सुविधा के नाम पर टोल रूपी लगान की वसूली

Gyan Darpan
2
आजादी के बाद भ्रष्टाचार के चलते सरकार द्वारा किये कराये जाने वाले हर कार्य में भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद व अफसरशाही की बदौलत जहाँ किसी भी विकास कार्य की लागत बढ़ जाती है, वहीँ निर्माण भी घटिया होते है. देश की सड़कों का इस मामले में सबसे बुरा हाल रहा है. इसी समस्या से बचने व सरकारी खजाने पर आर्थिक बोझ कम करने के उद्देश्य से पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप Public Private Partnership के तहत विकास कार्य की योजनाएं बनी. जिसके तहत प्राइवेट कम्पनी कोई प्रोजेक्ट यथा सड़क, फ्लाईऑवर आदि बनायेगी और उस पर से गुजरने वाले से एक निश्चित समयावधि के लिए टोल Tol Tax के रूप में अपनी लागत वसूलेगी. इस आधार पर देश में कई राजमार्ग, फ्लाईऑवर आदि बनाये गये. जनता को भी गड्डों वाली सड़क की अच्छी सड़क की सुविधा मिली तो उसे टोल चुकाने में कोई परेशानी नहीं हुई.

लेकिन देश की विकराल समस्या बना भ्रष्टाचार यहाँ भी आ धमका. ठेकेदार कम्पनियां ने यहाँ अपनी लागत से सैंकड़ों गुना वसूलने के लिए भ्रष्टाचार का सहारा लेने लगी. कई राजनेताओं व शराब माफिया ने अपना काला धन इन योजनाओं में खफा कर सफ़ेद करने का खेल खेलना शुरू कर दिया. क्योंकि मिली जानकारी के अनुसार टोल द्वारा हुई कमाई पर आयकर नहीं देना पड़ता. अत: इस सुविधा का फायदा उठाने हेतु कालाधन कमाने वालों का इसमें कूदना कोई नई बात नहीं थी.

खैर.....जनता को टोल रूपी अच्छी सड़क की सुविधा मिले तो उसे चुकाने में कोई शिकायत नहीं. लेकिन इस खेल में भ्रष्ट नेताओं व माफिया के घुसने के बाद जनता को ख़राब सड़क पर भी टोल चुकाना पड़ता है. ज्यादातर ठेकेदार सरकार से किये अनुबंध शर्तों के अनुसार सड़कों का रखरखाव नहीं करते, यात्रियों द्वारा शिकायत करने पर टोल पर रखे गुंडे उनके साथ लड़ाई झगड़ा करते है. ख़राब सड़कों पर टोल वसूली व वसूली में अड़चन ना ये के लिए लिए गुंडों, बदमाशों की तैनाती देखकर लगता है कि ये कम्पनियां जनता की सुविधा के लिए नहीं वरन टोपी रूपी लगान वसूलने के लिए आधुनिक नवसामंतों (वर्तमान नेताओं) द्वारा तैनात किये गए है. एक तरफ ये नेता आजादी के बाद भी आजादी पूर्व लगान वसूली की मनघडंत कहानियां जनता को सुनाकर सामन्ती शासन के खिलाफ भाषण देते है वहीं खुद इन नेताओं ने लोकतान्त्रिक प्रणाली में भी टोल रूपी लगान वसूलने का यह पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप रूपी नया हथकंडा अपना रखा है.

इस सिस्टम में राजनेता कैसे कमाते है का उदाहरण देते हुए पिछले 30 नवम्बर 2014 को जयपुर में अभिनव राजस्थान समागम में टोल व्यवस्था के खिलाफ लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता यशवर्धन सिंह ने बताया कि झुंझुनू-सीकर मार्ग पर राजस्थान के दो विधायकों की कम्पनी ने 70 किलोमीटर की सड़क पर 45 करोड़ रूपये खर्च किये, जिसे वसूलने के लिए कम्पनी को साढ़े छ: वर्ष का ठेका मिला और कम्पनी ने इन दौरान 220 करोड़ रूपये टोल के रूप में वसूले. लागत से चार गुना वसूलने के बाद भी कम्पनी व अधिकारीयों के समूह का लूटने का दिल नहीं भरा तो उन्होंने यह कहते हुए कम्पनी को अगले साढ़े छ: साल के लिए फिर ठेका दे दिया कि कम्पनी ने नाली निर्माण पर एक करोड़ खर्च किया है. मतलब एक करोड़ वसूलने के लिए कम्पनी को 220 करोड़ से ज्यादा वसूलने का ठेका दे दिया गया.

इस तरह की खबरे सुनने व सड़क यात्रा के दौरान लगभग एक रुपया प्रति किलोमीटर टोल चुकाने के बाद लगता है कि हम आज भी टोल के रूप में लगान ही चूका रहे है. भले ही हम मन में यह अहसास पालें बैठे रहे कि हम आजाद देश के आजाद नागरिक है, हमारी अपनी सरकार है!

एक टिप्पणी भेजें

2टिप्पणियाँ

  1. हमारे नेता लोग तो सब से बड़े चोर व स्वार्थी हैं यह लोग राजनीति में सेवा की भावना से नहीं पैसा कमाने के लिए आये हैं इसलिए इनसे और क्या अपेक्षा की जा सकती हैं यह भांग पुरे कुँए में ही पड़ी है इसलिए आम नागरिक जाये भी तो कहाँ

    जवाब देंहटाएं
एक टिप्पणी भेजें