बूंदी के राजा भोज की पुत्री का अकबर द्वारा अपने शाहजादे के लिए हाथ मांगने की घटना सिवाणा के कल्याणसिंह रायमलोत Kalla Rathore के बीच में आने, अकबर के सामने भरे दरबार में मूंछों पर ताव देने व उसके विरोधियों द्वारा रचे षड्यंत्र के चलते कल्ला राठौड़ ने केसरिया वस्त्र धारण कर लिए थे| अकबर ने रंग ढंग देखकर उसे आगरा से काबुल भेज दिया| जहाँ उसका एक खान से विवाद हो गया, कल्ला ने खान की गर्दन काट कर विद्रोह कर दिया| बागी कल्ला मुग़ल सेना को चीरता हुआ बीकानेर आ पहुंचा| उस वक्त अकबर के प्रसिद्ध दरबारी व अद्वितीय कवि पृथ्वीराजजी (पीथल) बीकानेर आये हुए थे|
Kalla Rathore ने उनसे कहा- काकोसा ! मारवाड़ जा रहा हूँ| जहाँ सिवाने जाकर मलेच्छों को तलवार का स्वाद चखाऊंगा| अपने रक्त से वंश परम्परा को धोकर गौरवशाली करूँगा| अत: आप मेरे मरसिये (मृत्यु गीत) बनाकर मुझे सुनाने की कृपा करें|
पृथवीराजजी ने कहा- “कल्ला मरसिया तो मरने के उपरांत बनाये जाते हैं| तू तो अभी मेरे सामने जीवित बैठा है| मैं तेरे मरसिये कैसे बनाऊं ?”
Kalla Rathore ने कहा- काकोसा ! मैं प्रबल पराक्रम से युद्ध करूँगा और अनुपम वीरता दिखाता हुआ ऐसी मौत मरूँगा जैसी अब तक बहुत कम राजपूतों को मिली है| इसलिए आप सुन्दर से सुन्दर मरसिया बनायें| मैं राठौड़ कुल गौरव की सौगंध खाकर आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आप जैसे ओज और वीरतापूर्ण गीत बनायेंगे, उनके अनुरूप ही मैं युद्ध करूँगा और वीर गति को प्राप्त होऊंगा|
पृथ्वीराजजी के सामने एक विचित्र समस्या उत्पन्न हो गई| एक जीवित व्यक्ति का झुझार के समान यशोगान कैसे करें ? वे कल्ला के हठ को भी जानते थे| इसलिए उन्होंने वह प्रसिद्ध मरसिया बनाकर सुनाया जिसमें राजपूताने के प्रसिद्ध वीरों के अद्वितीय बलिदानों की कहानी बड़ी ही ओजस्वी वाणी में कही गई थी| कल्ला के उस मरसिया का प्रथम पद- ” बल चढ़ बोलियों पत्तसाह बढेता, मंडोवर रुख माण मदेतो, जो जमवार लगे जस जेतो, कलो भलो रजपूत कहेतो |” यह पद गुनगुनाता कल्ला सिवाना की और चल पड़ा|
जब Kalla Rathore सिवाना के पास पहुंचा तब उसे मालूम हुआ कि अकबर की एक सेना उसके मामा सिरोही के देवड़ा सुल्तान पर आक्रमण करने जा रही है| कल्ला ने उस सेना को मार्ग में लूट लिया और बात की बात में भगा दिया| जब ये शिकायत अकबर के पास पहुंची तब वह बड़ा क्रोधित हुआ और उसने कल्ला को जीवित पकड़कर लाने अथवा मारने के लिए, जोधपुर के मोटा राजा उदयसिंह को बड़ी सेना देकर सिवाने पर आक्रमण करने की आज्ञा दी| मोटा राजा ने दलबल सहित सिवाना को घेर लिया| कल्ला अपने साथियों सहित शाही सेना से वीरतापूर्वक लड़ता रहा|
आखिर Kalla Rathore ने शाही सेना से सीधी लड़ाई में वैसे ही वीरता दिखाते हुए अपनी शहादत दी, जैसी वीरता का पृथ्वीराजजी ने मरसिया (मृत्यु गीत) में वर्णन कर उसे सुनाया था| सिर कटने के बाद भी कल्ला का धड़ लड़ता रहा और आखिर अपने वचनों के अनुसार अपनी रानी हाड़ी के सम्मुख जाकर गिरा| रानी ने कल्ला की कबंध (धड़) की आरती की और वह उसके साथ सती हो गई| इस तरह कल्ला ने एक कवि की कल्पना के अनुरूप युद्ध कर इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखवा डाला|
नोट : लेख स्व. कुंवर आयुवानसिंह शेखावत की पुस्तक “ममता और कर्तव्य” के लेख “सगाई” का कुछ भाग लेकर प्रस्तुत किया गया है| History of Kalla Rathore in Hindi, Sivana ke Kalla Rathore ka itihas hindi me, Kalla Rathore