चौबोली - भाग २ : कहानी

Gyan Darpan
7
भाग एक से आगे ................. अब राजा ने चौबोली के कक्ष में रखे पानी के मटके को बतलाया-" हे मटके! एक प्रहर तो पलंग ने काट दी अभी भी रात के तीन प्रहर बचे है| तूं भी कोई बात बता ताकि कुछ तो समय कटे|
मटका बोलने लगा राजा हुंकार देता गया -
मटका- "एक समय की बात है एक राजा का बेटा और एक साहूकार का बेटा बचपन से ही बड़े अच्छे मित्र थे| साथ रहते,साथ खेलते,साथ खाते-पीते| एक दिन उन्होंने बचपने व नादानी में आपस एक वचन किया कि -"जिसकी शादी पहले होगी वह अपनी पत्नी को सुहाग रात को अपने मित्र के पास भेजेगा| समय बीता और बात आई गयी हो गयी|

समय के साथ दोनों मित्र बड़े हुए तो साहूकार ने अपने बेटे का विवाह कर दिया| साहूकार की बहु घर आ गयी| सुहाग रात का समय, बहु रमझम करती, सोलह श्रृंगार किये अपने शयन कक्ष में घुसी, आगे देखा साहूकार का बेटा उसका पति मुंह लटकाए उदास बैठा था| साहूकारनी बड़ी चतुर थी अपने पति की यह हालत देख बड़े प्यार से हाथ जोड़कर बोली-
" क्या बात नाथ ! क्या आप मेरे से नाराज है ? क्या मैं आपको पसंद नहीं हूँ ? या मेरे माँ-बाप ने शादी में जो दिया वह आपको पसंद नहीं ? मैं जैसी भी हूँ आपकी सेवा में हाजिर हूँ|आपने मेरा हाथ थामा है मेरी लाज बचाना अब आपके हाथ में है|"
साहूकार बोला-"ऐसी बात नहीं है! मैं धर्म संकट में फंस गया हूँ | बचपन में नादानी के चलते अपने मित्र राजा के कुंवर से एक वचन कर लिए था जिसे न निभा सकता न तोड़ सकता, अब क्या करूँ ? समझ नहीं आ रहा|और न ही वचन के बारे में बताना आ रहा |"
"ऐसा क्या वचन दिया है आपने! कृपया मुझे भी बताएं,यदि आपने कोई वचन दिया है तो उसे पूरा भी करेंगे| मैं भी आपका इसमें साथ दूंगी|"
साहूकार पुत्र ने अपनी पत्नी को न चाहते हुए भी बचपन में किये वचन की कहानी सुनाई|
पत्नी बोली-"हे नाथ ! चिंता ना करें|मुझे आज्ञा दीजिए मैं आपका वचन भी निभा लुंगी और अपना धर्म भी बचा लुंगी|"
ऐसा कह पति से आज्ञा ले साहूकार की पत्नी सोलह श्रृंगार किये कुंवर के महल की ओर चली| रास्ते में उसे चोर मिले| उन्होंने गहनों से लदी साहूकार पत्नी को लूटने के इरादे से रोक लिया|
सहुकारनी चोरों से बोली-" अभी मुझे छोड़ दीजिए, मैं एक जरुरी कार्य से जा रही हूँ, वापस आकार सारे गहने,जेवरात उतारकर आपको दे दूँगा ये मेरा वादा है|पर अभी मुझे मत रोकिये जाने दीजिए |"
चोर बोले-"तेरा क्या भरोसा? जाने के बाद आये ही नहीं और आये भी तो सुपाहियों के साथ आये!"
सहुकारनी बोली- " मैं आपको वचन देती हूँ| मेरे पति ने एक वचन दिया था उसे पूरा कर आ रही हूँ| वह पूरा कर आते ही आपको दिया वचन भी पूरा करने आवुंगी|"
चोरों ने आपस में सलाह की कि-देखते है यह वचन पूरा करती है या नहीं, यदि नहीं भी आई तो कोई बात नहीं एक दिन लुट का माल न मिला सही|

सहुकारनी रमझम करती कुंवर के महल की सीढियाँ चढ गयी| कुंवर पलंग पर अपने कक्ष में सो रहा था| साहुकारनी ने कुंवर के पैर का अंगूठा मरोड़ जगाया- " जागो कुंवर सा|"
कुंवर चौक कर जागा और देखा उसके कक्ष में इतनी रात गए एक सुन्दर स्त्री सोलह श्रृंगार किये खड़ी है| कुंवर को लगा वह सपना देख रहा है इसलिए कुंवर ने बार बार आँखे मल कर देखा और बोला -
"हे देवी ! तुम कौन हो ? कहाँ से आई हो? और इस तरह इतनी रात्री गए तुम्हारा यहाँ आने का प्रयोजन क्या है ?
साहूकार की पत्नी बोली- " मैं आपके बचपन के मित्र साहूकार की पत्नी हूँ| आपके व आपके मित्र के बीच बचपन में तय हुआ था कि जिसकी शादी पहले होगी वह अपनी पत्नी को सुहाग रात में अपने मित्र के पास भेजेगा सो उसी वचन को निभाने हेतु आपके मित्र ने आज मुझे सुहाग रात्री के समय आपके पास भेजा है|"
कुंवर को यह बात याद आते ही वह बहुत शर्मिंदा हुआ और अपने मित्र की पत्नी से बोला-
" हे देवी! मुझे माफ कर दीजिए वो तो बालपने में नादानी में हुयी बातें थी| आप तो मेरे लिए माँ- बहन समान है|"
कहकर कुंवर ने मित्र की पत्नी को बहन की तरह चुन्दड़ी(ओढ़ना) सिर पर ओढ़ाई और एक हीरों मोतियों से भरा थाल भेंट कर विदा किया|"

साहुकारनी वापस आई, चोर रास्ते में ही खड़े उसका इन्जार कर रहे थे उसे देख आपस में चर्चा करने लगे ये औरत है तो जबान की पक्की|
साहुकारनी ने चोरों के पास आकार बोला-" यह हीरों मोतियों से भरा थाल रख लीजिए ये तुम्हारे भाग्य में ही लिखा था| और मैं अभी अपने गहने उतार कर भी आपको दे देती हूँ|" कहकर साहुकारनी अपने एक एक कर सभी गहने उतारने लगी|
चोरों को यह देख बड़ा आश्चर्य हुआ वे पुछने लगे- "पहले ये बता कि तूं गयी कहाँ थी ? और ये हीरों भरा थाल तुझे किसने दिया?"
साहुकारनी ने पूरी बात विस्तार से चोरों को बतायी| सुनकर चोरों के मुंह से निकला-"धन्य है ऐसी औरत! जो अपने पति का वचन निभाने कुंवर जी के पास चली गयी और धन्य है कुंवर जी जिन्होंने इसकी मर्यादा की रक्षा व आदर करते हुए इसे अपनी बहन बना इतने महंगे हीरे भेंट किये| ऐसी चरित्रवान और धर्म पर चलने वाली औरत को तो हमें भी बहन मानना चाहिए|"
और चोरों ने भी उसे बहन मान उसका सारा धन लौटते हुए उनके पास जो थोड़ा बहुत लुटा हुआ धन था भी उसे भेंट कर उसे सुरक्षित उसके घर तक पहुंचा दिया|

अब मटकी राजा से बोली- हे राजा विक्रमादित्य! आपने बहुत बड़े बड़े न्याय किये है अब बताईये इस मामले में किसकी भलमनसाहत बड़ी चोरों की या कुंवर की
| राजा बोला-"यह तो साफ है कुंवर की भलमनसाहत ज्यादा बड़ी|"
इतना सुनते ही चौबोली को गुस्सा आ गया और वह गुस्से में राजा से बोली- " अरे राजा तेरी अक्ल कहाँ गयी ? क्या ऐसे ही न्याय करके तूं लोकप्रिय हुआ है! सुन - इस मामले में चोर बड़े भले मानस निकले| जब सहुकारनी चोरों को वचन के मुताबिक इतना धन दें रही थी फिर भी चोरों ने उसे बहन बना पास में जो था वह भी दे दिया इसलिए चोरों की भलमनसाहत ज्यादा बड़ी है|"
राजा बोला- "चौबोली ने जो न्याय किया है वह खरा है|"
बजा रे ढोली ढोल|
चौबोली बोली दूजो बोल||
और ढोली ने नंगारे पर जोर से दो दे मारी "धें - धें"

क्रमश:..........
कहानी का तीसरा भाग शुक्रवार 22 Jun सुबह 9 बजे

एक टिप्पणी भेजें

7टिप्पणियाँ

  1. बहुत रोचक अगले भाग का इंतज़ार

    जवाब देंहटाएं
  2. अगली दो और भी रोचक होने वाली हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. ददिसा की ज्यां सुनाया कहानी बाकि की काल सुन बा त मिलसी

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
एक टिप्पणी भेजें