कस्बा लवाण जिसकी है कई कारणों से पहचान

Gyan Darpan
0

जयपुर से करीब 45 किलोमीटर व दोसा से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित लवाण कस्बा कई कारणों से प्रसिद्ध है। जयपुर-आगरा हाईवे से बस्सी अथवा बाँसखो होते हुए व दौसा से लालसोट सवाई-माधोपुर रूट से लवाण पहुँच सकते हैं। आमेर के महाराजा भारमल के पुत्र भगवानदास को लवाण की जागीर प्राप्त हुई थी। राजा भगवानदास व महाराजा भगवन्तदास सहोदर थे, दोनों महाराजा भारमल व महारानी बदना के पुत्र थे। भगवानदास को “राजा” की उपाधि प्राप्त थी। भगवानदास बहुत ही बहादुर एवं धार्मिक व्यक्तित्व के धनी थे एवं इन्हें अकबर के दरबार में बड़ा मनसब प्राप्त था। भगवानदास ही ऐसे राजा थे, जिनसे अकबर को हमेशा डर सताता था, वो अकबर से हमेशा टेढ़े चलते थे। राजा भगवानदास की वीरता एवं बांकेपन से प्रभावित होकर अकबर उन्हें “बांकेराजा” कहकर संबोधित करता था।इस वजह से उनके वंशज बाँकावत कहलाते है। तुंगा, तुंगी,केलाई,भयपुर,सवाईपुरा,गडलाई, भोजपुरा, मोहम्मदपुर लाभास, लालगढ़ आदि सहित भरतपुर जिले में भी दर्जनों बाँकावत कछवाहों के प्रमुख ताजीमी ठिकाने थे। बांके राजा भगवानदास बहादुर होने के साथ साथ हरिभक्त भी थे।

ठाकुर हरिदेव जी इनके आराध्य थे, गोर्वधन स्थित मानसी गंगा तट पर स्थित ठाकुर हरिदेवजी का प्रसिद्ध मंदिर बाँके राजा भगवानदास जी ने ही बनवाया था एवं अपने आराध्य हरिदेव जी के स्वरूप को विराजमान किया था। इनका ज्यादातर समय हरिभक्ति में ही व्यतीत होता था। दिल्ली व जयपुर में उनकी याद में भगवानदास रोड का निर्माण किया गया। पुराने जयपुर में लवाण दरवाजा स्थित है, जिसे आज मच्छी दरवाजा के नाम से जानते हैं। लवाण में कोई दरोगों अथवा पासवानों का इतिहास नहीं मिलता है।

लवाण के दो राजकुमारों ने मुगलों से बगावत कर दी थी व महाराणा प्रताप को समर्थन करना चाहते थे। मुगल दरबार में उन्हें बेडियाँ पहनाना चाहा पर उन्होंने कई मुगलों को मारकर वीरगति का मार्ग चुना। किंवदंती है कि लवाण के एक राजा ने डाकू उन्मूलन के लिए डाकू का कटा शीश गढ के द्वार पर लटकाया था।  लवाण की राजकुमारी ब्रजकुँवरी बाँकावती का विवाह किशनगढ़ के महाराजा से हुआ था। ब्रजकुँवरी ब्रज भाषा की बड़ी कवयित्री थी, ब्रजदासी के नाम से विख्यात इस राजकुमारी ने श्रीमद् भागवत् का ब्रजदासी भागवत् के नाम से अनुवाद किया था। लवाण के वर्तमान राजा अरविन्द सिंह बाँकावत है वो भी कवि हैं व भजनों के रचियता हैं। वे जयपुर बनीपार्क स्थित उनके आवास लवाण हाउस में बिराजते हैं। उनके ज्येष्ठ पुत्र एडवोकेट हैं।

ढूँढाड़ राज्य के दो धनी थे, जिसमें एक थे लवाण के राजा जगराम। लवाण का गढ़ अपने समय का सबसे विशाल गढ़ था। गढ़ का मुख्यद्वार बहुत ही उचा है मुख्य द्वार इतना उँचा है, जब राजा इसमें हाथी पर बैठे बैठे ही प्रवेश करते थे, तब भी इनको झुकना नही पड़ता था। गढ़ की दीवारें काफी मजबूत एवं चौड़ी है, हर एक दरवाजे के बाद एक बड़ा चौक आता है,गढ़ में विशाल कचहरी एवं लेखा जोखा का हॉल भी हैं। किले के दूसरे दरवाजे के अंदर ठाकुर गोविंदेव जी का मंदिर एवं विशाल चौक बना हुआ है गढ़ में आज भी दिवान-ए-खास एवं जनानी ड्योढ़ी है जो अब तक सुरक्षित है, इसकी बनावट रंगीन है। गढ़ में भौमिया जी महाराज का मंदिर बना हुआ है। राजा जब भी युद्ध करने जाते थे, तब भौमिया जी महाराज को शीश नवाकर जाते थे। गढ़ के मुख्य द्वार के बाहर हनुमानजी का मंदिर बना हुआ है। गढ़ के चारों तरफ विशाल पाल का निर्माण किया हुआ है।

लवाण कस्बे में स्थित कंटीली झाड़ियों के बीच छिपा हुआ कुआँ इतिहास का आश्चर्यजनक नमूना है। जिसे जलदुर्ग भी कहा जाता हैं इस जलदुर्ग में भीतर प्रवेश के लिए एक सकरा एवं घुमावदार मार्ग है। जिसमे एक साथ सिर्फ एक ही व्यक्ति प्रवेश कर सकता है।अंदर छज्जो युक्त छोटे एवम् बड़े कई कक्ष बने हुए हैं जिनमे प्रकाश एवँ वायु का उपयुक्त प्रबन्ध किया हुआ है।छोटे-बड़े प्रस्तर खंडों को बहुत सफाई से जोड़कर एक मजबूत सुरक्षा कवच भी बनाया गया हैं। लवाण के बाँकावत राजा एक से बढ़कर एक वीर हुये तथा मुगल सल्तनत में बड़े मनसबदारों में से थे। बाँकावत राजाओ द्वारा निर्मित अनेक भवन स्मारक तथा शिलालेख यहाँ मिलते है। विशाल पाषाण स्तम्भो वाला एक भव्य स्मारक बाँकावतो के बीते गौरव की कहानी कहता हैं जिसका शिल्प सौंदर्य देखते ही बनता हैं। लवाण के तालाब के पास एक चबूतरे पर एक विशाल प्रस्तर खंड पर एक शिलालेख उत्कृन है जिसके ऊपरी भाग में गणेश जी की प्रतिमा बनी हुई हैं इस लेख में तालाब में होने वाली सिंगाड़े की खेती तथा तालाब की मरम्मत के सम्बंध में आदेश खुदा हुआ है।विख्यात लोकतीर्थ ‘नई का नाथ’ लवाण के पास ही स्थित है व पूर्व राजधानी यहीं होने का उल्लेख भी मिलता है ।लवाण का बाजार काफी सकडॉ एवँ काफी लंबा है लवाण खादी, निवार, दरियों तथा चमड़े के व्यवसाय के लिए दूर दूर तक प्रसिद्ध है।

लवाण भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त जूट क्लस्टर घोषित है। लवाण में प्रसिद्ध बावडियें, मंदिर व राजा व रानी की छतरियाँ भी स्थित हैं। लवाण के पेडे की मिठाई भी काफी मशहूर है। लवाण वर्तमान में तहसील व पंचायत समिति है व पुलिस थाना भी है। लवाण तालाब संरक्षण व पर्यटन विकास की असीम सम्भावनाएँ समेटे हुए है।

लेख को तैयार करने में योगदान : लवाण के राजकुमार एडवोकेट यशदीप सिंह बाँकावत, रणजीत सिंह बाँकावत, अजीतगढ़, द डिस्ट्रिक बार एसोसिएशन महासचिव गजराज सिंह बाँकावत।

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)