राव मालदेव राठौड़,

Gyan Darpan
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Rao Maldev Rathore, Jodhpur History in Hindi, Rao Maldeo Rathore of Jodhpur (Marwar) History

मालदेव से मुँह की खाकर शेरशाह था घबराया।
जब-जब कुचला गया धर्म तब हमने ही फुफकारा हो।|

राव मालदेव जोधपुर के शासक राव गाँगा राठौड़ के पुत्र थे। इनका जन्म वि.सं. 1568 पोष बदि 1 को (ई.स. 1511 दिसम्बर ५) हुआ था। पिता की मृत्यु के पश्चात् वि.सं. 1588 (ई.स. 1531) में सोजत में मारवाड़ की गद्दी पर बैठे। उस समय इनका शासन केवल सोजत और जोधपुर के परगनों पर ही था। जैतारण, पोकरण, फलौदी, बाड़मेर, कोटड़ा, खेड़, महेवा, सिवाणा, मेड़ता आदि के सरदार आवश्कतानुसार जोधपुर नरेश को केवल सैनिक सहायता दिया करते थे। परन्तु अन्य सब प्रकार से वे अपने-अपने अधिकृत प्रदेशों के स्वतन्त्र शासक थे।
मारवाड़ के इतिहास में राव मालदेव का राज्यकाल मारवाड़ का "शौर्य युग" कहलाता है। राव मालदेव अपने युग का महान् योद्धा, महान् विजेता और विशाल साम्राज्य का स्वामी था। उसने अपने बाहुबल से एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया। मालदेव ने सिवाणा जैतमालोत राठौड़ों से, चौहटन, पारकर और खाबड़ परमारों से, रायपुर और भाद्राजूण सीधलों से, जालौर बिहारी पठानों से, मालानी महेचों से, मेड़ता वीरमदेव से, नागौर, सॉभर, डीडवाना मुसलमानों से, अजमेर साँचोर चौहाणों से छीन कर जोधपुर-मारवाड़ राज्य में मिलाया। इस प्रकार राव मालदेव ने वि.सं. 1600 तक अपने साम्राज्य का अत्यधिक विस्तार कर लिया। उत्तर में बीकानेर व हिसार, पूर्व में बयाना व धौलपुर तक, दक्षिण में चित्तौड़ एवं दक्षिण-पश्चिम में राघनपुर व खाबड़ तक उसकी राज्य सीमा पहुँच गई थी। पश्चिम में भाटियों के प्रदेश (जैसलमेर) को उसकी सीमाएँ छू रही थी। इतना विशाल साम्राज्य न तो राव मालदेव से पूर्व और न ही उसके बाद ही किसी राजपूत शासक ने स्थापित किया।

राव मालदेव वीर थे लेकिन वे जिद्दी भी थे। ज्यादातर क्षेत्र इन्होंने अपने ही सामन्तों से छीना था। वि.सं. 1591 (ई.स. 1535) में मेड़ता पर आक्रमण कर मेड़ता राव वीरमदेव से छीन लिया। उस समय अजमेर पर राव वीरमदेव का अधिकार था, वहाँ भी राव मालदेव ने अधिकार कर लिया। वीरमदेव इधर-उधर भटकने के बाद दिल्ली शेरशाह सूरी के पास चला गया। वि.सं. 1568 (ई.स. 1542) में राव मालदेव ने बीकानेर पर हमला किया। युद्ध में राव जैतसी बीकानेर काम आए। बीकानेर पूर मालदेव का अधिकार हो गया। राव जैतसी का पुत्र कल्याणमल और भीम भी दिल्ली शेरशाह के पास चले गए। राव वीरमदेव और भीम दोनों मिलकर शेरशाह को मालदेव के विरुद्ध भड़काने लगे।

चौसा के युद्ध में हुमायू शेरशाह से परास्त हो गया था, तब वह मारवाड़ में भी कुछ समय रहा था। वीरमदेव और राव कल्याणमल अपना खोया हुआ राज्य प्राप्त करने की आशा से शेरशाह से सहायता प्राप्त करने का अनुरोध करने लगे। इस प्रकार अपने स्वजातीय बन्धुओं के राज्य छीन कर राव मालदेव ने अपने पतन के बीज बोये। वीरम व कल्याणमल के उकसाने पर शेरशाह सूरी अपनी 80000 सैनिकों की एक विशाल सेना के साथ मालदेव पर आक्रमण केरने चला। मालदेव महान् विजेता था परन्तु उसमें कूटनीतिक छल-बल और ऐतिहासिक दूर दृष्टि का अभाव था। शेरशाह में कूटनीतिक छल-बल और सामरिक कौशल अधिक था।

दोनों सेनाओं ने सुमेल-गिररी (पाली) में आमने-सामने पड़ाव डाला। राव मालदेव भी अपनी विशाल सेना के साथ था। राजपूतों के शौर्य की गाथाओं से और अपने सम्मुख मालदेव का विशाल सैन्य समूह देखकर शेरशाह ने भयभीत होकर लौटने का निश्चय किया। रोजाना दोनों सेनाओं में छुट-पुट लड़ाई होती, जिसमें शत्रुओं का नुकसान अधिक होता। इसी समय मेड़ता के वीरमदेव ने छलकपट की नीति अपनाई। मालदेव के सरदारों में फिरोज शाही मोहरें भिजवाई और नई ढालों के अन्दर शेरशाह के फरमानों को सिलवा दिया था। उनमें लिखा था कि सरदार राव मालदेव को बन्दी बनाकर शेरशाह को सौंपे देंगे। ये जाली पत्र चालाकी से राव मालदेव के पास पहुँचा दिए थे। इससे राव मालदेव को अपने सरदारों पर सन्देह हो गया। यद्यपि सरदारों ने हर तरह से अपने स्वामी की शंका का समाधान कूरने की चेष्टा की, तथापि उनका सन्देह निवृत्त न हो सका और वह रात्रि में युद्ध शिविर से वापस लौट गया। मारवाड़ की सेना बिखर गई। यह देख जैता, कूम्पा आदि सरदारों ने पीछे हटने से इन्कार कर दिया। यह देख जैता, कूम्पा ने रात्रि में अपने 12000 सवारों के साथ समर के लिए प्रयाण किया। अन्धकार की वजह से बहुत से सैनिक रास्ता भटक गए। सुबह जल्दी ही शेरशाह की सेना पर अचानक धावा बोल दिया, उस समय इनके साथ केवल 6000 सैनिक ही थे। सारे-के-सारे राजपूत अपने देश और मान की रक्षा के लिए सम्मुख रण से जूझकर कर मर मिटे। इस युद्ध में राठौड़ जैता, कूम्पा पंचायण करमसोत, सोनगरा अखैराज आदि मारवाड़ के प्रमुख वीर काम आएो युद्ध में विजय शेरशाह की हुई। जब यह संवाद शेरशाह को मिला तो उसने कहा “खुदा का शुक्र है कि किसी तरह फतह हासिल हो गई, वरना मैंने एक मुट्टी बाजरे के लिए हिन्दुस्तान की बादशाहत ही खो दी होती।’ यह रक्तरंजित युद्ध वि.सं.1600 पोष सुद 11 (ई.स. 1544 जनवरी 5) को समाप्त हुआ।

शेरशाह का जोधपुर पर शासन हो गया। राव मालदेव पीपलोद (सिवाणा) के पहाड़ों में चला गया। शेरशाह सूरी की मृत्यु हो जाने के कारण राव मालदेव ने वि.सं. 1603 (ई.स. 1546) में जोधपुर पर दुबारा अधिकार कर लिया। धीरे-धीरे पुनः मारवाड़ के क्षेत्रों को दुबारा जीत लिया गया। राव जयमल से दुबारा मेडता छीन लिया था । वि.सं. 1619 कार्तिक सुदि 12 (ई.स. 1562 नवम्बर 7) को राव मालदेव का स्वर्गवास हुआ। इन्होंने अपने राज्यकाल में कुल 52 युद्ध किए। एक समय इनका छोटे बड़े 58 परगनों पर अधिकार रहा| फारसी इतिहास लेखकों ने राव मालदेव को 'हिन्दुस्तान का सर्वाधिक समर्थ राजा' कहा है।

लेखक : छाजू सिंह

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1टिप्पणियाँ


  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-03-2016) को "दूर से निशाना" (चर्चा अंक-2272) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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