जय जंगलधर बादशाह -2

Gyan Darpan
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भाग एक शेष ...........
" हैं ? परसों ही ?"
" हाँ ! परसों ही,कटक नदी के इसी तट पर हमें कलमा पढाया जायेगा,हमारे मुंह में गौ-मांस और मौलवियों का थूक ठूँसा जायेगा | हमारी सुन्नत की जाएगी और फिर उस काली संध्या की भयावनी छाया में हम सूर्य,चन्द्र और अग्नि कुल के अंतिम भग्नावशेषों को मुहम्मद हुसैन,मीरकासिम आदि नामो से पुकारा गायेगा |
" यह कैसे हो सकता है ? सिंह के मुंह में अंगुली डालकर किसने दांत गिनने में सफलता प्राप्त की है ?"
" क्या मुसलमान अब भी हमारी तलवारों के जौहर से अनभिज्ञ है ? क्या वे भूल चुके है कि अंतिम रूप से मरने के लिए प्रस्तुत, बीस हजार राजपूत हाथ कितना भयंकर विनाश कर सकते है ?"
" आपको कदाचित मालूम नहीं ? हमारी दस हजार सेना को सबसे पहले नदी के उस पार उतारा जायेगा और फिर जो नावें हमें लेने आएँगी,वे कभी लौटकर नहीं जाएगी | उस समय हम सत्तर हजार मुसलमानी सेना से घिरे हुए अकेले रहेंगे |"
"तो क्या हमें अपनी तलवारों पर विश्वास नहीं ?"
"विश्वास है | हमें अपनी तलवारों पर विश्वास है | हमारी भुजाओं पर विश्वास है | कुल परम्परा पर विश्वास है | हमारे दृढ निश्चय पर विश्वास है | हम केसरिया कर लेंगे,किन्तु यह तो वही होगा जो बादशाह चाह रहा है |"
"क्या ?"
"या तो वह हम सबको एक साथ मुसलमान बनाले या एक साथ मार डाले,जिससे वह हमारे कुटुंब और प्रजा पर मनमाना अत्याचार कर सके | उनके गलों में निश्चिन्त होकर मौलवियों के अपवित्र थूक और गौ-मांस ठूंस सके -
" हम अभी अपने राज्यों को लौट चलें |"
" सत्तर हजार सेना में से सबका निकल सकना संभव नहीं है |"
"तो फिर ?"
" हम युक्ति और बुद्धि से काम लें और युक्ति व बुद्धि असफल रहती है तो ईश्वर और आत्म-बल पर विश्वास रखकर कटक के तट की इस श्वेत रेणु पर आत्म-बलिदान की रक्तिम जाजम बिछा दें |"
सबने एक स्वर में कहा - "स्वीकार है |"

दूसरे प्रात:काल ही राजपूतों ने यह प्रचारित करना आरम्भ कर दिया कि सबसे पहले हम नदी के उस पार उतरेंगे | यदि कोई मुसलमान सैनिक पूछता -
"क्यों ?"
तो उत्तर मिलता -" हम प्रत्येक बात में तुमसे आगे रहते है | हरावल (युद्ध की अग्रिम पंक्ति)में हम रहते है,खतरे के समय हम आगे जाकर उससे लोहा लेते है और हम है भी तुमसे श्रेष्ठ | तुम्हारे अगुवा | नदी के उस पार जाने में भी हम तुमसे आगे ही रहेंगे |"
मुसलमानों ने इसे अपना अपमान समझा | सबने एक साथ निर्णय किया कि वे ही सबसे पहले नदी के उस पार उतरेंगे | यदि उन्हें राजपूतों से बाद उतारने की चेष्टा की गई तो उसी समय वे विद्रोह का झंडा खड़ा कर देंगे | सेनापतियों को मार गिराएंगे और रक्त की नदी बहा देंगे |"
दूसरी और राजपूत अपने हठ पर दृढ थे |
मुग़ल सेनापतियों के सामने एक पेचीदा समस्या उत्पन्न हो गई किन्तु थोड़े हठ और फिर मनाने के उपरांत राजपूतों ने मुसलमानी सेना को पहले नदी के उस पार उतारा जाना स्वीकार कर लिया | बात की बात में सत्तर हजार मुसलमानी सेना कटक नदी के उस पार नावों से उतार दी गई | अब वे ही नावें पहले राजाओं को उस पार लेने आई | राजाओं ने कहा कि आमेर की माजी साहिबा का देहांत हो गया है | अतएव वे और उनकी सेना बारह दिनों तक उसी नदी तट पर शोक मनाएंगे | शोक की समाप्ति के बाद आगे चलेंगे | बारह दिनों तक कटक नदी के दोनों किनारों पर दो सेनाएं आमने सामने पड़ाव डाले हुए पड़ी रही | तेरहवें दिन कटक नदी के दक्षिणी तट पर एक सुसज्जित मंच पर एक सिंहासन रखा हुआ था | किसी राजतिलक की बड़े ही समारोह से तैयारियां चल रही थी | शुभ मुहूर्त में एक सुन्दर बलिष्ट और शस्त्रों से सुसज्जित युवक सिंहासन पर आकर बैठ गया | सब राजाओं ने मिलकर उसके मस्तक पर राजमुकुट रखा | सबने बारी बारी से उसके मस्तक पर टीका लगाया | उसके राजतिलक किया | उसे अपना सम्राट बनाया | नक्कारों और दुन्दुभियों के जयघोष के बीच हजारों कंठों से एक साथ ध्वनी निकली -
" जय जंगलधर बादशाह |"
कटक लहरों ने उसे निर्विकार रूप से ग्रहण करके किनारे के उत्तरी तट पर पहुंचा दिया -
" जय जंगलधर बादशाह |"
कटक के उत्तरी किनारे खड़ी हुई शाही सेना चकित थी | यह देखकर कि यह किसका राजतिलक हो रहा है ? यह जय जंगलधर बादशाह कौन है ? दूसरी और प्रधान नाविक ने राजपूत शिविर में आकर सूचना दी -
" जल्दी करिए | सब नावें आपको पार उतारने के लिए इस किनारे आकर लग गयी है |"
फिर हजारों कंठों से उदघोष हुआ -
" जय जंगलधर बादशाह |"
और फिर खटाखट,खचाखच,टर्रटर,तड़ातड की ध्वनि के साथ हजारों हठ शाही नावों को तोड़ने में व्यस्त हो गए | बात की बात में सब नावें तोड़ दी गई | दूसरे किनारे खड़ी शाही सेना यह सब दृश्य देख रही थी | कटक की तीव्र धारा में से होकर आने का किसी को साहस नहीं हो रहा था | बादशाह का षड्यंत्र विफल हो गया था | मुल्ला मौलवी हाथ मलकर पछता रहे थे | शाही सेनापति किंकर्तव्यविमूढ़ होकर लंबी उच्छ्वासे भर रहे थे |
सब नावों को तोड़ देने के बाद सब राजा लोग अपनी अपनी राजधानियों को लौट गए | सबका अनुमान था कि अब बीकानेर के महाराजा करणसिंह जी को शाही क्रोधाग्नि का शिकार होना पड़ेगा | उन्हें जय जंगलधर बादशाह बनने का भयंकर मूल्य चुकाना पड़ेगा | इस पहल और सेनापतित्व के लिए उन्हें अब सीधे रूप से मुगलिया शक्ति से टक्कर लेनी पड़ेगी |
जब यह संवाद बादशाह औरंगजेब के पास पहुंचा, तब वह अपनी योजना के विफल होने पर बहुत अधिक झल्लाया और क्रोधित हुआ | राजाओं के इस प्रकार बच निकल जाने पर उसे बड़ा पश्चाताप हुआ | पर उसने जब निर्जल बालुकामय बीकानेर के विकट मरुस्थल की और ध्यान दिया तो एक विवशता भरी नि:श्वास छोड़ दी | मारवाड़ के राठौड़ों द्वारा प्रदर्शित तलवार की शक्ति को याद कर वह सहम गया | महाराजा करणसिंह की रोद्र मूर्ति और बलिष्ठ भुजाओं का स्मरण कर वह भयभीत हो गया | उसने केवल इतनी ही आज्ञा दी -
" इस सब घटना को शाही रोजनामचे में से निकाल दो और तवारीख में भी कहीं मत आने दो |"
किन्तु उस दिन से बीकानेर के केसरिया-कसूमल ध्वज पर सदैव के लिए अंकित हो गया -
" जय जंगलधर बादशाह |"
लेखक : स्व.आयुवानसिंह शेखावत


महाराजा करणसिंह जी बीकानेर का चित्र भेजने के लिए भाजपा के युवा नेता अभिमन्युसिंह राजवी का हार्दिक आभार |

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10टिप्पणियाँ

  1. बहुत शानदार, बेहद रोचक.... इसी तरह से इन लोगों ने हमारे इतिहास को तोड़-मरोड़ दिया...

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  2. बहुत समय बाद वीर रस की कोई कहानी पढ़ी, रोंगटे खड़े हो गए

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  3. सचमुच इस प्रकार की मिट्टी में दबी वीरता की बहुत सी कहानिया इतिहास में जगह नहीं बना पाई है |आपके इस प्रयास का आने वाला समय आभार मानेगा |

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