
गांव के खेतों में इस वक्त प्याज से भरे बोरों के ढेर जगह जगह देखने को मिल जाते है, पर सोमवार को सुबह गांव पहुँचने के बाद जैसे ही अपने खेत में पहुंचा तो वहां हर वर्ष की भांति इस समय इस बार प्याज से भरे बोरे दिखाई नहीं दिए, मैंने यह सोचकर कि इस बार प्याज जल्दी बेच दिए होंगे पिताजी से पुछा कि- "क्या इस बार प्याज निकलते ही अच्छे भाव मिल गए थे कि आपने प्याज जल्द बेच दिए|"
पिताजी का उत्तर था- "कि पिछले वर्ष से ही अपने खेत पर सिर्फ इतने ही प्याज बोते है जितने की जरुरत घर के लिए हो| क्योंकि प्याज की खेती में बचना तो दूर इस फसल पर जितना खर्च होता है वह भी पूरा नहीं मिलता| इसलिए ऐसी फसल करने का क्या फायदा ?"
मैंने पुछा -"फिर गांव में तो लोगों ने प्याज की फसल बहुत मात्रा में की है तो उनको बचत कैसे होगी?"
पिताजी बताने लगे- "कुछ लोगों (किसानों) को हिसाब रखना नहीं आता अत: वे अनजाने में अपना नुकसान कर बैठते है और कुछ किसान परिवारों में औरतें बच्चे काम कर लेते है सो वे समझते है प्याज की फसल में मुनाफा न सही कम से कम उनकी मजदूरी ही मिल गयी बहुत है|"
इतना कहने के बाद पिताजी बोले- "एक पेपर पर प्याज की उपज में आने वाला खर्च लिख और जोड़ तुझे समझ आ जायेगा|"
मैंने एक कागज पर लिखना शुरू किया पिताजी बताने लगे उनके द्वारा बताए गए खर्च की पुष्टि हमारे पास ही बैठा हमारा किसान सोहनलाल जाट भी हुंकारा देकर करता गया|
एक बीघा जमींन पर प्याज की फसल में आने वाला खर्च व उपज -
हमारे गांव में एक बीघा जमीन में प्याज की उपज यदि बढ़िया रही तो १०० कट्टे (एक कट्टे में पैतालीस से पचास किलो) प्याज हो जाती है| अर्थात लगभग ५० क्विंटल प्रति बीघा|
ट्रेक्टर से प्लाऊ व हेरा निकलवाना | 330 |
जमीन की लेवलिंग कराने की मजदूरी 2 मजदूर x250 | 500 |
20x20 फिट की 30 क्यारी मजदूरी 35 रु. प्रति क्यारी 30x35 | 1050 |
बीज डेढ़ किलो @500रु. प्रति किलो | 750 |
निनाण (निराई) करवाना 20 मजदूर 250रु. प्रति- 20x250 | 5000 |
10 Kg DAP @ 20 per Kg | 200 |
10 Kg यूरिया @10 per Kg | 100 |
प्याज पक जाने पर उनकी खुदाई मजदूरी 70रु.प्रति क्विंटल | 3500 |
बारदान (कट्टे) 20 रु. प्रति कट्टा 20x100 | 2000 |
ट्रेक्टर ट्राली में लदाई (पलदारी)2 रु. प्रति कट्टा 100x2 | 200 |
गांव से शहर मंडी तक ट्रेक्टर किराया | 1000 |
मंडी में ट्रेक्टर ट्राली से कट्टे उतरवाई (पलदारी) 100x2 | 200 |
कुल- खर्च | 14830 |
14830 रु. खर्च करने के बाद यदि प्याज की उपज अच्छी व बढ़िया क्वालिटी की हुई तो ही मुश्किल से एक बीघा में पचास क्विंटल प्याज पैदा होता है यानि किसान को 2.97 रु. प्रति किलो प्याज की लागत लगती है इस लागत के अलावा लगभग तीन महीने तक उसकी खूद की मेहनत करने के साथ तीन महीने का बिजली का बिल भी चुकाना पड़ता है|
और यही प्याज जब मंडी में किसान बेचने जाता है तो वहां बिचौलिए मात्र 3.00, 3.50 रु. प्रति किलो के हिसाब से उसको मोल देते है|
उपरोक्त लागत देखने के बाद यह तो तय है कि किसान को न तो अपनी मेहनत मिल पाती और न बिजली के बिल का खर्च वसूल हो पाता है| और यदि कभी मौसम की मार से यही उपज और भी कम हो गयी तो किसान पर कर्ज होना तय है|
अब देखिये एक किसान तीन महीने मेहनत करने के बाद उसी प्याज को तीन रूपये किलो बेचने हेतु बाध्य है पर आप तक जब वह प्याज पहुँचता है तो बीस रूपये किलो से ज्यादा तक पहुँच जाता है जाहिर है बिचौलिए किसान से ज्यादा कमाते है|
एक फैक्ट्री मालिक यही कोई उत्पाद पैदा करता है तो वह बाजार में उसे बेचते वक्त उसका विक्रय मूल्य खूद तय कर मुनाफा कमाता है पर एक किसान अपने उत्पादन का बाजार मूल्य खूद नहीं तय कर सकता, पुरे वर्ष मेहनत वह करता है और उसके उत्पादन का बाजार मूल्य बिचौलिए दलाल तय करते है|
किसान की यही सबसे बड़ी बिडम्बना है कि आपने उत्पाद का मूल्य खुद तय नही कर सकता,,,,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,
इस देश मे सिर्फ़ जन सेवक का लाइसेंस धारी ही सेवक होते हुऎ भी सबका मालिक होता है तभी तो एम पी एम एल ए अपना वेतन तथा सुविधाये खुद तय करते है भले ही काम धाम कुछ करे या ना करे
हटाएंबहुत सार्थक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंमेरे गाँव से एक किसान प्याजों की भरी गाडी आजादपुर मंदी में छोड़ कर भाग गया था : जितने का माल नहीं था - उससे ज्यादा भाड़ा लग गया.
जवाब देंहटाएंबाकि प्याज का काम रुलाना ही रहा है,
अच्छी फसल हो गयी तो किसान को रुलाएगा.
फसल ठीक न हुई तो पब्लिक रोती है.
दुर्भाग्य ही कहा जायेगा किसानों का..
जवाब देंहटाएंशायद हमारी सरकार का रवैया भी नकारात्मक रहता है किशानो के प्रति
जवाब देंहटाएं[co="red"]युनिक तकनीकी ब्लॉग [/co]
प्याज का काम ही रुलाना..................
जवाब देंहटाएंखेती घाटे का सौदा होने के कारण शहर के समीप के किसान खेती बेच कर धंधे में लग गए हैं। लेकिन गाँव के किसानों का जीवन खेती के भरोसे ही है। घाटा खाने के बाद भी सोचते हैं, चलो कुछ तो पाया। इस बरस घाटा हो गया तो अगले बरस फ़ायदा हो सकता है। इसलिए खेती से लगा हुआ है। आज तो खेती कुत्ते वाला हाड़ हो गयी है।
जवाब देंहटाएंमिलिए सुतनुका देवदासी और देवदीन रुपदक्ष से रामगढ में
जहाँ रचा कालिदास ने महाकाव्य मेघदूत।