युद्ध भूमि में अमल की मनुहार और दो विरोधी बन गए रिश्तेदार

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राजस्थान का इतिहास भी ऐसी ऐसी विचित्र घटनाओं व कहानियों से भरा पड़ा है, जो यहाँ के वीरों के ऊँचे चरित्र से रूबरू करवाता है| ऐसी घटनाएँ राजस्थान के इतिहास में ही मिल सकती है कि दो पक्षों में युद्ध हो रहा हो, और शाम को युद्ध बंद होने के बाद विरोधी योद्धा एक साथ बैठकर भोजन कर रहे हों, या कोई वीर युद्ध में घायल विरोधी के हालचाल पूछ रहा हो और उसे दर्द से राहत दिलवाने के लिए अमल मुहैया करवा रहा हो|  ऐसी एक घटना वि.सं. 1689-90 में घटी, जिसमें दो योद्धा आमने सामने थे, एक ने दूसरे के पास पहुँच अमल की मनुहार की और दोनों में मित्रता हो गई, युद्ध बंद हो गया और दोनों दुश्मन से मित्र और मित्र से आगे बढ़कर रिश्तेदार बन गए|

हम बात कर रहे जोधपुर के सबसे शक्तिशाली राजा राव मालदेव व शेखावाटी के शासक राव रायमल के रिश्तों की|  वि.सं. 1689-90 के मध्य राव मालदेव ने मारोठ के गौड़ राजपूतों पर आक्रमण किया| चूँकि गौड़ राजपूत राव रायमल के सम्बन्धी थे अत: राव रायमल गौड़ों की सहायता के लिए आये| दोनों पक्षों के मध्य युद्ध के नंगारे बज उठे, युद्ध शुरू हुआ, वीरों की तलवारें आपस में टकराने लगी| राव रायमल भी अपने सैनिकों के साथ युद्ध भूमि में तलवार चला रहे थे| राव रायमल अपनी तलवार के जौहर दिखालते हुए राव मालदेव के पास जा पहुंचे और अपने विरोधी पर तलवार का वार करने से पहले उन्हें अमल की मनुहार की|

राव मालदेव एक विरोधी वीर द्वरा इस तरह सम्मान पूर्वक अमल की मनुहार पाकर गदगद हो गए| उन्होंने शेखावाटी के शासक वीर राव रायमल को पहचान लिया और घोड़े से उतर राव रायमल के गले मिले| यह दृश्य देख युद्ध कर सैनिकों की तलवारें अपने आप म्यानों में चली गई | “युद्ध बंद हो गया और दोनों में मित्रता हो गई|” 1  यही नहीं यह मित्रता आगे बढ़ी और रिश्तेदारी में बदल में गई| राव मालदेव ने अपनी पुत्री हंसाबाई की सगाई राव रायमल के पौत्र लूणकर्ण के साथ कर दी|

इस तरह इस अमल की मनुहार ने दो सेनाओं को युद्ध में एक दूसरे का कत्लेआम करने से रोक दिया, गौड़ राजपूतों के राज्य मारोठ को तबाह होने से रोक दिया और दुश्मनों को आपसी रिश्तेदारी की मजबूत डोर से बाँध दिया|

सन्दर्भ :

जयपुर व अलवर का इतिहास – गहलोत, शेखावाटी प्रकास खंड-१

शेखावाटी प्रदेश का राजनैतिक इतिहास; रघुनाथसिंह कालीपहाड़ी

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