कमलेश चौहान का आने वाला उपन्यास : सात जन्मों के बाद

Gyan Darpan
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वर्ष २००८ के मध्य सोशियल साईटस पर लांस एंजेलिस केलिफोर्निया रहने वाली कमलेश चौहान से मुलाकात हुई| सोशियल साईटस पर आपसी बातचीत और विचार विमर्श के बाद कमलेश जी को ज्ञान दर्पण.कॉम के बारे में पता चला और उसके बाद वे ज्ञान दर्पण ब्लॉग की नियमित पाठक बन गयी साथ ही अपनी कई रचनाएँ भी ज्ञान दर्पण पर प्रकाशित करने हेतु भेजी|

वर्ष २००९ में एक दिन अचानक कमलेश चौहान का हिंदी में लिखा उपन्यास "सात समन्दर पार" कोरियर से मिला जिसे पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई ये जानकर कि देश से बाहर रहने के बावजूद कमलेश चौहान अपनी मातृभूमि व मातृभाषा से पुरे मनोयोग से जुडी है| पढने के बाद “सात समन्दर पार” उपन्यास की समीक्षा भी ज्ञान दर्पण.कॉम पर लिखी गयी| इसके बाद २०११ में फिर कमलेश चौहान का लिखा उपन्यास "सात फेरों का धोखा" मिला| जिसमें विदेशों में बसे भारतियों की तीन पीढ़ियों की सोच का अंतर व भारतियों द्वारा अपनी पुत्रियों के लिए विदेश में बसे दुल्हों की चाहत और इस चाहत की आड़ में उपजी समस्याओं का विवरण पढने को मिला| साथ ही अक्तूबर २०११ में इसी उपन्यास के विमोचन के लिए हिंदी भवन में आयोजित समारोह में पहली बार आभासी दुनियां की अपनी मित्र कमलेश चौहान से प्रत्यक्ष मिलना हुआ| इस समारोह में ज्यादातर कमलेश चौहान के आभासी दुनियां (वर्चुअल वर्ल्ड) के माध्यम से जुड़े लोग शामिल थे जो प्रत्यक्ष आपस में पहली बार मिल रहे थे|

पिछले वर्ष एक दिन अचानक कमलेश चौहान का फोन आया कि -"मुझे राजस्थान में परिजनों व रिश्तेदारों को जिन नामों से संबोधित किया जाता है उनकी जानकारी चाहिये, मैं राजस्थान के राजपूत पात्रों को लेकर एक उपन्यास लिखना शुरू कर रही हूँ "सात जन्मों के बाद"| फोन पर वार्ता होने के बाद मैंने कमलेश चौहान को इस सम्बन्ध में पूरी जानकारी लिखकर मेल द्वारा प्रेषित कर दी साथ ही अनुरोध भी किया कि- "आप जो भी लिखे मुझे भेजते जाये| चूँकि आप राजस्थान में रही नहीं है इसलिए आप अपने उपन्यास की मुख्य थीम जिसमें आपको पात्रों के साथ राजस्थानी संस्कृति खासकर राजपूत संस्कृति दिखानी है के साथ पूरा न्याय करने में आपको बहुत दिक्कत आयेंगी, आपकी यह दिक्कत मैं आपका लिखा पढ़कर सुझाव दे संशोधित करवा दूर करवा सकता हूँ| क्योंकि मैं इसी संस्कृति में पला बढ़ा हूँ राजपूत संस्कृति मेरे रोम रोम में रची बसी है|"

कमलेश चौहान को भी मेरी यह बात पसंद आई वे बोली- "मुझे इस बात का पहले ही अंदाज था और मैंने तय भी कर रखा था कि इस विषय पर आपकी सहायता जरुर लुंगी|"

और उसके बाद कमलेश चौहान ने अपने उपन्यास के राजस्थान से सम्बंधित चेप्टर लिखकर मुझे भेजने शुरू किये जिनमें मुझे कोई ज्यादा संशोधन नहीं करने पड़े सिर्फ कुछ राजपूत रीति-रिवाजों के वर्णन के अलावा| मुझे ख़ुशी है कि कमलेश चौहान जो भारत से दूर रही है ने अपने लेखन में राजपूत संस्कृति के प्रति पूरा न्याय करने की कोशिश की है|
इस उपन्यास के माध्यम से कमलेश चौहान ने राजपूत संस्कृति के स्थापित मूल्यों को सही रूप में उन लोगों के सामने लाने का एक शानदार प्रयास किया है जिनके सामने छद्म सेकुलर, पंडावादी तत्वों व राजपूत विरोधी ताकतों ने राजपूत संस्कृति और राजपूतों द्वारा सामाजिक उत्पीड़न व शोषण की झूंठी कहानियां घड़कर दुनियां के सामने इस वीर, दयालु, परमार्थ के लिए जीने वाली, देश पर संकट के वक्त हरावल में रह अपने शीश कटा बलिदान देने वाली महान कौम को वोट बैंक की राजनीति व अपने आपको श्रेष्ठ साबित करने की होड़ में बदनाम कर रखा है और सामंतवाद के नाम पर आम राजपूत पर निशाना साधा जा रहा है|

कमलेश चौहान का यह आने वाला उपन्यास देश से दूर रहने व पाश्चात्य संस्कृति में डूबे उन भारतीय लोगों को जो अपने देश व अपनी संस्कृति से दूर हो चुकें या फिर अपनी संस्कृति को रूढ़ीवाद व पिछड़ेपन की निशानी समझ छोड़ चुके को व उनकी आने वाली पीढ़ी को अपनी संस्कृति से परिचय करने में बहुत सहायक होगा| साथ ही दुनियां भर में विरोधियों के षड्यंत्रकारी दुष्प्रचार को जबाब देते हुए लोगों के सामने राजपूत संस्कृति का उज्जवल पक्ष प्रस्तुत करने में सहायक होगा|

कमलेश चौहान के इस उपन्यास “सात जन्मों के बाद” में प्रयुक्त कविताओं व उपन्यास की विषय वस्तु को सुनकर प्रभावित हो उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक कलाकार दरवान नैथवल (दर्मी) ने उपन्यास की सभी कविताओं को स्वरबद्ध कर ऑडियो एल्बम बनायें है और जल्द वे इस उपन्यास की थीम पर आधारित इन कविताएँ का वीडियो एल्बम भी तैयार कर बाजार में उतारने वाले है|

मैं आशा करता हूँ कमलेश चौहान का यह उपन्यास “सात जन्मों के बाद” जल्द प्रकाशित होकर बाजार में आये|

कमलेश चौहान के दो उपन्यास “सात फेरों का धोखा” और “सात समन्दर पार” के हिंदी व अंग्रेजी संस्करण विदेशों में काफी लोकप्रिय रहे है इन दोनों भाषाओँ के अलावा अन्य भाषाओँ में भी इन पुस्तकों के अनुवाद प्रकाशित हुए है|

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6टिप्पणियाँ

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  2. कमलेश चौहान जी के दोनो उपन्यासों“सात फेरों का धोखा” और “सात समन्दर पार”की सुंदर समीक्षा,,,,
    Recent post: ओ प्यारी लली,

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  3. बहुत ही सुन्दर समीक्षा, कमलेशजी को ढेरों बधाईयाँ।

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन वंडरफ़ुल दुध... पियो ग्लास फ़ुल दुध..:- ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. कमलेश जी चौहान को हार्दिक शुभकामनाएं.

    रामराम.

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