Raja Man Singh Amer

Gyan Darpan
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ये लाल किले ये मोती मस्जिद हाय-हाय क्या सुना रही।
काबुल में जाकर के देखो कबरें अब भी सिसक रही।।


लेखक : छाजू सिंह, बड़नगर

राजा मानसिंह आमेर के राजा भगवन्तदास कछावा के बड़े पुत्र थे। इनका जन्म वि.सं. 1607 पोष बदि 13 (ई.स. 1550 दिसम्बर 21) को हुआ था। ये बारह वर्ष की उम्र में ई.स. 1562 में शाही सेवा में चले गए थे। अकबर बादशाह ने चित्तौड़ पर हमला किया तब ये भी बादशाह के साथ थे। वि.स. 1633 ज्येष्ठ सुदी द्वितीया (ई.स. 1576 जून 18) में हुए हल्दीघाटी के युद्ध में मानसिंह मुगल सेना के सेनापति थे, जिसमें शाही सेना को विजय प्राप्त हुई। मानसिंह जी शाही सेवा में रहते हुए कई सूबों के सूबेदार रहे। ये पंजाब, बिहार, बंगाल, काबुल आदि सूबों के सूबेदार रहे। काबुल में विभिन्न अफगान कबीलों का दमन किया।

राजस्थानी योद्धाओं में अपराजित कहे जाने वाले चन्द नाम ही गिनाए जा सकते हैं, जिन्होंने अपने जीवन में कोई युद्ध हारा ही नहीं। उनमें मानसिंह जी का भी एक नाम है जिन्होंने 77 बड़े युद्ध लड़े थे। उत्तर भारत में ये जहाँ भी युद्ध करने गए उस राज्य को जीता। अगर वहाँ का शासक हिन्दू था तो उससे अधीनता स्वीकार करवा कर, कर वसूल किया, उसे पूरी तरह से नष्ट नहीं किया । जहाँ शासक मुस्लिम थे उनका राज्य छीन कर अपने विश्वासी राजपूत को सौंप दिया। जिसका उदाहरण आज भी बिहार, बंगाल, उड़ीसा में बहुत से राजपूत हैं जो उनके समय में राजस्थान से गए थे।

मानसिंह की राणा प्रताप से कोई द्वेष भावना नहीं थी। हल्दीघाटी के युद्ध में विजयी होने पर उन्होंने न तो मेवाड़ को लूटने का आदेश दिया और न ही राणा प्रताप व उसकी सेना का पीछा करने का आदेश दिया। यही नहीं प्रताप का पीछा करने वाले सैनिकों को रोका भी। मानसिंह द्वारा प्रताप के प्रति किए गए इस व्यवहार की शिकायत अकबर से की गई, जिसके कारण अकबर मानसिंह से नाराज हुआ।
मानसिंह सनातन धर्म के अनुयायी थे। उन्होंने वृन्दावन में गोविन्ददेव जी का मन्दिर बनवाया जो बड़ा विशाल तथा सुन्दर शिल्पकला का नमूना है। आमेर के महल पहले नीचे थे। राजा मानसिंह जी ने पहाड़ के ऊपर नए सुन्दर महल बनवाए जो आज भी पर्यटकों के आकर्षण के केन्द्र हैं। आमेर में जगत शिरोमणि जी का विशाल मन्दिर बनवाया। देश के दूसरे हिस्सों में भी इन्होंने मन्दिर और महल बनवाए। मानसिंहजी ने बंगाल और बिहार में अनेक मन्दिर बनवाए। बनारस में मान मन्दिर तथा घाट बनवाया।
मानसिंह जी का स्वर्गवास दक्षिण में इलीचपुर में वि.सं. 1671 आषाढ सुदी 10 (ई.स. 1614 जुलाई 6) को हुआ।

मानसिंह जी ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए जो योगदान दिया है उसका पूरा देश ऋणि है। उस योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। मुस्लिम आक्रान्ता उस समय लगातार दल-के-दल भारत में आ रहे थे। उनका उद्देश्य लूटपाट करना और यहाँ पर मुस्लिम धर्म स्थापित करना था। उन्होंने कुछ समय में ही पूरे मध्य एशिया को शत प्रतिशत मुस्लिम बना लिया था लेकिन वे भारत में सफल नहीं हो सके।

महमूद गजनवी के समय से ही आधुनिक शस्त्रों से सज्जित यवनों के दलों ने अरब देशों से चलकर भारत पर आक्रमण करना शुरू कर दिया था। ये आक्रान्ता काबुल (जहाँ आज अफगानिस्तान है) होकर देश में आते थे। वहाँ पर उस समय पाँच मुस्लिम राज्य थे, जहाँ पर भारी मात्रा में आधुनिक शस्त्रों का उत्पादन किया जाता था। वे भारत पर आक्रमण करने वाले आक्रान्ताओं को शस्त्र प्रदान करते थे व बदले में भारत से लूटकर ले जाए जाने वाले धन का आधा भाग प्राप्त करते थे। इस प्रकार काबुल का यह क्षेत्र उस समय बड़ा भारी शस्त्र उत्पादक केन्द्र बन गया था। जिसकी मदद से पहले यवनों ने भारत में लूट की व बाद में राज्य स्थापना की चेष्टा में संलग्न हुए।
इतिहासकारों ने इस बात को छुपाया है कि बाबर के आक्रमण से पूर्व बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू शासकों के परिवारजन व सेनापति राज्य के लोभ में मुसलमान बन गए थे व यह क्रम बराबर जारी था। ऐसी परिस्थिति में आमेर के शासक भारमलजी व उनके पौत्र मानसिंहजी ने मुगलों से सन्धि कर अफगानिस्तान (काबुल) के उन पाँच यवन राज्यों पर आक्रमण किया व उन्हें इस प्रकार तहस-नहस किया कि वहाँ आज तक भी राजा मानसिंह के नाम की इतनी दहशत फैली है कि वहां की स्त्रियाँ अपने बच्चों को राजा मानसिंह के नाम से डराकर सुलाती हैं। मानसिंह ने वहाँ के तमाम हथियार बनाने के कारखानों को नष्ट कर दिया व श्रेष्ठतम हथियार बनाने वाली मशीनों व कारीगरों को वहाँ से लाकर जयगढ़ (आमेर) में शस्त्र बनाने का कारखाना स्थापित करवाया। इस कार्यवाही के परिणाम स्वरूप ही यवनों के भारत पर आक्रमण बन्द हुए व बचे-खुचे हिन्दू राज्यों को भारत में अपनी शक्ति एकत्र करने का अवसर प्राप्त हुआ।

मानसिंहजी की इस कार्यवाही को तत्कालीन संतों ने पूरी तरह संरक्षण दिया व उनकी मृत्यु के बाद हरिद्वार में उनकी स्मृति में हर की पेड़ियों पर उनकी विशाल छतरी बनवाई। यहाँ तक कि अफगानिस्तान के उन पाँच यवन राज्यों की विजय के चिन्ह स्वरूप जयपुर राज्य के पचरंग ध्वज को धार्मिक चिन्ह के रूप में मान्यता प्रदान की गई व मन्दिरों पर भी पचरंग ध्वज फहराया जाने लगा। मानसिंह ने उड़ीसा में पठानो का दमन कर जगन्नाथपुरी को मुसलमानों से मुक्त कर वहाँ के राजा को प्रबन्धक बनाया। हरिद्वार के घाट, हर की पैडियों का भी निर्माण मानसिंह ने करवाया। आज भी लोगों की जबान पर सुनाई देता है

‘‘माई एड़ौ पूत जण, जै ड़ो मान मरद।
समदर खाण्डो पखारियो, काबुल पाड़ी हद।’


नाथ सम्प्रदाय के लोग "गंगामाई" के भजनों में धर्म रक्षक वीरों के रूप में अन्य राजाओं के साथ राजा मानसिंह का यशोगान आज भी गाते है|

इस प्रकार मानसिंह के सद प्रयत्नों से मुसलमानों की भारत के इस्लामीकरण की योजना हमेशा के लिए दफ़न हो गई| पर अफ़सोस जिस मानसिंह को तत्कालीन हिन्दू संतों ने हिन्दुत्त्व का रक्षक माना, उसी मानसिंह को आज के मुगलों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित कथित हिन्दुत्त्ववादी मानसिंह की आलोचना करते है|


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