पिछले दिनों मेवाड़ के महाराणा प्रताप द्वारा अकबर पर विजय बताने वाली इतिहास की पुस्तक के प्रकाशन के बाद, एक खास विचारधारा के लेखकों व व्यक्तियों के बीच खलबली मच गई। वे सरकार पर इतिहास का भगवाकरण करने का आरोप लगाने लगे। इसका कारण था- ‘‘इस कथित विचारधारा के लेखकों ने आजतक सिर्फ हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा के पलायन को हार प्रचारित किया था।’’ जबकि हल्दीघाटी अकबर व महाराणा के मध्य शुरू हुए युद्ध का आरम्भ था, जिसमें अकबर की सेना महाराणा पर भारी पड़ी थी। पर इस युद्ध में ना तो महाराणा ने हार मानी, ना अकबर पूरे मेवाड़ पर कब्जा कर पाया। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि हल्दीघाटी का युद्ध निर्णायक नहीं, महज युद्ध की शुरुआत थी। महाराणा व मुगल सेना के मध्य आखिरी युद्ध तो दिवेर की धरती पर लड़ा गया और उस युद्ध में महाराणा ने विजय हासिल की।
1576 में हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा ने 1582 में रक्षात्मक युद्ध छोड़ आक्रामक युद्ध रणनीति अपनाई। दशहरे के पावन पर्व पर मुगल सेना पर आक्रमण की तैयारी की। कुम्भलगढ़ से 40 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में सामरिक व भौगोलिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण स्थान दिवेर का चयन किया गया। दिवेर में अपनी सेना को सुसंगठित कर महाराणा ने मुगल थानों पर दशहरे के दिन जबरदस्त हमला किया। थानों की सुरक्षा के लिए उस वक्त क्षेत्र में मौजूद अकबर का काका सेरिमा सुल्तान खां ने मुगल सेना की सभी टुकड़ियों को दिवेर में एकत्रित कर, महाराणा का मुकाबला किया। सुल्तान खां स्वयं हाथी पर सवार हो सेना का नेतृत्व कर रहा था। महाराणा के एक प्रतिहार सैनिक सोलंकी ने उसके हाथी पाँव काट दिए, तब सुलतान खां घोड़े पर सवार होकर यद्ध करने लगा। इसी बीच सुल्तान खां का सामना महाराणा के पुत्र कुंवर अमरसिंह से हो गया। अमरकाव्य के अनुसार अमरसिंह ने अप्रतिम शौर्य का प्रदर्शन करते हुए भाले का ऐसा वार किया कि एक ही वार में सुलतान खां एवं उसका घोड़ा मारा गया। यहाँ तक कि सुल्तान खां के टोप व बख्तर भी दो फाड़ हो गए।
सुल्तान खां की युद्ध में मृत्यु के बाद मुगल सेना में हड़कंप व भगदड़ी मच गई और वह रणक्षेत्र छोड़ भाग खड़ी हुई। महाराणा की सेना ने मुगल सेना का पीछा कर उसे आमेट तक खदेड़ डाला। उसके बाद एक एक कर कुछ अपवादों को छोड़ महाराणा ने अपने निधन से पहले, लगभग सारे मेवाड़ से मुगलों को खदेड़ दिया और मेवाड़ का आजाद करा दिया। इस तरह अकबर के साथ चले संघर्ष में आखिरी युद्ध में महाराणा ने जीत हासिल की और मेवाड़ को अपने अधिकार में ले लिया। कर्नल जेम्स टॉड ने दिवेर युद्ध के परिणमों को देखते हुए इस युद्ध को ‘‘मेराथन’’ युद्ध की संज्ञा दी है।
अब आप खुद तय कर सकते है कि अकबर-महाराणा संघर्ष में आखिरी जीत किसकी हुई और महाराणा की जीत का इतिहास लिखने वाले इतिहासकार ने कौनसी गलत बात लिख दी, जिस पर सेकुलर गैंग ने हायतौबा मचाई थी।