ठाकुर श्याम सिंह चौहटन

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ठाकुर श्याम सिंह चौहटन

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जूझने वाले राजस्थानी योद्धाओं में ठाकुर श्याम सिंह राठौड़ का बलिदान भुलाया नहीं किया जा सकता। सन 1857 के देशव्यापी अंग्रेज सत्ता विरोधी सशस्त्र क्रांति के पूर्व राजस्थान में ऐसे अनेक स्वतंत्रता सेनानी हो चुके हैं जिन्होंने ब्रिटिश सत्ता के वरदहस्त को विषैला वरदान समझा था। मालानी प्रदेश के चौहटन स्थान के ठाकुर श्याम सिंह राठौड़ों की बाहड़मेरा खांप के थे। बाहड़मेर (बाड़मेर) का प्रान्त वहां के प्रसिद्ध शासक रावल मालाजी (मल्लिनाथ) के नाम से मालानी कहलाता है। मल्लिनाथ के वंशज महैचा राठौड़ कहलाते है. रावल मल्लीनाथ जी के पुत्र रावल जगमाल हुए, जगमाल के पुत्र लूंका से बाहड़मेरा खांप चली।

राजस्थान में अंग्रेजों के प्रभाव के बाद तक भी वे अपनी स्वतंत्रता का उपभोग करते रहे है। जोधपुर के महाराजा मानसिंह के समय उनके नाथ सम्प्रदाय गुरु भीमनाथ, लाडूनाथ, महाराज कुमार छत्रसिंह आदि के वर्चस्व के कारण मारवाड़ में राजनैतिक धड़ाबंदी बढ गई थी। इस अवसर का फायदा उठाकर अंग्रेजों ने महाराजा को संधि कर अंग्रेजों का शासन मनवाने के लिए बाध्य किया और वि.स. 1891 में कर्नल सदरलैंड ने अपने प्रतिनिधि स्वरूप मि.लाडलो को जोधपुर में रख दिया। मि.लडलो ने नाथों के उपद्रव और महाराजा तथा उनके सामंतो के विग्रह विरोध को शांत कर अंग्रेज सत्ता का प्रभाव जमाने का प्रयत्न किया। बाड़मेर में महेचा राठौड़ सदा से ही अपनी स्वतंत्र सत्ता का उपभोग करते रहे थे। वे कभी जोधपुर राज्य से दब जाते और फिर अवसर आने पर स्वतंत्र हो जाते।

अंग्रेजों का मारवाड़ राज्य पर प्रभाव बढ़ता देखकर स्वतंत्रता प्रेमी मालानी के योद्धा उत्तेजित हो उठे और अंग्रेजों के विरुद्ध धावे मारने लगे। अंग्रेजों ने संवत 1891 वि. (सन 1834 ई.) में मालानी पर सैनिक आक्रमण किया। बाहड़मेरों ने भी ठाकुर श्याम सिंह चौहटन के नेतृत्व में युद्ध की रणभेरी बजा दी। अपनी ढालें, भाले, सांगे और तलवारों की धारें तीक्षण की। आधुनिक शस्त्रों से मुकाबला करने के लिए राठौड़ वीर तैयार हुए.

अंग्रेज सेनानायक ने श्यामसिंह को युद्ध न कर आत्म-समर्पण करने के लिए सन्देश भेजा, परन्तु वीर श्यामसिंह तो देश के शत्रु व स्वतंत्रता के विरोधी अंग्रेजों से रणभूमि में मुकाबला करना चाहता था. दोनों और से युद्ध होने लगा.

 

मालानी प्रदेश को कीर्ति रूपी जल से सींचने वाला वीर श्याम सिंह अपने देश की स्वंत्रता के लिए जूझने लगा। अपने प्रतापी पूर्वज रावल मल्लिनाथ, रावल जगमाल, रावल हापा की कीर्तिगाथा को स्मरण कर अंग्रेज सेना पर टूट पड़ा।

उस वीर श्रेष्ठ श्यामसिंह ने अंग्रेजों की तोपों, तमंचो से सनद्ध सेना का तनिक भी भय नहीं माना। वह वीर युद्धभूमि में दृढ़तापूर्वक युद्ध करने लगा। अंत में अपने देश की आजादी की टेक का निर्वाह करते हुए रणशैया पर सो गया।

ठाकुर श्याम सिंह ने अपने पूर्वजों की स्वातंत्रर्य भावना और आत्म-सम्मान, आत्म-त्याग का पाठ पढ़ा था। इसलिए उस वीर ने जीते जी मालानी प्रदेश पर अंग्रेज सत्ता का आधिपत्य नहीं होने दिया।

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