चुनाव पूर्व अक्सर तीसरे मोर्चे की चर्चा चलना आम बात है, चुनाव की घोषणा होते ही छोटे बड़े क्षेत्रीय राजनैतिक दल केन्द्रीय सत्ता में ज्यादा से ज्यादा भागीदारी पाने को लालायित होकर तीसरे मोर्चे के गठन की कवायद तेज कर देते है, इस तरह के मोर्चे में ज्यादातर मौकापरस्त दल और नेता होते है जिन्हें एक दुसरे की नीतियों व विचारधारा से कोई मतलब नहीं होता, उनका मकसद येनकेन प्रकारेण संसद में सत्ता की मलाई से ओरों से ज्यादा चखने से रहता है|
पर इन चुनावों में तीसरे मोर्चे के गठन की कवायद शुरू होना तो दूर, बातचीत भी नहीं चली| कारण स्पष्ट था अरविंद केजरीवाल द्वारा गठित आम आदमी पार्टी|
आम आदमी पार्टी के गठन के बाद दिल्ली के कई मौकापरस्त व महत्त्वकांक्षी लोग जिनकी राष्ट्रीय पार्टियों में दाल नहीं गल रही थी, आसानी से आम आदमी पार्टी में घुस गये और दिल्ली में “आप” को मिली अप्रत्याशित विजय ने ऐसे लोगों को “आप” पार्टी का सदस्य बनने की लम्बी लाइन लगाने को मजबूर कर दिया| साथ ही “आप” की इस दिल्ली विजय ने सभी क्षेत्रीय दलों को नेपथ्य में धकेल तीसरे मोर्चे की गठन की कवायद व संभावना को ही ख़ारिज कर दिया| आज जहाँ भी चुनावी चर्चा सुनने को मिलती है वहां सिर्फ और सिर्फ “आप” और “भाजपा” की टक्कर की बात सुनाई देती है| कांग्रेस पार्टी भी चुनावी दंगल में नेपथ्य में चली गई है हालाँकि कांग्रेस अंदरखाने खुश नजर आ रही है कि आम आदमी पार्टी भाजपा के नरेंद्र मोदी का रथ दिल्ली के बीच रास्ते में ही रोक देगी और उन्हें गुजरात में रहने को ही मजबूर कर देगी, देखा जाय तो जो काम कांग्रेस को करना चाहिये था अब वह उस कार्य के लिए “आप” की और आशा भरी नजरों से टकटकी लगाये बैठी|
एक तरह से देखा जाय तो “आप” तीसरे मोर्चे का विकल्प बन चुकी| जो लोग सत्ता के गलियारों में घुसने के लिए तीसरे मोर्चे के गठन की आस लगाये बैठे रहते थे वे मौकपरस्त व महत्वकांक्षी लोग अब “आप” में घुस कर सत्ता की मलाई चाटना चाहते है|
आज दिल्ली विधानसभा की आम आदमी पार्टी सरकार में पनपे असंतोष की और नजर डालें तो इसके पीछे भी उपरोक्त किस्म के नेताओं की “आप” में घुसपैठ ही जिम्मेदार है| चूँकि “आप” से विजयी नेता और “आप” में घुसे ज्यादातर लोगों को अरविन्द केजरीवाल और उसकी खास टीम को भरोसा नहीं है अत: केजरीवाल एंड टीम उन्हें कोई फैसला नहीं लेने देती बल्कि अपने फैसले उन पर थोपती है, और ऐसा कर केजरीवाल कोई गलत नहीं कर रहे है (यदि उन्होंने बिना परखे इन नेताओं को छुट दे दी तो ये अपने कर्मों से आम आदमी पार्टी का बंटाढार करने में देर भी नहीं लगायेंगे) और यही कारण है कि ऐसे फैसलों व राजनीति में अबतक की परम्परा के अनुरूप मलाई बटोरने का मौका ना मिलना ही असंतोष को जन्म दे रहा है|
और ये सब होना ही था आखिर जो काम तीसरे मोर्चों में आजतक होते आये है वे मोर्चे के विकल्प में भी तो होंगे|
aam aadmi party, teesra morcha, arvind kejriwal
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10टिप्पणियाँ
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मौका परस्त पार्टियों को सिर्फ मौका भर मिल जाय ...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: कुसुम-काय कामिनी दृगों में,
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन इंटरनेशनल अवॉर्ड जीतने वाली पहली बंगाली अभिनेत्री थीं सुचित्रा मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंराजनीति अपने दुर्गम चरण पर है, देखें देश को क्या मिलता है?
जवाब देंहटाएंतथ्यों पर आधारित सटीक लेख पसन्द आया । धन्यवाद शेखावतजी ।
जवाब देंहटाएंआप का सफ़र भी अभी बहुत लम्बा है,राजनीती के वास्तविक धरातल पर अभी जमने और जाजम बिछा लोगों को थामे रखने में बड़ी कठिनाइयां आती हैं.पहले से स्थापित पार्टियां इन्हें क्या क्या करने देगी, गौर करने योग्य है.
जवाब देंहटाएंhttp://www.aadhiabadi.com/society/politics/867-who-is-arvind-kejriwal-in-hindi
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स अपने ब्लॉग का ट्रैफिक बढायें 10 गुना
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सटीक बात। अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंsateek vichar lekin janta tojanardan hi rahegi bina uski sehmati se koi nahi tiknevala
जवाब देंहटाएंapni ye majboori he enko dhona desh ke liye bada jaruri he
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