वालमार्ट हो या लाला जी, उपभोक्ता को तो लुटना ही है !

Gyan Darpan
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कल लाला जी को रास्ते में चलते देख अचानक मेरी नजर उनकी तोंद पर पड़ी, देखकर में अवाक रह गया| रोज एक-आध इंच बढ़ जाने का खतरा झेलने वाली लाला जी की तोंद आज अचानक आधा फूट अंदर नजर आई| घटी तोंद देखने से लग रहा था कि लाला जी किसी बड़ी चिंता में दुबले होते जा रहे है| हमने चिंता जताते हुए पूछा- “क्या बात है लाला जी? आजकल कौनसी चिंता खाए जा रही है जो एकदम से तोंद अंदर घुसती चली जा रही है?”

लालाजी बोले- “ भाई जी आपको पता नहीं! सरकार एफडीआई कानून के बहाने एक बाहरी कम्पनी “वालमार्ट” को ला रही है जो मेरी तोंद तो क्या? आप और मुझे देश सहित लूटकर जिन्दा निगल जायेगी|

हमने कहा- “लालाजी ! हमारे देश में अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री है| वे यदि एफडीआई कानून ला रहे है तो जरुर देश की अर्थव्यवस्था की सेहत सुधारने के वास्ते ही ला रहे होंगे| फिर उनके एक और अर्थशास्त्री ने ३५ लाख के टायलेट में बैठकर बड़े आराम और इत्मीनान से इस एफडीआई कानून पर चिंतन-मनन किया है| फिर प्रधानमंत्री जो कभी बोलते ही नहीं ने बकायदा बोलकर बताया है कि वालमार्ट आने से चीजें सस्ती होगी, रोजगार भी बढ़ेगा| अब लालाजी मेरी मोटी बुद्दी नहीं समझ पा रही कि क्या सही है ?क्या गलत?

लालाजी बोले- “भाईजी ! ये वालमार्ट पहले आप लोगों को सस्ता माल देगी और इस सस्ते के चक्कर में आप लोग हमारी दुकानों से मुंह मोड़ लोगे और हमारी दुकानें बंद हो जायेगी| इस तरह ये वालमार्ट हमें निगल जायेगी और जब हम नहीं होंगे तब अचानक महंगाई बढ़ाकर आपको लूटना शुरू कर देगी| थोड़े ही दिनों में आपका भी सब कुछ लूटकर आपको भी वैसे ही निगल जायेगी जैसे पहले हमें निगलेगी| जब आप और हम ही निगले गए तो देश कहाँ बचेगा?

हमने कहा- “हमें लूटने में तो आपने भी कौनसी कसर छोड़ रखी? सत्ता में बैठे नेता व सरकारी कुर्सियों पर बैठे लोगों के साथ गठबंधन कर आप भी तो हमें लूटकर देश सहित निगलने के चक्कर में हो| और हाँ अब इस गठबंधन में आपके साथी आपको बाहर कर आपकी जगह वालमार्ट को ले रहे है तब आपको हमारी चिंता हुई है|”
“मुझे तो लगता है आपको हमारी चिंता नहीं आपकी अपनी है और गठबंधन पर दबाव डालने के लिए हमें उकसाकर अपने साथ ले हमारा उपयोग करना चाह रहे है|”
“आप ही की तरह कभी इस कानून को जब विपक्षी ला रहे थे तो हमारे प्र.म.जी को उसमे देशद्रोह दिख गया था| आज उनकी वही नजर उस कानून को देशद्रोह के बजाय देशभक्त के तौर पर देख रही है| आज आप भी हमें वालमार्ट के नाम से डरा रहें है कल हो सकता है आपका उससे कोई समझौता हो जाए तो आप हमें समझाने आये कि वालमार्ट ही आपकी तारण-हार है|”

मेरी इस तरह की बातों से चिड़कर लालाजी मेरी और मुंह बिद्काते हुए बडबडाते चल पड़े- “आप लोग नहीं समझोगे! जब ये वालमार्ट एक-एक को निगलेगी तब हम याद आयेंगे| अरे ! हम यदि नेताओं व अफसरों से मिलकर आपको लुटते है तो आपका ख्याल भी रखते है, आपके लिए जगह जगह शहर में प्याऊ, धर्मशालाएं,विद्यालय, तालाब आदि भी बनवाते है| और फिर भाईजी आपके गांव में तो एक कहावत भी तो प्रचलित है कि –"अपना भाई मारेगा भी तो कम से कम लाश को छाया में तो पटक कर ही जायेगा|”

कहते हुए लालाजी तो चले गए| और मैं ये सोचने में डूबा हूँ कि- “हमें तो इन तीनों के गठबंधन से लुटते ही रहना है| अब इस गठबंधन में भले लालाजी रहें या वालमार्ट रहें| हमारी नियति तो हमेशा लुटते रहने की ही रहेगी|

हाँ ये जरुर है कि इस गठबंधन (नेता+अफसर+व्यापारी) में वालमार्ट जैसा बड़ा व्यापारी आएगा तो हमारे लुटते रहने की फ्रिकेवेंसी जरुर बढ़ेगी| आम आदमी के शरीर पर जो थोड़े बहुत कपड़े बचें है वो भी बचने की उम्मीद नहीं बचेगी|
लालाजी इस गठबंधन में रहकर लूट भी रहे थे तो कम से कम से अपनापन तो रखते ही थे| लूटकर सहला भी तो देते थे| इस विदेशी व्यापारी ने तो सहलाना क्या होता है आजतक शायद सीखा भी नहीं होगा|

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9टिप्पणियाँ

  1. पता नहीं भविष्य क्या होगा, आम आदमी आम की तरह पिलपिला न जाये कहीं।

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  2. आम आदमी तो लगातार लुट रहा है. घटतौली, मिलावट, सब-स्टैण्डर्ड का माल - कम से कम यह तो नहीं है बड़े माल में.किसान तो पहले भी बर्बाद था और आगे भी रहेगा उसके वोट सबको चाहिये लेकिन चिन्ता किसी को नहीं. हर जगह दलाल और नेता टाइप के लोग सक्रिय हैं. क्या होगा देश का.

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  3. सब कुछ उपभोक्ता के हाथ है, वह कहाँ जाता है और किस पर विश्वास करता है।

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  4. सब कुछ उपभोगता में हाथ में को भी सस्ते का लालच उपभोगता को बरगला ही लेता है |

    टिप्स हिंदी में

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  5. वाह!
    आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 15-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1033 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

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  6. आम आदमी ही तो निर्णायक भूमिका अदा नहीं करता उसके हाथ तो बंधे हैं फिर भी -----
    अच्छा लेख |
    आशा

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  7. आप की बात शायद मोटे लाला लोगों पर ही लागू होती है, छोटी छोटी किराना दुकानों चलाने वाले लोगों पर नहीं? यहाँ यूरोप में बड़ी सुपरमार्किटों के खुलने से धीरे धीरे छोटी दुकाने चलाने वाले ही गुम हो गये हैं, उनकी दुकाने बन्द हो गयी हैं. :)

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  8. सही कहा ...अपना लूटे या बेगाना ...लुटना तो हमको ही है :(

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