अपने विरोधी के प्रति ऐसा सद्भाव एक सामंत ही रख सकता है

Gyan Darpan
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यह एक विडम्बना ही कहिये कि महाराजा बीकानेर सर गंगासिंह और व्यासजी (Jai Narayan Vyas)एक-दूसरे के जन्मजात शत्रु माने जाते थे परन्तु जब सर गंगासिंह को यह मालूम पड़ा कि व्यासजी की बम्बई में आर्थिक स्थिति अति नाजुक है और वे फिल्म लाइन में जाने की सोच रहे हैं तो उन्हें बड़ा सदमा पहुँचा। उस वक्त व्यासजी पर (1937) जोधपुर में प्रवेश करने की पाबन्दी लगी हुई थी। राज्य ने उन्हें रियासत से निष्कासित कर दिया था|

Bikaner Maharaja Ganga Singh ji ने जोधपुर के मुख्य सचिव सर डोनाल्ड फील्ड को जो पत्र (अंग्रेजी में) लिखा था उसके कतिपय महत्वपूर्ण अंशों का हिन्दी अनुवाद यहाँ उद्धृत है. यह पत्र प्राप्त कर आप आश्चर्य करेंगे। यह ऐसे व्यक्ति की ओर से है जो कि देशी रियासतों और उसकी जनता के शुभचिन्तकों द्वारा हमेंशा अव्यावहारिक, निरंकुश तथा बुरा बताया गया है।

ऐतिहासिक पत्र
मैं इस पत्र से एक ऐसे व्यक्ति के बारे में, जो कि देशी राजाओं के विरुद्ध जनमत तैयार करने में सबसे अधिक तेज और आग के शोले की तरह उद्दड है, अपनी राय आप तक पहुँचाने का इरादा रखता हूँ। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे यहाँ जनजीवन में असहिष्णुता की पराकाष्ठा हो चुकी है। ऐसी सूरत में सम्भवत: श्री जयनारायण व्यास इस बात पर यकीन नहीं करेंगे कि उनके विरोधियों में भी उन जैसी देशभक्ति व लगन हो सकती है। बहुत कम राजनीतिज्ञ मेरी इस बात पर यकीन करेंगे कि जयनारायण व्यास और उनके साथियों द्वारा आमतौर से राजाशाही और खासतौर से मेरे विरुद्ध अनर्गल तथा भावावेश से प्रभावित द्वेषपूर्ण प्रचार के बाद भी मैं लगातार व्यासजी के बारे में बहुत ऊँची राय रखता हूँ।

इन लोगों ने अक्सर राजाओं को विवेकहीन, हृदयहीन, निरंकुश और दमनकारी बताते हुए बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहने की पराकाष्ठा की है। यहाँ तक कि राजाओं को जनता का खून चूसने वाला, संसार भर के अपराधियों और दोषियों में सबसे अधिक गन्दा और बेईमान बताया है। कोई भी ऐसा व्यक्ति, जो कि रियासती हालचाल और यहां के वातावरण से अच्छी तरह परिचित है, वह इस तरह से घृणास्पद और अनर्गल प्रचार की सचाई में विश्वास नहीं करेगा। लेकिन वे जो संयुक्त विशाल भारत की तरक्की की ओर अपने उद्देश्यों की पूर्ति में अग्रसर होता हुआ देखना चाहते हैं, अनुभव करेंगे कि देशी रियासतों का भविष्य उन लोगों के चरित्र पर बहुत कुछ निर्भर करता हैं जो कि इस क्षेत्र के राजनीतिक जनजीवन पर आज हावी हैं।

मैं आपसे यह कहना चाहता हूँ कि राजाशाही के ये शानदार सैलून और साम्राज्यवादी शासन की ऊँची इमारतें आज के इन जनसेवकों को खत्म नहीं कर सकेंगी बल्कि सैकड़ों साल पुरानी ये सरकारें उनके कन्धों पर आकर रुकेगी और उनसे इन्साफ की भीख माँगेंगी। साम्यवादी रूस में हाल में घटित अराजकता-पूर्ण भयानक घटनाएँ दुनिया को चेतावनी देने के लिए काफी हैं। मैं यह यकीन करता हूँ कि आप भी उन घटनाओं का देशी रियासतों में घटित होना पसन्द नहीं करेंगे। यह तभी सम्भव हो सकता है जबकि रजवाड़ों का जनमत देशभक्त और समझदार व्यक्तियों से प्रभावित हो और वे आगे आकर शान्तिमय, न्यायपूर्ण वैद्य उपायों से यहाँ की जनता के हितों को अग्रसर करें। वहाँ की प्रशासनिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए अभी से ऐसे व्यक्तियों का सहयोग लिया जाय। देशी राज्यों में, जैसा आप भी जानते होंगे, बहुत से अल्पस्वार्थ असन्तुष्ट और असंगत नेता भी आगे आये हैं। ऐसे तथाकथित राजनीतिज्ञ अक्सर देशी रियासतों की राजनीति को अपने हाथ में लेने की कोशिश करते हुए रियासतों से देश निकाले की सजा पाये हुए हैं अथवा जेल भी भेजे गये। और जो पूर्णतया नहीं तो खासतौर से राजाओं और उनके शासन के प्रति द्वेष भावना रखते हैं।

नि:सन्देह जयनारायण व्यास राजाशही की आलोचना करने में पीछे नहीं रहे हैं लेकिन वे पक्के ईमानदार हैं। उनको कोई भ्रष्ट नहीं कह सकता। वे अपनी राजनीतिक मान्यताओं और आत्मा के प्रति सत्यनिष्ठ हैं। हजारों धोखेबाज, चरित्रहीन और बेईमान किराये के ऐसे टट्टुओं के होते हुए, जो कि अपने आपको भले ही राजनीति विशारद कहते हों और देशी रजवाड़ों की भोली जनता को बहकाये रहते हैं, आप मुश्किल से ही किसी को व्यासजी जैसा पवित्र पायेंगे जो राजाओं के प्रति जन्मजात घृणा और दुर्भावना रखते हुए भी ईमानदार हों और देशी रियासतों का शासन ठीक तरह से चलाकर भलाई करने की क्षमता रखता हो।

मैं आशा करता हूँ कि आप मुझ से सहमत होंगे कि रियासतों की हुकुमतें, जिन की आज हम देखभाल करते हैं, अन्ततः हमारे इन दुश्मनों के हाथों में जाकर रुकेंगी| ऐसी स्थिति में हमारा यह कर्तव्य है कि हम यह ध्यान रखें कि विरोधी खेमों में से भले आदमी आगे आयें और जब हम हटें तो शासन की बागडोर वे सम्भालें। सिर्फ जयनारायण व्यास ही ऐसे आदमी हैं जो अपने हजारों साथियों पर अपने ऊच्च आदर्शों का असर रखते हैं और राजपूताने के सभी वर्गों में जिनका सम्मान है| वे हम से सहमत हों या न हों लेकिन उनमें जिम्मेदारी का निश्चय ही मादा है| जिसके ऊपर उनकी न्यायप्रियता पर भरोसा किया जा सकता है। आप और आपके दूसरे साथी मारवाड़ राज्य को खतरनाक स्थिति में डालना नहीं चाहते होंगे, महसूस करेंगे कि जयनारायण व्यास जैसे व्यक्तियों की वहाँ की जनता को सम्भालने की उस समय आवश्यकता होगी जब आप लोग प्रशासन में नहीं रहेंगे | इस वक्त तथ्यों के आधार पर मैं आप से निवेदन करता हूँ कि आप अपने बुरे से बुरे दुश्मन के प्रति न्याय भावना रखेंगे। उस दुश्मन के प्रति नहीं और न ही उसके साथियों के प्रति किन्तु जिस क्षेत्र का आज आप शासन चला रहे हैं उसकी शान्ति और सुरक्षा के लिए आप को यह करना चाहिये।

श्री जयनारायण व्यास, जैसा कि आप भी जानते होंगे, एक गरीब घर में पैदा हुए हैं और इसीलिए हमेशा आर्थिक दिक्कतों में से गुजरे हैं। अपने कई दूसरे साथियों और हमराहियों की तरह ब्लेकमेलिंग अथवा अनीति से आर्थिक लाभ उठाने में विश्वास नहीं करते। उनका दुर्भाग्य है कि उनके अच्छे मित्र भी, जिनका वे पूर्ण विश्वास कर लेते हैं, उनके साथ धोखा कर सकते हैं। वे इतने सीधे हैं कि इन धोखों को अवश्यम्भावी मान लेते हैं और राजनीतिक दांवपेच में विश्वास नहीं करते। इसीलिए उनको ऐसे लोगों से, जो उनके मित्र होने का दावा करते हैं, बहुत कष्ट उठाना पड़ा है। कई बार धोखे ने उन्हें "अखंड भारत" बंद कर देने के लिए मजबूर कर दिया है। वे सम्भवतः एक्टर की हैसियत से सिनमा में (फिल्म लाइन) जाने के लिए तैयारी में हैं। मुझे यह भी पता चला है कि वे अच्छे नृत्यकार भी हैं। मैं जब सोचता हूँ कि जयनारायण व्यास राजनीति छोड़कर सिनेमा में जाना चाहते हैं तो मेरा हृदय खून के ऑसू रोता है। वे मेरे बड़े से बड़े दुश्मन रहे हैं फिर भी मेरी मान्यता है कि वे पवित्र हैं और उनके अथक परिश्रम से किसी न किसी दिन राजपूताने के रेगिस्तानी इलाके में शान्ति और खुशहाली आयेगी। आज उनकी असफलता पर सम्भवतः हम खुश होलें लेकिन वह दिन अधिक दूर नहीं हैं जब हम यह महसूस करेंगे कि हमारे हट जाने से रिक्त हुए स्थान की पूर्ति के लिए वे ही अधिक उपयुक्त व्यक्ति हैं। मैंने अपनी आन्तरिक प्रेरणा से फलौदी के रायसहाब की मार्फत जो हम दोनों के मित्र हैं, उनसे सिनेमा में भर्ती न होने का आग्रह किया था. मैंने आर्थिक मदद भी देनी चाही, परन्तु उन्होंने दृढ़ता से अस्वीकार कर दिया। मेरे पास इस वक्त आपको लिखने के सिवाय कोई चारा नहीं रहा। मेरा खयाल है कि व्यास जयनारायण जोधपुर में आकर अपने भावी कार्यक्रम से जुड़ सकते हैं, यदि उन्हें जोधपुर में प्रवेश करने दिया जाए। प्रशासकीय समस्याओं पर उनका सहयोग लिया जाए तो और भी उत्तम रहेगा। उन्होंने प्रेस और प्लेटफार्म से मेरे को बुरी-बुरी गालियाँ दी हैं.... उनसे दिल खोलकर बात करता.... काश! रेगिस्तान के उड़ते टीलों पर हम साथ बैठकर बात करते...हम असहमति के लिए असहमत होते, परन्तु जुड़ा होने वाली और विरोधी दिशा में बहने वाली दो लहरों पर खड़े होकर भी हम हमारे मस्तिष्क के भ्रम और गलतियों के बावजूद लाखों लोगों की भलाई व समाज की तरक्की के बारे में अपने दृष्टिकोण से ही सही समान भाव का अनुभव अवश्य करते... |

इस पत्र का डोनाल्ड फिल्ड पर क्या असर पड़ा यह तो ज्ञात नहीं हो सका पर यह पत्र जहाँ व्यास जी धवल चरित्र, ईमानदारी और उनकी राजनैतिक छवि प्रस्तुत करता है, वहीं महाराजा गंगासिंह जी की आजादी के पूर्व यह भांप लेना कि अन्तोत्गोत्वा राजाओं को सत्ता जननेताओं को सौंपनी पड़ेगी यह जाहिर करता है कि बेशक पटेल के पास देशी रियासतों के विलीनीकरण का कार्य हाथ में था, लेकिन यह कहना गलत है कि पटेल ने अपनी लोहपुरुष वाली छवि के बदौलत राजाओं को दबाकर यह कार्य सफल किया, बल्कि राजा लोग पहले से विश्व में हो रही तत्कालीन बदलाव की स्थिति से अवगत थे और मानसिक रूप से सत्ता लोकसेवकों को सौंपने को तैयार थे|

स्त्रोत : राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा : जयनारायण व्यास, लेखक श्री सूरजप्रकाश पापा; राजस्थान स्वर्ण जयन्ती समारोह समिति, जयपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक, पृष्ठ संख्या 15,16,17,18.

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