बांका पग बाई पद्मा रा

Gyan Darpan
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राजस्थान में एक कहावत है "बांका पग बाई पद्मा रा" यदि आपको किसी बात पर किसी व्यक्ति पर पूरा शक है कि ये गलती इसी की है तो कह दिया जाता "बांका पग बाई पद्मा रा" अर्थात कसूर तो इसका ही है |
संदर्भ कथा -
आज से कोई चार सौ वर्ष पहले मारवाड़ राज्य के एक गांव में मालाजी सांदू नाम के एक बारहठ जी (चारण) रहते थे उनके एक पद्मा नाम की बहन थी | राजस्थान में चारण जाति के लोग हमेशा से बहुत बढ़िया कवि रहे है | पद्मा भी बहुत अच्छी कविताएँ कहने में माहिर थी एक अच्छी कवियत्री होने के साथ सदगुणों से भरपूर और चतुर भी थी | उसकी सगाई शंकरजी बारहठ के साथ की हुई थी | शंकरजी भी बहुत ख्याति प्राप्त कवि थे | बीकानेर के तत्कालीन महाराजा रायसिंहजी ने उनकी कविताओं पर रीझ कर उन्हें करोड़ पासव बख्से थे जो उस समय बहुत इज्जत और नाम वाली बात होती थी |
एक बार शंकरजी पद्मा के गांव के पास से गुजर रहे थे सोचा नजदीक से निकल रहे है तो मालाजी सांदू से मिलते चले | यही विचार कर शंकरजी अपने साथियों सहित मालाजी सांदू की ढाणी में आ पहुंचे संयोग की बात उस समय मालाजी सांदू किसी दुसरे गांव गए हुए थे |

अपनी ढाणी के बाहर ऊंट घोड़ों पर सवार आये हुए लोगों को देखकर पद्मा ने अपने नौकर को भेज परिचय पुछवाया | नौकर ने आकर बताया कि- "शंकर जी आये है जिनके साथ आपकी सगाई हुई है |"
अब पद्मा सोच में पड़ गयी घर पर कोई मर्द नहीं,आने वाले मेहमान भी ख़ास, इस घर के होने वाले दामाद, अब उनकी खातिरदारी कौन करेगा? बिना खातिरी के चले गए तो घर की इज्जत का सवाल, कोई और मेहमान होते तो वह खुद जाकर खातिरदारी कर लेती,पर यहाँ तो शंकरजी आये हुए थे जिनके साथ उसकी सगाई हो रखी थी,और उनके साथ उनके भाई बन्द भी साथ, सो कुंवारी उनके आगे कैसे जा सकती थी |
पर पद्मा बहुत चतुर और तुरंतबुद्धि थी झट से उसने एक तरकीब सोची और नौकर को समझाया |

नौकर ने तुरंत जाकर मेहमानों को बैठक में बिठाया,उनके ऊंट घोड़ों को छाया में बाँधा | और मेहमानों से कहा -" बारहठ जी तो किसी गांव गए हुए है | उनके कुंवर यही है आप बिराजिये मैं अभी उन्हें सूचित करता हूँ |"
उधर पद्मा ने झट से मर्दाना कपड़े पहने,सिर पर पगड़ी बाँधी,कमर पर तलवार लटकाई,मर्द का ऐसा भेष बनाया कि कोई सोच भी नहीं सकता कि ये कोई लड़की भी हो सकती है | मर्दाना वेश धारण कर पद्मा मेहमानों के पास पहुंची अभिवादन स्वरुप हाथ जोड़ "जय माता जी री" की | शंकरजी ने झट से मिलने को बांहे पसारी ,पद्मा एक पल तो सकपकाई पर सोचा कहीं भेद ना खुल जाये सो शंकरजी को झट से बांहों में लेकर मिलली साथ में आये अन्य चारण सरदारों ने भी मिलने को बाँहें पसारी तो भेद खुलने के डर से पद्मा को उन्हें से बांहे पसारकर मिलना पड़ा |

पद्मा ने मेहमानों की खूब आव भगत की,उनके बकरे का मांस बनवाया,बढ़िया पकवान बनवाये | अब चारण सरदारों का घर और जमी महफ़िल में कवितायेँ ना हो ये तो हो नहीं सकता सो बातों ही बातों में कविता होने लगी,सवाल भी कविताओं में पूछे जाने लगे,हंसी मजाक भी कविताओं में होने लगी अब पद्मा ने सोचा यदि में इन्हें कविताओं में जबाब नहीं दूंगी तो ये क्या समझेंगे? समझेंगे मालाजी का बेटा तो भोंदू है घर की इज्जत जाएगी | चूँकि पद्मा खुद बहुत उच्च कोटि की कवियत्री और हाजिर जबाब चतुर नारी थी सो उसने मेहमानों की बातों का हर जबाब कविता में ही दिया | मेहमान भी मालाजी के कुंवर की प्रतिभा के आगे नतमस्तक हो गए | शंकरजी तो ऐसा प्रतिभा संपन्न ससुराल पाकर अपने आपको धन्य समझने लगे | सोचने लगे मालाजी का कुंवर इतना प्रतिभाशाली है तो जरुर पद्मा भी ऐसी ही गुणवान होगी |

दुसरे दिन पद्मा ने मेहमानों को विदा किया,गांव के रास्ते तक थोड़ी दूर उनके साथ जाकर पद्मा वापस आ गयी | शंकरजी अपने साथियों सहित रास्ता पार करने के लिए गांव से निकल ही रहे थे कि एक चौधरी ने उन्हें देखा तो ये सोचकर कि कोई ठाये सरदार है सो हुक्के की मनुहार की | उनका परिचय पूछा |
शंकरजी बोले -" हम तो मालाजी सांदू से मिलने आये थे,वो तो मिले नहीं पर उनके कुंवर मिल गए थे,वे काफी समझदार है ,उन्होंने हमारी खूब आव भगत की,अच्छी खातिरदारी की |"
ये सुनते चौधरी बोला- " मालाजी के तो कोई बेटा ही नहीं है |"
शंकरजी बोले -" क्यों नहीं है ? अभी तो हमें यहाँ से कुछ ही दूर पीछे तक छोड़कर गए है | अरे चौधरी जी उनके कुंवर तो कुंवर क्या असली हीरा है |"
चौधरी ने भी जिद की - " पूरी उम्र इस गांव में गुजारी है अभी तक तो मालाजी सांदू के बेटा होने की बात सुनी नहीं अब कोई आज का आज ही कोई हीरे जैसा बेटा पैदा हो गया तो पता नहीं |"
शंकरजी और उनके साथी भी सोच में पड़ गए तभी चौधरी बोला -
" आपको जो छोड़ने आया था मुझे उसके पैरों के निशान दिखाईये मैं देखते ही बता दूंगा कौन था |"
और शंकरजी व उनके साथियों ने चौधरी को पद्मा के पैरों के निशान दिखाए | चौधरी पद्मा के पैरों के निशान देखते ही समझ गया अचानक बोला -
"ऐ तो बांका पग बाई पद्मा रा" कि ये तो बांके पैरों के निशान पद्मा के है | पद्मा के पैर चलते हुए थोड़े बांके (टेड़े) पड़ते थे |
शंकरजी समझ गए कि वो पद्मा ही थी जिस से उसकी सगाई हो रखी है उन्हें पद्मा का उनके भाई बंधुओं से बांहें पसार कर मिलना याद आया तो उन्हें बड़ा गुस्सा आया | अपने घर पहुंचकर शंकरजी ने समाचार भेज दिया कि -" वो अब पद्मा से शादी नहीं करेंगे |"

पद्मा ने भी जब ये समाचार सुना तो उसने भी निर्णय लिया कि- " मैं भी एक स्वाभिमानी चारण कन्या हूँ शादी होगी तो उसी के साथ जिसके साथ एक बार तय हो गयी थी | नहीं तो पूरी उम्र कुंवारी रहूंगी |"
पद्मा की काव्य प्रतिभा की चर्चा बीकानेर के तत्कालीन राजा रायसिंहजी के भाई अमरसिंहजी ने सुन रखी थी | जब उन्हें उसकी सगाई छूटने और उसके कुंवारी रहने की प्रतिज्ञा सुनी तो उन्होंने पद्मा को अपने पास बुला लिया | एक राजपूत का चारण की बेटी के साथ बहन का रिश्ता होता है सो अमरसिंह जी ने पद्मा को एक बहन के रूप में अपने यहाँ रखा |
जब अमरसिंहजी को पकड़ने शाही सेना आई थी और वो अम्ल (अफीम) के नशे में सो रहे थे तो उन्हें जगाने की हिम्मत किसी में नहीं हुई कारण नशे में जगाने पर अमरसिंहजी जगाने वाले पर सीधा तलवार का वार करते थे | ऐसे समय में उन्हें जगाने को पद्मा ने अपनी काव्य प्रतिभा का सहारा लिया और उसने एक ऐसा गीत गया कि उसे सुनकर अफीम के नशे में सोते अमरसिंह उठ खड़े हुए और सीधे शाही सेना से जा भिड़े |

सहर लुंटतो सदा तूं देस करतो सरद्द, कहर नर पड़ी थारी कमाई
उज्यागर झाल खग जैतहर आभरण, अम्मर अकबर तणी फ़ौज आई
वीकहर सींह घर मार करतो वसूं |
अभंग अर व्रन्द तौ सीस आया
लाग गयणांग भुज तोल खग लंकाळ
जाग हो जाग कालियाण जाया
गोल भर सबळ नर प्रकट अर गाहणा
अरबखां आवियो लाग असमाण
निवारो नींद कमधज अबै निडर नर
प्रबल हुय जैतहर दाखवो पाण
जुडै जमराण घमसाण मातौ जठै
साज सुरताण धड़ बीच समरौ
आप री जका थह न दी भड अवर नै
आप री जिकी थह रयौ अमरो |


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5टिप्पणियाँ

  1. वाह चोखी कहाणी सुनाई पद्मा बाई की

    राम राम

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  2. राजस्थान और उस की संस्कृति ही है कि जहाँ इस तरह की कथाएँ मिलती हैं, वे भी अनगिनत।

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  3. तो ये थी पद्मा बाई...

    घर आए होने वाले जवाई का मान रखने के बावजूद उन्‍हें पूरी उम्र एकाकी रहने का प्रण करना पड़ा।

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  4. मेहमान नवाजी में राजस्थान हमेशा सर्वोपरी रहा है ये बात आपकी इस कथा से भी साबित होती है |

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