोधा के बजाय कोई दूसरा नाम जमेगा नहीं क्योंकि यही प्रचारित हो चूका है| इस तरह जानते बुझते धन कमाने के लिए फिल्म, टीवी वाले जोधा नाम छोड़ने को राजी नहीं|
राजस्थान के इतिहासकारों व राजपूत संगठनों ने ऐतिहासिक तथ्य पेश करते हुए कई बार यह साबित करने की कोशिश की कि कथित जोधाबाई किसी विदेशी महिला की संतान थी, लेकिन इस बात को कथित सेकुलर व वामपंथी गैंग ने हवा में उड़ाते हुए खारिज कर दिया|
अभी हाल ही में गोवा के एक लेखक ने जोधाबाई को लेकर अपनी शोध पुस्तक में बड़ा खुलासा किया है, यह सच जानकर हमें कोई हैरानी नहीं हुई, क्योंकि हम शुरू से ही कह रहे है कि अकबर की बीबी व जहाँगीर की माँ राजपूत नहीं विदेशी लड़की थी|
गोवा के लेखक लुईस डी असीस कॉरिया ने अपनी किताब 'पुर्तगीज इंडिया एंड मुगल रिलेशंस 1510-1735' में कहा है कि जोधाबाई वास्तव में एक पुर्तगाली महिला थीं, जिनका नाम डोना मारिया मैस्करेनहास था, जो पुर्तगाली जहाज से अरब सागर होते हुए आईं और जिसे 1500वीं शताब्दी के मध्य में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने पकड़ कर सम्राट अकबर को भेंट कर दिया था। डोना के साथ उनकी बहन जुलियाना भी थीं। कॉरिया ने पणजी में किताब के लोकार्पण कार्यक्रम से इतर आईएएनएस से कहा, "जब डोना मारिया अकबर के दरबार में पहुंचीं तो अकबर को उससे प्यार हो गया। उस वक्त अकबर की उम्र 18 वर्ष और डोना की 17 वर्ष थी। अकबर पहले से शादीशुदा था, बावजूद इसके उसने डोना के प्रति आसक्त होकर उसे और उसकी छोटी बहन जुलियाना को अपने हरम में रख लिया।"
कॉरिया बतातें हैं, "पुर्तगाली और कैथोलिक यह स्वीकार नहीं कर पाए कि उनके समुदाय का कोई शख्स हरम में रहे, जबकि दूसरी तरफ मुगल यह स्वीकार नहीं कर सकते थे कि फिरंगी (ईसाई) समुदाय (जिन्होंने शुरू से ही मुगलों के विरुद्ध हल्ला बोल रखा था) की महिला मुगल की पत्नी बने। इस वजह से ब्रिटिशों और उस काल के मुगल इतिहासकारों ने जोधाबाई को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा की।" उन्होंने कहा कि यही वजह है कि अकबर और जहांगीर के दस्तावेजों में जोधाबाई के अस्तित्व का पता ही नहीं चलता। ब्रोडवे पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित 173 पृष्ठों की इस किताब में कहा गया है कि मारिया मैस्करेनहास जहांगीर की मां हो सकती हैं, उन्हें अक्सर उनका जिक्र मरियम-उल-जमानी के रूप में आया है|
कॉरिया ने कहा कि मरियम-उल-जमानी का मुगल दस्तावेजों में जहांगीर की मां के रूप में कहीं भी जिक्र नहीं है। कॉरिया ने अपनी किताब में कहा है, "यह एक रहस्य ही है कि आखिर मुगल इतिहासकर (अब्द अल-कादिर) बदाउनी और अबुल फजल, जहांगीर की मां का उल्लेख उसके नाम से क्यों नहीं करते। क्या जहांगीर का जन्म महान राजपूत साम्राज्य की किसी बेटी से हुआ था। यकीनन, वह इस तथ्य का बखान करना चाहता था कि मुगल, राजपूतों के साथ संधि करने के इच्छुक थे।"
कॉरिया (81) ने इतिहासकार और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की प्रोफेसर शीरीन मोसवी के हवाले से कहा, "अकबरनामा और किसी अन्य मुगल दस्तावेज में जोधाबाई का कोई उल्लेख नहीं है। कॉरिया ने यह भी कहा कि सम्राट जहांगीर के ईसाई और यहूदी मिशनरीज के प्रति संरक्षणवादी होने से पता चलता है कि उनका जन्म राजपूत रानी से नहीं, बल्कि पुर्तगाली महिला से है। लेखक कहते हैं, "यह वास्तव में रहस्य है कि आखिर क्यों जहांगीर के वृतांत में उसकी मां का उल्लेख नहीं है। क्या वह मुस्लिम या हिंदू नहीं थी? क्या वह जन्म या दर्जे से मुस्लिम या हिंदू नहीं थी? क्या इसलिए जहांगीर मरियम-उल-जानी के नाम से उसका उल्लेख करता है, क्योंकि उसकी मां फिरंगी थी।"
मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा मरियम-उल-जानी की असलियत छुपाने व उसे राजपूत प्रचारित करने के पीछे का रहस्य लेखक की इन पंक्तियों में छुपा है- "जबकि दूसरी तरफ मुगल यह स्वीकार नहीं कर सकते थे कि फिरंगी (ईसाई) समुदाय की महिला मुगल की पत्नी बने।" हो सकता है अकबर ने कट्टरपंथी मुसलमानों की नाराजगी से बचने के लिए इस पुर्तगाली महिला को आमेर के राजा भारमल की राजकुमारी प्रचारित करवाया हो, और इस कार्य में राजा भारमल का सहयोग भी लिया हो|
लेखक ने अपने शोध से इस भ्रांति से जहाँ पर्दा उठाने की कोशिश है, वहीं राजपूत सामाजिक संगठनों व स्थानीय इतिहासकारों की इस बात की पुष्टि की है कि जोधाबाई राजपूत कन्या नहीं थी|