भाखर भोपाळ- भाद्राजूण

Gyan Darpan
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राजस्थानी भाषा लेख श्रंखला में साहित्यकार, इतिहासकार श्री सौभाग्य सिंह जी शेखावत का राजस्थान के भाद्रजुन कस्बे पर लेख.......

मारवाड़ मेदनी री मरदांनी महिमा रा मोकळा मांडणां राजस्थानी भासा रै आखरां में मंडिया मिलै। इण सूं मारवाड़ नरां समंद कहावै अर वीरता री नोखचौख में बधतौ लखावै। मारवाड़ रै जालौर खण्ड में भादराजण Bhadrajun अेक प्रचण्ड ठौड़ जिकी पुरातनकाळ सूं इज गिणत में मौड़। दांत कथा में कहिजै है- कै पाण्डव अरजण जादव किसनजी री भगनी सुभद्रा रौ हरण कर जालोर खंड रै घूंबडा भाखर री ओट आयो अर अठै सुहागरात रौ जलसौ मनायौ। पछै सुभद्रा अर अरजण री याद में धूंबड़ा रौ नांव सुभद्राजणौ संजोग सूं भाद्राजण हुवौ। सु रौ लोप हुवण सूं भद्राजण -भादराजूण नांव रहियौ। इण रीत सुभद्राजण रौ अपभ्रट रूप भाद्राजूण। भाद्राजूण जुगादू जूनी नगरी गिणीजै। अरजण री बसाई आ नगरी भाखर री गोद में बसी समोद लखावै नै आप री डीघालता नै लांबी आरबळ रा कितरा इज अखाण बखांण सुणावै। भाद्राजूण कुण जांणै कितरा असवाड़ा पसवाड़ा फेरिया। कितरी बार पिण्ड पलटाया। पांच हजार बरस तौ अरजण रा समै रौ गिणीजै। इण समै में धूबड़ौ कितरा इज धळ-धौंकळ दीठा होसी, पण धूंबड़ा री आप बीती कुण जांणै ? जद सूं ख्यातां बातां में बखांणी तद सूं इज भाद्राजूण रा प्रवाड़ा गिणत में आंणै।


पैलां भाद्राजूण रै माथै सिंघल राठौड़ा री सायबी हुंती। सिंघल भाद्राजूण रा भूप भणीजता अर चौरासी रा खाविन्द कहिजता। पछै संवत पंदरासै छीयासी में मारवाड़ में राव मालदेव मोटौ मांटी हुवौ। राव मालदेव जोधपुरा रै अगल-बगल रा मेड़तौ, नागौर, बीकानेर, अजमेर, जालौर आद रै साथ-साथ भाद्राजूण रा धणी सिंधलां पर भ्रकुट तांणी अर घोड़ां री बागां उठांणी। भाद्राजूण रौ भरतार सिंधल वीरौ वीरभद्र रौ अवतार। राव मालदेव री सेना माथै समसेरा संभायी। काळिका नै रंगतरसूं धपाई । सिव नै नव मुंडमाळ धारण कराई। जोगण्या नै रणभौम में नचाई अर फेर मौत पायां पछै मालदेव री जीत होबा दिराई। वीरां रौ वीसलदे भी खांडा खड़काया पछै वीसल रै वत्स तेजसी भाद्राजूण री आस छोडी अर राव मालदेव आपरा बेटा रतनसी नै भाद्राजूण सौंपी तद भाद्राजूण सिंधला री आण लोपी जिकी वात इण भांत जाणी-

माल ब्रपत मुरधरा, महाराजां मुकटां मिण।
सुत जिणरै रतनेस, जैण पाई भाद्राजण।।
रतन पाट सादूळ प्रतपियौ वंस प्रभाकर।
सादूळा सुपह रै, तवां मुकनेस कळपतर।।
मुकन रै हुवौ जोधो मुदी, उदियाभाण ऊबंवरौ।
भाण रै बिहारीदास भड़, धजबंध हाथां ऊधरौ।।
थ्बहारी रै सुत, बाघ रै ऊदळ वाचां।
ऊदळ तणै ऊमेद अघट खग त्याग सुआचां।।
तिण ऊभेद है तखत जलौ दाता जग जाहर।
धजबंधी धुवड़ै निडर तपियौ नर नाहर।।
बखतेस जला रौ दीरवर, वडिम खाटै चहुंदळां।
कर गयौ कंमध नव कोट में, अेतां परिया ऊ जळां।।
रतनसी रै डाकर डकरेळ बराह रा भ्रातसा कै उगता अरक रै प्रभात सा सात बेटा हुवा जिक में सादूळ रा सुता रै भाद्राजूण आयी। सादूळ सांप्रत सारदूळ री भांत इज गनीम रूप गजां रा गटका करनै गोलोक गयौ अर भाद्राजूण रै पाट मुकंददास आसीन व्हियै। मुकंददास जोधपुर रै धणी सूरसिंध रै समै घणा खळ-खेटां किया। परायां रा प्राण लिया। अपरां नै जीवन दान दिया। मोटै राजा रा बेटा भगवानदास रै वैर मुकंददास दळपत बुंदेला पर कटक कियौ अर गोयंददास भगवानदासोत रै साथै बुन्देलखंड में जायनै दळपत नै मार नै उधारौ आंटौ लियौ। जिका री दादां साहां पातसाहां दिवी। पछै साहजादा खुर्रम री बगावत नै बारोठिया पणै रै समै में राजा गजसिंघ रै साथ बुरहाणपुर में खड़गां खड़काई अर विजै री माळ गळे में घलाई। उण वेळ मुकंददास पवंगा पर धराया पिलांण। कमरां पर बंधाया दोय-दोय केवाण। लखाया जोध जाण जमराण। हथेळी पर धरिया प्राण। रजवट रा रुखाळा। कुलघ्रम र उजाळा। कळह कमण रा कंत-सा, आहव में अभीता-सा कै भीम रा भतीज-सा कै त्रिपुरार रै नैण तीजा-सा नजर आया। मुकंददास भाद्राजूण नै देसां चावी कीनी अर उण रै पछै महाराजा अजीतसिंघ रै विखै में बिहारीदास मुकंददास रै पौतै पौरस जतायौ अर 1762 रै बरस नागौर रै राव मोहकम सिंध कहै बादसाही फौजां जालौर रै दुर्ग लागी। जद भाद्राजूण री भौम रौ भूप बिहारीदास आपरा भाईपा अर भीला नै साथै लेय नै जालौर माथै चलायौ। भीला री भालोड़ा रा भैसूं मैंचक नै मोहकमसिंध जाळौर सूं न्हाठ नै सादड़ी कांनी सिधायौ अर बिहारीदास इण भांत भाल माथै जस रौ टीकौ कढ़ायौ। बिहारीदास री वीरता अेक जूना गीत में पढ़ण में आयी जिकी री ओळियां अठै पढायी-

गीत
भुजे लाज पितारी धरारी भळवण,
प्रभत चित बधारी वडां पातां।
अफारी फौज जीपण जुड़ण अफारी,
बिहारी तुहारी खतम बातां।
सुतन उदैभाण सुभियााण थाटां सिणां,
अदब राव राण सुभियांण आखै।
आंण रहमांण जिम भाण रा ऊगमण,
भलोजी भलो दुनियाण भाखै।
जैतहथ समथ जिम सुरथ भाद्राजणां,
अनड़ अभमान अम्बर अड़ाया।
पार तरवार अहंकार मांटी पणां,
पिता जिम प्रवाड़ा अदब पाया|
धोम धकरुळ गैतूळ खळ धड़चणा,
पछट हाथां करण खड़ग पूजा।
सूल अणमावतां रावतां सिरोमण,
दुरत कळमूळ सादूळ दूजा।।


इण भांत भाद्राजूण रौ नाह बिहारीदास नाह पणां री भुजै लाजधारी अर रिपुवां री रजपूती माथै रूकां रा रटाका देय कुंवारी घड़ानै परणणै री चित में विचारी। खागां रा खगाटां सूं कितरा इज सूरां रौ हूरां सूं ब्याह रचायौ और रणभौम में नारद नै हड़हड़ हंसाय सिवनै मुण्डमाळ पहिराय चण्डिका रौ खप्पर भराय घरानै आयौ नै विजै रौ दमामौ घुरायौ। अैड़ी खगझाट रौ अछूतौ जस खाट रण रचायौ जिक एक बीजा गीत में इण रीत ओळखबा में आयौ -

कहर ऊकटे काट बज साट खत्रवाट की,
उड गयणाट पर धर उथाळा।
मोहणे जोध अयिााट मांटी पणै,
बोटियो थाट खग झाट वाळा।৷
खार के खेध अंहकार के खड़गहथ,
धार के धोम धड़हड़ धिंगारूं।
पछट थाटां तुरंग वाारके पारके,
मारके सारके रीठ मारू।।
सुतन उदैभाण घमसांण सत्र साझिया,
जुड़ण भव मुड़ण नन जतन जीदा।
साफळे सार गज भार असगा सगा,
वजाया पजाया नगा बीदा।।
अभिनमे मुकंद जोधा तणै आभरण,
सम चडै़ लडै़ सामंत सिंघाळौ।
सूर साटै लिया सूरसिंघ सरीखां,
अळवळे धुमंडै गिरंद वाळी।।


बिहारीदास इण भांत रजपूतां अर भीलां रै भरोसै भुजावां में भाला तोलै नै भला-भला भणायौ अर कायरां रा काचा काळजां नै कंप-कंपाया। जोधपुर रा स्वामी महाराजा मानसिंघ रै बखत में भाद्राजूण में ठाकुर बख्तावरसिंघ ठणकैल हुवौ। मारवाड़ में मानसिंघ रै समै नाथ जोगियां रौ इकडंकियौ बागौ। जिण रै धकै किणी भी ठाकर चाकर रौ दांव न लागौ। भीमनाथ रै उत्पात संू आखी मारवाड़ में राजा पिरजा में तणाव पैदा हुयौ जद अंग्रेजां मानसिंघ रै वरखिलाफ सेना मेली। राज में घाटा रौ समै आयौ। अंग्रेजां री खिराज री किस्तां चढ गई जद संवत 1861 में ठाकुर बख्तावरसिंघ अर ठाकुर रणजीतसिंघ कुचामण अर सिंघवी फौजराज अजमेर गया अर बीच में पड़नै मारवाड़ में गोरां री चढाई नै मोकूफ किवी। लाट सदरलैण्ड नै राजी कियौ। इण रीत बख्तावरसिंघ डिगती मारवाड़ रै थंभौ दियौ। फेर संवत 1866 में लाट सदरलैंड जोधपुर माथै फौजकसी करी। मारवाड़ रूपी जहाज अंग्रेज रूपी भ्रमर में फंसी। महाराजा मानसिंघ जोधपुर किला री कूचियां लाट साब नै सूंपी पछै सदरलैंड जोधपुर रौ राजकाज चलावण नै अैक कौन्सल बणाई जिकी में पोकरण पति बभूतसिंघ, आऊवा रौ अधीस खुसहालसिंघ, निबांज रौ नाह सवाईसिंघ, रियां रौ राजवी सिवनाथसिंघ कुचामण रौ कंत रणजीतसिंघ अर भाद्राजूण रौ भूप बख्तावरसिंघ मेढ़ी हुवा अर अंग्रेज रूपी बकासुर री डाढां मांय सूं मारवाड़ नै काढ़ी अर महाराजा मानसिंघ री बंदगी किवी ठाढ़ी-

रचै दमंगळ जुथ कण हुवै रिमां रा, तिमंगळ धखै जिम नाव तखता।
मान नर नाह रै ढाल दूजा मुकंद, वाह रे वाह राठौड़ बखता।।
बूझगर गुणां वित नवां खाटण बिरद, जोधपुर नाथ रा छळां जागै।
ईढ़गर बंधै तो उर मंडी ओयणां, लाजरा लोयणां झोक लागै।।
रतनहर आभरण उपासिक राम रा, ऊधरै चाचरै धरम आंकूर।
सांमध्रम करण बड वडां राखण सरण, सुतन जालम धरण नेत धन सूर।।
निपट सुधचाल दुर बिसन हेको नहीं, आथ मांणण सदा करण उदमाद।
बखतसीं तणी रजवट सको बखांणौ, बखतसी हूंत मांडै नको, बाद।।


महाराजा मानसिंघ री देखती नजरां जोधपुर रा किला माथै मीरखां नै दिखाणियां री फौज फौजबगसी गुलराज नै चूक कर मारियौ अर फौज बगसी फतैराज सिंघवी माथै भी कोप धारियौ। महामच्छ सिंधु नै मचोळे ज्यूं जोधपुर नगर रौ मानखौ हचौळै आयौ। जद किंणी भांत फतैराज ऊबरण रौ उगरास नीं पायौ जद भाद्राजूण रा भट बख्तावरसिंघ रै सरण आयौ। ओ प्रसंग अेक गीतड़ा में कवि बांकीदास बखांण नै जतायौ-

हुवौ चूक गुलराज नूं खबर आयी हमै, लूंबिया कटक खग करण लाटौ।
राखजै सरण बखतेस दूजा रयण, फतौ सिंघवी कहै गयण फाटौ।।
दिखण पूरब तणा पलटिया दहूंदळ, निरंतर तजै उपगार नेड़ौ।
तूझ बिण बिया नह तरै जालम तण, बगसियां तणौ रणसमंद बेड़ौ।।
तेग जड़ कमर साबळ पकड़ त्रिभागौ, छत प्रगट वीररस वौम छायौ।
पुखत सरणाइयां दैण निरभीत पद, अभंग धजराज री पीठ आयौ।।
रुद्र तिरसींग नूं करै ताळी रहत, हठी नरसींग नूं कवण हाकै।
काळ दाढां मही पैस फिर कठै कुण, चढ़ै कुंण धूबड़ा नाथ घांकै।।
बचाया सरण आया जिक घड़ी बिच, अड़ीखंभ उपद्रव ठेल अवड़ौ।
कियौ तै भोग जिम देर मोटम कमंध, जग मही धूबड़ौ मेर जवड़ौ।।


बख्तावरसिंघ फौजराज री मदद कर नै फाटा गयण रै थांभौ लगायौ जिण सूं मीरखां सिंघवीजी रौ बाळ भी बांकौ नीं करण पायौ। भाद्राजूण रौ भूप यूं आंटीलौ सरणदाता रौ बिड़द कमायौ। इण मरदांनगी री महक महिमंडळ सगळै छायी जिकी री वारता मांड मेवाड़, ढंढाड़ मांय पगां चाल आयी-

जिण कियौ ऊजळौ गिरंद धूबड़ौ गिरंदां।
पुर उदिया जैपुरां नखत जांणियौ नरिंदा।।
अंगरेजां आगळी सला जिण कीधी साबत।
दिली मिलै लाट सूं तीख राखी मुरधरपत।।
बखतेस काम कीधा वडा धणियां तणा धरम्मे।
निभावै हुकम न्रप मान रौ, पूगौ जोत परम्मे।।


बखतसिंघ संवत 1866 में सुरधाम पूगौ अर भाद्राजूण रै भाल भळ भळातो भाण सौ इन्द्रभाण ऊगौ। इन्द्रभाण आप रा कैड़ायत सिंघलां सूं संग्राम कियौ जठै अेक बार फेर महाभारत रौ-सौ चकाबौह हुयौ। सिंधला रौ सांम पन्नेसिंघ आपरा पवंग नै चिराई गांव माथै झोंकिया जिण री धाक सूं भाद्राजूण रा प्रजाजण कूकिया। पन्नेसिंघ आपरी बपौती खातर बारै बरस विखौ कियौ अर पछै भाद्राजूण माथै धावो दियौ। पन्नेसिंघ री वीरता रौ बखाण इन्द्रभाण भी कियौ-

जोधां तखत न्रपत भाद्राजण, दाद घणां मुख दीधी।
पायक रंग पन्ना तौ पांणप, कहतौ जैड़ी कीधी।।
धरा पाधरी सिंधल बंका, सहिया लोह सरीरां।
औ धर कर सांचौ ओखाणौ, पूगा महल परी रां।।
वारह बरस विखौ कर बारै, रहिया आसल राणां।
गांमौ गांम जरक घड़ गाढी, करक गमो गमै थाणां।।
रजवट पांण हजारां रुपिया, केहर जजर कराई।


भाद्राजण रा भड़ चढ़नै सिंधलां पर दौड़िया पण सिंधल भी रणभौम सूं पग पाछा नीं मौडिया जिका रा बरणण गीतकार आखरां में जोड़िया-

खाथाही ब्रहासां थांणे जिले रा आविया खडै,
पाळा होय धकै हूं खडै़ विणा पार।
ऊससै भुजाट खेहवाट असमान पड़ै,
जैणवार चढ़ै भाद्राजणी रै लोधार।।
आदौ सूजौ अचल्ल रामसिंघ आद,
चढ़ै भींच अनाहे त्रभागौ ले सुरंग।
सारा जालाणियां माथै कठठ आवधां साहै,
तीखी अणी माहेसरै रुधै री तुरंग।।
दूहौ
गिर धक दूणियौ, मैचकियौ इंद्रभांण।
पाड़ घणां धर पौढ़ियौ, रंग पन्ना रढ़ रांण।।


इण भान्त भाद्राजण री भौम घणा देखिया जंग झौड़ अर इतिहासां में ख्यात पायी ठावी ठौड़।

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