गुमेज गाथा बिजा देवड़ा री

Gyan Darpan
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ठाकुर सौभाग्य सिंह जी शेखावत की कलम से.........
आडाबळा रा उर में आबाद आबूजी री छायां में बसियोड़ौ सिरोही सहर जिण माथै प्रक्रतीदेवी री घणी महर। बनस्पतियां री बणी जांणै इन्दर राजा रा तंबू री इज तणियोड़ी तणी। बीजी ठौड़ा नीं चढ़ै जोड़ इणी। अैड़ी सिरोही री धरा माथै देवड़ा रौ राज। देवड़ा चुहाणां री चौईस साखावों में गिणीजै। देवड़ा साख रौ निकास सोनगिरा साखा सूं भणीजै। महणसी सेनिगरा रै देवौ नांव सुत हुवौ। देवा रा जाया जनमिया देवड़ा कहीजिया। देवड़ा में सैंसमल देवड़ौ वडौ टणकैल हुवौ। आबू रा धणी पंवारां नै पांणी पाय अर ठौड़ ठिकाणै लगाय सैंसमल आबू री धरती खाटी। उण बखत सिंधौ पंवार आबू रौ धणी जिक नै सैंसमल बारैसै सोळारी साल जीत अर उण रै इज नांव माथै सिरोही री रांग भराई अर देवड़ री नुंवी राजधानी री थरपना कराई। सिरोही रा स्याम देवड़ा रहणी-कहणी रा मांटी हुवा। देस री सुतंतरता खातर घणां धळ-धौंकल किया। घणां खळखेटां में जूझिया। लोह रटाका लिया। वीरारस रा प्याला पिया। मारवाड़, मेवाड़ नै गुजरात री गड़ासंध नै कांकड़ सीमाड़ा रा रैवासी देवड़ा आपरी मातभौम रा सांचा रुखाळा। कुळ करत रा ऊजाळा। मरदमी में मतवाळा। आया-गयां अतिथियां री आवभगत में बिलाला। बळहठ बंका, जिणांरी मैमालूदारी री मैहमा रा सगळी ठौड़ा बाजिया जस डंका। कीेरत कामणी रा अैड़ा कंत कै आपरी आजादी रै तांई आरण रै अखाड़े घणां दिया अंत।

सिरोही रा सायब देवड़ां रै समहर नै ससतर सनेह रौ इज कारण है कै आखी राजस्थान में सिरोही री समसेर अर सिरोही री कटार ससतर-असतरा में सिरै गिणीजै। तरवार रा परयाय वाचक सबदां में सिरोही इण इज कारण चावौ भणीजै।

सिरोही रा सूरा पूरा समर सूरमावां में बिजौ देवड़ौ मोटौ मांटी गिणीजियौ जिक अनेक अखाड़ों में वैरिय सू कियौ कजियौ अर सूरमाई रौ सुजस खाटियौ। मुगल साइंसाह अकबरसाह रै समै में देवड़ौ बिजौ सिरोही रौ थाप-उथाप इज मनीजियौ।

सिरोही रौ खांविन्द राव मानसिंघ देवड़ौ आपरी अन्तवेळां में भरै दरबार बिजा नै तेड़ाय नैं कैयौ-सुरताण भाण रा नैं सिरोही रौ राव करावज्यौ। पण, सिरोही माथै राव मान रै पछै मेवाड़ रौ हिमायती राव कल्लौ मल्लोमल्ली आय धसियौ। जद बिजै देवडै कालिन्दरी में राव सुरताण सूं गाढ़मेळ सांध-बांध नै राव कल्ला पर धाया अर दोनूं ई ओड़ रा सूरमा कुंभळमेर कांनी चलाया। केई कायरां रा काळजा थरथराया। ना पगां रा पग घरां कांनी धकाया। सूर धीरां रा मन-मनोज आहव-अरुण रा उछाह में खिल्या नै कायर कापुरसां रा चित्त चिंता रा कर्दम कादा में कळ्या। इण विध धरती रै कागद भाला रै अचाकां री लेखण नै लाल स्याही में डबोय नै हक रौ हासल लेवणौ धामियौ। जंग रा जोधार। गनीमां रा ग्रब गंजणां। भद्रजाती गजां रा भ्रसुंडा भंजणां। जिरह बख्तरां री कड़ियां कस नै चालिया जांणै आठ इज दिसावां रा दिग्गज गाढ़ छोड़ नै हालिया। धरती चल-विचळ थई। सूरज री रोसनी गई। आकास में ग्रिझ पळचरां पंखां नै अपछरां रा रथां री छात छई। अैड़ो सौ रूपक दीठ में आयौ अर कालन्द्री रै रणखेत वीर बिजौ राव सुरताण रै पक्स चढियौ अर राव कल्ला री फौज पर चलायौ। पछै बिजौ नै कल्लौ अैड़ा जूटा कै मद आया दोय मैंगळ ठाणां सूं खूटा कै बाराह सूं बाराह टक्कर खाधी। लळवळती सूंडा रा लपेटा सिरोही री तरवारां रा झपेटां सुजड़ियां री चोटां। दांतळियार री दांतळी रा सा अचाका उठा। जांणै जोधार बिजा रै मन में धावड़ा रा धधकता सा अंगारा चींटा। पछै कल्ला री फौज नैं पराजै रौ पांणी पाय अर राव सुरताण री विजै रा दमामां घुराय बिजौ देवड़ौ सिरोही आयौ नै सुरताण नै रावाई रै पाट बैठायौ। बिजै देवड़े राव मानसिंघ नै दियोड़ौ बचन पालियौ अर राव कल्ला रै काळजै कटार रा साल सौ सालियौ। कालन्द्री री बिजै में बिजा रा जस प्रवाड़ा कवियणां घणां बखाणियां जिकां में राव कल्ला नै उण रै हिमायती मेवाड़ री हार रा आखर मांडिया। अठै उण गीतां मांय सूं एक गीत सुणाइजै नै मन में उछाह लाइजै-

बिलैपाल अड़प संसार बखांणै, केहरी भड़ां किमाड़।
मारे साथ तणौ मेवाड़ां, मांझी तूं भाळियौ मेवााड़।।
गाोडवाड़ चढ़तै गाहटियौ, गोड़विया भड़ वेणि गिनै।
मेवाड़ा बिजपाल मानियौ, मार सार संसार मनै।।
केहरी बीजा कटक कालंदरी, तैं छड़छिया चढ़ खगधार।
तैं आहड़ा नसइ पतगरियौ, अरि आवरत वड़ा असवाार।।
रे हरिराज तणा रढ़, रावत वंदिया रांणो रांण।
तैं दससहस तणा भांजै दळ, दीपियौ दससहसै दीवांण।।
अैड़ा हूंतलमल हरिराज रा जाया बिजा रै आगै मेवाड़ रा राणा उदैसिंघ अर राव कल्ला री फौज भागी अर पराजय री रजी उड कल्ला नै उदैसिंघ राणा रै मुख लागी-
विजौ बखांण बखांण, हूंतलमल हरिराज रौ।
जिण आवतां आवियौ, दीवाणै दीवांण।।
इण रीत कवि अंतमेळा दूहा में बखांणियौ जिकौ सगळै संसार रा जोधारां जाणियौ। पछै समैजोग री बात सौ राव सुरताण अर बिजा रै आपस में अैड़ी ऊधड़ी कै मानो खीर रा कड़ाव में कांजी पड़ी। दोनूवां में ठाढौ विरस हुवो, पण सिरोही री राजदुराजी रौ मुदौ मूंदड़ौ बिजा रै हाथ सौ बिजा रै बिना हलायां पान इज नों हालै। बिजौ दिन-दिन जोर चढ़तौ गयौ नै राव सुरताण घणौ इज बळ खादै पण पसवाड़ फेरण नीं पावै। बिजा नै छेड़ नै काळौ नाग कुण जगावै। सिरोही रा लोग राव सुरताण नै घणी इज कैयौ कै सिरोही रा धणी थे कै बिजौ। पण बीजा जैड़ी बलाय सूं साम्हा रोपै उण माथै मानौ जमराज इज कोपै। सांच कथी है कै वन में पंखेरुवां रा सैकड़ा ढूलरा चुगा चुगै पण बाज रा एक इज झपेटा में उणांरी स्वासा परलै लोक पूगै। उरमांवर तो अेक इज लाख नै आंगमै उण रै धकै चढियां सैनसरूप प्राण गुमै-

कांनी कायरड़ां थकां, कांसूं घणा जणांह।
हाकळियां ढूला हुदै, पंखी जांण घणांह।।
जिकौ बिजौ राव सुरताण री लाज री काज कालंदरी रै रणखेत जैत री दुंदुभी घुराई नै फतै री पताका फहराई। उणी इज बिजा अर राव सुरताण रै मन में पड़गी खटाई। आपस री मिटगी रसरसाई। पण बिजौ, लांघाबलाय सुरताण रौ नीं लागै उपाय। लटवा लबाळ लोगां सुवारथ री सवारी साज फांटौ तौ पटक दियौ पण लाभ किंणी रीत रौ नी लियौ। मतलबिया अैड़ी चाल मांडी अर बिजा सुरताण री अेकता कीनीं खांडी। कुंण सकस पूंछ दाबै नागणी बांडी। पछै छेवट हार मान नैं राव सुरताण बीकानेरिया राव राइसिंघ रौ पल्लौ झालि अर आधी सिरोही बादसाही खालसै घालि बिजा सूं पिण्ड छुडायौ। बादसाह आधी सिरोही राव सुरताण रै राखी अर आधी राणा उदैसिंघ रा बेटा राणावत जगमाल रै वतन में घाली। जद बिजौ चुप्पी झाली अर तरै भाव जोवण लागो। राणावत जगमाल राव मानसिंघ रो जंवाई। राणा प्रतापसिंघ रौ भाई राव सुरताण सूं पैली तौ राखी रसाई पण पछै आपरी बैरबानी देवड़ी रै सिखाये लाग राव सुरताण सूं अड़कसी ऊपाई। जगमाल दरगाह गयौ नै बादसाह अकबर नै सुरताण रै बरखिलाफ कैयौ। जद बादसाह राणावत जगमाल री भीड़ राव राइसिंघ चंदरसेणोत सोजत, कोळीसिंघ दांतीवाड़ा, राव गोपालदास आदि साही उमरावां मनसबदारां नै राव सुरताण पर मेलिया। राणावत जगमाल बिजा सूं भी हेत इकलास जताय डंडियौ मेलियौ। अर राब सुरताण सूं दताणी रै रणखेत खगाटां रौ खेल खेलियौ। जोगसंजोग री बात राहबेधी बिजौ तौ अंक दिन बीजी कांनी गयौ अर पाछै संू राव सुरताण मोकौ जोय नै साही सेना पर रातीबाहौ दियौ सौ भलौ सौ चकाबाहो हुयौ। साही सेनानायक राणावत जगमाल, राव राइसिंघ, कोळीसिंघ दांतीवाड़ा, राव गोपाळदास आद घणा उमराव काम आया। राव सुरताण जैत रा सैदाना बजाया। दत्ताणी रै खेत सुरताण जीतियौ पण बिजौ राव सुरताण रौ लागू बणियौ, सौ बणियौ इज रहियौ। पछै बादसाहजी राणावत जगमाल नै राव राइसिंघ रै बदलै सिरोही माथै मोटाराजा उदैसिंघ जोधपुर अर नबाब जामबेग नै भेजियौ पण राव सुरताण अडिग रैयौ। अठी नै साही फौज नै बीजौ भी कमती कद हुयौ सौ लड़ता भिड़तौ रह्यौ। बीजा री साथ इज बिजा रौ भाई लूणकरण भी जंग रौ रसियौ हुवौ। खाग अर त्याग दोनूं ओर जोर लूणकरण रौ रैयौ सिरोही में लूणकरण वडौ दातार बाजियौ। काळ दुकाळ अकाळ में मिनखां नै पोखिया-

कांसूं करिस दुकाळ, पड़सी तो भागिस पगां।
सुत हरराज सुगाळ, लूणै कियौ लूभाउवां।।

पछै बिजै रा संगळिया राव सुरताण रै आगै नाठा पण बिजै पग रोपै राखिया ठाढा। बिजा रै माथै सस्त्रां री चौकड़ियां पड़ी। कवचां री कड़ियां झड़ी फेर भी बिजा री लड़णै री हांम नीं पुरीजी। बाबहिया री स्वांत बूंद री भांत बिजा री जुध री प्यास लागी इज रैयी-
चौखंद्री चहुवांण रै बिजिया हरिराज रा।
बै भागा खुरसांण, तौ भुज छळ पतसाह रा।।
साही सेना रा नामी गरामी सिपैसालार मैदान छोड़ भागा पण वीरधीर बिजौ लोहलाट सौ अडिग रैयौ अर समर-ज्या में आपरा जीव री आहूत देय नै अमरापुर में वास कियौ। बिजा री रण पिपासा रौ बखांण कवीसरां इण भांत कियौ -
लोहां तणै मलोइ, बैठौ भड़ माथै बिजा।
त्रिखा न भागी तोइ, बळ तळ बाबहिया जहीं।।
भागज सत्र भागाह, दोमझ रढ़ दीवाण मा।
उवरसै आगाह, वलै न तेवड़सी विढ़ण।।
बिजमल हैर वराह, बिढ़तै जुत विरांमियौ ।
किर हंस पेटां मांह, अजै न आफरा ऊतरै।।

जामबेग रा भाई नैं रणांगण पौढ़ाय नै आप बिजपाल अपछरां सूं आंलिगण कर अचिंत नींद पौढ़ियौ। बिरोध रा बाण राव सुरताण नै बिजा रै बीच जिका बगलारा घालिया वै आखर बिजा रा प्राण लेय नै इज भरीजिया। वीरवर बिजा अर सुरताण रै समर री गुमेज गाथा एक वीर गीत में सुणीजै-
परां हुकम बीड़ो लियौ सगह पतसाह रै,
आवियौ विजौ नंदगिर उपरै।
पिड़ि चद्वै राव सुरताण सूं पाधरै,
हाकळै ओरिया बाज हरिराज रै।।
गाजि गुण बांण नीसांण सिरि गड़गडै,
चालि बेऊ कटक आविया चापड़ै।
धूणियै सेल झोके दिया धूधडै,
देवड़ा ऊपरै नांखिया देवडै।।
सोर भर गाजियौ ऊगतां सूर रै,
पोह खोटां खरा नींसरै पोत रौ ।
हांकती थाट खग झाट दूदाहरी,
पमंग पिड़िताळ जो माढियां पाधरौ।।
खैंग भांगां पछै मांझियां खड़खड़ै,
बिजड़ धड़ ऊकरड़ चाढ़तौ बेहड़ै।
पिसण सांगै जिसा आप आगळि पडै,
चालि जो बिजौ वैकूठ अणियां चडे।।
पछै बिजा रै लारै बिजा री जोड़ायत सत कियौ नै सुरग रौ वास लह्यौ। राव चंद्रसेन री सारधू जामतीदेवी झाळानळ में तन होमियौ। बिजौ जैड़ौ हड़ीप मांटी हुवौ अर विरोधियां रौ कच्चरघांण कर परलोक हुवौ।

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