राजा पुलकेशिन

Gyan Darpan
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पुलकेशी हित हर्ष चले थे, सबका हर्ष जगेगा रे।
संघ ने शंख बजाया भैया सत्यजयी अब होगा रे॥

Raja Pulkeshin II, राजा पुलकेशिन द्वितीय वातापी (बादामी) के शासक थे। यह चातुक्य (सोलंकी) वंश से थे। अपने चाचा मंगलीश के मारे जाने पर वि.सं. ६६७ (ई.स. ६१०) में वातापी के राजा बने। सोलंकी वंश में इसके समान प्रतापी दूसरा कोई राजा नहीं हुआ। इसके समय में भारत में दो ही प्रबल राजा थे। एक नर्मदा के उत्तर में हर्षवर्धन और दक्षिण में पुलकेशिन द्वितीय। पुलकेशिन ने दक्षिण भारत को राजनैतिक एकता के सूत्र में एकीकृत करने का प्रयास किया। पुलकेशिन बड़े प्रतापी वीर राजा हुए। पुलकेशिन ने अनेकों रणवेत्ता राजाओं को हराकर दक्षिण सम्राट की उपाधि धारण की।

राजगद्दी पर बैठते ही सबसे पहले विद्रोही सामन्तों का दमन किया। राज्य में सुव्यवस्था हो जाने के पश्चात् पडोसी राज्यों को विजय करने लगे। सबसे पहले मैसूर के गंग वंशी राजा को परास्त कर उससे मैत्री कर अपना सहायक बनाया। मालाबार के नागवंशी राजा को अधीन किया। कोंकण के मौर्य राजा को अपनी प्रचण्ड सैन्य से परास्त किया। यहाँ की राजधानी पुरी पर अधिकार किया। धीरे धीरे करके दक्षिण भारत के राज्यों को जीत कर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना का प्रयास करने लगे। विजित राजाओं को सहायक बना कर, उनके सहयोग से आक्रमण करते रहे। लाट (भड़ौंच), मालवा और गुर्जर (गुजरात) के राजाओं ने भयभीत होकर पुलकेशिन की अधीनता स्वीकार कर ली। उसने कदम्बू की राजधानी पर आक्रमण कर अपना अधिकार कर लिया। दक्षिण कोसल (उड़ीसा), कलिंग देश के राजा उसके सैन्य को देखकर भयभीत हो गए। उन्होंने अधीनता स्वीकार कर ली। उसने पिष्ठपुर (मद्रास) के राजा को हराया और अपने भाई विष्णु वर्द्धन को यहाँ का राजा बनाया।

उत्तर भारत का सम्राट हर्षवर्धन अपने राज्य का विस्तार दक्षिण भारत में भी करना चाहते थे। अत: वह एक विशाल सेना लेकर दक्षिण विजय के लिए चले। दोनों के मध्य नर्मदा नहीं के तट पर युद्ध हुआ। यह युद्ध वि.सं. ६६९ (ई.स. ६१२) में हुआ था। इस युद्ध में हर्ष को पराजित कर ख्याति अर्जित की। हर्ष की हस्ति सैन्य का संहार किया। इस युद्ध के परिणाम स्वरूप हर्ष दक्षिण में आगे नहीं बढ़ सका। सम्राट हर्ष को परास्त करने पर पुलकेशिन ने परमेश्वर विरुद धारण किया।
दक्षिण के चोल, पाण्ड्या और केरल के राजा पर आक्रमण किया और उन्हें अपने अधीन किया। इसी समय पल्लव वंश का प्रतापी राजा महेन्द्र वर्मन (कांची), पुलकेशिन का प्रबल प्रतिद्वन्दी था। उसका राज्य दक्षिण में कृष्णा नदी तक फैला था। दोनों में युद्ध हुआ। पुलकेशिन ने पल्लव राज्य के कुछ हिस्सों पर अधिकार कर लिया। महेन्द्र वर्मन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र नरसिंह वर्मन राजा बना। उसने चोल, पाण्ड्या और केरल के राजाओं से मैत्री कर ली पुलकेशिन ने दुबारा पल्लवों पर आक्रमण किया। अन्त में वह वीरतापूर्वक युद्ध करता हुआ रणखेत रहा। पुलकेशिन ने हर्ष को विजय करने के बाद भारत में बड़ी प्रसिद्धि पाई। उसकी मैत्री विदेशी राजाओं से भी थी। यह राजा विद्यानुरागी भी था। इसके राज्य में बहुत से शिक्षा के केन्द्र थे। राजा स्वयं सनातन धर्मी थे लेकिन दूसरे धर्मों का आदर करते थे। इनके राज्य में बहुत से संघाराम (बौद्ध विहार) और हिन्दू देव मन्दिर थे। चालुक्य राजाओं ने धर्म, कला और साहित्य की उन्नति में गहरी रुचि ली और प्रोत्साहन दिया। पुलकेशिन शिव के परम भक्त थे। उन्होंने अपने राज्य में सुन्दर-सुन्दर देव मन्दिर बनवाए। पुलकेशिन राजा कीर्तिवर्मन के पुत्र थे।
लेखक : छाजूसिंह, बड़नगर

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