जातिप्रथा को कोसने का झूँठा ढकोसला क्यों ?

Gyan Darpan
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ब्लॉग, सोशियल साईटस हो या किसी राजनेता (पक्ष विपक्ष दोनों) का भाषण या फिर किसी चैनल की बहस हो सबमें जातिवाद को पानी पी पी कर कोसा जाता है राजनेता या मिडिया चैनल में बैठी अपने आपको सेकुलर कहने वाली ताकतें बढ़ चढ़ कर जातिवादी व्यवस्था को गरियाती है तो दूसरी और जातिवाद के नाम पर सबसे कथित पीड़ित छोटी जाति के लोग जो आजकल दलितों के नाम से जाने जाते है ब्लॉगस, सोशियल मिडिया और प्रिंट मिडिया में जातिवाद के खिलाफ लेख लिखकर खूब भड़ास निकालते देखे पढ़े जा सकते है|

पिछले दिनों राजस्थान सरकार ने जातिवाद मिटाने के उद्देश्य से अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहन देने के लिए अंतरजातीय विवाह करने वाले जोड़े को पांच लाख रूपये की देने की घोषणा की है पर सवाल यह उठता है कि क्या सरकारें व सरकार में बैठे जाति प्रथा को गरियाने वाले नेता वाकई जाति प्रथा मिटाने के लिए ईमानदारी से तैयार है ?


  • - या फिर इस तरह की घोषणा कर सरकारी धन की खैरात बाँट कर सिर्फ चुनावी फायदा उठाने का  षड्यंत्र मात्र है?
  • - यदि सरकार में बैठे राजनेता जाति प्रथा मिटाने के लिए कृत संकल्प है तो फिर क्यों चुनावों में    जातिय वोटों के आधार पर टिकट वितरण करते है ?
  • - क्यों जातिय आधार पर आरक्षण की सीमाओं में भांति भांति की जातियां जोड़ आरक्षण का दायरा बढाया जा रहा है ?
नेता ही क्यों ? जातिवाद के नाम पर सबसे ज्यादा कथित पीड़ितों का व्यवहार भी देखें तो पता चलता है कि वे भी जातिप्रथा के नाम पर विशेष फायदा उठाने को जातिप्रथा को गरियाते व कोसते है जबकि हकीकत यह है कि आज जातिवाद के नाम पर कथित पीड़ित दलित जातियों के लोग खुद सरकार द्वारा प्रदत आरक्षण की मलाई चाटने के चक्कर में जातिप्रथा से चिपके हुए है| यही कारण है कि हिन्दू धर्म में जातिप्रथा को कुप्रथा मान व उससे दुखी होने का नाटक कर लालच में ऐसे लोग धर्म परिवर्तन करने के बावजूद अपनी जाति नहीं छोड़ते| क्योंकि जाति छोड़ने का मतलब आरक्षण रूपी मलाई से सीधा वंचित होना होता है इसलिए धर्म परिवर्तन करने के बावजूद लोग अपनी पिछड़ी जाति का सर्टिफिकेट लिए बैठे है|

इसके अलावा एक बात और देखने में आती है हर छोटी जाति के लोग अपने से बड़ी जाति में वैवाहिक संबंध बनाकर तो घुसना चाहतें है पर जातिवाद से कथित पीड़ित वही लोग अपने से नीची जाति से बड़ी जातियों की अपने से छोटी जातियों के प्रति जिस मानसिकता की आलोचना करते है वही मानसिकता अपनाकर दुरी बनाये रखना चाहते है|

  • - ऐसे में जातिप्रथा कैसे खत्म हो सकती है ?
  • - जो नेता या बड़ी जातियों में पैदा हुए कथित सेकुलर जो जातिप्रथा को कोसते है वे भी सिर्फ बयानों तक सिमित रहते है खुद अपने से छोटी जाति में अपने स्वजनों के वैवाहिक सम्बन्ध क्यों नहीं करते ?
  • - हिन्दू धर्म व जातिप्रथा को गरियाने वाले कथित छद्म सेकुलर नेता अपने नाम के पीछे क्यों जातिय टाइटल चिपकाये घूमते है ? समझ से परे है !!
  • - जातिप्रथा को गरियाने वालों के सीधे निशाने पर मनु रहते है जबकि मनु ने कर्म के आधार पर चार वर्ण बनाये थे ठीक वैसे ही जैसे आज भी हम लोकतंत्र में कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका आदि स्तम्भ मानते है जाति का मनु स्मृति से क्या लेना देना उसमें लिखित वर्ण तो कार्य के अनुसार बंटे थे| फिर भी मनु व मनुस्मृति को गरियाने का फैशन सा चल रहा है|

एक उदाहरण : गांव में बचपन के दिनों में घरों में पानी के नल नहीं थे गांव के कुँए पर तीन पानी के टैंक बने थे जिन पर लगे नलों से गांव के लोग मटकों में पानी भरकर लाते थे| इन तीनों टैंको में एक टैंक ब्राह्मणों व बनियों का था, दूसरा टैंक पर राजपूत, जाट, स्वामी, दरोगा आदि जातियों के लोग पानी भरते थे तो दलितों के लिए पानी भरने हेतु ग्रामीणों ने तीसरा टैंक बनाकर दिया हुआ था| उस समय की जो व्यवस्था थी वह सरकारी नहीं थी ग्रामीणों द्वारा ही धन इकट्ठा कर व्यवस्था होती थी, कुँए से पानी निकालने की व्यवस्था के लिए भी वर्ष में एक बार धन संग्रह किया जाता था पर पानी के लिए किये जाने वाले उस धन संग्रह से दलित मुक्त रहते थे उनके लिए पानी की व्यवस्था में आने वाला खर्च स्वर्ण जातियां पर ही होता था दलितों के लिए पानी की उपलब्धता व सुविधा मुफ्त रहती थी|

दलितों के लिए बने अलग पानी के टैंक पर हम बचपन में देखते थे कि उस टैंक के नलों पर हरिजनों के लिए पानी भरना तो दूर उन्हें दलित छुआछुत करते हुए नल छूने तक नहीं देते थे फलस्वरूप हरिजन अपने मटके लेकर स्वर्ण जातियों के टैंक पर आते थे और स्वर्ण जातियों के लोग अपने मटकों से पानी उढ़ेलकर उनके मटके भरते थे इसमें सवर्णों का समय ख़राब होने के साथ मेहनत भी करनी पड़ती थी पर कभी वे किसी हरिजन को पानी के लिए निराश नहीं करते थे|

पर स्वर्ण जातियों से अपने साथ छुआछुत की शिकायत करने वाले दलित खुद हरिजनों से उतनी ही छुआछुत करते थे जो आज भी जारी है|

  • - जब जाति प्रथा के पीड़ित जातिप्रथा छोड़ने को तैयार नहीं !
  • - जब सरकार जातिय आधार पर नौकरियां में आरक्षण देकर जातिप्रथा को कायम रखने हेतु कटिबद्ध है !
  • - जब राजनैतिक पार्टियाँ जातिय आधार लोगों की भावनाओं का वोट बैंक बना दोहन कर सत्ता हासिल करना चाहती है !
  • - धर्म परिवर्तन के बाद भी जातिप्रथा के पीड़ित जातिय मोह छोड़ नहीं पा रहे है !
  • - अपने से नीची जाति में कोई संबंध स्थापित नहीं करना चाहता !
  • - जब अपने आपको सेकुलर कह जातिय भावनाओं से ऊपर उठे साबित करने वाले लोग भी अपनी अपनी जाति को श्रेष्ट समझ नाम के आगे जातिय टाइटल चिपकाये घूम रहे है!
जब सब जातिप्रथा को मजबूत करने के कार्यों में लगे है तो फिर फालतू जातिप्रथा को कोसने का ढकोसला क्यों ??
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13टिप्पणियाँ

  1. भारत का संविधान एक ऐसा अखंड भवन के सदृश्य प्रदर्शित है,
    जिसके द्वार पट्टिका पर धर्मनिरपेक्ष उल्लेखित है, जैसे ही आप
    इसका द्वार खोलेंगे, तो आपको हिन्दू विवाह अधिनियम, मुस्लिम
    विवाह अधिनियम, और जातिगत आरक्षण जैसे भव्य खंड के दर्शन होंगे .....

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  2. आपनें सही कहा है और यह भी सही है कि सवर्णों में संकीर्ण जातिवादी मानसिकता जितनी पहले थी उतनी आज नहीं रही जितनी कभी हुआ करती है लेकिन फिर भी जातिवाद का जिन्न खतम होनें का नाम नहीं ले रहा है ! सवर्णों और दलितों में बहुत सारी जातियां आती है लेकिन दोनों ही वर्ग अपनें वर्ग के भीतर आनें वाली जातियों के साथ भी सम व्यवहार नहीं करते हैं तो आप ही बताइये जातिवाद कैसे समाप्त हो सकता है ! यह तो हुयी समाज कि बात अब राजनीति कि बात करें तो वो भी जातिवाद को जिन्दा रखनें कि हरसंभव कोशिश कर रही है ताकि थोक के भाव वोट मिल सकें और यही कारण है कि आज आजादी के पैंसठ साल बाद भी जातिवाद को आधार बनाकर आरक्षण लागू है और किया जा रहा है !!

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  3. सार्थक लेख ......इस लेख में आपने बहुत कुछ कह दिया है। धन्यवाद।

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  4. जातिप्रथा ही नहीं हर विषय पर कथनी और करनी के अंतर ने बहुत कुछ बिगाड़ रखा है ....

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  5. सही कहा है आपने किन्तु एक bat यह bhi है ki aaj log bhi jati ke fayde jante hue अपने नाम में उसे जोड़ रहे हैं और uska fayda utha रहे हैं इसलिए यह शब्द कुछ ज्यादा ही नेता और janta ke मुख मंडल पर सुशोभित हो raha है आभार हाय रे .!..मोदी का दिमाग ................... .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

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  6. बहुत सटीक लिखा है आपने, हमारी टिप्पणीयां कहां जा रही हैं?

    रामराम.

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  7. नेता इस प्रथा को ख़तम कर अपने गले में फंदा थोड़े ही डालेंगे,इसी में तो वोट छिपा हैं इस के आधार पर ही लोगों को लड़ा कर वे अपनी रोटियां सकते हैं.खुद लोग भी अपनर स्वार्थ की खातिर इसे नहीं छोड़ना चाहते. जाती के आधार पर ही वे उपर चढ़ना चाहते हैं.ये नासूर मिटने वाला नहीं.

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  8. देश को इतनी तरह से बाँट दिया है कि चार जातियाँ ही अच्छी थीं..

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  9. आपने बिलकुल सही नब्ज पकड़ी है। एक प्रसंग बताना चाहूँगा। एक दिन स्कूल में चपड़ासी और सफाई कर्मचारी का झगड़ा हो गया। सफाईकर्मी के जाने के बाद चपड़ासी (जो स्वयं हरिजन था) बाल्मीकि सफाईकर्मी को जातिसूचक गाली देता हुआ बोला ये साले **** होते ही ऐसे हैं।

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  10. वोट के चक्कर मे खेला गया जातिवाद का कार्ड लंबे समय तक देश और "इंसान" के विकाश मे बाधक बना रहेगा । इसके चलते 2 को फायदा और 200 को नुकसान हो रहा है ।

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  11. नेता जातिगत वोट की राजनीति करते है

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