क्रांतिवीर मोड़सिंह चौहान

Gyan Darpan
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अगस्त 1942 के एक दिन अहमदाबाद में चारों ओर अग्रेजों भारत छोड़ो के नारे लग रहे थे, नन्हें मुन्नें बालक भी ट्राफिक सिग्नल की ओर पत्थर फैंक रहे थे| तभी वहां आईबारा नाम के एक पुलिस निरीक्षक के नेतृत्व में पुलिस आई और सीधे भीड़ पर गोली चला दी| पुलिस गोली से साईकिल सवार एक युवक उमाकान्त की मृत्यु हो गई| आईबारा ने उस युवक के शव की ओर इशारा करते हुए कहा- “इस कुत्ते को उठाकर ले जाओ|” पास ही खड़ा एक क्षत्रिय युवक मोड़सिंह चौहान यह सारा दृश्य देख रहा था| पुलिस निरीक्षक का अहंकार देख उसका क्षत्रिय खून उबल पड़ा और उसने उसी वक्त अंत:प्रेरित होकर अंग्रेजों के खिलाफ चल रही क्रांति में कूद पड़ने का निर्णय लिया|

मोड़सिंह चौहान मेवाड़ के एक छोटे से गांव कांकरवा का निवासी था| बाल्यावस्था में ही उसके माता-पिता का देहांत हो गया था| अनाथ बालक मोड़सिंह आर्थिक तंगी के चलते शिक्षा ग्रहण नहीं कर सका और सन 1938 में वह मात्र सौलह वर्ष की आयु में अहमदाबाद रोजगार के लिए चला आया| अहमदाबाद में रोजगार के दौरान ही मोड़सिंह चौहान बसंतराव आगीस्टे के सम्पर्क में आया| कट्टर राष्ट्रवादी देशभक्त आगीस्टे अहमदाबाद में दौलतखाना और बदर (भद्र) के पीछे एक अखाड़ा चलाता था, जहाँ वह युवाओं को हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी देता था| मोड़सिंह भी अखाड़े जाना लगा, जहाँ उसके मन में राष्ट्रवादी विचारों का उद्भव हुआ| सन 1942 में अहमदाबाद के एक साम्प्रदायिक दंगे में मोड़सिंह ने एक दिन कुछ दंगाइयों द्वारा खाड़िया चौराहे के पास लड़कियों को छेड़ते देखा तो उसका खून खौल उठा और वह अपने साथ मारवाड़ के अर्जुनसिंह के साथ दंगाइयों से भीड़ गया और दोनों क्षत्रिय युवाओं ने उन दंगाई गुंडों के हाथों से लाठियां छीनकर उन्हें पीटते हुए खदेड़ दिया| उसके थोड़े दिन बाद खाड़िया चौराहे पर फिर दंगा भड़का और मोड़सिंह चौहान की फिर दंगाइयों से भिडन्त हो गई| इस भिडन्त में दंगाई गुण्डे दुकानों को जलाने लाये पैट्रोल के टिन छोड़कर भाग हुये| इन दोनों घटनाओं ने मोड़सिंह का हौसला और बढ़ गया और वह उमाकान्त की पुलिस द्वारा हत्या के विरोध में बसन्तराव आगीस्टे के निर्देश में जनता कर्फ्यू लागू करने वाली टोलियों में शामिल हो गया|

मोड़सिंह की राष्ट्रवादी गतिविधियों को देखते हुए उसके नियोक्ता नटवरलाल शिवशंकर भट्ट ने भी उसका पूरा समर्थन किया| जनता कर्फ्यू के दौरान मोड़सिंह ने 17-18 जाबांज युवाओं के साथ एक क्रांतिदल बना लिया, जिसका कोई नेता नहीं था| इस दल सदस्यों ने मोड़सिंह की सहायता से बोम्बे टाइल्स के कारखाने में एक बम बना लिया| मोड़सिंह इसी कारखाने में काम करता था| फास्फोरस के प्रयोग से बने इस बम के द्वारा विक्टोरिया गार्डन में स्थित विक्टोरिया की मूर्ति को उड़ाना था| मोड़सिंह ने सुरक्षा कर्मियों से बचते हुए मूर्ति के पास बम रख दिया और छुपकर उसके फटने का इंतजार करने लगा| बम के नहीं फटने पर उसे देखने गया तब पहरेदार की खाट से टकराने के बाद वह घिर गया और बचने के लिए सतर-अस्सी फिट ऊँचे से नदी में कूद गया| नदी में कूदने से उसके पांव में गंभीर चोट आई फिर भी वह कैसे तैसे कर बटवा पहुंचा और लोकल ट्रेन पकड़कर कालूपुर जा पहुंचा| उसके द्वारा लगाये बम में विस्फोट हुआ पर मूर्ति की सिर्फ छतरी ही उड़ सकी|

8 नवम्बर 1942 को मोड़सिंह ने बड़ोदा रेल्वे के खाली कम्पार्टमेंट व एक सिनेमाघर में बम रखा, पर संयोग से दोनों ही बम फटे नहीं और पुलिस द्वारा जिन्दा बम बरामद कर लिए गए| अगस्त क्रांति के दौरान हड़ताल की वजह से अहमदाबाद के कारखाने बंद थे, जो तीन माह बाद पुन: चलने लगे, जो मोड़’सिंह व साथियों को फूटी आँख भी नहीं सुहाते थे| अत: इन कारखानों को बंद करने के लिए इनकी बिजली आपूर्ति बाधित करने का निर्णय लिया गया और बिजली आपूर्ति के सातों केन्द्रों को एक साथ बम से उड़ा देने की योजना बनी| इन केन्द्रों में तीन चौथाई बिजली आपूर्ति करने केंद्र ईदगाह को उड़ाने का जिम्मा बम बनाने वाले बी.ड़ी. आचार्य और मोड़सिंह ने ली और योजनानुसार सातों केन्द्रों पर एक साथ बम लगा दिए गए| रात के आठ बजे के आस-पास जब सातों केन्द्रों में एक साथ बम धमाके हुए तो समूचा अहमदाबाद नगर अँधेरे के गर्त में डूब गया| प्रशासन भी सातों केन्द्रों के एक साथ उड़ा देने को लेकर हतप्रद था| इस बीच 25 दिसंबर को मिलों में तोड़फोड़ की योजना बनाई गई| पर बीच में ही दल के सदस्य मनहरलाल जेठाभाई रावल को गिरफ्तार कर लिया गया, जिन्होंने पुलिस सख्ती में सभी सदस्यों के नाम उगल दिए| परिणामस्वरूप सभी सदस्य पकड़े गए| मनहरलाल जेठाभाई रावल सुल्तानी गवाह बन गये|

25 दिसंबर को ही मोड़सिंह चौहान को भी गिरफ्तार कर साबरमती जेल की आठ नंबर की काल कोठरी में रखा गया| इन सब के खिलाफ राजद्रोह और षड्यंत्र, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, भारतीय सुरक्षा नियम 35 के अंतर्गत सेशन जज डी.सी.व्यास की अदालत में चालान पेश किया गया| इस पर 82/1943 नंबर पर मुकदमा कायम हुआ और चौदह माह सुनवाई के बाद कोई स्वतंत्र गवाह नहीं होने के कारण सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया गया| मुकदमे से बरी होने के बाद इस दल ने अंग्रेज सत्ता के खिलाफ पुन: शंखनाद किया| बम बनाने के लिए गुजरात से बारूद खरीदना खतरे में समझकर मोड़सिंह ने मेवाड़ से बारूद लाने की योजना बनी| इस योजना के तहत मोड़सिंह ने भींडर से आठ मण बारूद खरीदी और अपने साथी गोविन्द के साथ रेल द्वारा अहमदाबाद के लिए रवाना हुआ, लेकिन दुर्भाग्य से मारवाड़ जंक्शन पर पुलिस द्वारा पकड़े गए| गोविन्द उस समय भाग निकला और मोड़सिंह चौहान गिरफ्तार कर सोजत थाने के हवाले कर दिया गया| न्यायालय के समक्ष मोड़सिंह ने दलील दी कि वह तो मात्र कुली था, बरामद माल का असली मालिक तो भाग गया| उसकी यह दलील प्रभावी सिद्ध हुई और 17 माह की पुलिस हिरासत के बाद मोड़सिंह चौहान इस मुकदमे से बरी हुआ|

कांकरवा गांव का “मोड़सिंह चौहान राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय” आज भी उस क्रांतिवीर मोड़सिंह चौहान की याद दिलाता रहता है|

संदर्भ: सभी तथ्य पूर्व कांग्रेस विधायक मनोहर कोठारी द्वारा लिखित और राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक “भारत के स्वातंत्र्य संग्राम में राजस्थान” से लिए गए है|, Freedom Fighter Modsingh Chauhan, MOD SINGH CHOUHAN HIGH SECONDARY SCHOOL KANKARWA, Krantiveer Modsingh Chauhan history in Hindi, Swatantrta Senani Krantiveer Modsingh Chauhan of Kankarwa Stroy in Hindi

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