यह घटना उस काल की है, जब आमेर के महाराजा भारमल की मुगल सल्तनत से संधि हो चुकी थी और उनके वंशज मुगलों के सेनापति भी नियुक्त होते थे। तभी एक अदभुत् व अकल्पनीय वाक्या हुआ जिसकी तुलना इतिहास में अमर सिंह राठौड़ के शौर्य से की जा सकती है। लवाण के बाँके राजा भगवानदास के पौत्र एवम् महाराजा भारमल के प्रपौत्र जो कि लवाण के जागीरदार थे, ने मुगल सल्तनत से बागी होकर कुछ मुगलों को मौत के घाट उतार दिया था। यह ऐतिहासिक घटनाक्रम उस समय का है, जब मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह मुगलों के विरोध में थे, तब इन बाँकावत भाइयों ने महाराणा का साथ देने का प्रण किया।
बादशाह जहाँगीर ने अपने मंत्रियों से कहा कि “आमेर के कुछ कछवाहों ने मेरे खिलाफ बगावत कर दी है, इनके नाम अभयराम, विजयराम एवं श्यामराम बाँकावत हैं। ये लवाण के बाँके राजा भगवानदास के पौत्र एवँ राजा अखेराम के पुत्र हैं। अभयराम की एक बात मुझे पता चली है की वह महाराणा अमरसिंह का ताबेदार बनने मेवाड़ जाना चाहता है। इन लोगों ने मेरे एक खास सिपहसालार को भी मार डाला हैं”, यह कहकर जहाँगीर इन तीनों को आम खास महल के चौक में बेड़ियाँ पहनाने का आदेश देता हैं। परन्तु अभयराम सहित तीनों भाइयों ने बेड़ियों में जकड़े जाने के बजाय युद्ध करना स्वीकार्य किया एवम् वहीं तीनों भाईयों ने वीरता के साथ युद्ध किया व अनेक मुगल सैनिकों को मारते हुए माघ बदी 14 वि.स.1662 को वीरगति को प्राप्त हुये।अभयराम के दो औऱ साथी भी लड़ने आये, जिन्होंने भी अनेक मुगल सैनिकों को मारकर इन राजकुमारों के साथ वीरगति प्राप्त की।
लेखक : रणजीत सिंह बांकावत