भारत की वीरांगनाओं की हर युग में हसरत रही है कि उनका प्रणय किसी वीर पुरुष के साथ हो। भारतीय इतिहास में ऐसे उदाहरण भरे पड़े है, जब किसी वीरांगना ने किसी वीर की वीर गाथा सुन, मन में उसी को पति मान प्रणय का प्रस्ताव भेजा हो। भारत के मध्यकालीन इतिहास पर ही नजर डाली जाये तो ऐसे कई उदाहरण पढने को मिल जायेंगे।
खासकर असाधारण वीर पुरुषों के साथ विवाह करने हेतु राजपूत स्त्रियों के हठ पकड़ने के कई प्रकरण राजस्थान के अनेक वीर पुरुषों के सबंध में प्रचलित है, जिनमें राजस्थान के लोक देवता गौ-रक्षक पाबूजी राठौड़, सादाजी भाटी और जालौर के इतिहास प्रसिद्ध वीर वीरमदेव सोनगरा, शेखावाटी और शेखावत वंश के प्रवर्तक राव शेखा आदि वीरों के नाम प्रमुख है। वीरमदेव सोनगरा के साथ तो विवाह करने का हठ अल्लाउद्दीन खिलजी की पुत्री ने किया था और उसका प्रणय निवेदन स्वीकार नहीं करने पर अल्लाउद्दीन खिलजी ने जालौर दुर्ग को वर्षों घेरे रखा। इस युद्ध में वीरमदेव सोनगरा को अपने राज्य के साथ प्राण भी गंवाने पड़े थे।
इतिहासकारों के अनुसार- चोबारा के चौहान शासक स्योब्रह्म जी की राजकुमारी गंगकँवर ने राव शेखाजी की वीरता और कीर्ति पर मुग्ध होकर मन ही मन प्रण कर लिया कि वो विवाह करेगी तो सिर्फ शेखाजी के साथ ही। गंगकँवर ने मन ही मन वीरवर राव शेखाजी को अपना पति मान लिया। किन्तु उसके पिता को अपनी पुत्री का यह हठ स्वीकार नहीं था। कारण उस समय तक शेखाजी के चार विवाह हो चुके थे और उनकी रानियों से शेखाजी को कई संताने भी थी। जिनमे उनके ज्येष्ठ पुत्र दुर्गाजी उनके राज्य अमरसर के उतराधिकारी के तौर पर युवराज के रूप में मौजूद थे। और स्योब्रह्मजी अपनी पुत्री का विवाह ऐसे किसी राजा से करना चाहते थे जिसके पहले कोई संतान ना हो और उन्हीं की पुत्री के गर्भ से उत्पन्न पुत्र उस राज्य का उतराधिकारी बने।
चौहान राजकुमारी के हठ व उनके पिता के असमंजस के समाचार जब कुंवर दुर्गाजी ने सुने, तो वे चोबारा जाकर राव स्योब्रह््म जी से मिले और राजकुमारी की इच्छा को देखते हुए उसका विवाह अपने पिता के साथ करने का अनुरोध किया। साथ ही चौहान सामंत के सामने यह प्रतिज्ञा की कि- इस चौहान राजकुमारी के गर्भ से शेखाजी का जो पुत्र होगा उसके लिए वे राज्य गद्दी का अपना हक त्याग देंगे और आजीवन उसकी सुरक्षा व सेवा में रहेंगे।
दुर्गाजी के इस असाधारण त्याग के परिणामस्वरूप महाराव शेखाजी का चौहान राजकुमारी गंगकँवर के साथ विवाह संपन्न हुआ और उसी चौहान राणी के गर्भ से उत्पन्न शेखाजी के सबसे छोटे पुत्र रायमलजी का जन्म हुआ, जो शेखाजी की मृत्यु के बाद अमरसर राज्य के स्वामी बने।
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