जैसा की आजकल बारात के खाने पर विभिन्न तरह के पकवानों से लगी स्टालें लगायी जाती है वे उस समय नहीं होती थी, परन्तु मनुहार व् प्यार से परोसे गए "नुक्ती, नमकीन, लड्डू, पेठे, चक्की आदि मिठाई" में ही इससे कही अधिक आनंद आता था ।
आज भी बचपन में देखा "जान -चढ़ण रो बखत" उस समय का एक दृश्य मानस- पटल पर अंकित है जिसे मायड़ भाषा में उकेरने का प्रयास किया है ।
जद जान – बरातां रात न ही चढ्या करती ।
जानेत्यां न जान की त्यारी दिन में ही करनी पड़ती ।।
"ठाकरसाब जान म पधारो", नाई बुलावो देतो ।
बड़ा - बुढा ने साथ लेज्याबा, को भाव सब में रहतो ।।
टाबर जान में कांई करसी , मुख्य या बात होती ।
मारवाड़ में रात ने जास्यां, पड़ गो दूर बहुत ही ।।
मोटर को हॉर्न सुन , टाबर झु-झुर रोता ।
कोई का छोटा भाई - भतीजा, कोई दादा का पोता ।।
सामान की सम्भ्लावनी देता, ध्यान राखज्यो थेला को ।
बिस्तर - चादर बांध दी है, खाणो-दाणो गेला को ।।
घरां की रुखाली खातर, रुखालो छोड र जाता ।
मोटर माय बैठ इष्ट देव को, जैकारो लगवाता ।।
जान -चढ़ी का गीत लुगायां, छतां पे रुल -रुल गाती ।
कुवे पर जा दरोगण, दोघड भर के ल्याती।।
भाई प्रसंगा -सगा अंदर में, ”बन्ना” छत पे सारा।
बोनट कनै बिन्द बैठतो, सारे भायला - प्यारा ।।
उण बखत को स्वाद, "गजू", अब तो बिगड़ को सारों ।
न्यारी-न्यारी मोटर सबकी, न्यारो सब को ढारो ।।
न्यारो सब को ढारो, मनमानी अपणी चलावे ।
बुढा- बुजुर्गां नै छोड़ घरां न, बायाँ सागैं जावे ।।
लेखक : गजेन्द्र सिंह शेखावत
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Bilkul sahi farmaya Gajendra Singh Ji ne...aaj kal ho-halla jyada hota hai..woh sadgi bhari barat kam hi dekhne ko milti hain.
जवाब देंहटाएंवो समय ही चला गया, बारात की वो रौनक, खाने पीने का स्वाद, वो बालुशाही आज भी याद आती है, बहुत पुरानी यादों को ताजा कर दिया आपने.
जवाब देंहटाएंरामराम.
समय किस कदर बदलता है ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
पुरानी शादियाँ धीरे धीरे सिमटी जा रही हैं।
जवाब देंहटाएंपुराने समय में लोग शादी का पूरा आनंद लेते थे,और आज सिर्फ लोग शिष्टाचार निभाते है ,,,
जवाब देंहटाएंaaisa lag raha hai jaise barat chad rahi hai
जवाब देंहटाएंaccha laga hukum
जान मे जाना आजकल एक औपचारिकता भर रह गयी है ।
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