तांत्या टोपे की फांसी का सच

Gyan Darpan
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Truth of Tantya Tope's hanging


सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के चर्चित और महत्त्वपूर्ण नायक तांत्या टोपे के बारे में इतिहास में प्रचलित है कि- "तांत्या टोपे को उनके एक सहयोगी राजा मानसिंह कछवाह अंग्रेजों से मिल गये और तांत्या के साथ विश्वासघात कर उन्हें पकड़वा दिया। पकड़ने के बाद अंग्रेजों ने तांत्या टोपे को 18 अप्रैल सन 1859 को ग्वालियर के राजा सिन्धिया के महल के सामने फांसी दे दी गई।" आप इंटरनेट पर सर्च करें या स्वतंत्रता आन्दोलन का इतिहास पढ़ें, सभी लोगों ने बिना शोध किये कॉपी पेस्ट कर यही उक्त प्रचारित बात लिख कर तांत्या टोपे को शरण देने वाले, उनके परम सहयोगी और अंग्रेजों की आँखों में धूल झोंक कर स्वतंत्रता समर के महानायक तांत्या टोपे के प्राण बचाने वाले, राजा मानसिंह कछवाह को इतिहास में बदनाम कर दिया। उन्हें तांत्या टोपे व देश का गद्दार घोषित करने की कोशिश की गई। ठीक उसी तरह जैसे कन्नौज के धर्मपरायण और देशभक्त महाराज जयचंद गहड़वाल पर मुहम्मद गौरी को बुलाने का आरोप प्रचारित कर उनका नाम गद्दार का पर्यायवाची बना दिया. जबकि इतिहास में कहीं भी जयचंद पर यह आरोप नहीं कि गौरी को उन्होंने बुलाया, चंदबरदाई ने भी अपने पृथ्वीराज रासो में कहीं नहीं लिखा कि गौरी को जयचंद ने बुलाया था। फिर भी पंडावादी तत्वों व बाद में कथित सेकुलर गैंग के लेखकों ने उन्हें गद्दार प्रचारित कर दिया।

ठीक इसी तरह तांत्या टोपे की गिरफ्तारी पर तांत्या टोपे व राजा मानसिंह कछवाह द्वारा अंग्रेजों को बेवकूफ बनाने की चाल वाली योजना पर बिना शोध किये कई लेखकों ने सुनी सुनाई बात के आधार पर राजा मानसिंह को गद्दार लिख दिया। इसी तरह के एक कथित इतिहासकार सुन्दरलाल अपनी पुस्तक "भारत में अंग्रेजी राज- भाग-2" के पृष्ठ 962 पर लिखते है कि- "मानसिंह इस समय तक अंग्रेजों से मिल चुका था। उससे जागीर का वायदा कर लिया गया था। 7 अप्रैल सन 1859 को ठीक आधी रात के समय सोते हुये तांत्या टोपे को शत्रु के हवाले कर दिया गया। 18 अप्रैल सन 1859 को तांत्या टोपे को फांसी पर लटका दिया गया।"

जबकि हकीकत यह है कि करीब एक वर्ष तक साधनहीन रहते हुए तांत्या टोपे युद्ध करते हुए नरवर राज्य के पास पाडोन के जंगल में राजा मानसिंह के पास पहुँच गया। राजा मानसिंह तांत्या टोपे के अभिन्न मित्र थे, अत: उन्होंने तांत्या टोपे की सहायता की। अंग्रेजों को तांत्या टोपे के राजा मानसिंह के पास रहने की सूचना मिल गई। ब्रिटिश सेनाधाकारी भीड़ के सैनिकों ने तांत्या टोपे को पकड़ने के लिए पाडोन में आकर राजा मानसिंह के परिवार को बन्धक बना लिया। जिससे कि राजा मानसिंह पर दबाव डालकर तांत्या टोपे को गिरफ्तार किया जा सके। राजा मानसिंह के परिजनों को मुक्त करने के बदले अंग्रेजों ने शर्त रखी कि वह तांत्या टोपे को अंग्रेजों के हवाले करे, तभी उनका परिवार मुक्त किया जायेगा।

इधर राजा मानसिंह ने बड़ी चतुराई से तांत्या टोपे को राजस्थान होते हुए महारष्ट्र की ओर भेज दिया। राजा मानसिंह ने योजनानुसार तांत्या टोपे के हमशक्ल नारायणराव भागवत को उनकी सहमति से तांत्या टोपे को बचाने के लिए नारायणराव को तांत्या टोपे बनाकर अंग्रेज अधिकारी भीड़ को 7 अप्रैल सन 1859 को सुपुर्द कर दिया। इसी तथाकथित तांत्या टोपे को शिवपुरी ले जाकर ग्वालियर के राजा सिन्धिया के महल के सामने उन पर सैनिक अदालत में मुकदमे का नाटक चलाकर दोषी घोषित करते किया गया और 18 अप्रैल सन 1859 को महल के सामने फांसी दे दी गई। नारायणराव ने राष्ट्रहित में शहादत देकर तांत्या टोपे को बचा लिया था। कई कथित कॉपी पेस्ट कर इतिहास लिखने वाले लेखकों ने बिना इस तथ्य पर ध्यान दिए राजा मानसिंह पर लांछन लगा दिया। जबकि "राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस के नवें अधिवेशन में कुछ ऐतिहासिक सामग्री प्रकाश में आई है, उसके अनुसार मानसिंह व तांत्या टोपे ने एक योजना बनाई, जिसके अनुसार टोपे के स्वामिभक्त साथी को नकली तांत्या टोपे बनने क एलिए राजी कर तैयार किया गया और इसके लिए वह स्वामिभक्त तैयार हो गया। उसी नकली तांत्या टोपे को अंग्रेजों ने पकड़ा और फांसी दे दी। असली तांत्या टोपे इसके बाद भी आत-दस वर्ष तक जीवित रहा और बाद में वह स्वाभाविक मौत से मरा। वह हर वर्ष अपने गांव जाता था और अपने परिजनों से मिला करता था (रण बंकुरा, अगस्त 1987 में कोकसिंह भदौरिया का लेख) ।"
गजेन्द्रसिंह सोलंकी द्वारा लिखित व अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तक "तांत्या टोपे की कथित फांसी" में अनेक दस्तावेजों एवं पत्रों का उल्लेख किया है तथा उक्त पुस्तक के मुख्य पृष्ठ पर नारायणराव भागवत का चित्र भी छापा है। पुस्तक में उल्लेख है कि सन 1957 ई. में इन्दौर विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित डा. रामचंद्र बिल्लौर द्वारा लिखित "हमारा देश" नाटक पुस्तक के पृष्ठ स.46 पर पाद टिप्पणी में लिखा है कि इस सम्बन्ध में एक नवीन शोध यह है कि राजा मानसिंह ने तांत्या टोपे को धोखा नहीं दिया, बल्कि अंग्रेजों की ही आँखों में धूल झोंकी। फांसी के तख़्त पर झूलने वाला कोई देश भक्त था। जिसने तांत्या टोपे को बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया।

तांत्या टोपे स्मारक समिति ने "तांत्या टोपे के वास्ते से" सन 1857 के क्रांतिकारी पत्र के नाम से सन 1978 में प्रकाशित किये है। उक्त पत्रावली मध्यप्रदेश अभिलेखागार भोपाल (म.प्र.) में सुरक्षित है। इसमें मिले पत्र संख्या 1917 एवं 1918 के दो पत्र तांत्या टोपे के जिन्दा बचने के प्रमाण है। उक्त पुस्तक में यह भी उल्लेख किया गया है कि तांत्या टोपे शताब्दी समारोह बम्बई में आयोजित किया गया था। जिसमें तांत्या टोपे के भतीजे प्रो. टोपे तथा उनकी वृद्धा भतीजी का सम्मान किया गया था। अपने सम्मान पर इन दोनों ने प्रकट किया कि तांत्या टोपे को फांसी नहीं हुई थी। उनका कहना था कि सन 1909 ई. में तांत्या टोपे का स्वर्गवास हुआ और उनके परिवार ने विधिवत अंतिम संस्कार किया था।

सन 1926 ई. में लन्दन में एडवर्ड थाम्पसन की पुस्तक "दी अदर साइड ऑफ़ दी मेडिल" छपी थी। इस पुस्तक में भी तांत्या टोपे की फांसी पर शंका प्रकट की गई है। इससे सिद्ध होता है कि राजा मानसिंह ने तांत्या टोपे के साथ कभी भी विश्वासघात नहीं किया और न ही उन्हें अंग्रेजों द्वारा कभी जागीर दी गई थी। पर अफ़सोस कुछ इतिहासकारों ने बिना शोध किये उन पर यह लांछन लगा दिया। तात्या टोपे से जुड़े नये तथ्यों का खुलासा करने वाली किताब 'टोपेज़ ऑपरेशन रेड लोटस' के लेखक पराग टोपे के अनुसार- "शिवपुरी में 18 अप्रैल, 1859 को तात्या को फ़ाँसी नहीं दी गयी थी, बल्कि गुना ज़िले में छीपा बड़ौद के पास अंग्रेज़ों से लोहा लेते हुए 1 जनवरी, 1859 को तात्या टोपे शहीद हो गए थे।" पराग टोपे के अनुसार- "इसके बारे में अंग्रेज़ मेजर पैज़ेट की पत्नी लियोपोल्ड पैजेट की किताब 'ऐंड कंटोनमेंट : ए जनरल ऑफ़ लाइफ़ इन इंडिया इन 1857-1859' के परिशिष्ट में तात्या टोपे के कपड़े और सफ़ेद घोड़े आदि का जिक्र किया गया है और कहा कि हमें रिपोर्ट मिली की तात्या टोपे मारे गए।" उन्होंने दावा किया कि टोपे के शहीद होने के बाद देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी अप्रैल तक तात्या टोपे बनकर लोहा लेते रहे। पराग टोपे ने बताया कि तात्या टोपे उनके पूर्वज थे। उनके परदादा के सगे भाई। उपरोक्त ऐतिहासिक सन्दर्भ साफ़ करते है कि नरवर के पास पाडोन के राजा मानसिंह कछवाह ने अभिन्न मित्र और स्वतंत्रता संग्राम के एक नायक तांत्या टोपे के साथ को विश्वासघात नहीं किया, बल्कि उन्होंने तांत्या टोपे द्वारा बनाई गई योजनानुसार अंग्रेजों को बेवकूफ बनाया और स्वतंत्रता सेनानी तांत्या टोपे की जान बचाई, वहीं उक्त ऐतिहासिक तथ्य नारायणराव भागवत के बलिदान को भी उजागर करते है, जिन्होंने भारत माता की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों से लोहा ले रहे एक नायक को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।

हम देश हित में तांत्या टोपे के प्राण बचाने हेतु अपने प्राणों का बलिदान करने वाले नारायणराव भागवत को उनके महान बलिदान पर शत शत नमन करते है और तांत्या टोपे की सहायता करने व उसके प्राण बचाने हेतु योजनानुसार अंग्रेजों की आँखों में धूल झोंकने पर राजा मानसिंह कछवाह पर गर्व है।


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