कवियां रौ कलपतरू मानसिंघ

Gyan Darpan
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राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार श्री सौभाग्यसिंह जी शेखावत की कलम से...........

जोधांण जोध महाराजा मानसिंघ (Maharaja Man Singh, Jodhpur) आपरै समै में घणा ठणका जोमराड़ राजा बाजियां। मारवाड़ में घणौ धळ-धौकळ, गोधम-धाड़ मानसिंघ रै बखत हुयौ। मारवाड़ रा थाप उथाप सांवत सूरमावां, रावां उमरावां नै पड़ौसी जैपुर, सेखावाटी, बीकानेर रै राजावां रै साथ मानसिंघ रौ अमेळइज रैयौ। लड़ाई भिड़ाई में गळा तांई डूबियोड़ौ भी मानसिंघ मारवाड़ में विद्या, कळा, संगीत रौ सरितावां बहाई अर गुणीजणां, कवीसरां, संतां-महंतां नै लाखां री माल मता, धन द्राव लुटाय नै विद्यारूपी बळेड़ी-सी इज जांणी उगाई। चारण कविराजावां नै इकसठ गांव दान में दिया अर नाथां जोगियां रै खातर लाखां रा पट्टा ईनायत किया। पण सोना रा थाळ में तांबा री तूप नी फाबै ज्यूं मानसिंघ नामी गिरामी नरनाह होतां थकां भी सुभाव रा घणा करड़ा, खारा अर आकड़ा रा दूध कै सोमल रै जैर जैड़ा मिनख हा। जिण माथै रूसिया उणां नै तो विख रा प्याला पाय नै इज सांस लियौ। दया तो उणां रै सारै कर इज नीं नोकळी। पोहकरण पति सवाईसिंघ नै चूक सूं मरायौ। निबाज रा नाह सुलतानसिंघ ऊदावत पर कोपायौ अर तोपां रा गोळां सूं निबाज री हवेली नै दुड़ाय नै चैन पायौ। आप रा कितरा इज कामेतिया रा प्राण लिया। उणां रा घर लुटाय पड़ाय धूळ भेळा किया। इणी क्रोधीला सुभाव रै वस आपरै रसोवड़ा रा हाकम बिहारीदास खींची माथै किणी चूक रा चकर में रूसाण उण नै मराण नै तोपखानौ चलायौ। जोधपुर नगर में जमराज रौ पिरवार सौ पगां चाल जांणी आयौ। जद ठाकुर बिहारीदास खेजड़ला रा खावंद ठाकुर सादूळसिंघ रै डेरे भाग नै आया। ठाकुर सादूळसिंघ अर उणां रा अनुज ठाकुर सकतीदान साथीण रा सांम बिहारीदास नै सरण आयौ जांण सरणागत ध्रम रै लेखै गळै लगायौ। अै समाचार सुण महाराजा मानसिंघ रै मन में क्रोध रौ उदध सौ उभड़ायौ पण राजनीत विचार नै मन में इज काळा-पीळा होयनै सीळा पणा रौ भाव दरसायौ अर पछै ठाकुर सादूळसिंघ नै समझाय नै बिहारीदास नै राज रै सुपरद करण रौ हुकम खिंनायै। पण सरणागत-ध्रम रा रुखाळा, सरणागत प्रीत रा पाळा, बात राखण नै लोह चाखण नै उतावळा सादूळसिंघ सकतीदानसिंघ पाछौ करड़ौ सौ जवाब पठायौ अर बिहारीदास रै खातर जीव जोखम घालण रौ मतौ उपायौ। जद ठाकुर सादूळसिंघ ठाकुर सकतीदानसिंघ फतैसागर रा मेल्हाण सूं बिहारीदास नै लेय नै सहर में आपरी हवेली में आया। भाटियां आपरी हवेली नै सजाई, मरमार री मन में उपाई। रजपूती नै उजाळबा री धक धराई। रजपूती रै खातर जीव झोकियौ अर निजळां मिनखां रै माथै जांणी थूकियौ। बा रजपूती री आंण अर आज रा मिनखां री पूंछ हलाई। आपरै मतलब री मिंत्राई जतावण नै घर-घर फेरियां देवता फिरै अर अड़मीच में आयोड़ा कूकर री भांत दांत दिखाय नै उमर रा दिन ओछा करै। पण रजवट री म्रजादा री मरोड़ राखै जिका तो बखत आयां ताता लौह भी चाखै। कह्यौ है-

रजपूती चावल जिती, सदा दुहेली होय।
ज्यूं ज्यूं चाढ़ै सेलड़ां त्यूं त्यूं भारी होय।।


सूरवीर सुभाव रा सीधा हुवै उवै न्याय रै मग माथै असंक व्है नै बुवै अर कायर लोग चुगली-चाडी री चौपड़ रा चौखा खिलारा हुवै। जद इज कितरा इज मिनख प्यादा सूं सीधा वजीर हुवै तौ कितरा इज अढाई घरी चाल सूं सटके सी मात देय नै विजै रा मोहरा धरै।

महाराजा मानसिंघ कोप कराय नै ब्रिज नै तहस-नहस करण इन्दर छप्पन हजार मेघमाळा मेली ज्यूं खेजडळा री हेली माथै तोपखानै चढायौ। नौबत रा नाद घुराया जांणी सांवण भादवा री सांवळी घटा उमड़ाई कै गोळां री ठौड़ ओळां री झड़ लगाई। ठाकुर सादूळसिंघ बिहारीदास री पूरी पख खांची। जोधपुर रै धणी सादूळसिंघ नै समझाय नै रजवट वट त्यागण नै लाख लोभ दिया पण आ सारी कोसीस इयां अफळ गई जाणी भैंस मुंहडै भागोत वांची। पछै सादूळसिंह आगै बिहारीदास सारौ अहवाल सुणायौ जिकौ सुण नै सूरवीरां री आंखियां में रोस इण भांत छायौ जांणै बरसात रै आडंग में सूरज रौ आतप सौ नजर आयौ। उण समै सादूळसिंघ सकतीदानसिंघ रौ साथ कैड़ोक अभिमन कुमार री ओळ-भोळ जैड़ोक। नागां पर रूठियौ पंखी राव कै सांकळ हटा सादूळ रै सुभाव। महाराजा मानसिंघ री ख्यात में औ वाकौ इण भांत मंडियौ-

‘‘खींची बिहारीदास लोक रा दंगा मुदे फतैसागर ऊपर थौ सौ खेजड़ला रै डेरे जाय बैठौ। तरै बिहारीदास नै लेनै खेजड़ला रा ठाकुर सादूळसिंघजी नै साथीण रा ठाकुर सकतीदानजी खेजड़ला री हवेली उरा आया। हजूर में मालम हुई। तरै भाटियां नै समझास कराई पिण बिहारीदास नूं पकड़ायौ नीं। तरै भाटियां री हवेली ऊपर कलंदरखां नै विदा कियौ। झगड़ी हुवौ। भाटी सकतीदानजी रै तरवारां 16 लागी। दोनूं कांनी रा आदमी मरण गया नै घायल हुवा। खींची बिहारीदास झगड़ौ कर काम आयौ। आ हजूर में मालम हुई तरै राज रा लोकां तूं झगड़ौ मोकूफ करण रौ हुकम पोतौ। भाटी सकतीदानजी रै पाटा बंधावण सारू हजूर सूं नायता मेलिया।

खेजड़लै साथीण रौ पटौ खालसै हुवौ। जिलौ जबत हुवौ। ठाकर सादूळसिंघ री वीरता री सगळी ठौड़ां वाहवाही हुई। पछै। महाराजा मानसिंघ ठाकुर सादूळसिंघ री बहादरी, मरदमी और रजपूती पर राजी व्है अर एक डिंगल गीत बणायौ अर उण में रजपूती रा बखाण कर नै दाद दिवी, गीत रा बोल सुणीजै-

करी तात अखियात जिण हूंत बाधू करी,
नाहरां तेग री उरस नांधी।
छटा अणमाप री चढ़तै जोर चख,
बाप री भलां तरवार बांधी।।
चालवी पिता जेम भार पड़ता चमू,
भिड़ा खग नाळियां आद भळकी।।
दळां न्रप भींव रा खीची जका दांमण,
मान रा दळां असमेर मुळकी।।
काज सरणाइयां भूप सिर रा बळी,
दुझळ धन रावळी कठै दांथी।
बाप रिव ठांभियौ घड़ी दोय बाजतां,
ताहि सुत ठांभियौ पौहर तांथी।।
झडं़ती आग वरजाग तप झेलणां,
ढाल सुं प्रबळ गिरमेर ढकणां।
भाटियां जेम प्रथमाद रा भूपतां,
राव सरणावियां अेम रखणां।।


महाराजा भींवसिंघ रै समै में ठाकर सादूळसिंघ रा पिता ठाकर जसवंतसिंघ भी घणां अड़ीला सरदार हुवा। जसवंतसिंघ मारवाड़ रा बीजा सरदारां रै साथ भींवसिंघजी रौ पख झालियां रैया अर मानसिंघजी री ग्यान गिंणत नीें राखी। पछै मानसिंघ रै तांई साकदड़ा रा जुद्ध में जसवंतसिंघ रौ छोटौ भाई जोधसिंघ काम आयौ ही सौ उण अैसाण नै जोय सकतीदान सिंह नै साथीण रौ ठिकाणौ तुंवौ बांध बंधाय दियौ अर नगारौ नीसांण भी इनायत कियौ। औ पट्टौ संवत १८६० में मोळियौ।

गीत में ठाकुर सादूळसिंघ री बावत कवि कैयौ है -हे सादूळसिंघ, आपरा पिता जैड़ी वीरता री अखियात बातां करी तूं उणसूं इज सिवाय चढ़ती बढ़ती वीरता दिखाई। थां न्याय इज ठाकुर जसवंतसिंघ री तरवार बांधी नै खेजड़ला री गादी बैसियौ। थां महाराजा भींवसिंघ री सेना में जिकी तरवार चमकाय’र जस खाटियौ वैड़ी इज महाराजा मानसिंघ रै दळा में खड़ग चलाय कीरत रौ खळौ लाटियौ। जोधपुर जैड़ी बड़ी नै बळवान रियासत रा सबळा राजा री आग्या री बिना परवाह करि सरणागत री पालणां कर नै हठीला वीर राजा हम्मीर चौहाण रणभंवर री याद ताजा करी। हे उत्तरधरा रा भड़किंवाड़ तूं पूर्वधरा रा खींची नै सरण देय नै वडौ रजपूती रौ काम कियौ।
इण भांत ठाकुर सादूळसिंघ बिहारीदास खींची नै सरण देय नै संकट मोल लियौ अर रजपूती री तीखचौख में सिरै आपरौ नांव लिखाय लियौ।
सरणागत आवणिया नै आसरौ देय हे वीर सादूळसिंघ ! तूं राजावां सूं भी वधतौ साहस रौ, ताकत रौ धणी है। भलां, थांरी असि रा आपाँण री ओपमा नै बखांण कठां तोई करां। थारै पिता तो आपरै जुध चमत्कारां सूं सूरज नै आकास में दोय घड़ी रोकियौ पण तूं तो दोय घड़ी री ठौड़ आपरी क्रपाण री करामात रा चकाबौह सूं एक पौहर तांई सूरज रा रथ नै आकास में थांभ नै अजोड़ वीरता रौ काम कियौ। ठाकुर सादूळसिंघ रै धकै बिहारीदास भी आगै बढ़नै खागां खड़काई अर आपरै बडेरा मेळग, अचलदास, जिन्दराव री रीत भांत वीरता प्रगटाई। कवि बिहारीदास जैड़ा वीर नै बखाणता कह्यौ-

तन तोड़ै त्रण जेम, नीर कुल चाडणां।
मांडै अलोखा लेख वीरत रा मांडणां।।
ज्यां आगै बळवान न ऊबरै पण लियां।
आगै चलिया ऊबरै कै मुख त्रण लियां।।
खागां वाळै खेल सलोभां लागणा।
भिड़ जाणै भाराथ न जांणै भागणा।।
सिर साटै लड़ जाय वींटिया लाज में।
आंणै आळा नांहि खत्रवट पाज में।।
खावै सनमुख घाव पहर तन सेलड़ा।
पीठ न खावै घाव खगां कर खेलड़ा।।


अैड़ा वीर आठ पौर चौसठ घड़ी मरणै-मारणै तांई कमर बांधिया, सजिया धजिया, केसरिया बागा किया अपसरावां रा आसिक बण्यिा रैवै-
कैसर चोळ दकूल सज्या तन नेहरा।
राखै तैं दिन रात बंध्या सिर सेहरा।।
वनां अपछरां काज बण्या है वींद की।
ज्यां परण्या बिन आस न पूरै नींद की।।


अैड़ा इज सूरमां गनीमां री घड़ां रा घट भांज नै रणभौम में गुड़ावै अर वैरियां रा प्राणां नै जमराज री कचहड़ी में पठावै।
ठाकुर सादूलसिंघ अैड़ौ जंग जुड़ियौ जिका रै खातर भाटियां तांई अैड़ी बिड़द चाल पड़ियौ-
विरधै नहीं बखत पड़िया रा, भाटी अणियां रा भंमर।।




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1टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-01-2016) को "प्रेम-प्रीत का हो संसार" (चर्चा अंक-2237) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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