योग क्यों?

Gyan Darpan
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Why Yoga?

सुखी जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है- स्वस्थ शरीर ! और हो भी क्यों न, स्वास्थ्य के साथ ही सभी सुख जुड़े हुए हैं। जीवन सुखमय बना रहे-यही प्रयत्न हर क्षण होना चाहिए। हम स्वस्थ हैं तो कठिनाई भी सरलता से हल हो जाएगी। इसके विपरीत स्वस्थ न होने पर बड़ा सुख भी छोटा ही लगता है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति का यह नैतिक कर्त्तव्य है कि अपने को बीमारी से दूर रखे, दूसरों को समय देने के साथ-साथ अपने-आपको भी समय दे। अच्छे स्वास्थ्य के तीन लक्षण हैं—अच्छी नींद, अच्छी भूख, अच्छा पसीना।

नींद में हमारा शरीर विकास करता है। दिन में कार्य करते समय जो शक्ति का ह्रास और टूट-फूट होती है, उस कमी को नींद पूरी कर देती है। मरम्मत का यह स्वाभाविक नियम है। आराम के दौरान थकान दूर होने के साथ ही तनावग्रस्त मांसपेशियाँ स्वाभाविक रूप में आ जाती हैं; हड्डियों का ढाँचा, हृदय, स्नायुतन्त्र, फेफड़े आदि आराम से अपनी क्षीण हुई शक्ति को पुनः प्राप्त करते हैं। इसी प्रकार ठीक भूख लगने पर जब भोजन किया जाता है तो वह रस में परिवर्तित हो रक्त, मांस आदि में बदलकर शरीर को हृष्ट-पुष्ट बनाता है। वास्तविकता यह है कि स्वास्थ्य चेहरे पर झलक जाता है। अब शेष रहा स्वास्थ्य का तीसरा लक्षण-अच्छा पसीना ! पसीने का सम्बन्ध शरीर की गन्दगी निकालने से है। व्यायाम द्वारा निकाला गया पसीना त्वचा को सौम्य, चमकीला व खिचा हुआ रखता है। साधारणतया आज व्यक्ति समय से पहले ही

अपने को बूढ़ा व थका हुआ अनुभव करने लगा है। साथ ही उसके चेहरे व शरीर पर भी असमय ही बुढ़ापे का प्रभाव झलक जाता है। शरीर में शिथिलता, मन में साहस न होने के कारण शक्ति का अभाव, मानसिक तनाव और अशुद्ध वातावरण व्यक्ति को उम्र से पहले बुढ़ापे के दर्शन करा देते हैं । हम स्वस्थ बने रहें, इसके लिए तीन बातों की आवश्यकता है—
1. मन में शान्ति रहे जिससे प्रसन्नता आना स्वाभाविक है।
2. ईश्वर की सत्ता में पूर्ण आस्था रहे।
3. अपनी क्षमता पर पूर्ण विश्वास रखें।

अगर हम अपने शरीर के आसपास के वातावरण को अपने अन्दर से ही नियन्त्रित कर लें तो हम लम्बे समय तक युवा बने रह सकते हैं। युवा दिखने के साथ अनुभव करना और भी आनन्ददायक है। आज 30-35 आयु के स्त्री-पुरुषों को ही नहीं, बल्कि 18-20 आयु के युवक-युवतियों को भी त्वचा की परेशानियाँ हैं। मुँहासे तो युवावस्था के आगमन का चिह्न हैं वे तो स्वाभाविक हैं, लेकिन चेहरे की झुर्रियाँ और कई प्रकार के धब्बे पूरी तरह अस्वाभाविक हैं। झुर्रियाँ और त्वचा लटक जाना ढलती उम्र में तो होता ही है, लेकिन तब भी बहुत हद तक यह हमारे हाथ में है कि हम किस प्रकार अपनी त्वचा व अपने शरीर की देखभाल करते हैं। उम्र का अन्दाजा चेहरे से लगता है और चेहरे में भी ऑखों व गर्दन से। आँखों की चमक कम हो जाना, त्वचा में झुर्रियाँ पड़ जाना, त्वचा लटक जाना, पूरे चेहरे से तेज गायब हो जाना-वर्तमान समय में बूढ़ी होती जवानियों की आम पहचान बन गई है। यदि अभी आप युवा हैं, परन्तु आपके चहरे की कांति खो गई है, शरीर तथा चेहरा झुर्रियों से भर गया है, त्वचा की कसावट शिथिल हो। गई है, तो आपको इनसे मुक्ति पाने के लिए अपने जीवन-जीने का ढंग बदलना होगा। अपने भोजन में कुछ परिवर्तन करें, प्रतिदिन यौगिक क्रियाएँ करें, मन को प्रसन्न रखें और विशेषतौर पर अपने चिन्तन में

बना लेते हैं। यदि उन रोगों को तत्काल शरीर से बाहर निकालने का प्रयत्न करते हैं जिससे शरीर कमजोर होता चला जाता है। शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति दिन-प्रतिदिन क्षीण होती चली जाती है और अन्त में उस जर्जर शरीर को अस्पताल की शरण लेनी पडती है, जहाँ धन तथा समय की बर्बादी होती है और भरी जवानी में बुढापा आ जाता है। अगर आप समय रहते योगासनों के प्रति ध्यान दें तो आप शारीरिक एवं मानसिक रूप से ही नहीं, अपनी कार्यशैली में भी जवान दिखेंगे; स्फूर्ति, शक्ति और आनन्द 24 घण्टे महसूस कर आज के समय में व्यक्ति अपने से ज्यादा प्यात अनेक और व्यापार को देते हैं। सारा समय यह बुद्धि और मानसिक शक्ति, धन कमाने में ही लगा देते हैं। यह एक निवेश है जो व्यापार को उन्नति के शिखर पर पहुँचा देता है। मैं मानता हूँ कि आप अगर पूर्ण निष्ठा से अपने कार्य को समर्पित हैं तो सफलता अवश्य मिलेगी और आप उच्चशिखर पर पहुँच जाएँगे। लेकिन यदि इस प्रक्रिया में आप अपना स्वास्थ्य खो बैठे तो उन्नति का शिखर अवनति के रसातल में भी बदल और आपका कार्य भी रूप से चलता रहे ।

तो क्या करें? अगर आप देखते हैं कि आपकी परिस्थिति उपरोक्त प्रकार की है तो अपने काम और स्वयं अपने में संतुलन खोजें। शरीर और कर्म में तारतम्यता होनी जरूरी है। समय में बँधकर नहीं समय को अपने अनुसार बाँधकर काम करें तो अधिक ठीक होगा। समय को अपने अनुसार बाँधकर आप अपने जीवन को सन्तुलित बनाएँ तब ठीक अर्थों में आप व्यापार में सफल होंगे। क्रिया की प्रतिक्रिया अवश्य होती है-यह प्रकृति का नियम है। जब हम क्रियात्मक रूप में आसन करते हैं तो उसकी प्रतिक्रिया हमारे शरीर के एक-एक अंग पर पड़ती है। इसलिए अगर आप प्रतिदिन केवल 20 से 30 मिनट तक योगासन के लिए दें तो आप अपने शरीर में क्रान्तिकारी परिवर्तन देखेंगे-रोगों से मुक्त, खिला हुआ आपका चेहरा, आपके परिवार को भी स्वस्थ बनाएगा। एक पशु जानता है कि उसे कितना खाना है, कितना सोना है और अपने शरीर से कितना कार्य लेना है। वह शरीर को उसी सीमा तक प्रयोग में लाता है जिस सीमा तक वह सुखपूर्वक आराम से आनन्द में बना रहे। जहाँ उसे अपने में असंतुलन दिखाई देने लगे वहीं वह चिन्ता शुरू कर देता है। विद्रोह उत्पन्न कर अपने बाहरी व भीतरी वातावरण को सन्तुलित कर लेता है, अपने शरीर के तापमान को बाहरी तापमान से मिला लेता है। कुत्ता अपनी खाँसी को जंगली घास खाकर भगा देता है। बिल्ली सोने के बाद उठकर अपने शरीर को खींचकर हड्डियों को लचीला बना लेती है। शेर अपने अधिकार के लिए दहाड़कर आवाज को जोशीला रूप देता है। नाग अपने फन को उठाकर अपनी मांसपेशियों को मजबूत बना लेता है। मगरमच्छ ऊपर से कठोर लेकिन ठण्डे रेत पर पड़े रहने से अपने पेट को मुलायम रखता है क्योंकि उसे जटिल से जटिल वस्तुओं को पचाना होता है। तितली अपने हल्के पंखों के कारण अपने जोड़ों को लचीला बनाए रखती है। मेंढक सदा दो पैर पेट के बीच में रखने से अपने पाचन-तन्त्र को ठीक बनाकर रखता है क्योंकि उसकी रीढ़ की हड्डी की स्थिति सभी से अलग होती है। पक्षी भारी होते हुए भी लम्बी से लम्बी यात्रा बिना रुके कर लेते हैं। जब यह खोज ऋषियों ने की तो उन्होंने इन जीवों की आकृति को उनके कार्य करने के ढंग को, देख-परखकर इसे आसनों का रूप प्रदान किया जिससे हम मनुष्य भी यह गुण अपने शरीर के द्वारा जीवन मैं ढालकर स्वास्थ्य के सागर में डुबकी लगा सकें।
हम सभी प्रायः देखते हैं कि जो जीव जंगल में अपने बल पर रहते हैं वे रोगी कम होते हैं। अगर कभी रोगी हो भी जाते हैं तो प्राकृतिक नियमों का पालन करते हैं। प्रकृति स्वयं उनके रोगों को हर लेती है। उन जीवों को मनुष्य की तरह अस्पताल की जरूरत नहीं होती न ही दवाओं की और न ही अन्य भौतिक साधनों की। अगर दो जीव जंगल में भिड़ जाते हैं और स्थिति यहाँ तक हो जाए कि एक दूसरे के शरीर से खून की धार फूट पड़ी और दोनों घायल हो जाएँ तो उन्हें किसी चिकित्सालय में जाने की जरूरत नहीं पड़ती। वे प्राकृतिक उपायों को अपनाकर अपनी चिकित्सा स्वयं कर लेते हैं। ये उपचार वे मिट्टी से, झरनों के पानी से, सूरज की धूप व शुद्ध हवा से करते हैं।

वही प्रकृति, वही स्थिति, मनुष्य के लिए भी है। पशु-पक्षी, जीव-जन्तु एवं हम सभी पंचतत्त्वों की उपज हैं। मनुष्य, बुद्धि के कारण दूसरे जीवों से श्रेष्ठ कहा जाता है। वास्तविकता है भी यही कि मनुष्य जो चाहे अपने लिए कर सकता है। अगर वह सुखी रहना चाहे तो उसी के हाथ में सुख का नियन्त्रण मन्त्र (रिमोट) है। किसी से अगर पूछा जाए कि क्या ओप सुखी रहना चाहते हैं? क्या आप चाहते हैं कि आपका जीवन आनन्द से भर जाए? आप सारा जीवन सदा मुस्कराते रहें? तो सभी का उत्तर ‘हाँ' में ही मिलेगा। सभी सुख के भिखारी हैं। मनुष्य के पास बुद्धि है उसने अपनी बुद्धि से विज्ञान की नई-नई खोज की, ऐसे आविष्कार किए जिनसे मानव-समाज सुखी हुआ। तेज रफ्तार की गाड़ियों का आविष्कार, मोबाईल, राकेट, अन्तरिक्ष तकनीक इत्यादि हमने कितने आविष्कार किये हैं और न जाने आगे कितने और करेंगे। सभी कुछ हमने अपनी सुख-सुविधा के लिए किया है।

क्या हमने कभी सोचा है कि कम्प्यूटर सर्जरी से हृदय प्रत्यारोपण (Heart Transplantation), गुर्दा (Kidney) बदलना या फिर गले से आवाज के लिए Wall की जरूरत क्यों पड़ी ? शरीर में इतने भयंकर रोगों ने कहाँ से जन्म ले लिया और हमें पता भी नहीं चला। हजारों हस्पताल, डॉक्टर, नसिंग होम, स्वास्थ्य संस्थान-चिकित्सा में लगे हैं फिर भी लोग रोज नए-नए रोगों का शिकार होकर मृत्यु के ग्रास बन रहे हैं।

ऐसी नई बीमारियों को, जिनका नाम कभी सुना भी न था, हम देख रहे हैं ? मनुष्य ने अपनी बुद्धि से विकास तो किया लेकिन क्या लाभ ऐसे बाहरी विकास का जो बाहर से और भीतर से मनुष्य को बीमार, लाचार, अपंग बना दे। अगर विकास से मनुष्य के शरीर व मन पर बुरा प्रभाव न पड़े और वह साथ ही प्रकृति के अनुकूल भी हो, तो उचित है। लेकिन जिस विकास से शरीर में रोग उत्पन्न होने लगें या फिर प्रकृति में हानि दिखे तो ऐसे विकास का क्या लाभ ? जो स्वस्थ है वह कुछ भी न होते हुए दुनिया का सबसे सुखी व्यक्ति है, जो बीमार है वह संसार का सबसे दुखी व्यक्ति है। सुख का आधार भौतिक विकास नहीं, स्वस्थ शरीर व मन है।

स्वस्थ व्यक्ति ही संसार में सबकुछ प्राप्त कर सकता है और संसार के सारे सुख-वैभव का भोग कर सकता है।


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2टिप्पणियाँ

  1. योग दिवस पर बहुत सुन्दर सामयिक प्रस्तुति

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  2. """योग का अर्थ है जोड़ना। अपने दिनचर्या को अच्छे आसन, नियम और संयम से जोड़ना ही योग है।
    योग के अभ्यास से हम तनाव रहित जीवन जी सकते है और इसका सकारात्मक प्रभाव हमारे गृहस्थ जीवन और यौवन सुख पर भी पड़ता है। काम सुख के लिए योग का अभ्यास बहुत ही लाभकारी सिद्ध होता है।""
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