कमलेश चौहान का उपन्यास "सात जनम के बाद"

Gyan Darpan
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अमेरिका में रहने वाली लेखिका कमलेश चौहान गौरी द्वारा लिखित और बोद्धि प्रकाशन, जयपुर द्वारा प्रकाशित उपन्यास "सात जन्मों के बाद" "Sat Janam Ke Baad" कुछ दिन पहले ही मिला. गौरी से सोशियल साइट्स के माध्यम से कई वर्ष पहले परिचय हुआ. उसके बाद वह दो बार भारत आई तब प्रत्यक्ष मिलना हुआ, उससे पहले उनके प्रकाशित दो उपन्यास "सात समन्दर पार" व "सात जन्मों का धोखा" पढ़ चूका था. चूँकि गौरी अमेरिका में महिला सशक्तिकरण पर वर्षों से कार्य कर रही है. इसी वजह से उनके पास कई पारिवारिक झगड़ों के मामले आते है और वो उन्हें सलझाने में उनकी (काउंसलिंग के माध्यम से) मदद करती है. दोनों ही उपन्यास इसी तरह के विषय वाले उदाहरणों पर आधारित थे, जिस विषय पर गौरी समाज सेवा करती है. अत: इन उपन्यासों से उनके सामाजिक सरोकारों व अमेरिका, कनाडा आदि जगह बसे भारतवासियों की समस्या से परिचय होता है.

लेकिन इस बार गौरी के उपन्यास "सात जन्मों के बाद" का विषय सिर्फ अप्रवासी भारतियों पर ही नहीं था बल्कि उनके उपन्यास के पात्र भारत में बसने वाली क्षत्रिय जाति से संबंधित है. क्षत्रिय जाति से सीधा संबंध होने के नाते उपन्यास की इसी खासियत ने मुझे इसे पढने हेतु ख़ासा आकर्षित किया. उपन्यास का यह पहला भाग भारत के एक पूर्व राजपरिवार के वंशज पूर्व महाराजा भीम सिंह के परिवार के आप-पास घूमता नजर आया. गौरी वर्षों से भारत से सुदूर अमेरिका निवास करती है. जाहिर है हमारी नजर में गौरी अमेरिकी संस्कृति से ओतप्रोत होगी. लेकिन गौरी का उपन्यास "सात जन्मों के बाद" पढने के बाद जहाँ आपको गौरी का अपनी मातृभाषा हिंदी के प्रति प्रेम नजर आएगा, वहीं गौरी का भारतीय खासकर राजपूती संस्कृति के प्रति लगाव, जुड़ाव देखकर आप हतप्रभ हो जायेंगे कि अमेरिकी संस्कृति के बीच रहने वाली गौरी कैसे भारतीय संस्कृति, नैतिक व राजपूती मूल्य अपने जीवन में आत्मसात किये सामंजस्य बिठा लेती है.

प्रस्तुत उपन्यास में गौरी ने राजपूती संस्कृति, राजपूती रिवाजों, राजपूती सामाजिक व नैतिक मूल्यों, राजपूती आचरण, रहन सहन का बहुत ही बढ़िया और सटीक चित्रण व वर्णन किया है. गौरी कभी राजस्थान में रही नहीं फिर भी उसने अपने सायबर संसार में उपस्थित राजस्थान के मित्रों से चर्चा कर, विभिन्न जानकारियां लेकर अपने उपन्यास के राजपूत पात्रों की कहानियों के साथ पूरा न्याय किया है जो गौरी के लेखन स्तर का परिचय कराता है.
आजादी के बाद लोकतांत्रिक शासकों द्वारा राजपूतों का समूल पतन करने हेतु दुष्प्रचार व जागीरदारी उन्मूलन के नाम पर गरीब कृषक राजपूत भूमि छिनी गई व कई हथकंडे अपनाये गए. उपन्यास पढने से साफ़ जाहिर होता है कि यह दुष्प्रचार सिर्फ भारत तक ही सिमित नहीं रहा क्योंकि अमेरिका में रहने वाली गौरी भी अपने उपन्यास में इस दुष्प्रचार से आहत नजर आती है और वह अपने उपन्यास के माध्यम से अपने विदेशी पाठकों को संदेश देना चाहती है कि राजपूतों के खिलाफ यह दुष्प्रचार था, आजादी के बाद लोकतांत्रिक सरकारों ने राजपूतों के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार करने के बजाय विपरीत आचरण ही किया जबकि राजपूतों का आचरण बहुत अच्छा है, उनके मन में मानवीय मूल्यों के प्रति सबसे ज्यादा संवेदना है. इस उपन्यास के माध्यम से गौरी अपना सतोगुणी जातीय धर्म निभाते हुए अपने पाठकों के मन में अपनी जाति के प्रति पूर्वाग्रहों का निवारण करती भी नजर आती है.

राजा भीम सिंह के शिकार अभियान में शामिल उनकी पुत्री राजेश्वरी का शिकार के बाद बेजुबान पशुओं के वध पर आत्मग्लानी महसूस करना और अपने पिता को भविष्य में शिकार ना करने के लिए राजी करना, एक तरफ एक क्षत्रिय बालिका के मन में निरीह प्राणियों के प्रति प्रेम दर्शाता है. वहीं थोड़ी ही देर में एक आदम खोर शेर के आतंक से बचाने की गांव वालों की गुहार पर बन्दुक उठाकर पिता के साथ चल देना और आदमखोर शेर को धरासायी कर देना जाहिर करता है कि क्षत्रिय बलाएँ आज भी वीरता, पराये दुःख में शरीक होने के मामले में अपने पूर्वजों का अनुसरण करने के मामले में पीछे नहीं है.

महाराजा भीम सिंह व महारानी द्वारा अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति के बावजूद सामाजिक सरोकारों के प्रति सजग रहने व सक्रीय रहना दर्शाकर एक क्षत्रिय के मन में गरीब, वंचित के प्रति मन आज भी पूर्व जैसा दर्द महसूस कराया है. एक ब्राह्मण प्रोफ़ेसर द्वारा महाराजा की पुत्री का भरी सभा में हाथ मांगने पर महाराजा का शांत रहना व प्रोफ़ेसर के पिता द्वारा वहीं अपने पुत्र को डांटना व भीम सिंह का अपमान करने की कहानी भी सन्देश दे रही है कि राजपूत हर छोटी बात पर उत्तेजित नहीं होते, जबकि अन्य लोग बेवजह छोटी छोटी बातों पर बखेड़ा खड़ा कर अपनी व अपनों की जिन्दगी में तूफान खड़ा कर देते है. हालाँकि उपन्यास का कोई पात्र अंतरजातीय विवाह नहीं करता और अपनी अपनी संस्कृति व धर्म के अनुसार आचरण करता है.

गौरी ने उपन्यास में जहाँ इतिहास के कुछ अंश जोड़ने की कोशिश की वहीं राजपूत इतिहास के साथ वामपंथी व कथित सेकुलर इतिहासकारों द्वारा छेड़छाड़ कर गलत तथ्य प्रस्तुत करने पर नाराजगी जाहिर की है साथ ही आरक्षण व्यवस्था पर भी कई जगह चोट की है. इस तरह इतिहास के साथ छेड़छाड़, राजपूतों के खिलाफ दुष्प्रचार, आरक्षण, कश्मीर समस्या आदि पर कलम से चोट करना दर्शाता है कि गौरी भले सुदूर अमेरिका में रहती है, पर उसका दिल आज भी भारत में बसता है. पाश्चात्य संस्कृति के बीच रहने के बावजूद गौरी (कमलेश चौहान) भारतीय संस्कृति से बेइन्तहा प्यार करती है. राजपूत संस्कृति व आचार-विचार उसके कण-कण में बसे है, जिस पर गौरी को गर्व भी है और उन पर दूसरों के हमलों से वह आहत भी है.

कुल मिलाकर गौरी की यह एक शानदार कृति है, जिसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को पढना चाहिए, खासकर उन क्षत्रिय को जरुर पढना चाहिए जिन्हें अपनी संस्कृति, परम्पराएं रूढ़ियाँ लगती है और वे पाश्चात्य संस्कृति अपनाने को उतावले रहते है.

यह पुस्तक प्रकाशक के निम्न पते से मंगवाई जा सकती है
बोद्धि प्रकाशन
एफ-77, सेक्टर-9, रोड़ नंबर- 11,
करतारपुरा इंडस्ट्रियल एरिया, बाईस गोदाम,
जयपुर- 302006
दूरभाष : 0141-2503989, 98290-18087
email : bodhiprakashan@gmail.com
Price : Rs. 200/- Only

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