वातानुकूलित कक्षों में बैठ चर्चा करने से नहीं बचेगा पर्यावरण

Gyan Darpan
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कल “दी ओशियन ग्रुप” द्वारा आयोजित खाना, पानी और पर्यावरण के बदलाव पर दिल्ली के इंडिया हेबीबेट सेंटर में एक सेमीनार में भाग लेने का अवसर मिला| जिसमें मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुये दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के प्रोफ़ेसर डा. श्रीकांत गुप्ता ने विश्व के बिगड़े पर्यावरण पर आंकड़े प्रस्तुत करते हुये पर्यावरण पर अंग्रेजी में एक लम्बा चौड़ा भाषण झाड़ा और बिगड़ते पर्यावरण पर चिंता जाहिर की, हालाँकि अंग्रेजी में होने के चलते उनका काफी भाषण हम जैसे हिंदी ब्लॉगर के ऊपर से उड़ गया लेकिन मोटा मोटी यही समझ आया कि प्रोफ़ेसर गुप्ता ने आंकड़े जुटाने के लिए काफी मेहनत की है वो बात अलग है कि उनके आंकड़ों व उनकी शोध से सेमिनारों में थूक उछालते हुये सिर्फ भाषण देकर बिगड़े पर्यावरण पर चिंता व्यक्त कर अपनी दुकानदारी चलाई जा सकती है या पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाले देशों की किसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था से ईनाम झटका जा सकता है जो खुद प्रदूषण फैलाते हुये पर्यावरण बिगाड़ने का ठीकरा विकासशील या अविकसित देशों पर फोड़ने का ड्रामा व प्रयास करते रहते है|

साथ ही जो ग्रीन हाउस गैसें ओजोन परत को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाकर पर्यावरण बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार है, ऐसी सेमीनारें वहीं होती है जहाँ के वातानुकूलित कक्ष के एयरकंडीशनर यह गैसें छोड़ने के लिये जिम्मेदार है, ऐसी दशा में वातानुकूलित गाड़ियों में चलने वाले लोगों द्वारा व वातानुकूलित कक्ष में बैठकर सेमीनार या चर्चा करने का क्या औचित्य?
यदि हमें पर्यावरण की रक्षा करनी है तो प्रकृति के साथ चलना पड़ेगा, अपनी चर्चा में उस गरीब व्यक्ति को भी शामिल करना पड़ेगा जो सबसे ज्यादा प्रकृति के साथ रहता है| और ये सेमीनारें व चर्चाएँ भी वातानुकूलित कक्ष में बैठकर करने की बजाय किसी पेड़ की छांव में करनी पड़ेगी जो पर्यावरण के अनुकूल है| साथ ही पर्यावरण को बचाना है, बचाना है पर गाल बजाने के साथ ही वो कार्य भी करके दिखाने होंगे जैसे वाटरमेन राजेन्द्र सिंह ने करके दिखाया है|

कल की सेमीनार में सुखद यही रहा कि वहां वाटरमेन राजेन्द्र सिंह ने पर्यावरण के बिगड़ने के आंकड़े बताने, चिंता जाहिर करने के बजाय वो उपाय सुझाये जिन्हें अपनाकर इस समस्या से निजात पाई जा सकती है| राजेन्द्र सिंह ने भी दर्द व्यक्त किया कि इस तरह की बहस और चर्चाओं में आम आदमी की उपेक्षा की जाती है, और कथित वैज्ञानिक, प्रोफ़ेसर व विशेषज्ञ अपने भाषण झाड़ते है लेकिन उनके पास वो तकनीक व ज्ञान नहीं है जो एक गरीब किसान, मजदुर के पास है| उन्होंने बताया कि एक गरीब किसान सीधे शब्दों में बात करता है वो नहीं जानता कि क्या ओजोन है? क्या पर्यावरण है? वो तो सिर्फ यही जानता है कि धरती को बुखार हो गया और इसी वजह से मौसमचक्र भी बिगड़ गया और इसका एक ही उपाय है धरती पर हरियाली बढ़ा दो, सुखी धरती पर पानी बहा दो, धरती का बुखार उतर जायेगा और मौसमचक्र भी सुधर जायेगा| लेकिन यह छोटी सी बात किसी विश्वविद्यालय में नहीं पढ़ाई जाती, कोई वैज्ञानिक इसे नहीं जानता|

वाटरमेन ने बताया कि उन्हें एक वृद्ध किसान मांगू मीणा ने तीन दिन में धरती के बारे में इतना ज्ञान दे दिया जितना 19 साल पढ़कर पीएचडी करने वाले को कोई यूनिवर्सिटी नहीं देती|

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5टिप्पणियाँ

  1. लेकिन हमारी सरकार, नेताओं अधिकारीयों के समझ यह बात नहीं आ सकती वे इसी प्रकारही योजनाएं बनाएंगे व लागू करेंगे

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  2. रतन जी, हम जैसों के लिए Name/ URL का प्रावधान रखिये हुजूर :)

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