आजादी के बाद से ही एक खास विचारधारा व सेकुलर ताकतों द्वारा भारतीय संस्कृति को बिगाड़ने के षड्यंत्र चालु है| समय समय पर इस विचारधारा के विभिन्न संवैधानिक पदों पर बैठे लोग इस तरह के नियम बनाते हैं जो भारतीय संस्कृति के प्रतिकूल होते हैं| महिलाओं की आजादी की आड़ में भी ऐसे कई नियम बने हुए है जो भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के विपरीत व्यभिचार को बढ़ावा देते हैं| जैसे महिला पति की सम्पत्ति नहीं है उसे किसी भी पर पुरुष के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने की स्वतंत्रता है| हाल ही में अपने एक फैसले में सुप्रीमकोर्ट ने यह भी व्यवस्था दी है कि अव पत्नी के साथ अवैध शारीरिक सम्बन्ध रखने वाले पुरुष के खिलाफ पति शिकायत नहीं कर सकता|
खैर..ये भारतीय संविधान के नियम है और हम संविधान का सम्मान करते हैं पर इन नियमों का पालन करते हुए कोई भी पति अपनी पत्नी को पर पुरुष से शारीरिक सम्बन्ध बनाने की छुट देता है तो कई कुछ प्रश्न व परिस्थितयां उठ खड़ी होती है| क्या सरकार और सुप्रीमकोर्ट उन परिस्थितियों में पति के साथ न्याय करेंगे ?
पहला प्रश्न है पत्नी द्वारा पर पुरुष से असुरक्षित शारीरिक सम्बन्ध बनाने पर एड्स जैसी घातक बिमारी से पति कैसे बचे ? दूसरा महत्त्वपूर्ण प्रश्न है- महिला के पुरुष मित्र से यौन सम्बन्धों से उत्पन्न पुत्र के लालन-पालन की जिम्मेदारी किसकी ? इस प्रश्न पर मेरे एक वकील मित्र ने बताया कि- “ऐसी स्थिति में पति पत्नी से तलाक ले सकता है| तलाक के लिए ये साक्ष्य काफी है|” पर भारत की न्याय व्यवस्था में तलाक के मुकदमें झेल रहे पतियों को पता है कि तलाक का मुकदमा लड़ते लड़ते व्यक्ति बूढा हो जाता है| यदि मान भी लिया जाय कि इस आधार पर पति को तलाक जल्द मिल जायेगा, पर प्रश्न उठता है इस तरह महिला को तो व्यभिचार की सजा मिल गई, पर व्यभिचार में शामिल पुरुष का क्या ?
वकील मित्र ने बताया कि इस तरह की परिस्थिति में बच्चे का बायोलोजिकल पिता व माता दोनों जिम्मेदार होंगे| पर बायोलोजिकल पिता से न्याय पाने का मामला हम कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी के मामले में देख चुके हैं कि कितना समय लगा| क्या इतनी लम्बी लड़ाई इस देश का एक गरीब आदमी लड़ सकता है ? भारत सरकार इस तरह के कानूनों को व्यवहारिक बनाएं| हमारे वकील मित्र भी इस तरह के एक तरफा कानूनों को व्यवहारिक बनावाने के प्रयास करें|