भाट की व्यंग्य रचना सुन जब दो ठकुरानियाँ सती हुई

Gyan Darpan
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राजपूत शासनकाल में निरंतर चलने वाले युद्धों में अपने वीर पति के साथ सती होना राजपूत महिलाएं अपना गौरव समझती थी| हालाँकि राजपूत जाति में मृत पति के साथ महिला को सती होना आवश्यक कभी नहीं रहा| बल्कि ऐसे कई अवसर भी आते थे जब सती होने जा रही महिला को समाज के लोग सती होने से रोक दिया करते थे| इतिहास में ऐसे कई राजा-महाराजाओं के निधन के बाद उनकी विधवा रानियों द्वारा राजकुमार के नाबालिग होने की दशा में राजकार्य संभालने के उदाहरण भरे पड़े है| जो यह साबित करने में पर्याप्त है कि राजपूत समाज में सती होना अनिवार्य कतई नहीं था, यह सती होने वाली महिला की इच्छा पर निर्भर था| फिर भी उस काल यह प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था कि किस के साथ कितनी स्त्रियाँ सती हुई|

पौष शुक्ला 11 वि. सं. 1600 में शेरशाह सूरी की विशाल सेना का सुमेलगिरी के मैदान में मारवाड़ की छोटी सी सेना ने राव कूंपा और जैता के नेतृत्व में मुकाबला किया| इस युद्ध में मारवाड़ के लगभग सभी सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए| राव जैता और राव कूंपा के साथ पाली के चौहान शासक अखैराज सोनगरा ने अपने 11 सोनगरा चौहान वीर साथियों के साथ इस युद्ध में प्राणोत्सर्ग किया| ऐसी लोकमान्यता है कि अखैराज सोनगरा के वीरगति प्राप्त होने के बाद उनकी दोनों ठकुरानियों में से एक भी उनके साथ सती नहीं हुई|
इस घटना के कोई छ: माह बाद एक भाट पाली आया| जब उसे पता चला कि अखैराज सोनगरा के साथ एक भी ठकुरानी सती नहीं हुई तब उसे बड़ा आश्चर्य हुआ| चूँकि मध्यकालीन भाट परम्परागत रीति-रिवाजों का चाहे वे अच्छे हों या ख़राब, पालन कराने के लिए तीखे व्यंग्य कसते थे और उसका तत्कालीन समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता था| अत: अखैराज सोनगरा के साथ उनकी ठकुरानियों के सती नहीं होने पर भाट में व्यंग्य रचना की और बातों ही बातों में यह दोहा सती नहीं होने वाली ठकुरानियों तक पहुंचा दिया-
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जैता तो कूंपे रे जीमै, पाळे है गोत पखो|
सायधण बिन दोरो, सोनिगरो हाथे रोटी करे अखो||


अर्थात् जैता जी तो कुंपा जी के यहां जीमते (भोजन करते) हैं दोनों एक ही गोत्र के हैं सो अपने गोत्र के पक्ष को पालते हैं। किन्तु ये सोनगरा अखैराज बिना पत्नी के (स्वर्ग में) अपने हाथों खाना बना कर खाता है।

भाट के इस दोहे का ठकुरानियों (पत्नियों) पर गहरा प्रभाव हुआ और उन्हें सत चढ़ गया और वे सती हो गई|
उस काल में भाटों, चारणों आदि के व्यंग्य दोहों, सौरठों, रचनाओं का समाज पर पड़ने वाले असर का यह जवलंत उदाहरण है|

सन्दर्भ : इस घटना के सभी तथ्य डा. हुकमसिंह भाटी द्वारा लिखित पुस्तक "सोनगरा- संचोरा चौहानों का वृहद् इतिहास" के पृष्ठ संख्या 146, 47 से लिए गए है|

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