कभी खेती किसानी के दम पर सोने की चिड़िया रहे भारत के किसान आज सबसे ज्यादा शोषण के शिकार हैं| कहने को कृषि विभाग कृषि विकास के लिए कई योजनाएं चलाता है, खाद, बीज, कृषि यंत्रों पर मोदी सब्सिडी दी जाती है फिर भी किसानों की हालत दयनीय है, कृषि घाटे का व्यवसाय बना हुआ है| हाँ जो जिस दल की भी सरकार आती है किसान के कल्याण की मोटी-मोटी बातें व वायदे करती है बावजूद आजतक किसान की हालत नहीं सुधरी| क्योंकि सरकारों ने भले ही वे किसी दल की हों किसानों के साथ छलावा ही किया है|
हम बात करते किसानों के लिए खाद, बीज, कृषि यंत्रों पर सब्सिडी व समय समय पर ऋण माफ़ी की| खाद बीज पर सरकारें जो सब्सिडी देती है पहले तो उसका आम किसान को पता नहीं, जिसे पता है उसे समय पर सब्सिडी वाला खाद, बीज मिलता नहीं और मिलता भी है तो कई बार इतना घटिया होता है कि बीज उगता ही नहीं| ऐसे में अब किसान को सब्सिडी पर मिलने वाले बीज पर भरोसा नहीं रह गया और उसकी बाजार से महंगा बीज खरीद कर इस्तेमाल करना मज़बूरी हो गई|
कृषि यंत्रों पर सब्सिडी की बात करें तो जिन यंत्रों पर सब्सिडी मिलती है कम्पनियों द्वारा उनका मूल्य इतना अधिक वसूला जाता है कि सब्सिडी का पूरा पैसा कृषि यंत्र बनाने वाली कम्पनी की जेब में चला जाता है| यदि कहा जाय कि कृषि योजनाओं में सब्सिडी का खेल निजी कम्पनियों को फायदा पहुंचाने के लिए ही है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं| अब बात करते है किसान ऋण माफ़ी की|
हाल हुई किसान ऋण माफ़ी की बात करें तो राजस्थान में भाजपा सरकार ने किसानों के पचास हजार रूपये ऋण माफ़ी की घोषणा की थी, लेकिन सिर्फ उन्हीं किसानों का ऋण माफ़ किया था जिन्होंने सहकारी बैंकों से ऋण लिया था| राजस्थान में वर्तमान कांग्रेस सरकार ने भी अभी तक सहकारी बैंकों के ऋण ही माफ़ किये है जबकि राहुल गाँधी ने सम्पूर्ण कर्ज माफ़ी का वायदा किया था| आपको बता दें सहकारी बैंकों से ऋण लेने वाले किसानों की संख्या बहुत ही कम है, ज्यादातर किसानों ने किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ऋण लिया हुआ है, उनका अभी तक एक रुपया भी माफ़ नहीं हुआ, जबकि सहकारी बैंकों से जिन कुछ किसानों ने ऋण लिया हुआ था, उन्हें दो बार फायदा मिल गया|
यदि हम बात सहकारी बैंकों की करें तो आम किसान को सहकारी बैंक से ऋण लेने की प्रक्रिया का ध्यान नहीं, यदि कोई किसान सहकारी समिति ऋण लेने जाता है तो वहां का प्रबंधक उसे बहाने बना टाल देता है| यदि मैं अपनी पंचायत की सहकारी समिति की बात करूँ तो आजतक वहां एक ही प्रबंधक रहा, जिसने सिर्फ अपने चहेतों को ही ऋण दिया, बाकी को उसने कभी सदस्य तक नहीं बनने दिया| अब जब वह प्रबंधक सेवानिवृत हो चुका है तब भी संविदा आधार पर समिति से चिपका है और अपनी मनमानी करने की पूरी कोशिश करता है|
इस तरह चाहे किसान ऋण माफ़ी की घोषणाएँ हो, खाद, बीज, कृषि यंत्रों पर सब्सिडी व समर्थन मूल्य की बात हो, राजनैतिक दलों द्वारा किसान को मूर्ख ही बनाया जाता है| असली फायदा तो निजी कम्पनियां व बाजार ही उठाता है|